Tuesday, April 16, 2024

बिहार में सरकारी योजनाएं साबित हो रही हैं जंगलों की विनाशक

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा 26 अक्टूबर 2019 को जल जीवन हरियाली योजना शुरू की गयी थी। इसके तहत उन्होंने लोगों से पर्यावरण की रक्षा की अपील की थी। इस योजना के उद्देश्य में नर्सरी का निर्माण और वृक्षारोपण भी शामिल था। इसके साथ ही ग्रामीण विकास विभाग, ग्रामीण कार्य विभाग और पर्यावरण विभाग के द्वारा राज्य में हरियाली बढ़ाने के लिए कई योजनाओं को चलाया जाता है।

लेकिन, हरियाली बचाने को लेकर नीतीश कुमार की प्रतिबद्धता जमीन पर बहुत प्रभावी नजर नहीं आ रही है। योजनाओं के आधार पर काम हुआ है वहीं विकास के नाम पर वन क्षेत्रों को तेजी से गैर वन क्षेत्र में तब्दील भी किया जा रहा है। साथ ही सरकारी आंकड़े के मुताबिक वन क्षेत्र बढ़ाने को लेकर जो प्रयास हो रहे हैं, वे भी संदेह के घेरे में हैं।

आंकड़ों की भाषा

बिहार सरकार के आंकड़ों के मुताबिक, ग्रामीण विकास मंत्रालय के अंतर्गत जल जीवन हरियाली मिशन के तहत सरकार ने 47 लाख पौधे लगाये। वहीं पर्यावरण मंत्रालय के अंतर्गत राष्ट्रीय वनीकरण कार्यक्रम के जरिए साल 2019-2020 में 1000 हेक्टेयर में 6.95 लाख पौधे और साल 2020-2021 में 1935 हेक्टेयर में 13.06 लाख पौधे लगाये गये हैं। साथ ही नदी विकास और गंगा कायाकल्प मंत्रालय के द्वारा चलाया जा रहा नमामि गंगे परियोजना द्वारा साल 2021-2022 में गंगा नदी के किनारे के 18 फॉरेस्ट डिवीजन में 2.50 लाख पौधारोपण किया गया।

वहीं बिहार आर्थिक सर्वे के मुताबिक साल 2016-2017 में 20 प्रोजेक्ट के लिए 51.53 हेक्टेयर वन क्षेत्र, साल 2017-2018 में लगभग 150 हेक्टेयर वन क्षेत्र और 2020-2021 में 432.78 हेक्टेयर वन क्षेत्र मतलब पिछले 5 सालों के आंकड़े को देखा जाए तो 1603.8 हेक्टेयर में फैले वनक्षेत्र को विभिन्न सरकारी योजनाओं के लिए गैर वन क्षेत्र में तब्दील कर दिया गया है।

विकास के नाम पर बिहार में काटे जा रहे हैं जंगल

बिहार आर्थिक सर्वे के मुताबिक वन क्षेत्र में तब्दीली पाइपलाइन बिछाने, सड़क निर्माण, सिंचाई परियोजना और रेल नेटवर्क की वजह से हो रही है। हाल में ही केंद्र ने बिहार के लिए 3,054 करोड़ रुपये की नई सड़क योजनाओं को स्वीकृति प्रदान की है। वहीं ग्रामीण कार्य विभाग के द्वारा राज्य में 2022 में 9600 किमी सड़क बनाने पर काम चल रहा है। वहीं 2022-23 में उद्योग के लिए 1643 करोड़ का बजट पास किया गया है।

बिहार के वैशाली जिले में ग्रामीण सड़क योजना के अंतर्गत महनार रेलवे स्टेशन से भानपुर तक 2.40 किलोमीटर लंबी सड़क के दोनों तरफ लगभग 1000 से ज्यादा पौधे लगाए गए हैं। अभी शायद ही 100 पौधे भी सही सलामत बचे हों।

इस सिलसिले में जहां सुपौल और भागलपुर में इथेनॉल कंपनी वहीं मुज़फ्फऱपुर के मोतीपुर में मेगा फू़ड पार्क और फार्मा एंड सर्जिकल पार्क, वैशाली के गोरौल में प्लास्टिक पार्क व बेतिया के कुमारबाग में टेक्सटाइल पार्क का काम भी शुरू हो चुका है। विकास की इस आंधी में जंगल और पर्यावरण को भारी नुकसान हो रहा है। इसके बदले में वृक्षारोपण और जंगल को बचाने के लिए चल रही सरकार की तमाम योजनाएं धरातल पर नजर नहीं आ रही हैं।

विकास के ‘आड़े’ आते जंगल

वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के सोशल मीडिया एक्जीक्यूटिव संजय कुमार बताते हैं कि, “डिपार्टमेंट के द्वारा दिए गए आंकड़ों के मुताबिक साल 2019 से अब तक 122 योजनाओं को पर्यावरण मंजूरी के लिए केंद्र सरकार के पास भेजा गया है। केन्द्र सरकार के अनुसार नवादा जिले के रजौली के चटकरी गांव में अभ्रक खनन, RGGVY XIवीं योजना चरण- II और BRGF और वाल्मीकि टाइगर रिजर्व के भीतर इंटरनेशनल कनवेंशन सेंटर का निर्माण योजना के अलावा किसी भी योजना में पर्यावरण मंजूरी की जरूरत नहीं है। इन तीनों योजनाओं में मंजूरी देने की प्रक्रिया चल रही है।

माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय के छात्र और वाल्मीकि नगर के स्थानीय निवासी 26 वर्षीय अभिषेक गुप्ता बताते हैं कि, “121 करोड़ की लागत से वाल्मीकि टाइगर रिजर्व के भीतर इंटरनेशनल कन्वेंशन सेंटर बनाया जा रहा है। जिसमें 500 सीटों वाले कन्वेंशन सेंटर के साथ ही 102 कमरों का एक गेस्ट हाउस बनेगा।”

विशेषज्ञ की राय

सुपौल में पर्यावरण संसद के नाम से प्रसिद्ध राम प्रकाश रवि बताते हैं कि, “बिहार में विकास हो रहा है। इस पर कोई संदेह नहीं है। लेकिन इस विकास की वजह से बड़े शहर तो छोड़िए छोटे शहरों का शहरीकरण होना और जंगलों का काटना भयावह है। इसी साल सुपौल शहर में नया मेडिकल कॉलेज और इथेनॉल कंपनी का निर्माण होगा। इससे हमारे शहर का विकास होगा। खुशी की बात है। लेकिन इसके बदले में जो पौधे काटे जा रहे हैं। वह सरकार के द्वारा कहीं ना कहीं लगाए जाने चाहिए। इस पर सरकार को काम करना पड़ेगा।”

(सुपौल से राहुल की रिपोर्ट।)

फोटो: बिहार के वैशाली जिला में ग्रामीण सड़क योजना के अंतर्गत महनार रेलवे स्टेशन से भानपुर तक 2.40 किलोमीटर लंबी सड़क के दोनों तरफ लगभग 1000 से ज्यादा पौधे लगाए गए हैं। अभी शायद ही 100 पौधा भी सही सलामत नहीं बचा हुआ है।

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

Related Articles