जलवायु लक्ष्यों को पूरा करने के लिए 13 नदी तटों पर वनीकरण

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केन्द्रीय जलशक्ति और पर्यावरण एवं वन मंत्रालय ने देश की तेरह प्रमुख नदियों को पुनर्जीवित करने की बड़ी योजना शुरू की है जिसके तहत नदी तटों पर वृक्षारोपण किया जाना है। हालांकि देश की सबसे बड़ी व प्रमुख नदी गंगा को इस योजना में शामिल नहीं किया गया है। साथ ही यह भी स्पष्ट नहीं है कि नदी तटवासी समुदायों के रहन-सहन पर इसका कैसा असर पड़ेगा और उनके परंपरागत अधिकारों की सुरक्षा कैसे की जाएगी। फिर भी यह योजना सराहनीय है क्योंकि सरकार ने पहली बार भूगर्भ जल-भंडार व नदी के जल-प्रवाह को समृद्ध करने में वृक्षों की भूमिका को स्वीकार किया है।

केन्द्र सरकार ने इस योजना की विस्तृत कार्य योजना 14 मार्च को जारी की। वनीकरण की यह योजना को जिन 13 नदी घाटियों में लागू किया जाना है, वे 24 राज्यों व दो केन्द्र शासित प्रदेशों में फैली हैं। इस योजना पर पांच वर्षों में 19 हजार 342 करोड़ रुपए खर्च किया जाना है। योजना राज्य सरकार के वन विभागों के सहयोग से लागू की जाएगी। विचार यह है कि इन नदियों व उनकी सहायक नदियों के दोनों तटों और जलग्रहण क्षेत्र में हरित आवरण बढाया जाए ताकि भूजल का पुनर्भरण, भूमि-कटाव की रोकथाम, जलधारा में निरंतर प्रवाह को मदद मिले। जंगल वर्षा जल को सोखकर रखते हैं जो धीरे-धीरे पास की जलधारा में रीस-रीसकर जाता रहता है जिससे सतत प्रवाह में मदद मिलती है।

योजना में झेलम, चेनाब, रावी, व्यास, सतलज, नर्मदा, गोदावरी, यमुना, कृष्णा, कावेरी, महानदी और ब्रहमपुत्र को शामिल किया गया है। इन तेरह नदियों की 202 सहायक जलधाराओं के साथ कुल लंबाई 42830 किलोमीटर है। इनकी घाटियों का कुल क्षेत्रफल 18,90,110 वर्ग किलोमीटर है जो देश कुल क्षेत्रफल का करीब 57.45 प्रतिशत होता है। विस्तृत कार्ययोजना के अनुसार राज्य वन विभाग राज्य की अन्य योजनाओं के साथ संगति बिठाते हुए इसका कार्यान्वयन करेगी और तकनीकी सहायता आईसीएफआरई प्रदान करेगा। यमुना नदी के लिए सर्वाधिक 3,869 करोड़ रुपए व चेनाब के लिए सबसे कम 376 करोड़ रुपए आवंटित किए गए हैं।

जलवायु परिवर्तन का मुकाबला करने की दिशा में इसे बड़ी पहलकदमी माना जाएगा। इसके अंतर्गत लगभग 4,68,222 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में नए पेड़ लगाए जाएगे। उल्लेखनीय है कि विश्व जलवायु सम्मेलन ग्लासगोव में किए वायदे के अनुसार भारत को वर्ष 2030 तक वायुमंडल से 2.5 से 3 खरब टन कार्बन डायअक्साइड निकालना है। मौजूदा क्षमता लगभग  1.95 खरब टन कार्बन सोखने की है।

इस वनीकरण से इससे वायुमंडल से कार्बन डायअक्साइड की बड़ी मात्रा का निपटारा हो सकेगा। एक आकलन के अनुसार दस वर्ष में करीब 502.1 लाख टन सीओ 2 का निपटारा किया जा सकेगा, तो 20 वर्षों में 747.6 लाख टन का निपटारा करेंगे। उनसे भूजल का पुनर्भरण, गाद जमने में कमी होने के अलावा लगभग 449 करोड़ मूल्य के काष्ठ व दूसरे वन-उत्पाद मिलेगे। इसमें 3440 लाख दिन का रोजगार भी सृजित होगा।

नदी तट पर विभिन्न प्रकार के वृक्ष लगाने का प्रस्ताव है। इसमें इमारती लकड़ी वाले पेड़, औषधीय पेड़, घास, झाडियां, जलावनी लकड़ी और फलदार पेड़ शामिल हैं। पर्यावरण मंत्रालय के वन महानिरीक्षक प्रेम कुमार झा के अनुसार कार्य योजना संरक्षण, वनीकरण, जलग्रहण क्षेत्र के विकास, पारिस्थितिकी की पुनर्बहाली, नमी के संरक्षण, आजीविका में सुधार, आमदनी बेहतर करना और नदी तटों का विकास करके पर्यटन के विकास को शामिल किया गया है। इस योजना से जैव-विविधता के संरक्षण व वन्यजीवों के संरक्षण के साथ ही रेगिस्तानी करण को रोकने में भी सहायता मिलेगी।

हर नदी घाटी के लिए विशेष कार्य योजना बनाई जाएगी। नदियों व उनकी घाटियों पर विभिन्न विकास योजनाओं जैसे-सड़कें, पनबिजली परियोजनाओं और कृषि क्षेत्र के विस्तार का प्रभाव पड़ा है। सबसे बड़ी समस्या जिससे सभी नदियां प्रभावित हुई हैं, वह जल-प्रवाह में कमी है। इसके साथ ही जल-ग्रहण क्षेत्र में वनों का विनाश, पारिस्थितिकी की क्षणभंगुरता, तटों से मिट्टी का कटाव, नदी तल में गाद जमा होना आदि समस्याएं भी बढ़ी हैं। इन सबसे नदी की स्थिति खराब हुई है। जल की मात्रा और गुणवत्ता दोनों खराब हुई है। इससे तटीय इलाके में कृषि उपज का घटना, आजीविका संकट, जनस्वास्थ्य व जलीय व्यवस्था बिगडी है। आईसीएफआरई के पूर्व एसडी शर्मा ने बताया कि विस्तृत कार्य योजना तैयार करने की शुरुआत 2019 में हुई जिसमें आईसीएफआरई के अंतर्गत काम करने वाली सभी नौ एजेंसियां लगी थीं।

(अमरनाथ वरिष्ठ पत्रकार होने के साथ पर्यावरण मामलों के जानकार भी हैं। आप आजकल पटना में रहते हैं।)

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