चलती बिरिया ओढ़ाए दे चदरिया!

उफ! बड़े अफ़सोस की बात है कि देश के सबसे बड़े कथित सांस्कृतिक संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने जो सरकार का रिमोट कंट्रोल केंद्र है अब हमारे कथित सबसे लोकप्रिय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी साहिब पर अपनी नज़रें टेढ़ी कर ली हैं और उनकी अपार लोकप्रियता को ठेंगा दिखा दिया है। इस ख़बर से भक्त जमात में जबरदस्त बेचैनी है। संघ की बैठक में गत दिवस ये समझ बनी है कि राज्य चुनावों में अब मोदी-मोदी नहीं होगा क्योंकि बंगाल के बीजेपी की लुटिया सिर्फ दोनों श्रीमुखों की जोड़ी ने ही डुबाई है। इससे उनके योगी हटाओ अभियान को धक्का लगा है जिसके लिए उन्होंने दत्रात्रेय होसबोले को कड़ी मेहनत से साधा था। उल्टी हो गई सब तदवीरें, कुछ ना दवा ने काम किया, अचानक मीर साहब और बेग़म अख़्तर याद हो आईं।

गुजरात की कामयाबी का भरपूर सिला सात साल उन्हें मिला क्या ये कम नहीं? देश की बर्बादी और बंगाल पराजय का ठीकरा एक व्यक्ति के सिर फोड़कर यदि भाजपा मजबूत हो सकती है तो यह निर्णय उसके लिए उचित ही माना जाएगा। फिर उत्तर प्रदेश में तो गोरखनाथ मठ से जिस तरह अचानक लाकर संघ ने योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बनाया था तभी ये चर्चाएं शुरू हो गई थीं कि संघ उनमें भविष्य का प्रधानमंत्री देख रहा है। इधर जब से ये बात मोदी के ज़हन में प्रविष्ट हुई उन्होंने उनके लिए लामबंदी शुरू की और कर्नाटक के दत्रात्रेय होसबोले को अपनी ताकत के बल पर सरकार्यवाह बनवा लिया। उम्मीद थी कि योगी हट जायेंगे। यह उनकी भूल साबित हुई। मठाधीश की प्रवृत्ति वे नहीं जान पाए। वही हुआ संघ को योगी के आगे समर्पण करना पड़ा। योगी लोकतंत्र नहीं जानते। भीड़ की आवाज़ नहीं सुनते, चुनाव नहीं लड़ते बस, आज्ञापालन कराना जानते हैं। हालांकि ये सब संघ को पसंद था और योजनाबद्ध तरीके से उन्हें लाया गया। इसीलिए वक्त पर योगी ने अमित शाह जैसे दबंग को डपटकर दिन में तारे दिखा दिए। योगी की स्थिति मज़बूत होते ही राजनाथ सिंह और नितिन गडकरी के स्वर भी बदल गए हैं। आगे आगे देखिए होता है क्या ?

जबकि बहाना बंगाल में मोदी की उपस्थिति और  मुस्लिम विरोध को बताया जा रहा है। इसीलिए यह गलती नहीं दोहराई जाएगी। उत्तर प्रदेश में संघ का ये मानना है कि गोरखनाथ मठ और मुस्लिमों के बीच कभी तकरार नहीं हुई वहां बराबर आज तक भाईचारा बना हुआ है। इसलिए योगी के ख़िलाफ़ उ.प्र. में मुस्लिम नहीं जाएंगे। इस बार मुस्लिमों को विधानसभा में टिकट दिए जायेंगे क्योंकि पिछले चुनाव में भाजपा ने एक भी मुसलमान को टिकट नहीं दिया था। राम मंदिर हिंदू वोट का आधार होगा जो योगीराज में बन पाने की स्थिति में आया। बाकी मठाधीशों के दबदबे से दलित और पिछड़ों के दमन की कहानी किसी से छुपी नहीं है। बहरहाल, ये कवायद आगे किस रुप में सामने आती है ये तो आने वाला कल ही बतायेगा।

लगता है, जुमलेबाजों के एवज में अब शातिर दबंगों बाबाओं आदि के दम पर 2024 में केंद्र में सरकार बनाने की जुगत में अब संघ उतर आया है। कहीं अवाम आगे ये ना कहे कि इससे बेहतर तो पहले वाले थे जैसे आज मनमोहन सिंह सरकार को लोग शिद्दत से याद करते हैं। क्योंकि यह तो लगभग तय हो ही गया है कि अब अच्छे दिन गुजरात से विदा लेने वाले हैं और उत्तर प्रदेश का सितारा बुलंदी पर है।

ऐसे हाल में अब देखना यह भी होगा कि आने वाले समय में संविधान और इस लोकतांत्रिक देश का क्या हश्र होता है? बहुत कुछ अंदेशा तो संघ ने इन सात सालों में दे ही दिया है। उनकी सौ वर्ष पुरानी लालसा क्या 2024 में पूरी होती है या इस पर विराम लगाकर जनता देश के लोकतांत्रिक स्वरुप को अक्षुण्ण रखती है। मोदी के दिन पूरे हो गए हैं, उनकी ससम्मान चदरिया ओढ़ा के विदाई कर देनी चाहिए। वे भी झोला उठाएं और चल दें। सेंट्रल विस्टा का सम्मोहन त्यागें। वह मठाधीश के लिए ही ठीक रहेगा। आमीन।

(सुसंस्कृति परिहार स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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