इलाहाबाद छात्रसंघ चुनाव : थोड़ी खुशी, थोड़ा अफसोस

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विष्णु प्रभाकर विष्णु

इलाहाबाद। इलाहाबाद छात्रसंघ चुनाव की चर्चा राष्ट्रीय स्तर पर हो रही है। वाकई यह चुनाव भाजपा, सपा, लेफ्ट के लिए बहुत महत्वपूर्ण था। वजह ये है कि केंद्र में भाजपा की सरकार को आये तीन साल से ज्यादा हो गए हैं और उत्तर प्रदेश में पाँच महीने से ज्यादा। छात्रसंघ चुनाव को जीतकर एबीवीपी ये सन्देश देना चाहती थी कि मोदी, योगी नीति से छात्र खुश हैं। पर ऐसा हुआ नहीं।

ये समय भाजपा के उरूज का समय है और ऐसे में अगर आरएसएस के छात्र संगठन एबीवीपी की हार देश के हरेक विश्वविद्यालय में हो रही है तो इसका सीधा मतलब ये है कि छात्रों में भाजपा की लेकर बहुत रोष है। जेएनयू, डीयू, एएचसीयू में हुई हार को एबीवीपी इलाहाबाद छात्रसंघ चुनाव जीतकर ढंकने की कोशिश कर रही थी लेकिन इसमें वह नाकामयाब रही।

  • मोदी-योगी की नीतियों से खुश नहीं हैं छात्र
  • अध्यक्ष पद पर तीसरे नंबर पर रही एबीवीपी
  • महामंत्री पद पर केवल 61 वोट के अंतर से हार-जीत

वहीं समाजवादी पार्टी को इलाहाबाद छात्रसंघ चुनाव को जीतना इसलिए बहुत ज़रूरी था क्योंकि छात्रों द्वारा मिले मैंडेट को प्रचार करके जनता को ये बताया जा सके कि योगी सरकार से छात्र खुश नहीं है। यही कारण था कि छात्रसंघ के चुनाव में सपा नेता संग्राम यादव, रामबृक्ष यादव, शिवमूर्ति यादव सहित तमाम बड़े नेताओं ने विश्वविद्यालय में डेरा डाल लिया था।

इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्रसंघ चुनाव की तस्वीर। फोटो साभार

अध्यक्ष पद पर तीसरे स्थान पर रही एबीवीपी 

चुनाव की समीक्षा से पहले आइए पहले पूरे रिजल्ट पर एक नज़र डाल लें।

छात्रसंघ चुनाव में समाजवादी छात्र सभा के अवनीश कुमार यादव (3226 वोट) ने निर्दलीय प्रत्याशी मृत्युंजय राव परमार (2674 वोट) को 552 वोटों से हराकार अध्यक्ष पद पर जीत हासिल की है। अध्यक्ष पद पर अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की प्रत्याशी प्रियंका सिंह कुल 1588 वोटों के साथ तीसरे स्थान पर रहीं, जबकि एनएसयूआई के प्रत्याशी सूरज कुमार दूबे चौथे स्थान पर रहे। भारतीय विद्यार्थी मोर्चा से विकास कुमार भारतीया पांचवें और आइसा से अध्यक्ष पद के प्रत्याशी शक्ति रजवार छठे स्थान पर रहे।

72 वोट से उपाध्यक्ष पद पर हार-जीत 

उपाध्यक्ष पद पर समाजवादी छात्रसभा के ही चंद्रशेखर चौधरी ने 2249 वोट हासिल कर अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् के प्रत्याशी शिवम् कुमार तिवारी (2177 वोट) को 72 वोटों के करीबी अंतर से हराया। इस पद पर एनएसयूआई के प्रत्याशी विजय सिंह बघेल कुल 1661 वोटों के साथ तीसरे स्थान पर रहे।

महामंत्री पद पर भी कुल 61 वोटों के अंतर से जीत

महामंत्री पद पर एबीवीपी के प्रत्याशी निर्भय कुमार द्विवेदी ने एनएसयूआई के प्रत्याशी अर्पित सिंह राजकुमार को 61 वोटों के नजदीकी अंतर से हराया। इस पद पर तीसरे स्थान पर समाजवादी छात्र सभा के प्रत्याशी रहे। संयुक्त सचिव और सांस्कृतिक सचिव पद भी समाजवादी छात्रसभा के ही प्रत्याशियों ने जीत हासिल की।

  • वैसे बहुत वैचारिक नहीं रहा छात्रसंघ चुनाव
  • धनबल, बाहुबल और जातिवाद का भी बोलबाला
  • छात्रसंघ दफ्तर का गंगाजल से शुद्धिकरण 

वास्तव में अगर देखा जाए तो ये चुनाव पूर्णतः वैचारिक भी नहीं था। जबसे इलाहाबाद छात्रसंघ चुनाव पुनः बहाल हुए हैं तब से समाजवादी छात्रसभा और एबीवीपी का ही छात्रसंघ पर कब्ज़ा रहा है। एक बार कुलदीप सिंह केडी निर्दलीय अध्यक्ष चुने गए थे, जबकि रिचा सिंह को समाजवादी छात्रसभा का समर्थन प्राप्त था। छात्रसंघ में रहते हुए समाजवादी छात्रसभा और एबीवीपी ने छात्रों के मुद्दों पर कोई संघर्ष नहीं किया फिर भी छात्रसंघ में महत्वपूर्ण पद जीतते रहे हैं। यहां चुनाव में मुद्दों के अलावा जाति भी एक मुद्दा होती है।

कई वजह हैं हार-जीत की

तीन सालों में नॉन-नेट फ़ेलोशिप की कटौती का प्रयास। नेट की परीक्षा को दो बार की जगह एक बार कराना। शिक्षा के बजट में कटौती इत्यादि कारणों की वजह से छात्रों में रोष था।

इसके अलाव बीएचयू की धरनारत छात्राओं पर लाठीचार्ज हुए अभी महीना भी नहीं बीता है। लाठीचार्ज और छात्राओं की सुरक्षा का मुद्दा भी इलाहाबाद छत्रसंघ चुनाव में खूब चला।

आइसा ने हजार से ज्यादा छात्र-छात्राओं का जुलूस निकालकर छात्राओं की सुरक्षा के मुद्दे को चुनावी विमर्श में ला दिया था। लेकिन आइसा इसको वोट में कन्वर्ट नहीं कर पाया।

धनबल बाहुबल जातिवाद 

लिंगदोह कमेटी की सिफारिशों की धज्जियाँ उड़ते अगर कहीं देखना हो तो इलाहाबाद छात्रसंघ चुनाव को देखिये। पांच हजार क्या यहाँ लाखों रुपये पानी की तरह बहाया जाता है। असल में काला धन यही है। धनबल बाहुबल के इस्तेमाल में एबीवीपी और समाजवादी छात्रसभा में कोई अंतर नहीं। इनके चुनाव लड़ने के तौर तरीके बिल्कुल एक हैं। छात्रसभा गाड़ियों के काफिलों से समाजवाद लाती है तो एबीवीपी छात्रसभा से ज्यादा काफिले निकालकर ज्ञान शील एकता का प्रमाण देती है। लेफ्ट संगठनों ने एक विकल्प देने की कोशिश जरूर की लेकिन धनबल बाहुबल के आगे वो टिक नहीं पाए। जिस तरह हाथों से बने पोस्टर लेफ्ट संगठन इस्तेमाल करते हैं छात्र इसको खूब पसंद करते हैं पर कहीं न कहीं धनबल बाहुबल उनपर हावी हो जाता है। जिस तरह से चुनावों से पहले भाजपा ने पैसे बहाया उसी तरह समाजवादी छात्रसभा भी पैसे बहाती है। ऐसा नहीं है कि पहली बार है ये।

अब तक एबीवीपी एक खास वर्ग के लोगो को ही मुख्य पदों पर चुनाव लड़ाती रही है और समाजवादी छात्रसभा भी। एबीवीपी के पैनल में पहली बार किसी छात्रा को चुनाव लड़वाया गया जबकि सामाजिक न्याय की बात करने वाली समाजवादी छात्रसभा ने किसी भी अल्पसंख्यक, महिला को चुनाव में टिकट नहीं दिया।

वैचारिक अंतर नहीं

समाजवादी छात्रसभा की जीत को वैचारिक जीत बताया जा रहा है और बहुत लोगो इससे खुश भी हैं पर अगर तौर तरीकों को देखें तो हकीकत का पता चलता है।

समाजवादी छात्रसभा से छात्रसंघ के लिए नवनिर्वाचित पदाधिकारियों ने ऑफिस में जाने से पहले गंगाजल छिड़ककर शुद्धिकरण किया। क्या अंतर है योगी और समाजवादी छात्रसभा के तौर तरीके में। याद करिये योगी ने भी गंगाजल छिड़ककर शुद्धिकरण किया था।

भले ही समाजवादी छात्रसभा छात्रसंघ चुनाव में जीत गयी हो पर असल में इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्रों के लिए कोई बड़ा परिवर्तन होने की संभावना नहीं दिखती है। हाँ, ये जरूर है कि नए छात्रसंघ अध्यक्ष अवनीश यादव के लिए समाजवादी पार्टी में एक सीट फिक्स हो गयी चाहे वो एमएलए की हो या कुछ और। इसी तरह एबीवीपी के निर्भय की भाजपा में।

(लेखक छात्र राजनीति में सक्रिय हैं और विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में अनियमित लेखन करते रहते हैं।)

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