Friday, March 29, 2024

भारत के 13 राज्यों में पेयजल संकट की आशंका, झारखंड के कई क्षेत्र ड्राइ जोन घोषित

संयुक्त राष्ट्र की संस्‍था यूनेस्को की रिपोर्ट के अनुसार 2025 तक भारत में पेयजल संकट बहुत बढ़ जाएगा। आशंका जताई गई है कि यहां पर ग्लेशियर पिघलने के कारण सिंधु, गंगा और ब्रह्मपुत्र जैसी प्रमुख हिमालयी नदियों का प्रवाह कम हो जाएगा। यूनेस्को के डायरेक्‍टर आंड्रे एजोले ने कहा है कि वैश्विक जल संकट से बाहर निकलने से पहले अंतर्राष्ट्रीय स्‍तर पर तत्काल एक व्यवस्था करने की जरुरत है।

कम बारिश और भू-जल का बढ़ता इस्तेमाल

भारत में पेय जल की बात करें तो पिछले कई दशकों से यहां वर्षा में गिरावट दर्ज की जा रही है। जिस वजह से भूमिगत जल का स्तर भी घटता जा रहा है। पानी की खपत की बात करें तो अंतरराष्ट्रीय सर्वे रिपोर्टें बताती हैं कि चीन और अमेरिका में जितनी खपत पानी की है उससे काफी ज्यादा मात्रा में पानी भारत अकेले खर्च करता है।

मानसून में अच्छी बारिश नहीं होने के कारण भी भारत के अधिकांश राज्य प्रतिवर्ष सूखे की चपेट में होते हैं। लिहाजा मजबूरन खेती-किसानी के लिए उन्हें भूमिगत जल का इस्तेमाल करना पड़ता है। इससे भू-जल दोहन लगातार बढ़ रहा है। ऐसे में भूमिगत जलस्तर का गिरना कोई आश्यर्च की बात नहीं है।

भारत में जितना भी बारिश का पानी जमीन में अंदर जाता है, उसका 63 फीसद पीने और सिंचाई जैसे कार्यों के लिए निकाल लिया जाता है। वर्ष 2021 में आई कैग की रिपोर्ट के अनुसार पंजाब, हरियाणा, दिल्ली और राजस्थान में 100 फीसद भूमिगत जल का दोहन हो रहा है। इसलिए इन राज्यों में भूमिगत जल का पूरी तरह खत्म हो जाने का खतरा है।

इससे पहले चेन्नई में भूमिगत जल पूरी तरह खत्म हो चुका है। महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश, राजस्थान, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, मध्यप्रदेश जैसे राज्यों में भी भूमिगत जल की खपत ज्यादा है। इस प्रकार देश के 13 राज्यों में जल का भारी संकट पैदा होने की आशंका है।

वर्ष 2021 में साइंस एडवांस में प्रकाशित स्टडी में दावा किया गया है कि 2025 तक उत्तर-पश्चिम और दक्षिण भारत में पानी की भारी किल्लत हो सकती है।

दूषित जल बन रही बड़ी समस्या

यूनिसेफ की एक रिपोर्ट के अनुसार 50 फीसद से भी कम भारतीयों को स्वच्छ पेय जल मिल पाता है। क्योंकि यहां के भूमिगत जल में फ्लोराइड की मात्रा काफी ज्यादा है।

सरकार के एक सर्वे में देश के 25 राज्यों के 209 प्रखंडों के भूमिगत जल में आर्सेनिक की मात्रा अधिक पाई गई है। यह हृदय और फेफड़े के रोग को बढ़ाता है। द लसेंट पत्रिका के अनुसार अकेले 2019 में भारत में दूषित पानी पीने से पांच लाख से अधिक लोगों की जान गई थी। जबकि लाखों लोग बीमार पड़े थे।

झारखंड में पेय जल बात करें तो गर्मी की दस्तक के पहले ही राजधानी और रांची के कई हिस्सों में पीने के पानी की किल्लत होने लगी है। राजधानी के कई मोहल्लों में पानी का स्रोत नीचे चला गया है वहीं कई जगहों पर बोरिंग फेल हो जा रही है। कई  क्षेत्रों को ड्राइ जोन घोषित किया जा चुका है। शहर के अन्य इलाकों में भी अंधाधुंध बोरिंग हो रहे हैं जिसके कारण वाटर लेबल नीचे खिसकता जा रहा है।

जगह-जगह सूख गए हैं चापानल

नगर निगम की बोर्ड बैठक में जानकारी दी गई थी कि हर साल राजधानी का जलस्तर 20 फीट नीचे खिसकता जा रहा है। शहर में 2.25 लाख से अधिक भवन हैं, जबकि मात्र 20 हजार में ही रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगा है।

आलम यह है कि राजधानी के लोग मार्च महीने के शुरुआती दिनों से ही परेशान हैं। राजधानी रांची के जगन्नाथपुर, धुर्वा, हिनू, हरमू के विद्या नगर, चापुटोली सहित कई इलाकों के लोगों को पीने के पानी का संकट होना शुरू हो गया है। हटिया डैम के बेहद करीब का धुर्वा इलाका सहित जगन्नाथपुर के स्लम एरिया में ज्यादातर चापाकल सूख गए हैं।

वहीं डैम से होने वाले पानी की सप्लाई भी अनियमित और बहुत कम समय के लिए होता है जो अपर्याप्त है। इतना ही नहीं विधानसभा के बेहद करीब के इलाके में भी आम जनता पीने के पानी को लेकर परेशान है। वहीं जल संसाधन मंत्री मिथिलेश ठाकुर इस बात को मानने को तैयार नहीं हैं कि यहां पेय जल की किल्लत है।

शहर के धुर्वा निवासी विराज कहते हैं कि उनके एरिया में 3000 की आबादी है, लेकिन पानी की कोई व्यवस्था नहीं है। एक नल है, जो रुक्का डैम से जुड़ा है, वहां भी पानी हर दिन नहीं आता है।

साधु बागान, निचला तालाब, जगरनाथपुर बड़का घर सहित कई इलाके ऐसे हैं, जहां रोज पीने का पानी नहीं आता है, तीन दिन या दो दिन का गैप कर पानी आता है। मायादेवी, सविता सहित स्थानीय लोगों की शिकायत है कि उन्हें पीने तक का पानी सरकार मुहैया नहीं करा पा रही है।

वहीं मंत्री मिथिलेश ठाकुर कहते हैं कि पीने के पानी की फुलप्रूफ व्ययवस्था सरकार ने की है। जहां से पेयजल संकट की शिकायत मिलती है, वहां तुरंत समस्या का समाधान कर दिया जाता है।

झारखंड़ में ग्राउंड वाटर बोर्ड बनाने की तैयारी

जल संसाधन मंत्री मिथिलेश कुमार ठाकुर ने कहा कि राज्य का अपना ग्राउंड वाटर बोर्ड बनाए जाने की तैयारी है। ऐसा होने के बाद कड़े कदम उठाए जाएंगे। बोर्ड गठन के लिए ड्राफ्ट तैयार कर लिया गया है, बोर्ड के एक्टिव होने से लाभ मिलेगा। अभी 33 राज्यों में से 14 में ही राज्य का भू-जल बोर्ड काम कर रहा है।

मिथिलेश ठाकुर के मुताबिक भू-जल का दोहन ना हो, इस पर सरकार का ध्यान है। कई योजनाओं के माध्यम से जल संरक्षण की पहल शूरू की है। ‘नीलांबर पीतांबर जल समृद्धि योजना’ लागू की गयी है। नगर विकास की ओर से भी अलग-अलग योजनाओं के जरिये प्रयास हो रहा है।

भू-गर्भ जल का लगातार बढ़ रहा दोहन

पिछले दिनों जारी सेंट्रल ग्राउंड बोर्ड द्वारा झारखंड में भू-जल के गिरते स्तर को लेकर की गई रिपोर्ट के अनुसार 2020 की तुलना में भू-जल की निकासी 2.22 प्रतिशत बढ़ी है।

वर्ष 2020 में जहां भू-जल की निकासी 29.13 प्रतिशत थी, वह 2022 में बढ़ कर 31.35 प्रतिशत हो गयी। राज्य में सबसे अधिक धनबाद और कोडरमा में भू-जल का दोहन हो रहा है। धनबाद में 75 प्रतिशत तो कोडरमा में 66.10 प्रतिशत है। पश्चिमी सिंहभूम में यह आंकड़ा मात्र 9.93 प्रतिशत का ही है। फिलहाल झारखंड में 1.78 बिलियन क्यूबिक मीटर (बीक्यूएम) भू-जल का दोहन हो रहा है।

राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों की स्थिति तो स्वच्छ पेयजल को लेकर और भी भयावह है। मैदानी इलाकों और पहाड़ों पर यह संकट गंभीर समस्या का रूप लेता जा रहा है।

बोकारो के कई गांव नदी नालों पर निर्भर

बोकारो जिला अंतर्गत‌ गोमिया प्रखंड के तिलैया पंचायत का हलवैय गांव दनिया रेलवे स्टेशन से छः किलोमीटर दूर जिनगा पहाड़ की तलहटी मे बसा है। मूलभूत समस्याओं से घिरा हलवैय गांव के लोगों की स्थिति यह है कि इन्हें पीने के पानी के लिए नदी नालों पर निर्भर रहना पड़ता है।

कुआं तो है लेकिन उसमें पानी नहीं रहने व चापाकल से दूषित पानी निकलने के कारण मजबूरी में लोग जोरिया (नाला) और चूंआ (खेतों में गड्ढा करके पानी निकालना) का पानी पीने को मजबूर है।

संथाली आदिवासी बहुल गांव हलवैया काफी पिछड़ा गांव है। गांव की लगभग 250 की आबादी है। गांव में महज दो चापानल है, चापानल के पानी में आयरन की मात्रा अधिक रहने के कारण यहां के लोग चापाकल के पानी का उपयोग नहीं कर पाते हैं।

नरेगा से बने कुएं में भी नही है पानी

नरेगा विभाग से कुंआ का निर्माण तो किया गया है लेकिन कुंआ की गहराई इतनी कम है कि उसमें पानी निकलता ही नहीं। ऐसे में बाध्य होकर ग्रामीणों को गांव से डेढ किलोमीटर की दूरी पर भितिया नाला से पानी लाना पड़ता है। गांव की महिलाएं अपने सिर पर डेगची के माध्यम से पानी लाती हैं।

पानी कैसे उपलब्ध होगा पर ग्रामीण बताते हैं कि पानी  की समस्या का निराकरण का एकमात्र उपाय है डीप बोरिंग करके पानी गांव में सप्लाई किया जाए। वहीं भितिया नाला में चेक डैम (नाला का बहता पानी को रोकने के लिए घेरा) का निर्माण हो जाए तो यहां का पानी पीने के अलावा स्नान आदि सहित कृषि के सिंचाई आदि में काम आ सकता है।

ग्रामीणों ने बताया कि विगत छह माह पूर्व क्षेत्र के विधायक डॉ. लम्बोदर महतो को एक पत्र देकर गांव में पानी की समस्याओं से निजात दिलाने के अलावा पथ जो काफी वर्षों से जर्जर है का भी निर्माण कराने की मांग की गई है।

इस सबंध में पूछे जाने पर विधायक महतो ने कहा कि ग्रामीण विकास विभाग बोकारो को पत्र अग्रसारित कर समस्याओं के समाधान को कहा गया है। वहीं ग्रामीणों का कहना है कि मांग पत्र दिए छः माह से ऊपर हो गए हैं बावजूद अभी तक कुछ नहीं हुआ है।

दूसरी तरफ क्षेत्र के पंचायत समिति सदस्य शिवलाल कुमार हेम्ब्रम सहित ग्रामीणों ने बोकारो के उपायुक्त से मांग की है कि हलवैया गांव में पानी व सड़क की समस्या तुरंत समाधान किया जाए लेकिन इस पर भी कोई कार्रवाई अभी तक नहीं हुई है।

पंचायत की मुखिया चिंता देवी का कहना है कि पंचायत में इतना फंड आता नहीं कि इन समस्याओं समाधान पंचायत से किया जा सके। ऐसे में पानी के लिये पेयजल स्वच्छता विभाग से डीप बोरिंग कर ही पानी की जरूरत को पूरा किया जा सकता है।

वैसे राज्य में पानी की समस्या की लंबी फेहरिस्त है। इसी फेहरिस्त में साहिबगंज जिले के पहाड़िया समुदाय की बात करें तो उनकी पेयजल की समस्या काफी मुश्किल में है।

बूंद बूंद पानी के लिए तरस रहे पहाड़िया समुदाय

साहिबगंज जिला के बोरियो प्रखंड के दुर्गाटोला पंचायत के चंपा पहाड़ के पहाड़िया समुदाय इन दिनों बूंद बूंद पानी के लिए तरस रहे हैं। इसको लेकर वो साहिबगंज डीसी रामनिवास यादव से गुहार भी लगा चुके हैं। लेकिन इस पहाड़ पर रहने वाले पहाड़िया समुदाय के लोगों को कोई राहत नहीं मिली है।

दूसरी तरफ बोरियो प्रखंड के ही तेलो मांझी टोला के ग्रामीण भी बूंद-बूंद पानी के तरस रहे हैं। पानी की समस्या इतनी गंभीर हैं कि यहां के लोग अगले चुनाव में मतदान का बहिष्कार करने की बात कह रहे हैं।

गांव में 200 से अधिक लोग रहते हैं। जिनका जीवन पानी के बिना बड़ी मुश्किल में है। ग्रामीण बताते हैं कि जल संकट इतना गंभीर हैं कि किसी तरह खाना बनाना तो हो जाता हैं लेकिन नहाना-धोना बहुत मुश्किल है। क्योंकि यहां के आसपास न तो कोई नदी है न ही कोई जोरिया, जिसमें चूंआ बनाकर पानी लाया जा सके।

इस संबंध में पीएचईडी के कार्यपालक अभियंता ने बताया कि उस पहाड़ पर पानी का लेयर नहीं है। इस कारण पहाड़ के नीचे बोरिंग कर बहुत जल्द इस गांव को पाइप लाइन से पानी पहुंचाया जाएगा। इसी गांव में दो वर्ष पूर्व बोरिंग से पानी की व्यवस्था की गई थी, लेकिन कुछ ही दिनों बाद वह बेकार हो गया।

दुनिया भर में पेयजल का संकट

पिछले 22 मार्च 2023 को दुनिया भर में ‘विश्‍व जल दिवस’ मनाया गया। इस बीच यूएन (यूनाइटेड नेशन) की रिपोर्ट में कहा गया कि दुनिया की लगभग 1.7 से 2.40 अरब की शहरी आबादी पानी के संकट से जूझेगी।

संयुक्त राष्ट्र की तरफ से जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 2016 में धरती पर 9.33 करोड़ आबादी पानी के संकट से जूझ रही थी। उसके बाद इस जल संकट कई देशों में तेजी से बढ़ा। रिपोर्ट में एक और बड़ा दावा तो यह भी है कि एशिया में करीब 80% आबादी जल संकट से जूझ रही है। यह संकट पूर्वोत्तर चीन, भारत और पाकिस्तान पर सबसे ज्यादा है।

संयुक्त राष्ट्र की ताजा रिपोर्ट में कहा गया है कि 2050 तक दुनिया में पानी का संकट भारत में सबसे ज्यादा होगा। इसके अलावा पड़ोसी देश पाकिस्‍तान और चीन में भी पानी के लिए हाहाकार मचेगा। इन देशों में कई नदियों में बहाव की स्थिति भी कमजोर पड़ जाएगी।

दुनिया की लगभग 26% आबादी को साफ पानी नहीं मिल रहा। पश्चिमी एशिया और अफ्रीका के बहुत-से देशों में पेयजल का संकट है। लोगों को पीने के लिए स्‍वच्‍छ पानी नहीं मिल पाता।

(विशद कुमार वरिष्ठ पत्रकार हैं और झारखंड में रहते हैं।)

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

Related Articles