Friday, September 29, 2023

बिहार में सूखा पड़ने की आशंका 

बिहार में सूखा जैसी हालत है। वर्षा बहुत कम हुई है। इसका सीधा असर धान की खेती पर पड़ा है। बहुत बड़े इलाके में रोपनी भी नहीं हुई। जहां नलकूप आदि की सहायता से रोपनी हो गई है, वहां भी वर्षा नहीं होने से फसल सूख जाने की आशंका है।

ढंग से बरसात अभी शुरू ही नहीं हुई। जबकि मानसून का आगमन जून में ही हो गया। पर मामूली वर्षा हुई। आंकड़ों के लिहाज से इस वर्ष अभी तक पिछले साल के मुकाबले आधा से भी कम वर्षा हुई है। जल संसाधन विभाग के आंकड़ों के अनुसार, पिछले वर्ष एक जून से 21 जुलाई के बीच 400 मिलीमीटर वर्षा हुई थी, जबकि इस वर्ष इस अवधि में मात्र 215 मिलीमीटर वर्षा हुई है। यह वर्षा भी छिट-पुट हुई है। खेतों में पानी इकट्ठा होने वाली वर्षा कभी नहीं हुई। इसलिए केवल वर्षा के आधार पर धान की रोपनी कहीं नहीं हो पाई। वहीं लोग रोपनी कर पाए जिनके पास नलकूप की सुविधा उपलब्ध है। लेकिन वर्षा नहीं होने से उनकी फसल के भी नष्ट हो जाने का खतरा उत्पन्न हो गया है। 

कृषि विभाग से जारी धान की रोपनी के आंकड़ों के अनुसार 18 जुलाई तक राज्य में केवल 23 प्रतिशत रोपनी हुई है। हालत यह है कि 14 जिलों में पांच प्रतिशत से भी कम रोपनी हुई है। मुंगेर में तो रोपनी शुरू ही नहीं हुई है। केवल सात जिलों में 50 प्रतिशत से अधिक रोपनी हो सकी है। केवल पश्चिम चंपारण और पूर्णिया में 81 प्रतिशत रोपनी हो सकी है। उल्लेखनीय है कि पश्चिम चंपारण व पूर्णिया राज्य के उत्तरी छोर पर हैं और दोनों जिलों में पहाड़ी नदियों का जाल सा है। लोगों ने पंपसेट से नदी से पानी निकालकर रोपनी कर ली है, पर वर्षा नहीं होने से उन जिलों में भी धान के बीचड़ों पर संकट है। कृषि विभाग के अनुसार, इस वर्ष धान की रोपनी का लक्ष्य 35 लाख 12 हजार हेक्टेयर है। जबकि रोपनी महज सात लाख हेक्टेयर से कुछ अधिक इलाके में हो सकी है।

धान की खेती के मामले में नलकूपों से भी अधिक मदद नहीं मिल पाती। सरकारी नलकूप जर्जर हालत में हैं। दो तिहाई से ज्यादा नलकूप खराब पड़े हैं। इस समय राज्य में 10,240 नलकूप हैं जिनमें से केवल 3800 ही ठीकठाक हालत में हैं। 6440 खराब पड़े हैं। इनमें भी 300 से ज्यादा नलकूप केवल नाम के रह गए हैं। वे नेशनल हाईवे में चले गए हैं या नदी की धार में बह गए हैं। इन्हें सरकारी रिकार्ड से हटा देने की कार्रवाई चल रही है। जो नलकूप काम चलाऊ हालत में हैं, उनसे करीब 1लाख 14 हजार हेक्टेयर में खेती के लिए पानी मिल पा रहा है। जबकि उनसे आमतौर पर 3 लाख हेक्टेयर में पानी मिलना चाहिए था। 

यही हालत नहरों की है। अधिकतर नहरों से पानी गायब है। जिनमें पानी है भी तो पानी नहर के अंतिम छोर तक नहीं पहुंच पा रहा। राज्य की तीन नहर प्रणालियों- सोन, गंडक व कोसी के अलावा उत्तर कोयल नहर प्रणाली की हालत बेहद खराब है। इनमें सोन व गंडक नहरों से कुछ इलाके में थोड़ा-बहुत लाभ मिलता भी है लेकिन वैशाली, जहानाबाद, अरवल आदि जिलों में नहरों में धूल उड़ रही है। भोजपुर जिले में इंद्रपुरी बराज में दो दशकों में पहली बार इतना अधिक जल संकट उत्पन्न हुआ है। जिले के आरा मुख्य नहर को भी पानी नहीं मिल पा रहा है। किसी भी वितरणी में पानी नहीं पहुंच पा रहा है। दुर्गावती जलाशय से भी काफी कम पानी मिल पा रहा है। गंडक नहर के कमान क्षेत्र में गोपालगंज व छपरा जिले में नहरों की हालत खराब है। कुछ इलाकों में सरकार नहरों में बारी-बारी से पानी छोड़ने की व्यवस्था लागू करने के बारे में सोच रही है। 

कुल मिलाकर बरसात में वर्षा नहीं होने से बिहार में सुखाड़ की हालत है। अगर तत्काल वर्षा नहीं हुई तो अकाल जैसी हालत उत्पन्न हो सकती है क्योंकि धान की फसल नष्ट हो जाएगी जो इलाके की मुख्य फसल है। वर्षा की कमी होने से नदियों में भी पर्याप्त पानी नहीं है। कोशी को छोड़कर सभी छोटी-बड़ी नदियां खतरे के निशान से नीचे बह रही हैं। कोशी में भी केवल सुपौल में पानी खतरे के निशान से कुछ ऊपर है। बिहार ही नहीं, नेपाल तराई की ज्यादातर नदियों में पानी कम है। बिहार में कुल मिलाकर 47 प्रतिशत कम वर्षा हुई है।  

(पटना से वरिष्ठ पत्रकार अमरनाथ की रिपोर्ट।)

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of

guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

Related Articles