Thursday, April 25, 2024

क्या आंध्र के सीएम रेड्डी पर कोर्ट की अवमानना का मामला चलेगा?

उच्चतम न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण को उच्चतम न्यायालय को आईना दिखाने और गुजरात हाई कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष यतिन ओझा को हाई कोर्ट रजिस्ट्री में केस सूचीबद्ध करने में धांधली की शिकायत पर न्यायालय अवमान अधिनियम के तहत कोर्ट की अवमानना का दोषी ठहराकर क्रमशः जुर्माना तथा जुर्माना एवं कोर्ट उठने तक की सजा सुनाई जा चुकी है। अब जिस तरह आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी ने उच्चतम न्यायालय के चीफ जस्टिस एसए बोबडे को पत्र लिख कर और पत्र को मीडिया को जारी करके चीफ जस्टिस बनने की कगार पर खड़े जस्टिस एनवी रमना पर आंध्र हाई कोर्ट में न्याय प्रणाली को प्रभावित करने और रोस्टर में हस्तक्षेप करने का सीधा आरोप लगाया है, उससे एक बार फिर यह सवाल उठ खड़ा हुआ है कि क्या उच्चतम न्यायालय इसका संज्ञान लेकर मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी पर  न्यायालय अवमान अधिनियम के तहत अवमानना की कार्रवाई करेगा।

पत्र में न्यायमूर्ति रमना पर गंभीर आरोप लगाया गया है कि उन मामलों में कुछ न्यायाधीशों के रोस्टर सहित उच्च न्यायालय की बैठकों को प्रभावित कर रहे हैं जो टीडीपी के लिए महत्वपूर्ण हैं। पत्र में यहां तक आरोप लगाया गया है कि चुनिंदा जजों के यहां चुनिंदा मामलों को सूचीबद्ध किया जाता है, जो विशेष कर टीडीपी से संबंधित मामले होते हैं। मुख्यमंत्री ने ऐसे कई मामलों की विस्तृत सूची पत्र के साथ संलग्न की है, जिसमें हाई कोर्ट ने उनकी सरकार द्वारा लिए गए प्रमुख फैसलों के खिलाफ प्रतिकूल आदेश दिए, जैसे कि टीडीपी-शासन के दौरान बड़े भूमि सौदों के पीछे भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच करने के लिए कदम, तीन पूंजी बिल आदि।

मुख्यमंत्री ने आरोप लगाया कि टीडीपी प्रमुख चंद्रबाबू नायडू के हितों से जुड़े मामले कुछ चुनिंदा न्यायाधीशों, जस्टिस एवी शेष साई, जस्टिस एम सत्यनारायण मूर्ति, जस्टिस डीवीएसएस सोमयाजुलु, जस्टिस डी रमेश के समक्ष ही सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किए जाते रहे। पत्र में कहा गया है कि जस्टिस रमना की टीडीपी के साथ निकटता जगजाहिर है और उन्होंने पूर्व में टीडीपी द्वारा सरकार को चलाने की सलाह देते हुए कानूनी सलाहकार और अतिरिक्त महाधिवक्ता के रूप में कार्य किया था।

दरअसल यह पत्र उच्चतम न्यायालय के चार जजों जस्टिस जे चेल्मेश्वर, जस्टिस मदन बी लोकुर, जस्टिस कुरियन जोसेफ और जस्टिस रंजन गोगोई की ऐतिहासिक प्रेस कांफ्रेंस सरीखा है, जिसमें उन्होंने आरोप लगाया था कि अधिकांश  महत्वपूर्ण मामलों को अपेक्षाकृत जूनियर न्यायाधीश के समक्ष सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया जा रहा है, लेकिन जूनियर जजों को केस देने के तरीके को लेकर चार जजों ने विरोध किया था, वो अभी भी पहले की तरह ही चल रहा है, जबकि इस बीच उच्चतम न्यायालय के चीफ जस्टिस जरूर बदल गए। यही सिस्टम हाई कोर्टों में भी चल रहा है।

जगन,रमना और नायडू।

पत्र में कहा गया है कि उच्च न्यायालय ने कैबिनेट उप समिति की रिपोर्ट पर आगे की कार्रवाई पर रोक लगा दी है, जो पिछली सरकार के विभिन्न सौदों और नीतियों की जांच के लिए जगन सरकार द्वारा गठित की गई थी। इन आदेशों का हवाला देते हुए, जिन्हें टीडीपी से संबंधित राजनीतिज्ञों के लिए लाभकारी बताया गया था, आंध्र के सीएम ने दावा किया कि टीडीपी के प्रति राज्य न्यायपालिका में पूर्वाग्रह था। पत्र में कहा गया है कि चूंकि नई सरकार ने 2014-2019 के बीच अपने शासन में एन चंद्रबाबू नायडू के कार्यों की जांच शुरू की, अब यह स्पष्ट है कि जस्टिस एनवी रमना ने राज्य में न्याय वितरण प्रणाली  को चीफ जस्टिस जितेंद्र कुमार माहेश्वरी के माध्यम से प्रभावित करना शुरू कर दिया।

आंध्र प्रदेश के सीएम जगनमोहन रेड्डी के पत्र ने न्यायिक व्यवस्था को सवालों के घेरे में खड़ा कर दिया है। लोकतंत्र के चार स्तंभों में तीसरा और सबसे महत्वपूर्ण स्तंभ है न्यायपालिका। अगर इसके किसी सदस्य पर किसी राज्य के सीएम की तरफ से उंगली उठती है तो स्थिति की गंभीरता को समझा जा सकता है। ऐसा असंतोष एक दिन या एक महीने में पैदा नहीं हुआ होगा। सरकार और अदालत के बीच ये काफी पहले से चल रहा है।

पत्र को हैदराबाद में मीडिया के सामने शनिवार को जगनमोहन के प्रमुख सलाहकार अजेय कल्लम की तरफ से जारी किया गया था। चिट्ठी में उन मौकों का भी जिक्र किया गया है, जब तेलुगुदेशम पार्टी से जुड़े केसों को कुछ चुनिंदा जजों को सौंपा गया। पत्र में कहा गया है कि इसके अलावा मई 2019 में वाईएसआर कांग्रेस पार्टी के सत्ता में आने पर जब से चंद्रबाबू नायडू की सरकार की ओर से जून 2014 से लेकर मई 2019 के बीच की गई सभी तरह की डीलों की जांच के आदेश दिए गए हैं, तब से जस्टिस एनवी रमना राज्य में न्याय प्रशासन को प्रभावित करने में जुटे हैं।

देश में यह पहली बार है कि किसी मुख्यमंत्री ने जज के खिलाफ चीफ जस्टिस से शिकायत की हो, जिसमें न्यायिक सिस्टम को प्रभावित करने की बात की गई हो। इस पत्र में खास तौर पर एक भूमि घोटाले का ज़िक्र है। सरकार की तरफ से जांच में किसानों की ज़मीन मामूली कीमत पर हड़पने के मामले में कई बड़े लोगों के नाम सामने आए, जिसमें जस्टिस रमना की दो बेटियों का भी नाम है। इसकी जानकारी केंद्र सरकार को भी भेजी गई, लेकिन चंद्रबाबू नायडू के करीबी पूर्व एडवोकेट जनरल दम्मलापति श्रीनिवास ने हाई कोर्ट में याचिका दाखिल कर दी। 16 अक्तूबर को हाई कोर्ट ने जांच पर रोक लगा दी। हाई कोर्ट ने मीडिया को भी मामले की रिपोर्टिंग से रोक दिया। सीएम रेड्डी ने चीफ जस्टिस बोबडे से अनुरोध किया है कि वह खुद मामले पर संज्ञान लें। न्यायपालिका के हित में उचित कदम उठाएं। यह सुनिश्चित करें कि राज्य में हाई कोर्ट बिना किसी प्रभाव के काम कर सके।

अब लाख टके का सवाल यह है कि न्यायालय अवमान अधिनियम की आड़ में कब तक न्यायपालिका के नासूर पर पर्दा डाला जाता रहेगा। सभी वकील, सभी न्यायविद् और सभी वादकारी न्यायपालिका में न्यायालय अवमान अधिनियम की छत्र छाया में पल रहे भ्रष्टाचार और कदाचार के बारे में अच्छी तरह अवगत हैं, लेकिन बिल्ली के गले में घंटी बांधने की क्षमता अव्वल तो किसी में है नहीं और प्रशांत भूषण, यतिन ओझा सरीखे कुछ वकील सामने आते हैं तो अवमानना की आड़ में उनके मुंह पर ताला लगाने का प्रयास न्यायपालिका करने लगती है।  

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के जानकार हैं। वह इलाहाबाद में रहते हैं।)

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

Related Articles