लखनदेई नदी: छोटी नदी में प्रवाह से जलवायु परिवर्तन का मुकाबला आसान

बिहार के उत्तरी छोर पर छोटी-सी नदी लखनदेई को पुनर्जीवित करने का एक सराहनीय प्रयास चल रहा है। सीतामढ़ी शहर से गुजरने वाली इस नदी का उल्लेख पुराणों में देवी सीता की सहेली के रूप में लक्ष्मणा नाम से हुआ है। नदी के प्रवाह को बहाल करने का यह प्रयास जलवायु परिवर्तन की वजह से उत्पन्न समस्याओं का मुकाबला करने के लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण है। 

उत्तर बिहार में इस तरह की छोटी-छोटी नदियों का भौगोलिक महत्व वही है जो मानव शरीर में स्नायुतंत्र का होता है। धरती का स्वास्थ्य ठीक रखने में इनकी बड़ी भूमिका होती है। इन नदियों के कारण ही भारत-नेपाल की सीमा का यह क्षेत्र तराई अर्थात सदा तर रहने वाला भूभाग कहलाता है। लेकिन लगातार उपेक्षा और अतिक्रमण के कारण अब छोटी-छोटी नदियां सूखने लगी हैं। इनके तटों पर निवास करने वाली आबादी कभी जल के अभाव से ग्रस्त होती हैं तो कभी बरसाती पानी की निकासी नहीं होने से बाढ़ ग्रस्त हो जाती हैं। इस दोहरी समस्या का कारगर समाधान नदी के प्रवाह को बहाल करना हो सकता है। जलधारा की उड़ाही से प्रवाह बहाल हो सकता है। लखनदेई के प्रयोग से यह प्रमाणित होने जा रहा है कि यह काम असंभव नहीं है। हालांकि अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। 

नदी में जल-प्रवाह रूक जाने से तटवर्ती इलाके में बाढ़ और जलजमाव की भयावह समस्या उत्पन्न हो गई है। जानकारों का मानना है कि धारा की उड़ाही करके बाढ़ के अभिशाप को वरदान में बदला जा सकता है। लखनदेई जैसी छोटी नदी को तालाब से जोड़ने और चेक डैम बनाकर पानी नदी में जल-संचय की व्यवस्था की जा सकती है। इससे भूगर्भीय जलभंडार का पुनर्भरण, जल की गुणवत्ता में सुधार और जल की उपलब्धता की स्थिति में उल्लेखनीय सुधार होगा। सांस्कृतिक कार्यकलापों में नदी की उपयोगिता बनी रहेगी और कृषि संबंधी गतिविधियों में सुविधा होगी। नदी से तट पर सघन व उपयुक्त वृक्षों को लगाने से अतिरिक्त लाभ होगा। इससे नदी में जल अधिक समय तक टिक सकेगा। नदियों के साथ आस-पास के तालाबों को अतिक्रमण से मुक्त कर जीवित करने से जल समस्या का कारगर समाधान हो सकता है। 

लखनदेई नदी पर सीतामढ़ी शहर में भयानक अतिक्रमण है। गांवों में अतिक्रमण नगण्य है। अभी शहर के सारे गंदे नाले, सीवरेज का पानी नदी में ही गिरता है। गंदे पानी को साफ करने और गंदे पानी को नदी में जाने से रोकने का कोई इंतजाम नहीं है। इससे शहर के आस-पास कई जगह यह नदी गंदे नाले की तरह दिखती है। फिर भी बरसाती जल की निकासी में नदी की भूमिका उल्लेखनीय बनी हुई है। 

लखनदेई नदी का उदगम नेपाल में ‘मरीन खोला’ से होता है। नेपाल में 112 किलोमीटर प्रवाहित होने के बाद यह नदी सीतामढ़ी जिले के सोनबरसा प्रखंड में भारत में प्रवेश करती है तथा बकुची अख्तियारपुर, कटरा में बागमती में समाहित हो जाती है। इसका प्रवाह मार्ग कुल 170 किलोमीटर लंबा है और प्रवाह आमतौर पर 300 क्यूसेक जल का होता है। पहले नदी की धारा सोनबरसा प्रखंड के दुलारपुर घाट से होकर बहती थी। पर 40-45 साल पहले धारा-मार्ग में परिवर्तन हुआ और यह कनहौली, छोटी भारसर होकर बहने लगी। धारा परिवर्तन तटवर्ती इलाके के लिए त्रासदी बन गया। सीतामढ़ी जिले के उत्तरी-पूर्वी हिस्से में जल जमाव होने लगा, तो बाकी इलाके में जलाभाव होने लगा। भूजल स्तर में भी गिरावट आने लगी। पीने का पानी पहले 80 फीट की गहराई पर उपलब्ध था, अब 220 फीट पर चला गया। 

इन समस्याओं के समाधान में क्या लखनदेई नदी की कोई भूमिका हो सकती है। इस बारे में सोच-विचार की शुरुआत 1980 के दशक में हुई। स्वर्गीय हरिकिशोर सिंह (पूर्व विदेश राज्यमंत्री) ने 1985 में पहल की। बाद में अनेक संगठन जुड़े और मुद्दा जीवित रहा। उन्हीं दिनों यह विचार सामने आया कि नदी में प्रवाह बहाल हो जाए तो दोनों समस्याओं के समाधान की दिशा में बढ़ा जा सकता है। अक्टूबर 2014 में सोनबरसा प्रखंड परिसर में जिले के प्रमुख लोगों की बैठक हुई और लखनदेई बचाओ संघर्ष समिति का गठन हुआ। इसमें सीतामढ़ी के रामशरण अग्रवाल की प्रमुख भूमिका रही। अग्रवाल जी विरासत-प्रेमी हैं और प्राचीन धरोहरों की खोज में समूचे बिहार में भटकते रहते हैं।

उनके लिए लखनदेई केवल एक नदी नहीं, प्राचीन धरोहर भी है। उन्हीं के प्रयास से लखनदेई बचाओ संघर्ष समिति की ओर से सघन जन-संपर्क व जागरुकता अभियान चलने लगा। आज भी जितने काम हुए हैं, इसके लिए वे समूची समिति को श्रेय देते हैं। समिति के लोगों ने कई बार लंबी-लंबी पदयात्राएं की और इस क्रम में नदी की उड़ाही कराने का विचार पुष्ट हुआ। इसके लिए तत्कालीन जिलाधिकारी राजीव रौशन को 22 जून 2015 को ज्ञापन दिया गया। इसके पहले समिति की पहल पर गंगा बाढ़ नियंत्रण आयोग के अध्यक्ष घनश्याम ओझा सीमावर्ती इलाके का निरीक्षण करने आए और अपना विस्तृत प्रतिवेदन (1458 दिनांक 18-03-15) सौंपा जिसमें लखनदेई के उद्धार की संभावना और आवश्यकता को रेखांकित किया गया है। 

फिर समिति के अनुरोध पर जिलाधिकारी राजीव रौशन 12 दिसंबर 15 को हालत का मुआयना करने स्वयं गए। उन्होंने करीब नौ किलोमीटर पदयात्रा करके समिति की योजना को ठीक से समझा और 16 जुलाई 2016 को तिरहुत डिविजन के अधिकारियों की बैठक में इस मामले को जोरदार तरीके से उठाया। बैठक की अध्यक्षता तत्कालीन जल संसाधन मंत्री राजीव रंजन सिंह कर रहे थे। जिलाधिकारी राजीव रौशन के प्रयास से लखनदेई की उड़ाही की योजना को बिहार सरकार की स्वीकृति मिल सकी। इसके लिए 19 करोड़ 70 लाख रुपए खर्च की स्वीकृति मिली। जिसके तहत 21.5 किलोमीटर लंबाई में धारा की उड़ाही होनी थी जिसमें 3.5 किलोमीटर का लिंक चैनल भी शामिल है। धारा की उड़ाही व लिंक चैनल में 152 किसानों की जमीन गई है जिन्हें मुआवजा देने का फैसला हुआ। हालांकि अभी से केवल 87 किसानों को मुआवजा का भुगतान हो सका है। शेष का भुगतान होना बाकी है। 

योजना की रूपरेखा तैयार हो जाने के बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने 18-02-18 को दुलारपुर घाट पर उड़ाही योजना का उद्घाटन किया। समिति जिला प्रशासन और जल-संसाधन विभाग के अधिकारियों के निरंतर संपर्क में रही। राजीव रौशन के बाद रंजीत कुमार सिंह व अभिलाषा कुमारी शर्मा जिलाधिकारी बनकर आए, उन लोगों ने भी लगातार संपर्क बनाए रखा। काम के आखिरी चरण में जिलाधिकारी सुनील कुमार यादव ने भी सकारात्मक रवैया बनाए रखा। उड़ाही की सरकारी योजना पूरी हो गई है। पर तटों पर वृक्षारोपण आदि किया जाना है। साथ ही भविष्य में नदी की देखरेख की व्यवस्था कैसे हो, इस पर विचार किया जाना है।

(अमरनाथ वरिष्ठ पत्रकार और पर्यावरण मामलों के जानकार हैं।)

अमरनाथ झा
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