क्यों बढ़ रही है बिहार में वायु प्रदूषण की समस्या?

वायु प्रदूषण वैश्विक जगत में मानव समाज के लिए स्वास्थ्य और स्वच्छ जीवन के लिए एक गम्भीर ख़तरा बन गया है। यू.एन.इनवायरमेंट प्रोग्राम (यू.एन.इ.पी.) के आँकड़ों के अनुसार ऐसा अनुमान है कि वायु प्रदूषण के कारण प्रतिवर्ष पूरे विश्व में लगभग सात मिलियन लोगों की समय से पहले मृत्यु हो रही है। वायु प्रदूषण के प्रमुख करकों में ग्रीन हाउस गैस जैसे कार्बन डाई ऑक्साइड, मिथेन, नाईट्रस ऑक्साइड, क्लोरो फ़्लोरों कार्बन, हाईड्रो फ़्लोरों कार्बन आदि का उत्सर्जन है।

ए.क्यू.आइ यानि एयर क्वालिटी इंडेक्स वायु की गुणवत्ता को मापने का एक पैमाना है जिसे पाँच वर्गों में विभाजित किया गया है। शून्य से 50 के बीच एक्यूआई को ‘अच्छा’, 51 और 100 के बीच ‘संतोषजनक’, 101 और 200 के बीच ‘मध्यम’, 201 और 300 के बीच ‘खराब और 401 और 500 के बीच ‘गंभीर’ माना जाता है। एक ‘खराब’ ए.क्यू.आइ का अनिवार्य रूप से अर्थ है कि लंबे समय तक संपर्क में रहने पर लोगों को गंभीर सांस सम्बन्धी बीमारी या सांस लेने में तकलीफ हो सकती है ।

बिहार में वायु प्रदूषण की समस्या

भारत जैसे विकासशील देश के लिए वायु प्रदूषण अत्यधिक ज्वलंत समस्या है, जिससे बच्चे, वृद्ध और महिलाएं अपेक्षाकृत अधिक प्रभावित होते हैं। हाल के दिनो में ऐसा देखा जा रहा है कि बिहार में वायु प्रदूषण का स्तर अत्यधिक बढ़ा हुआ है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के आँकड़ो के अनुसार देश के 10 सर्वाधिक वायु प्रदूषित शहरों में से सात शहर बिहार राज्य के हैं, जहाँ एयर क्वालिटी इंडेक्स 200 से 400 के बीच है। इनमे बेगूसराय शहर अति प्रदूषित (सीवियर) है जहां की एयर क्वालिटी इंडेक्स 364 है। इसके अलावा छह ऐसे शहर हैं जहाँ की एयर क्वालिटी इंडेक्स ‘अनहेल्दी ’ वर्ग के अंतर्गत शामिल है जिसमें पूर्णिया(281), मुज़फ़्फ़रपुर(263),सहरसा(248),भागलपुर(243),पटना(234),राजगीर(218) आते हैं। 10 जनवरी 2023)। प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड के अनुसार बिहार के 38 में से आज 17 जिलों में हवा की स्थिति खराब है। इनमें से 13 जिलों की स्थिति बहुत ही ज्यादा खराब है।

शीत ऋतु में वायु प्रदूषण

विदित हो कि बिहार राज्य के शहरों में ना तो बड़े शहरों के सदृश्य अत्यधिक उद्योग धंधे स्थापित हैं और न ही बड़े शहरों के समान ट्रैफिक की समस्या है। अतः यह समझना महत्वपूर्ण है कि ऐसी क्या वजहें हैं जिससे प्रदेश में वायु प्रदूषण अत्यधिक बढ़ा हुआ है? वैसे तो वायु प्रदूषण के कारक वैश्विक स्तर पर मूल रूप से एक समान हैं जिसका अध्ययन व्यापक स्तर पर किया जाता रहा है, पर भारतीय परिप्रेक्ष्य में विशेष रूप से शीत ऋतु में प्रदूषण की कुछ अन्य वजहें भी होती हैं। ऐसा देखा जाता है कि भारत में प्रति वर्ष शीत ऋतु में वायु प्रदूषण की समस्या अधिक भयावह हो जाती है। इसके करको में भौगोलिक, मौसमी तथा मानव जनित कारक सम्मिलित हैं।

इसके अतिरिक्त एक अन्य महत्वपूर्ण वायुमंडलीय कारक तापमान का प्रतिलोमन भी है, इसके फलस्वरूप पृथ्वी के तापमान में कमी आती है जिससे प्रदूषक तत्व वायुमंडल के निचले स्तर में ही संग्रहित रह जाते हैं और प्रदूषण का कारक बनते हैं। जबकि गर्मियों में तापमान अधिक होने के कारण प्रदूषक भी वायु के साथ वायुमंडल के ऊपरी स्तर की तरफ चले जाते हैं, जिसके कारण गर्मियों में वायु प्रदूषण का स्तर अपेक्षाकृत निम्न पाया जाता है। रात के समय तापमान में कमी आने के कारण तापमान प्रतिलोमन के स्तर में भी वृद्धि होती है जिसके कारण प्रदूषण का स्तर दिन की तुलना रात में अधिक प्रभावी होता है।

बिहार में वायु प्रदूषण के तात्कालिक कारक

अगर हम वायु प्रदूषण के तात्कालिक कारणों का अवलोकन करें तो इसके कई कारण नज़र आते हैं, जिसमें स्थानीय भू-जलवायु जोखिम एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। भू-जलवायु जोखिम का तात्पर्य है वैसी प्राकृतिक परिस्थितियाँ जो कि वयुमंडलीय तथा स्थलीय दोनो के ही सम्मिलित प्रभाव का प्रतिफल होती हैं। वायुमंडलीय एवं मौसमी कारक के अंतर्गत तापमान, वर्षण, वायु की तीव्रता और दिशा आदि को शामिल किया जाता है जबकि स्थलीय कारकों के तहत भू-तकनीकी कारक आते हैं।

बिहार की इंडो-गैन्गेटिक भौगोलिक स्थिति ही सर्दियों में उच्च ए,क्यू,आइ, का कारक है। ऐसा देखने को मिलता है कि उत्तर बिहार के जिलों की वायु दक्षिणी बिहार के ज़िलों की तुलना में अपेक्षाकृत अधिक प्रदूषित है। इसका कारण यह है कि उत्तरी ज़िलों की मिट्टी में जलोढ़ मिट्टी तथा सिल्ट अधिक है, जबकि दक्षिणी ज़िले चट्टानी प्रकृति वाले हैं जिससे उन जिलों में पार्टिकुलेट मैटर की मात्रा कम पाई जाती है।
उत्तर बिहार में जलोढ़ और सिल्ट की अधिकता वाली मिट्टी का अत्यधिक खनन चाहे वह निर्माण की गतिविधियों के लिए हो या नदियों के किनारे अवैध खनन के कारण; मिट्टी और सिल्ट के कण अक्सर वायुमंडल में हवा के साथ मिलकर प्रदूषण को अत्यधिक बढ़ाते हैं। यही कारण है कि बिहार के उत्तरी जिलों में वायु प्रदूषण अधिक है। इसके अतिरिक्त अन्य स्थानीय करको में विनिर्माण कार्यों द्वारा उत्तपन्न डस्ट, धूलकण, भोजन बनाने हेतु ईंधन में प्रयुक्त बायोगैस, लकड़ियों और फ़सलो के अवशेष आदि से उत्पन्न धुएँ तथा वाहनों से निकलने वाली गैस (CO2, NO2) आदि प्रमुख हैं।

वायु प्रदूषण का मानव पर प्रभाव

वायु प्रदूषण का मानव स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। हाल के दिनों में देखा गया है कि वायु की गुणवत्ता में गिरावट के कारण लोगों में श्वास संबंधी जटिल बीमारियों के लक्षण देखे जा रहे हैं। डॉक्टरों के अनुसार वायु प्रदूषण ना सिर्फ़ फेफड़ों को प्रभावित करता है वरन अन्य अंग भी इससे दुष्प्रभावित हो रहे हैं। वायु प्रदूषण के कारण टीबी, अस्थमा, कैंसर तथा कई अन्य एलर्जिक रोग भी फ़ैल रहे हैं।

सरकार और प्रदूषण नियंत्रण

बढ़ती जनसंख्या और त्वरित विकास के लक्ष्यों को प्राप्त करने की लालसा के फलस्वरूप उत्पन्न पर्यावरणीय प्रदूषण की समस्या को एकदम से ख़त्म करना तो असम्भव है परंतु कुछ नियम और कानूनों के द्वारा हम इसकी तीव्रता और दुष्परिणामों की मात्रा में कमी ज़रूर ला सकते हैं। सरकार द्वारा प्रदूषण की रोकथाम के हेतु अनेकों क़ानून और नियम बनाए गए हैं। पर सवाल यह है कि क्या सरकारों में सम्बद्ध हितधारकों (स्टेक-होल्डर्स) से इन प्रदूषण नियंत्रण के नियमों और कानूनों को पालन करवाने की राजनीतिक इच्छाशक्ति है? बिहार राज्य में बढ़ते प्रदूषण को देखते हुए हम यह कह सकते हैं कि प्रदूषण नियंत्रण के लिए सरकार के पास फिलहाल कोई उपाय दीखता नज़र नहीं आता।

इसका सबसे ताजा उदहारण है सिंगल यूज़ प्लास्टिक पर एक जुलाई 2022 से पूरे भारत में प्रतिबन्ध, पर इस तरह के प्लास्टिक का उपयोग सिर्फ बिहार में ही नहीं देश के अन्य हिस्सों में भी पहले की ही तरह बदस्तूर जारी है। इसी तरह चाहे अवैध खनन पर प्रतिबन्ध हो या डीज़ल और पेट्रोल की जगह सीनजी और इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा देना हो या पटाखों, आतिशबाजी या फसलों के अवशेष और बायो-मास के जलाये जाने पर नियंत्रण, सरकार और उसके कानून अक्सर मूक दर्शक बने रहते हैं और आम जन प्रदूषण की समस्या से जूझते नज़र आते हैं।

(डॉ. तृप्ति कुमारी मुजफ्फरपुर एम.जे.के.कॉलेज में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं।)

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