तापमान बढ़ोत्तरी नियंत्रित करने के लिए फौरन कार्यवाही जरूरी

वैश्विक तापमान में बढ़ोत्तरी को अगर 1.5 डिग्री सेल्सियस पर रोकना है तो ग्रीनहाऊस गैसों के उत्सर्जन को घटाने की कठोर कार्रवाई तत्काल आरंभ करने की जरूरत है ताकि वर्ष 2025 के बाद इसमें लगातार कमी आ सके। आईपीसीसी की ताजा रिपोर्ट में कहा गया है कि ग्रीनहाऊस गैसों के उत्सर्जन को 2030 तक 43 प्रतिशत घटा देने की जरूरत है। वैश्विक तापमान में बढ़ोत्तरी को 1.5 डिग्री पर रोकने के लिए यह अनिवार्य है। साथ ही यह चेतावनी दी है कि उत्सर्जन के मार्ग को अगर तत्काल उल्लेखनीय रूप से बदल नहीं दिया गया तो 2030 के बाद कोई भी कार्रवाई वैश्विक तापमान में बढ़ोत्तरी को 1.5 डिग्री सेल्सियस पर रोकने में सफल नहीं हो सकेगी, बल्कि वैसी स्थिति में 2 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोत्तरी तक पहुंचने की गति तेज हो जाएगी।

उल्लेखनीय है कि पेरिस समझौता 2015 में वैश्विक तापमान को पूर्व-औद्योगिक स्थिति से 2 डिग्री अधिक पर रोक रखने का लक्ष्य निर्धारित किया गया था।  जबकि इसे 1.5 डिग्री तक रोकने की कोशिश करने पर जोर दिया गया था। बीते साल ग्लासगोव विश्व जलवायु सम्मेलन में इस 1.5 डिग्री पर बढोतरी को रोकने का लक्ष्य निर्धारित किया गया। इस बीच विश्व मौसम विज्ञान संगठन की रिपोर्ट में कहा गया है कि अगले पांच वर्षों में वैश्विक तापमान में 1.5 डिग्री सेल्सियस बढोतरी होने की 48 प्रतिशत संभावना है। वैश्विक तापमान में पहले ही पूर्व औद्योगिक स्थिति से 1.1 डिग्री की बढ़ोतरी हो गई है। यही नहीं, संयुक्त राष्ट्र की एमिशन गैप रिपोर्ट 2020 के हवाले से बताया गया है कि बढोतरी की वर्तमान रफ्तार जारी रही तो इस सदी के अंत तक बढ़ोत्तरी 3.2 डिग्री सेल्सियस के पार चली जाएगी। 

आईपीसीसी की ताजा छठी रिपोर्ट 4 अप्रैल को जारी की गई। इस रिपोर्ट में जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में हो रही कार्रवाईयों और उन कार्रवाईयों के संभावित परिणामों का आंकलन किया गया है। रिपोर्ट में वैश्विक तापमान में बढ़ोतरी को नियंत्रित करने के विभिन्न विकल्पों का मूल्यांकन भी किया गया है ताकि तापमान को नियंत्रित रखने के वैश्विक लक्ष्य को हासिल किया जा सके। इसने कहा है कि जलवायु संबंधी कार्रवाईयों को कारगर बनाने की कई पद्धतियां उपलब्ध हैं जो न केवल किफायती हैं, बल्कि विभिन्न क्षेत्रों में प्रभावी हो सकती हैं।

रिपोर्ट के लेखकों में शामिल नवरोज दुबाश का कहना है कि जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में निकट भविष्य में कठोर कार्रवाई बेहद आवश्यक है। अभी स्पष्ट दिखता है कि हम 1.5 डिग्री के लक्ष्य को प्राप्त करने के रास्ते पर नहीं हैं। आईपीसीसी की इस रिपोर्ट में टिकाऊ विकास के बारे में विस्तार से चर्चा की गई है। यह आकलन भी किया गया है कि किस तरह का शहरीकरण जीवन-स्तर को बेहतर बनाने के साथ ही उत्सर्जन को कम कर सकता है। दोनों एक-दूसरे से जुड़े हैं। दुबाश दिल्ली के सेंटर फॉर पॉलिसी रीसर्च में प्रोफेसर हैं।    

रिपोर्ट के अनुसार, उत्सर्जन के वर्तमान स्तर का आधा से अधिक की कटौती ऐसे औजारों के सहारे किया जा सकता है जिसकी लागत 100 डालर प्रति टन कार्बन डाक्साइड से भी कम होगी। इसमें से भी करीब एक चौथाई कटौती पर लागत 20 डालर प्रति टन कार्बन आक्साइड होगी। इस दिशा में प्रगति भी हुई है। न्यूनीकरण को लेकर कतिपय नियमावली और कानून बने हैं, जिससे उत्सर्जन को टाला भी जा सका है। कई देशों में नियमावलियों ने ऊर्जा की किफायत को बढ़ावा दिया है, वन-विनाश की दर घटी है और उत्सर्जन घटाने वाली तकनीकों को संस्थापित किया गया है। इसके साथ ही विभिन्न नीतियों की वजह से वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों की प्रति इकाई लागत में कमी आई है। जैसे 2010 से 2019 के बीच सौर्य ऊर्जा में प्रति ईकाई 85 प्रतिशत,पवन ऊर्जा में 55 प्रतिशत और लिथियम बैटरी में 85 प्रतिशत लागत में कमी आई है। संस्थापन लागत में भी कमी आई है।

रिपोर्ट की एक अन्य लेखक डॉ जयश्री राय ने कहा कि तापमान में बढोतरी को नियंत्रित करने के लिए कार्रवाई खूब संभव है। भारत में तो अधिसंरचनाओं का उस तरह से विकास नहीं हुआ है। इसलिए भारत में जलवायु-स्नेही संरचनाओं का विकास आसान है। इस रिपोर्ट में 60 अलग-अलग विकल्पों का उल्लेख किया गया है जिनमें ठोस कार्रवाई और तौर-तरीके शामिल हैं। इनके सहारे वैश्विक उत्सर्जन में 40 से 70 प्रतिशत तक कमी लाई जा सकती है। इन विकल्पों में केवल सरकारी नीतियां और रणनीतियां शामिल नहीं हैं, बल्कि व्यक्तिगत स्तर पर किए जा सकने वाले कार्यों का उल्लेख भी किया गया है।

इन विकल्पों में खाद्य पदार्थों की बर्बादी को रोकना उत्सर्जन को घटाने का  महत्वपूर्ण औजार है। इसी तरह पोषण व भोजन का चयन, पौधा आधरित आहार को अपनाना भी अच्छा विकल्प हो सकता है। इन उपायों से उत्सर्जन को 45 प्रतिशत तक घटाया जा सकता है। इसके अलावा छोटी दूरी तय करने में पैदल चलने और साइकिल चलाने से भी उत्सर्जन को बड़े पैमाने पर घटाया जा सकता है। इन व्यक्तिगत प्रयासों को सहायता करने के लिए शहरों को इस तरह बनाया जाना होगा जिसमें पैदल चलने वालों के लिए सुगम हो। इसके लिए समुचित अधिसंरचना विकसित करनी होगी।

रिपोर्ट में ऊर्जा क्षेत्र में उत्सर्जन में कटौती करने के लिए बडे पैमाने पर बदलाव की जरूरत का उल्लेख किया गया है। जिसमें जीवाश्म इंधनों के इस्तेमाल में उल्लेखनीय कटौती, कम उत्सर्जन वाले ऊर्जा-स्रोतों का संस्थापन, अक्षय ऊर्जा स्रोतों को अपनाना, ऊर्जा खर्च में किफायत और ऊर्जा संरक्षण के उपाय शामिल हैं। अक्षय ऊर्जा के विकल्प लगातार किफायती होते जा रहे हैं। हालांकि इन पर पूरी तरह निर्भर होने की स्थिति अभी नहीं आई है।

आईपीसीसी की ताजा रिपोर्ट में उल्लेख है कि जलवायु परिवर्तन का मुकाबला करने के लिए उपयुक्त उपाय करना जरूरी है जिसमें दीर्घ मीयादी व अल्प मीयादी उपाय शामिल हैं। तापमान बढोतरी को लेकर लक्ष्य निर्धारित करना उचित नहीं है क्योंकि एक बार जब तापमान बढ जाता है तो उसे कम करना संभव नहीं रह जाता। वर्तमान में सभी अध्ययन स्पष्ट करते हैं कि शताब्दी के आखिर तक तापमान में 1.5 डिग्री या 2 डिग्री सेल्सियस की बढोतरी पूरी तरह  संभव है, फिर उसे पुरानी स्थिति में नहीं लाया जा सकेगा।

(अमरनाथ झा वरिष्ठ पत्रकार होने के साथ पर्यावरण मामलों के जानकार भी हैं। आप आजकल पटना में रहते हैं।)

अमरनाथ झा
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