‘टुकड़े-टुकड़े बांटा तुमने अब कहते हो एक रहो!’

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आज मॉर्निंग वॉक के लिए पटेल पार्क गया। आधा घंटे पार्क में चलने के बाद थोड़ा सुस्‍ताने का मन हुआ तो पार्क की एक खाली बेंच पर बैठ गया। तभी देखा थोड़ी दूर पर ही दूसरी बेंच पर पड़ोसी ठाकुर आदिनाथ हंसबोले जी बैठे हुए हैं। मैंने उन्‍हें देख कर भी अनदेखा किया।

हंसबोले साहब संघी हैं। वे छुट्टी वाले दिन पार्क में संघ की शाखा की बैठकें तो वर्षों से कर रहे हैं। आजकल कुछ अधिक सक्रिय हैं। अभी उनके संघी दोस्‍त आए नहीं हैं। शायद उन्‍हीं का इंतजार कर रहे हैं। इस दौरान उनकी नजर मुझ पर पड़ गई और वे उठकर मेरे पास आ गए।

अभिवादन और कुशल-क्षेम पूछते हुए मेरी बेंच पर बैठ गए। मैंने भी औपचारिकतावश पूछ लिया- ”और सुनाइए हंसबोले जी, क्‍या चल रहा है आजकल?”

”क्‍या बताऊं राज भाई, बस यूं समझ लीजिए कि मेरी व्‍यस्‍तता बढ़ गई है इन दिनों।’’

”किस काम में व्‍यस्‍त हो गए?’’

”जब से हमारे सरसंघचालक मोहन भागवत जी ने ‘पंच परिवर्तनों’ (परिवार, पर्यावरण, स्‍वदेशी, समरसता और नागरिक कर्तव्‍य) की जिम्‍मेदारी सौंपी है तब से जनता-जनार्दन में इसे फैलाने के लिए बैठकों की संख्‍या बढ़ गई है।

पहले तो पार्क में ही बैठकी होती थी। अब आसपास की बस्तियों में बैठकें करने लगा हूं। मुद्दा हिंदुओं के एक रहने का है। नेक रहने का है। सेफ रहने का है। क्‍योंकि बंटेंगे तो कटेंगे।”

”कौन काटेगा?’’

‘’ यही मुसलमान।”

”पर आपकी पार्टी के सिने अभिनेता मिथुन चक्रवर्ती तो कहते हैं कि हम अस्‍सी प्रतिशत हैं और वो बीस प्रतिशत से भी कम। वो हमारा क्‍या बिगाड़ लेंगें। उन्‍हें तो हम…”

”देखिए सिने अभिनेता की अपनी सोच है। पर यह इतना आसान नहीं है। मुसलमानों में एकता होती है। हम हिंदुओं में एकता का अभाव है। हम बंटे हुए हैं। आजकल तो हमारे दलित भाई भी हम से दूर होते जा रहे हैं।”

”दूर तो होंगे ही। आपने उनके साथ भेदभाव जो किया है। आपके हरियाणा के मुख्‍यमंत्री नायाब सिहं सैनी तो उनका मजाक उड़ाते हैं। वे कांग्रेस नेता रणदीप सिंह सुरजेवाला को ‘सरकारी डोम’ कहते हैं। डोम दलितों में भी दलित कही जाने वाली जाति है जिसकी नायाब सिंह खुलेआम खिल्‍ली उड़ा रहे हैं। ये आप लोगों की नफरती मानिसकता है।”

”यही तो। हमारे कुछ नेता दलितों के बारे में बिना सोचे-समझे बोल रहे हैं। इससे हमारी मुश्किलें बढ़ रही हैं। हम उन्‍हें जोड़ना चाहते हैं। जब सब हिंदू जुड़ेंगे तभी हमारा हिंदू राष्‍ट्र मजबूत होगा। सभी राज्‍यों में भाजपा की सरकार होगी तभी हम हिंदू राष्‍ट्र ओर हिंदू धर्म यानी सनातन धर्म की रक्षा कर पाएंगे।”

” आप भाजपा यानी राजनीतिक दल की बात कर रहे हैं। पर आप तो कहते हैं कि आप किसी राजनीति दल का समर्थन नहीं करते।”

”अरे भाई कहना पड़ता है। वरना आप तो जानते ही हैं कि हमने हरियाणा में भाजपा को सपोर्ट किया तो वह सत्ता में आई। अब महाराष्‍ट्र और झारखंड में भी भाजपा को जिताने में जी-जान से लगे हैं। आखिर भाजपा अपना ही एक राजनीतिक अंग है।

और फिर महाराष्‍ट्र में तो अपनी भी साख का सवाल है। नागपुर में हमारा मुख्‍यालय है। और फिर आप जानते ही हैं कि अगले वर्ष यानी 2025 में हम 100वें साल में प्रवेश कर रहे हैं। ऐसे में हिंदू राष्‍ट्र की धर्म-संस्‍कृति को जन-जन तक पहुंचाने की हमारे सामने चुनौती है। उसी में लगे हैं।”

”हंसबोले जी एक बात मेरी समझ में नहीं आती, आपके धर्म-शास्‍त्रों में ”वसुधैव कुटुंबकम्’ की बात कही गई है। जिसका मतलब होता है कि पूरी दुनिया एक परिवार है। जब पूरी दुनिया ही आपका परिवार है तो फिर अपने ही देश में दलितों, मुसलमानों, ईसाईयों को हेय दृष्टि से क्‍यों देखते हैं। आपके यहां ‘सर्व धर्म समभाव’ की भी बात कही गई है।

पर अपने सनातन धर्म को छोड़कर बाकी सभी धर्मों के प्रति आप विषमभाव यानी नफरत की भावना रखते हैं। आखिर ये विरोधाभास क्‍यों?”

” सुनिए, भारत प्राचीन काल से ही दुनिया का विश्‍वगुरु रहा है। तो विश्‍वगुरु के रूप में तो हम अन्‍य देशों को अपने शिष्‍यों की तरह एक परिवार मानते हैं। पर जब किेसी धर्म-संप्रदाय के लोग हमारे विरुद्ध काम करगें तो हमें उनको सबक सिखाना ही होगा।

जैसे मुसलमान ‘लव जिहाद’ करते हैं। हमारी भोली-भाली हिंदू युवतियों को अपने प्‍यार के जाल में फंसा कर उन्‍हें मुसलमान बना लेते हैं। इसके अलावा मुसलमान और ईसाई हमारे लोगों का धर्मांतरण करा कर उन्‍हें मुसलमान और ईसाई बना लेते हैं। तो उनकी ऐसी करतूतों को तो माफ नहीं किया जा सकता। इसके लिए हिंसा का सहारा भी लिया जाए तो गलत नहीं है।”

”लेकिन आप लोग सनातन धर्म के बारे में यह भी कहते हैं कि आपका धर्म प्रेम, सद्भाव्, अहिंसा और शांति का संदेश देता है।”

”बात आपकी सही है। पर जब कोई हमारे संतो-महंतों और धर्म-संस्‍कृति पर हमला करता है तो उसे हम माफ नहीं करते। हमारी नजर में यह अक्षम्‍य अपराध है।”

”इसका मतलब दुनिया के सभी देशों के धर्म और संस्‍कृति से आप अपने धर्म और अपनी संस्‍कृति को सर्वश्रेष्‍ठ मानते हैं? ”

”जी, बिल्‍कुल। हमारा धर्म, हमारी संस्‍कृति सर्वश्रेष्‍ठ है, मानवतावादी है, जनकल्‍याणकारी है।’’

”माफ कीजिए, मुझे ऐसा नहीं लगता। मुझे आपका धर्म, आपकी संस्‍कृति जनकल्‍याणकारी नहीं बल्कि विभाजनकारी लगती है। बताता हूं कैसे, आपने धर्म-संस्‍कृति के नाम पर लोगों को जातियों में बांट दिया। ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्‍य, शूद्र और अतिशूद्र बना दिए।

पहले तीन वर्ण शूद्रों और अतिशूद्रों से नफरत करते हैं। खासतौर से अतिशूद्रों या कहें दलितों से छुआछूत करते हैं। उन्‍हें अछूत बताते और समझते हैं। उनसे जातिगत भेदभाव करते हैं।

उन पर तरह-तरह से अत्‍याचार करते हैं। इस तरह आप न केवल उन्‍हें बांटते हैं, बल्कि उन पर अमानवीय अत्‍याचार भी करते हैं और यह आज से नहीं बल्कि सदियों से किए जा रहे हैं जो आज भी जारी हैं।

दूसरी ओर नारी या स्‍त्री को भी आपने कभी बराबरी का दर्जा नहीं दिया। आपने पितृसत्तात्‍मक व्‍यवस्‍था के अंतर्गत उसे दोयम दर्जे का समझा। उसके साथ भेदभाव किया।

आप के राष्‍ट्रीय स्‍वयं सेवक संघ के सौ वर्षों के इतिहास में कभी कोई कथित निम्‍न जाति का व्‍यक्ति कभी सरसंघचालक नहीं रहा और न कोई स्‍त्री। ये सब क्‍या है। आपकी करनी-कथनी में बहुत अंतर होता है। आखिर कब तक आप लोगों को मूर्ख बनाते रहेंगे।

आपने सामाजिक व्‍यवस्‍था ऐसी बनाई है कि लोगों को जाति और धर्म के नाम पर टुकड़े-टुकड़े कर रखा है। उन्‍हें वर्णों और वर्गों में बांट रखा है। आर्थिक असमानता में बांट रखा है। अमीरी और गरीबी की खाई और चौड़ी होती जा रही है। अमीर और अमीर होता जा रहा है, गरीब के लिए दो वक्‍त की रोटी जुटाना मुश्किल हो रहा है।

आप ये भी भूल जाते हैं कि भारत एक धर्म निरपेक्ष देश है। धर्म के नाम पर हमें किसी से कोई भेदभाव नहीं करना चाहिए। पर आपके स्‍वयं के धर्म को सर्वश्रेष्‍ठ होने का दंभ अन्‍य धर्मों के प्रति वैमनस्‍य को बढ़ाता है। इससे धार्मिक दंगे हो जाते हैं।

हिंसा हो जाती है। बेगुनाह लोग मारे जाते हैं। आपसी भाईचारा नष्‍ट हो जाता है। अंतत: यह हमारे लोकतंत्र और संविधान के लिए खतरनाक साबित होता है।”

हंसबोले जी मेरे मुंह की ओर ताके जा रहे थे। शायद उन्‍हें मेरे ऐसे बोलने की उम्‍मीद नहीं थी। एकाएक उनसे कुछ बोला नहीं जा रहा था। मैं बेंच से उठ खड़ा हुआ था।

पार्क से घर की ओर चलते-चलते मैंने कहा- ”आपको मेरी बातें चुभ रही होंगीं, पर कड़वी सच्‍चाई यही है। आपकी व्‍यवस्‍था ने ही लोगों को पहले जाति-धर्म में बांटा; उनके साथ सामाजिक अन्‍याय किया और ये अन्‍याय वे अब भी झेल रहे हैं।

पर आज भी आप उन्‍हें ही ‘बंटोगे तो कटोगे’ जैसे नाराें से लगभग डरा-धमका कर एक होने की बात कर रहे हो। मुझे तो ये आपका पोलिटिकल प्रोपेगेंडा लगता है।”

(लेखक राज वाल्मीकि सफाई कर्मचारी आंदोलन से जुड़े हैं।)

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