नई दिल्ली। सफाई कर्मचारी आंदोलन (SKA) 2022 से लेकर अभी तक सड़कों पर उतर कर केंद्र व राज्य सरकारों से जीने के हक की गारंटी की मांग कर रहा है। उसका कहना है कि पिछले 379 दिनों में देश ने 100 नागरिकों को गटर में खोया है। सीवर-सेप्टिक टैंक सफाई के दौरान भारतीय नागरिकों की अनवरत हो रही हत्याओं को रोकने के लिए उसने पिछले साल 11 मई, 2022 से राष्ट्रव्यापी अभियान #StopKillingUs छेड़ा हुआ है।
सफाई कर्मचारियों का कहना है कि सिर्फ इस एक मांग को लेकर सरकारों से वो जवाबदेही मांग रहे हैं। लेकिन सत्ता की शर्मनाक-आपराधिक चुप्पी कायम है। गहरे दुख और आक्रोश की बात है कि गटर में लोगों की मौतों का सिलसिला थम नहीं रहा है और इस बारे में सरकारें कोई ठोस कदम व भरोसा तक देने को तैयार नहीं हैं। क्या हमारी जिंदगियों का सरकारों के लिए कोई मोल नहीं है?
सफाई कर्मचारियों के नेता बेजवाड़ा विल्सन का कहना है कि देश का संविधान हर नागरिक को गरिमामय जीवन जीने की गारंटी देता है (Article 21) (Article 14, Article 15 &Article 17) । देश के सफाई कर्मचारी समाज को इन गारंटियों से वंचित रखा जा रहा है। सेनिटेशन का काम जाति आधारित है, गटर में जान गंवाने वाले सभी भारतीय नागरिक इसी समाज से आते हैं। इन हत्याओं को रोकने, छुआछूत व जातिगत उत्पीड़न के इस क्रूर रूप के खात्मे के लिए ही हमने यह अभियान शुरू किया। हमारे समाज के साथ को संस्थागत अन्याय हो रहा है, उससे क्षुब्द (with deep pain and agony) होकर हमने सड़कों पर उतरने का यह कष्टसाध्य रास्ता अपनाया। इसके जरिये हमने लोकतांत्रिक प्रक्रिया में आस्था जताई और अपने द्वारा चुनी गई सरकारों से जवाब मांगा, इस नाइंसाफी को खत्म करने की मांग को जय भीम के नारे के साथ पूरे समाज के साथ सामने रखा।
कर्मचारी नेताओं का कहना है कि देश में 2,000 से अधिक नागरिक सीवर-सेप्टिक टैंक की सफाई करते हुए जान गवां चुके हैं। इनकी हत्याओं के लिए जिम्मेदार कौन है? देश की सर्वोच्च अदालत 27 मार्च 2014 में हमारी ही जनहित याचिका पर फैसला सुनाते हुए स्पष्ट शब्दों में कह चुकी है कि किसी भी इंसान को आपातकालीन स्थिति में भी सीवर-सेप्टिक टैंक में नहीं उतारा जा सकता। फिर भी पूरे देश में सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवहेलना क्यों हो रही है?
संगठन का कहना है कि देश की संसद मैला प्रथा निषेध के कानून को 2013 में लागू कर चुकी है, जिसमें इंसान द्वारा मल की हाथों से सफाई पर प्रतिबंध है-फिर भी गटर में हमारा समाज क्यों मर रहा है? इन तमाम हत्याओं को रोकने के लिए सरकारें कोई ठोस कदम क्यों नहीं उठा रही हैं? क्या इसका रिश्ता जातिगत सोच से नहीं है! इस
इन हत्याओं की वजह से सफाई कर्मचारी समाज और खास तौर से मारे गये लोगों के परिजन व परिवार भीषण आपदा से गुजरने पर मजबूर होते हैं। आर्थिक विषमता के दुष्चक्र में ये परिवार बुरी तरह से फंस जाते है। छुआछूत आधारित ये सिस्टम, हमारे समाज को और अधिक हाशिये पर ढकेल देता है। इन परिवारों की आर्थिक स्थिति, बच्चों की परवरिश-भविष्य सब चौपट हो जाता है। लेकिन सरकारें इस समाज के लिए कुछ भी नहीं करतीं। दिल्ली से लेकर कन्याकुमारी तक, कश्मीर से लेकर राजस्थान-मध्यप्रदेश-केरल तक सफाई कर्मचारियों ने-पीड़ित परिजनों ने सड़कों पर बस सरकार से यही कहा,`हमें मारना बंद करो!’
इस सवाल पर सरकारों की पूरी तरह से चुप्पी बर्दाश्त के बाहर है। हम लोकतांत्रिक ढंग से इस जाति आधारित उत्पीड़़न-छुआछूत व हत्याओं को बंद करने के लिए दृढ़ प्रतिज्ञ हैं। सफाई कर्मचारी आंदोलन पिछले 40 सालों से देश भर में मैला प्रथा के खात्मे के लिए काम कर रहा है। सीवर-सेप्टिक टैंक में हो रही समाज के लोगों की हत्याओं को रोकने के लिए हर जरूरी कदम व हस्तक्षेप करने में विश्वास रखता है।
सफाई कर्मचारी आंदोलन की मांगें:
- सीवर-सेप्टिक टैंक सफाई के दौरान हो रही तमाम हत्याओं के लिए, सफाई कर्मचारी समाज के साथ किये गये ऐतिहासिक अन्याय के लिए देश के प्रधानमंत्री देश से माफी मांगे।
- देश की संसद में प्रधानमंत्री यह आंकड़ा पेश करें कि 1993 के मैला प्रथा खात्मे के कानून लागू होने के बाद से अब तक कितने भारतीय नागरिक सीवर-सेप्टिक टैंक सफाई में जान गंवा चुके हैं।
- इन हत्याओं के लिए सरकारी तंत्र की जवाबदेही व जिम्मेदारी तय की जाए। जहां भी ऐसी हत्याएं हों, वह के जिलाधिकारी को जिम्मेदार माना जाए।
- इन हत्याओं का सीधा संबंध समाज में चल रही छुआछूत की प्रथा, जातिगत उत्पीड़न से है। जिसकी वजह से ये समाज लगातार आर्थिक विषमता के गर्त में ढकेला जा रहा है। इस दुष्चक्र को तोड़ने के लिए सरकार एक वृहद स्पेशल पैकेज की घोषणा करे। जिसमें पीड़ित परिजनों के विकास के लिए समुचित (inclusive process) प्रक्रिया की गारंटी हो। जैसे गैर-सफाई वाले गरिमामय सरकारी रोजगार की गारंटी। सभी बच्चों-आश्रितों की उच्च शिक्षा की गारंटी (प्राइवेट स्कूल कॉलेजों में भी)। आवास व चिकित्सा गारंटी कार्ड आदि।
- सीवर-सेप्टिक टैंक सफाई के दौरान हुई ये 2000 से अधिक हत्याएं मैला प्रथा उन्मूलन के लिए कराएं गये सरकारी सर्वेक्षणों की कमी का पर्दाफाश करते हैं। SKA के पास जितनी भी मौतों का आंकड़ा-ब्योरा है-उनमें से कोई भी व्यक्ति इस सर्वे के तहत कवर नहीं किया गया। दोबारा से सर्वे कराने की घोषणा हो और सभी सफाई कर्मियों के बारे में इसमें ब्योरा दर्ज कराया जाए।
- सरकार सीवर-सेप्टिक टैंक सफाई के दौरान इन हत्याओं को कब तक पूरी तरह से रोकेगी-इसके बारे में एक तारीख की घोषणा की जाए। हमारे जीने के हक की गारंटी करना सरकार का पहला दायित्व होना चाहिए।
(सफाई कर्मचारी आंदोलन के प्रेस विज्ञप्ति पर आधारित।)
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