भारत में ग्रीन हाईड्रोजन मिशन की शुरुआत

ऊर्जा के मामले में आत्मनिर्भर बनने की दिशा में ठोस कदम उठाते हुए केन्द्र सरकार ने नेशनल ग्रीन हाईड्रोजन मिशन का अनुमोदन कर दिया है। इसके लिए करीब 20 हजार करोड़ रुपए का आवंटन किया गया है। मिशन के अंतर्गत ग्रीन हाईड्रोजन के निर्यात की संभावनाएं भी खोजी जाएगी। जीवाश्म ईधनों पर निर्भरता कम करना मिशन का प्रारंभिक उदेश्य है। इसके अंतर्गत इलेक्ट्रोलाइसिस नामक रसायनिक क्रिया से पानी को विभाजित कर हाईड्रोजन बनाया जाना है। इसमें इलेक्ट्रोलाइजर नामक यंत्र का व्यवहार किया जाएगा जिसे चलाने में अक्षय ऊर्जा का इस्तेमाल होगा।

हाईड्रोजन प्राकृतिक रूप से अनेक तत्वों के साथ यौगिकों के रूप में रहता है। उन यौगिकों में पानी भी है जिसमें हाइड्रोजन के साथ ऑक्सीजन रहता है। पानी से इलेक्ट्रोलाइजर की सहायता से निकाले गए हाईड्रोजन को ग्रीन हाईड्रोजन कहा जाता है। हाईड्रोजन को जिस स्रोत और प्रक्रिया से निकाला जाता है उसके आधार पर उसे ग्रे और ब्लू हाईड्रोजन कहा जाता है।

ईधन के रुप में हाईड्रोजन के इस्तेमाल की कहानी करीब 150 साल पुरानी है। लेकिन 1970 के दशक में जीवाश्म ईधनों की कीमतें बेतहाशा बढ़ने पर तीन कार निर्माता कंपनियों ने हाईड्रोजन के उपयोग की संभावना तलाशना शुरु किया। जापान की होंडा, टोयटा और दक्षिण कोरिया की हुंडई ने इसके वाणिज्यिक इस्तेमाल की कोशिशें भी शुरू कर दी। हालांकि अभी यह काफी मंहगा पड़ता है।

ग्रीन हाईड्रोजन के साथ कुछ विशेष लाभ जुड़े हुए हैं। ईधन के तौर पर इस्तेमाल होने पर यह अनेक क्षेत्रों को कार्बन-मुक्त कर सकता है जिनमें लौह व इस्पात, रसायन व परिवहन क्षेत्र शामिल हैं। इसे बनाने की प्रक्रिया में केवल उसी अक्षय ऊर्जा का इस्तेमाल किया जाना है जिनका भंडारण नहीं किया जा सकता। वर्तमान में ग्रीन हाईड्रोजन आर्थिक रूप से किफायती नहीं है। इसे बनाने में करीब 350-400 रुपए प्रति किलोग्राम खर्च पड़ता है। इसे केवल तब किफायती माना जा सकेगा जब इसकी लागत 100 रुपए प्रति किलोग्राम रहे। मिशन का उद्देश्य उत्पादन लागत में इस कमी को लाने के लिए शोध करना भी है।

ग्रीन हाईड्रोजन के उत्पादन में काम आने वाला बुनियादी औजार इलेक्ट्रोलाइजर की लागत घटाने के लिए आवश्यक शोध के लिए सरकारी छूट व रियायत दी जानी है। अगर लागत कम हो जाए तो ग्रीन हाईड्रोजन जीवाश्म ईधनों का विकल्प बन सकता है।

ग्रीन हाईड्रोजन के बारे में प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी ने वर्ष 2021 के स्वतंत्रता दिवस के संबोधन में घोषणा की थी और इसके विकास का प्रारुप बनाने का जिम्मा नवीन व अक्षय ऊर्जा मंत्रालय को दिया गया था। प्रस्तावित ग्रीन हाईड्रोजन ट्रांजिशन प्रोग्राम (साइट) के अंतर्गत दो वित्तीय अवयव हैं। पहला इलेक्ट्रोलाइजर के विकास में सहयोग व दूसरा ग्रीन हाईड्रोजन के उत्पादन में सहयोग। इसके सहारे वर्ष 2030 तक जीवाश्म ईधनों के आयात में उल्लेखनीय कटौती लाने की योजना है। जीवाश्म ईधनों की खपत घटने पर ग्रीनहाऊस गैसों का उत्सर्जन अपने आप घट जाएगी।

ग्रीन हाईड्रोजन ईधन का इस्तेमाल भारी ट्रकों व ट्रेनों में किया जा सकता है। परिवहन क्षेत्र के अलावा ग्रीन हाईड्रोजन का इस्तेमाल पेट्रोलियम रिफायनरी और इस्पात उद्योग में किया जा सकता है। इस वर्ष अप्रैल 2022 में आयल इंडिया लिमिटेड ने असम के जोरहाट में ग्रीन हाईड्रोजन प्रकल्प स्थापित की है। यह भारत में अपनी तरह का पहला प्रकल्प है।

प्रस्तावित मिशन में इस्पात क्षेत्र को साझीदार बनाया गया है। कोशिश है कि इस क्षेत्र में ग्रीन हाईड्रोजन का इस्तेमाल करके प्राकृतिक गैस के इस्तेमाल को घटाया जा सके। केरल में हाईड्रोजन इकोनॉमी मिशन चल रहा है। कोशिश है कि राज्य को ग्रीन हाईड्रोजन हब बनाया जाए।

इंडियन आयल कारपोरेशन के शोध व विकास केन्द्र ने टाटा मोटर्स लिमिटेड की साझीदारी में पहले ही हाईड्रोजन सेल का इस्तेमाल करके बसें चलाने का परीक्षण किया है। रिलायंस इंडस्ट्रीज, अडानी, जिंदल आदि बड़े औद्योगिक घरानों ने ग्रीन हाईड्रोजन के क्षेत्र में गहरी दिलस्पी दिखाई है। अडानी के फ्रांस की टोटल इनर्जी के साझीदारी में विश्व का सबसे बड़ा ग्रीन हाईड्रोजन केन्द्र विकसित करने की घोषणा की है। अमेरीका की एक कंपनी ने कर्नाटक में भारत का पहले ग्रीन हाईड्रोजन कारखाना स्थापित किया है।

नवीन व अक्षय ऊर्जा मंत्रालय ग्रीन हाईड्रोजन उत्पादन की ऐसी योजना तैयार करने की निर्देशावली बना रहा है जिससे प्रति वर्ष कम से कम 50 लाख टन ग्रीन हाईड्रोजन बनाया जा सके। हालांकि अभी जिस मिशन की घोषणा की गई है, उसमें कई चीजें स्पष्ट नहीं है। मसलन, पानी को विघटित करके हाईड्रोजन बनाया जाएगा तो अन्य उत्पादों अर्थात ऑक्सीजन का क्या किया जाएगा। इस प्रक्रिया में पानी की कितनी खपत होगी आदि।

(अमरनाथ वरिष्ठ पत्रकार और पर्यावरण विशेषज्ञ हैं।)

अमरनाथ झा
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