Saturday, April 20, 2024

रवीश ने एडिटर्स गिल्ड को लेकर क्यों की गलत बयानी?

एनडीटीवी के पत्रकार रवीश कुमार ने मनीला में मैग्सेसे पुरस्कार समारोह के मौके पर बेहतरीन भाषण दिया। अपने भाषण में उन्हें भारत के बिके हुए और डरे हुए मीडिया की जमकर खबर लेने के साथ ही देश में लोकतंत्र पर मंडरा रहे संकट और कश्मीर में मीडिया के सरकारी दमन की भी शिद्दत से चर्चा की। लेकिन अपने भाषण के एक हिस्से में प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया की शर्मनाक भूमिका का जिक्र करते हुए उन्होंने जो गलतबयानी की वह बेहद अखरने वाली रही।

रवीश ने कहा, ”कश्मीर टाइम्स की संपादक अनुराधा भसीन मीडिया पर लगाई पाबंदियों के खिलाफ जब सुप्रीम कोर्ट जाती हैं तो उनके खिलाफ प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया भी वहां पहुंच जाती है, यह कहने के लिए कि मीडिया पर लगाई गई पाबंदियों का वह समर्थन करती है। मेरी राय में प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया और पाकिस्तान के मीडिया रेगुलेटरी अथॉरिटी का दफ्तर एक ही बिल्डिंग में होना चाहिए।’’ रवीश का यह कथन बिल्कुल दुरुस्त था, लेकिन इसके बाद उन्होंने जो कहा वह बिल्कुल तथ्यों से परे है। उन्होंने कहा कि गनीमत है कि एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने कश्मीर में मीडिया पर लगी पाबंदियों की निंदा और प्रेस काउंसिल के रवैये की आलोचना की और इसके बाद ही प्रेस काउंसिल ने अपने कदम पीछे खींचे।

रवीश की इस गलतबयानी के बरक्स हकीकत यह है कि प्रेस काउंसिल के चेयरमैन जस्टिस चंद्रमौलि कुमार प्रसाद के मनमाने और सरकार समर्थक रवैये के खिलाफ सबसे पहले काउंसिल के ही सदस्य और हाल ही में प्रेस एसोसिएशन के दूसरी बार अध्यक्ष चुने गए जयशंकर गुप्त ने मोर्चा खोला था। उनकी ही पहल पर प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में प्रतिरोध सभा का आयोजन हुआ था, जिसमें कुछ अन्य पत्रकार संगठनों के प्रतिनिधि भी शामिल हुए थे, लेकिन एडिटर्स गिल्ड के पदाधिकारी बुलाने के बाद भी नहीं आए थे। उस सभा में कई पत्रकारों ने मीडिया के सरकारी दमन और प्रेस काउंसिल के चेयरमैन की मनमानी की कड़ी निंदा की थी और एक प्रस्ताव भी पारित किया था। इस पूरे मामले को लेकर वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश ने भी अपने चर्चित कार्यक्रम ‘मीडिया बोल’ में अनुराधा भसीन और जयशंकर गुप्त के साथ विस्तार से चर्चा की थी।

इसी सभा के बाद एडिटर्स गिल्ड के आभिजात्य उर्फ दलाल नेतृत्व को भी शर्म आई और उसने भी काउंसिल की निंदा का एक बयान जारी करने की औपचारिकता निभाई। दरअसल प्रेस क्लब में हुई प्रतिरोध सभा से ही प्रेस काउंसिल के खिलाफ माहौल बना और काउंसिल के चेयरमैन को यू टर्न लेना पड़ा। इस पूरे प्रकरण की खबरें हिंदी के तो नहीं, मगर अंग्रेजी के अखबारों में विस्तार से छपी थीं, जो रवीश कुमार ने भी निश्चित ही पढ़ी होंगी। लेकिन रवीश इस पूरे प्रकरण को हजम कर गए और उन्होंने अपने भाषण में काउंसिल के यू टर्न लेने का पूरा श्रेय एडिटर्स गिल्ड को दिया।

उनकी इस गलतबयानी को उनकी भूल-चूक माना जा सकता था, अगर उन्होंने लिखित भाषण नहीं पढ़ा होता। चूंकि उनका भाषण लिखित में था तो जाहिर है कि उसमें कही गई एक-एक बात सुविचारित ही होगी। सवाल यही है कि उन्होंने यह ‘सुविचारित गलतबयानी’ आखिर क्यों की? वे एडिटर्स गिल्ड जैसे ‘आभिजात्य दलालों’ के कुख्यात संगठन का जिक्र नहीं करते तो भी उन्होंने जो भाषण दिया, वह प्रभावी ही माना जाता। 

(अनिल जैन वरिष्ठ पत्रकार हैं और आजकल दिल्ली में रहते हैं।)

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

लोकतंत्र का संकट राज्य व्यवस्था और लोकतंत्र का मर्दवादी रुझान

आम चुनावों की शुरुआत हो चुकी है, और सुप्रीम कोर्ट में मतगणना से सम्बंधित विधियों की सुनवाई जारी है, जबकि 'परिवारवाद' राजनीतिक चर्चाओं में छाया हुआ है। परिवार और समाज में महिलाओं की स्थिति, व्यवस्था और लोकतंत्र पर पितृसत्ता के प्रभाव, और देश में मदर्दवादी रुझानों की समीक्षा की गई है। लेखक का आह्वान है कि सभ्यता का सही मूल्यांकन करने के लिए संवेदनशीलता से समस्याओं को हल करना जरूरी है।

Related Articles

लोकतंत्र का संकट राज्य व्यवस्था और लोकतंत्र का मर्दवादी रुझान

आम चुनावों की शुरुआत हो चुकी है, और सुप्रीम कोर्ट में मतगणना से सम्बंधित विधियों की सुनवाई जारी है, जबकि 'परिवारवाद' राजनीतिक चर्चाओं में छाया हुआ है। परिवार और समाज में महिलाओं की स्थिति, व्यवस्था और लोकतंत्र पर पितृसत्ता के प्रभाव, और देश में मदर्दवादी रुझानों की समीक्षा की गई है। लेखक का आह्वान है कि सभ्यता का सही मूल्यांकन करने के लिए संवेदनशीलता से समस्याओं को हल करना जरूरी है।