Friday, April 19, 2024

लापरवाही के लिए चुनाव आयोग की जिम्मेदारी क्यों न हो तय?

चुनाव आयोग को यह बताना चाहिए कि किन कारणों से उसने बंगाल के विधानसभा चुनाव को आठ चरणों तक खींचा है? जब पूरे देश का चुनाव, सात चरणों में कराया जा सकता है, केरल, तमिलनाडु,  पुद्दुचेरी और असम के चुनाव अधिकतम चार चरणों में हो सकते हैं तो बंगाल का ही चुनाव क्यों आठ चरणों तक खींचा गया और महामारी की आपदा में जब देश भर में आफत मची थी और जब सभी दल, सिवाय भाजपा के, चुनाव के बाकी चरणों को खत्म कर एक ही चरण में चुनाव कराने पर सहमत थे, तो किस लॉजिक से यह बात नहीं मानी गयी और भाजपा की बात मानी गयी?

इस निर्णय के पीछे क्या लॉजिक था या केवल एक सनक का परिणाम था या किसी के निर्देश का मात्र अनुपालन था? संवैधानिक संस्थाओं का यह मतलब बिल्कुल नहीं है कि उनकी कोई जवाबदेही नही है और वे इस महामारी में भी बजाय इस विकल्प पर सोचने के कि,  कम से कम अवधि में चुनाव हो जाएं, चुनाव के लिये लंबी अवधि का निर्धारण करें। आज जो कोरोना की दूसरी लहर और अधिक भयावह हो रही है क्या उसकी कोई जिम्मेदारी चुनाव आयोग लेगा?

केवल यह आदेश जारी करना ही पर्याप्त नहीं है कि सब कोविड प्रोटोकॉल का पालन करें, बल्कि यह भी ज़रूरी है कि उक्त आदेश का पालन कराने के लिये आयोग ने क्या प्रयास किये और ऐसे प्रोटोकॉल का पालन न करने वाले नेताओं और मीटिंग के संयोजकों के विरुद्ध क्या कार्यवाही की गयी?

कोरोना की दूसरी लहर के लिए मद्रास हाई कोर्ट ने, चुनाव आयोग को जिम्मेदार ठहराया है। चुनाव आयोग को हाई कोर्ट ने चेतावनी दी है कि अगर 2 मई के लिए सही योजना नहीं बनायी गयी और उसे लागू नहीं किया गया, तो वह मतगणना रोक सकता है। देश में कोरोना वायरस की नई लहर के कारण हाहाकार मचा है। इसी मामले पर 25 अप्रैल को मद्रास हाई कोर्ट ने कोरोना की दूसरी लहर के लिए चुनाव आयोग को जिम्मेदार ठहराया है, क्योंकि चुनाव आयोग ने कोरोना संकट के बाद भी चुनावी रैलियों को नहीं रोका था।

मद्रास हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस एस बनर्जी ने सुनवाई के दौरान कहा, “चुनाव आयोग ही कोरोना की दूसरी वेव का जिम्मेदार है। कोर्ट ने कहा कि  चुनाव आयोग के अधिकारियों पर अगर मर्डर चार्ज लगाया जाए तो गलत नहीं होगा।” अदालत में जब चुनाव आयोग ने जवाब दिया कि उनकी ओर से कोविड गाइडलाइंस का पालन किया गया, वोटिंग डे पर नियमों का पालन किया गया था। इस पर अदालत नाराज हुई और पूछा कि जब प्रचार हो रहा था, तब क्या चुनाव आयोग दूसरे प्लेनट पर था।

अदालत ने सुनवाई के दौरान कहा कि स्वास्थ्य का मसला काफी अहम है, लेकिन चिंता की बात ये है कि अदालत को ये याद दिलाना पड़ रहा है। इस वक्त हालात ऐसे हो गए हैं कि जिंदा रहने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। हाई कोर्ट ने अब चुनाव आयोग को निर्देश दिया है कि वह हेल्थ सेक्रेटरी के साथ मिलकर प्लान बनाए और काउंटिंग डे की तैयारी करे। हाई कोर्ट ने 30 अप्रैल तक प्लान बनाकर देने के लिए कहा है।

देश के पांच राज्यों में कोरोना काल में ही चुनाव हुआ है। चार राज्यों में तो चुनाव खत्म हो गया है, जबकि बंगाल में अभी भी वोटिंग हो रही है। चुनावी राज्यों में मतदान खत्म होने के बाद कोरोना के मामले बढ़ने से कई पाबंदियां लगा दी हैं। अगर पूरे देश की बात करें तो हर रोज अब देश में साढ़े तीन लाख के करीब मामले सामने आ रहे हैं, जबकि हालात अब बेकाबू हो गए हैं। दिल्ली से लेकर बैंग्लुरु, मुंबई, लखनऊ और कोलकाता जैसे बड़े शहरों में बेड्स की कमी है, ऑक्सीजन की किल्लत है और मरीजों की हालत खराब है।

संवैधानिक संस्थाओं के प्रमुखों ने जितनी रीढ़विहीनता का प्रदर्शन इधर हाल के कुछ वर्षों में किया है वह इतिहास में फिलहाल तो दुर्लभ है। चाहे सुप्रीम कोर्ट के सीजेआई रंजन गोगोई हों या पुराने मुख्य निर्वाचन आयुक्त सुनील अरोड़ा। जस्टिस रंजन गोगोई ने बेशर्मी से राज्यसभा की सदस्यता ली और अब सुनील अरोड़ा, खबर है कि गोवा के राज्यपाल बनने जा रहे हैं। आखिर ऐसी उदार राजकृपा का कारण क्या है?

पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, पुड्डुचेरी, केरल और असम के चुनाव जिन परिस्थितियों में हो रहे हैं, वे सामान्य परिस्थितियां नहीं हैं। सुप्रीम कोर्ट ने इन्हीं परिस्थितियों को असामान्य परिस्थिति कह कर इसे मेडिकल इमरजेंसी जैसे हालात कहा है। चुनाव आयोग के समक्ष शेष चरणों के चुनाव को, शीघ्र सम्पन्न कराने के लिये, सभी राजनीतिक दलों ने एक अवसर भी दिया जिसे आयोग ने गंवा दिया। जब सभी चुनाव संपन्न हो जाएं और प्रचार के बाद जब सभी कार्यकर्ता अपने-अपने घर पहुंच जाएं, तब इसके संक्रमण की क्या स्थिति रहती है, उसे देखना होगा।

(विजय शंकर सिंह रिटायर्ड आईपीएस अफसर हैं और कानपुर में रहते हैं।)

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