चार धामा यात्रा: इन मौतों के लिए कौन है जिम्मेदार

उत्तराखंड में चार धाम यात्रा नये रिकॉर्ड बनाने जा रही है। गंगोत्री, यमुनोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ के कपाट खुलने से लेकर अब तक इन धामों में पहुंचे तीर्थयात्रियों की संख्या पर गौर करें तो स्पष्ट हो जाता है कि इस बार पिछला रिकॉर्ड, जो 2019 में बना था, वह न सिर्फ टूट जाएगा, बल्कि तीर्थयात्रियों की संख्या 2019 की तुलना में कहीं ज्यादा पहुंच जाएगी। 2020 और 2021 में कोविड-19 के कारण यात्रा या तो बंद थी या कई बंदिशों के साथ कुछ दिन तक ही चल पाई थी। तीर्थयात्रियों की संख्या में हुई इस बढ़ोत्तरी के साथ ही यह बात भी ध्यान देने योग्य है कि इन मंदिरों के कपाट खुलने के साथ ही यहां विभिन्न कारणों से होने वाली मौतों की संख्या भी लगातार बढ़ती जा रही है। 17 मई शाम तक के आंकड़े बताते हैं कि चारों धामों में अब तक 42 लोगों की मौत हो चुकी है।

एक नजर पिछले सालों में चारों धामों में पहुंचे तीर्थयात्रियों की संख्या पर डालें तो अब तक सबसे ज्यादा तीर्थयात्री 2019 में आये थे। उस वर्ष केदारनाथ में 10 लाख 21 तीर्थयात्री पहुंचे थे, जबकि बद्रीनाथ में यह संख्या 12 लाख 44 हजार 993 थी। गंगोत्री में 5 लाख 30 हजार 334 और यमुनोत्री में 4 लाख 65 हजार 534 तीर्थयात्री पहुंचे थे। अगले 2 वर्षों यानी 2020 और 2021 में कोरोना के कारण इन तीर्थस्थलों में पहुंचने वाले यात्रियों की संख्या कुछ हजार तक ही सिमट गई थी। अब इस वर्ष अब तक चारों धामों में पहुंचे तीर्थयात्रियों की संख्या देखें तो आंकड़े न सिर्फ चौंकाने वाले हैं, बल्कि चिंतित करने वाले भी हैं। कारण यह कि उच्च हिमालयी क्षेत्रों में स्थित इन चारों धामों की क्षमता इतने लोगों को वहन करने की नहीं है।

एक खास बात यह भी ध्यान देने वाली है कि केदारनाथ की 2013 की त्रासदी के बाद साल दर साल यहां तीर्थ यात्रियों की संख्या बढ़ती रही है। इसके बावजूद पिछले सालों तक केदारनाथ के मुकाबले बद्रीनाथ पहुंचने वाले तीर्थयात्रियों की संख्या ज्यादा होती थी। लेकिन, इस वर्ष अब तक के आंकड़े बता रहे हैं एक बद्रीनाथ के बजाय ज्यादातर तीर्थयात्री केदारनाथ जाने को तरजीह दे रहे हैं। जबकि केदारनाथ लगभग 18 किलोमीटर पैदल चलना पड़ता है। हालांकि बड़ी संख्या में तीर्थयात्री हेलीकॉप्टर से भी केदारनाथ पहुंच रहे हैं।

केदारनाथ में 17 मई, 2022 शाम तक पहुंचने वाले तीर्थयात्रियों की संख्या 2 लाख 20 हजार 497 थी, जबकि बद्रीनाथ 1 लाख 70 हजार 974 तीर्थयात्री पहुंचे थे। गंगोत्री पहुंचने वालों की संख्या 1 लाख 22 हजार 325 और यमुनोत्री पहुंचने वालों की संख्या 1 लाख 05 हजार 277 थी। इन तीर्थस्थलों पर लगातार हो रही मौतें भी बेहद चिंताजनक हैं। गंगोत्री और यमुनोत्री के कपाट 3 मई को खुले थे। इन 15 दिनों में गंगोत्री में 4 और यमुनोत्री में 14 तीर्थयात्रियों की मौत हो चुकी है। केदारनाथ के कपाट 6 मई को खुले थे और यहां 17 मई तक, यानी 12 दिनों में 16 लोगों की मौत हुई। बद्रीनाथ के कपाट खुले अभी 8 दिन हुए हैं और मरने वालों की संख्या भी 8 है।

लगातार हो रही तीर्थयात्रियों की मौत राज्य सरकार की व्यवस्थाओं पर सवाल खड़ा कर रही है। यह पहले से माना जा रहा था कि 2 वर्ष तक यात्रा लगभग बंद रहने के कारण इस बार तीर्थयात्रियों की संख्या में भारी बढ़ोत्तरी हो सकती है। इसके बावजूद, यात्रा मार्गों पर अपेक्षित व्यवस्थाएं नहीं की गईं। राज्य सरकार और उसके आला अधिकारी सिर्फ बयानबाजी करते रहे और धरातल पर काम करने की बहुत ज्यादा जरूरत महसूस नहीं की गई। पिछले 5 वर्षों से दिलीप जावलकर नाम के अधिकारी पर्यटन सचिव के रूप में काम कर रहे हैं, लेकिन इन 5 सालों में तीर्थयात्रियों की सुविधा उपलब्ध करवाने के लिए उनके पास कोई रोडमैप तक नहीं था। उच्च हिमालयी क्षेत्रों में स्वास्थ्य संबंधी परेशानी सबसे बड़ा मसला है और तीर्थयात्रियों की मौत के मामले में आमतौर पर हार्ट अटैक की शिकायत होती है। यह पहले से जानकारी होने के बावजूद इस दिशा में कोई काम नहीं किया गया।

यात्रा शुरू होने से पहले दावा किया गया था कि केदारनाथ और यमुनोत्री जैसे पैदल मार्ग वाले तीर्थों पर हार्ट स्पेशलिस्ट की तैनाती की जाएगी और सभी तरह की दवाइयों की उपलब्धता सुनिश्चित की जाएगी। लेकिन, फिलहाल ऐसा कोई इंतजाम इन दोनों तीर्थों पर नहीं है। ध्यान देने वाली बात यह भी है कि तीर्थयात्रा मार्गों पर कहीं भी कोई हार्ट स्पेशलिस्ट नहीं है। हार्ट अटैक जैसी समस्या आने पर ऋषिकेश से ऊपर कोई व्यवस्था नहीं है। अब तक जिन 42 तीर्थयात्रियों की मौत हुई है, उन सभी मौतों का कारण हार्ट अटैक ही माना जा रहा है।

हालांकि तीर्थ यात्रा के दौरान हार्ट अटैक के कारण पहले भी मौतें होती रही हैं, लेकिन इस बार शुरुआती दौर में ही मौतों की संख्या में जो उछाल आया, उसके लिए यात्रा की तेज रफ्तार को भी जिम्मेदार माना जा रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि दिल्ली के 49 डिग्री सेल्सियस तापमान से सुबह चला तीर्थयात्री चार धाम रोड बन जाने और हेलीकॉप्टर की सुविधा के कारण इतनी तेज रफ्तार से चलता है कि सूरज ढलने से पहले केदारनाथ या बद्रीनाथ पहुंचता है। एक ही दिन में 49 डिग्री सेल्सियस से शून्य या उससे नीचे के तापमान में पहुंचने से शरीर तापमान के बड़े उतार-चढ़ाव को बर्दाश्त नहीं कर पाता और हार्ट अटैक जैसी घटना सामने आती है।

यात्रा मार्गों की बात करें तो फिलहाल ज्यादातर जगहों पर पहली नजर में सड़कें पहले से बेहतर नजर आ रही हैं, लेकिन ऑलवेदर रोड के नाम पर जिस तरह से पहाड़ों को काटा गया है, वह बरसात आने के साथ ही बड़ी समस्या खड़ी कर सकता है। पिछले दिनों हुई बारिश के बाद ऐसी घटनाएं सामने आने लगी हैं। 18 मई को यमुनोत्री हाईवे का एक बड़ा हिस्सा बह जाने से यात्रा बंद है। केदारनाथ से चोपता गोपेश्वर होकर बद्रीनाथ जाने वाला मार्ग भी पिछले 8 दिन से बंद है। जोशीमठ से बद्रीनाथ के बीच भी कुछ जगहों पर बार-बार मलबा आने से यात्रा बाधित हो रही है।

ऋषिकेश से बद्रीनाथ तक यात्रा के दौरान इस लेखक ने महसूस किया कि इस रोड पर बेतरतीब तरीके से पहाड़ काटे जाने के कारण सैकड़ों की संख्या में नए स्लाइडिंग जोन बन गए हैं। जबकि कई पुराने स्लाइडिंग जोन, जो कुछ सालों से निष्क्रिय थे, वे भी फिर से सक्रिय हो गए हैं। सरकारी तौर पर ऋषिकेश से बद्रीनाथ तक 64 स्लाइडिंग जोन चिन्हित किए गए हैं। इनमें से 26 स्लाइडिंग जोन की यात्रा शुरू होने से पहले ट्रीटमेंट किए जाने की सिफारिश की गई थी। लेकिन, अब तक ट्रीटमेंट का प्लान ही बन रहा है।

मौसम विभाग ने 21 मई के बाद राज्य में लगातार बारिश होने की संभावना जताई है। पिछले वर्ष मई में हुई बारिश की घटनाएं बताती हैं कि यदि इस बार भी पिछले वर्ष की तरह बारिश हुई तो स्थितियां बेहद खराब हो सकती हैं। पिछले वर्ष मई के महीने में राज्य में अलग-अलग जगहों पर बादल फटने जैसी 7 घटनाएं हुई थीं। इन घटनाओं में तीन लोगों की मौत हुई थी और कई मकान ढह गए थे। इनमें से एक घटना बद्रीनाथ हाईवे पर देवप्रयाग में भी हुई थी।

इस बार चार धाम रोड की स्थिति ऐसी है की मध्यम स्तर की बारिश ही सड़कों को तहस-नहस करने के लिए काफी है। कारण कि पहाड़ काटने के दौरान बरती गई लापरवाही के कारण लगभग पूरे यात्रा मार्ग पर सड़क के ठीक ऊपर बड़े-बड़े बोल्डर नीचे खिसकने के लिए तैयार हैं। पिछले वर्ष ऐसे ही बोल्डर गिरने से कुछ लोगों की मौत हुई थी। ऐसा तब हुआ था जबकि यहां तीर्थयात्री नहीं थे। इस बार तीर्थयात्रियों की इस बड़ी संख्या के रहते यदि पहाड़ खिसकने का सिलसिला जारी रहा, जिसकी की पूरी संभावना है, तो स्थितियां बेहद खराब हो सकती हैं और जान माल का भी भारी नुकसान हो सकता है। 

(उत्तराखंड से वरिष्ठ पत्रकार त्रिलोचन भट्ट की रिपोर्ट।)

त्रिलोचन भट्ट
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