Thursday, April 25, 2024

कब तक बच पाएगी मणिपुर में स्थित विलक्षण लोकतक झील?

देश में मीठे और ताजे पानी की सबसे बड़ी झील लोकतक मणिपुर में है जिसमें  मिट्टी, जलीय घास और दूसरी वनस्पतियों से बने द्वीप तैरते रहते हैं। इनमें से कुछ द्वीप तो इतने बड़े हैं कि एक द्वीप पर पूरा अभयारण्य-केइबुल लामजाओ राष्ट्रीय उद्यान अवस्थित है जिसमें नाचने वाला हिरण शंघाई समेत अनेक दुर्लभ जीव-जंतु रहते हैं। शंघाई को मणिपुर का राष्ट्रीय पशु का दर्जा प्राप्त है। लोकतक झील को विकास के नाम पर होने वाले विनाश से बचाने के लिए हाईकोर्ट को सामने आना पड़ा है और उसने झील के भीतर और आसपास अदालत की अनुमति के बिना किसी तरह के निर्माण पर रोक लगा दी है। 

तैरते द्वीपों वाले इस अनोखी झील को रामसर सम्मेलन के अंतर्गत विश्व धरोहर का दर्जा दिया गया है। झील का निर्माण मणिपुर की तीन नदियों-मणिपुर, इंफाल व नांम्बुल नदियों के जल से हुआ है। तीनों नदियां इस झील में समाहित होती हैं। इस झील में बने छोटे-बड़े द्वीपों को स्थानीय भाषा में फुम्डीस कहते हैं और इनमें कुछ 40 वर्ग किलोमीटर में फैले हैं। घटते-बढ़ते आकार-प्रकार वाले इन द्वीपों पर हजारों मछुआरे, खेतिहर, चरवाहे और कारीगर भी बसे हैं जो परंपरागत ढंग से अपनी आजीविका कमाते हैं। काठ की बनी नावों से आवाजाही होती है जिसमें बड़ी पूंजी का निवेश नहीं है। ऐसे ही एक द्वीप पर केइबुल लामजाओ राष्ट्रीय उद्यान बसा है जो विश्व में अपनी तरह का इकलौता अभयारण्य है। इस अभयारण्य में नाचने वाले हिरण शंघाई के अलावा अनेक किस्म के दुर्लभ जीव-जंतु निवास करते हैं। कहने की जरूरत नहीं कि लोकतक झील व आसपास के इलाके की पारिस्थितिकी अनोखी है।

इस झील में पर्यटन को बढ़ावा देने की अनेक योजनाएं समय-समय पर सामने आती रही हैं। ऐसी ही एक योजना 2017 में सामने आई जिसके अंतर्गत झील में नौकायन व इको-टूरिज्म की व्यवस्था की जानी थी। पर झील पर निर्भर स्थानीय निवासियों के हित को देखते हुए मणिपुर हाईकोर्ट ने जनहित याचिका के आधार पर इस योजना पर रोक लगा दी। मणिपुर सरकार उसके खिलाफ सुप्रीमकोर्ट गई। सर्वोच्च न्यायालय ने भी रोक को जारी रखा और स्थानीय हाईकोर्ट को मामले की निगरानी करने के लिए कहा। इस बीच लोकतक विकास प्राधिकार व पर्यटन विभाग ने विकास योजना को आगे बढ़ाने की इजाजत मांगते हुए हाईकोर्ट में याचिका दायर कर दी। हाईकोर्ट ने निविदा प्रक्रिया को आगे बढ़ाने की अनुमति दे दी जिसके खिलाफ स्थानीय मछुआरों के संगठन ने एकबार फिर हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

उनकी याचिका पर मणिपुर हाईकोर्ट की विशेष पीठ ने 25 फरवरी के फैसले में कहा है कि लोकतक विकास प्राधिकार (एलडीए) और वेटलैंड्स इंटरनेशनल साउथ एशिया की साझा “लोकतक झील के बेहतर उपयोग के लिए एकीकृत प्रबंधन योजना-2020-25” में कई कमियां हैं। उन कमियों को दूर किए बगैर योजना को आगे नहीं बढाया जा सकता। अदालत ने निर्देश दिया कि अगले आदेश आने तक हाईकोर्ट के 17 जुलाई 2019 के आदेश का पालन करते हुए लोकतक झील व उसके आसपास के इलाके में कोई निर्माण कार्य नहीं कराया जाएगा। याचिका ऑल लोकतक एरिया फिशर्स यूनियन-मणिपुर की अकाशिनी देवी और खोइरोम किरनबाला ने दायर किया था। इंफाल का इंडिजीनस पर्सपेक्टिव्स और इंवायरोन्मेंट सपोर्ट ग्रूप (बंगलोर) सहयोगी थे। तीनों संगठनों ने हाईकोर्ट के आदेश का स्वागत किया है। उनका आरोप है कि प्रस्तावित योजना उन हजारों मछुआरों, चरवाहों, कारीगरों और खेतिहरों को बर्बाद कर देगा जो अपनी आजीविका के लिए प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से लोकतक झील पर निर्भर करते हैं। इसके अलावा यह योजना झील की अनोखी पारिस्थितिकी को तो नष्ट ही कर देगा। योजना तैयार करने में इस पर आजीविका के लिए निर्भर स्थानीय निवासियों से परामर्श नहीं किया गया है अर्थात कोई जन-सुनवाई नहीं की गई जो कानून के अनुसार अनिवार्य है।

ताजा याचिका में अदालत का ध्यान दिलाया गया था कि केन्द्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु मंत्रालय ने स्पष्ट किया है कि लोकतक झील के बारे में स्थिति-पत्र जमा नहीं किया गया है। वेटलैंड्स (कंजरवेशन एंड मैनेजमेंट) रुल्स 2017 की धारा-7 के अंतर्गत जलीय भूमि के अनेक प्रमुख बिन्दुओं को चिन्हित करना होता है। सीमाओं को चिन्हित करना, निर्भर आबादी और उनके परंपरगत अधिकारों का निर्धारण करते हुए स्थिति-पत्र तैयार किया जाता है। इसके आधार पर विकास योजना की अधिसूचना जारी की जाएगी और आम लोगों की राय मांगी जाएगी। इस तरह एकीकृत प्रबंधन योजना तैयार की जा सकती है। हाईकोर्ट ने इस प्रावधान का पालन करने की अनिवार्यता को रेखांकित किया है। इस बुनियादी प्रावधान का मौजूदा एकीकृत प्रबंधन योजना तैयार करते समय पालन नहीं किया गया है।

पर्यावरण अधिकार संगठनों के अनुसार, झील पर किसी तरह के निर्माण के लिए निविदा की प्रक्रिया शुरू करना इस विलक्षण धरोहर से जुड़े आम लोगों के बुनियादी अधिकारों पर हमला है। अदालत ने 12 अक्टूबर के आदेश में यह भी दर्ज किया है कि इस एकीकृत योजना के लिए रकम की उपलब्धता के बारे में राज्य सरकार ने अदालत को गुमराह किया। मणिपुर सरकार ने कहा था कि अगर निविदा प्रक्रिया शुरू करने की इजाजत नहीं दी गई तो इको टूरिज्म व जलमार्ग के लिए मिली रकम वापस हो जाएगी। इसके लिए एशियन डेवलॉपमेंट बैंक से रकम मिलनी है। हालांकि जब याचिकाकर्ताओं ने बैंक से संपर्क किया तो पता चला कि इस तरह का आवंटन फरवरी 2021 तक नहीं किया गया है। निविदा के लिए नोटिस नवंबर 2020 में जारी की गई थी जिसके लिए अदालत से अनुमति नहीं ली गई थी।

जलवायु परिवर्तन के वैश्विक संकट को देखते हुए जरूरत इस तरह के विलक्षण पारिस्थितिकी वाली संरचना का संरक्षण करना है, पर पर्यटन से कमाई करने के लोभ में सरकार इसकी परवाह नहीं कर रही।  

(अमरनाथ वरिष्ठ पत्रकार होने के साथ पर्यावरण मामलों के जानकार भी हैं। आप आजकल पटना में रहते हैं।)

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