नई दिल्ली। जाति और जाति के आधार पर शोषण भारतीय समाज की कटु सच्चाई है, इसने न सिर्फ़ भारतीय समाज बल्कि भारतीय राजनीति पर भी गहरा प्रभाव डाला है।
आज जाति का प्रश्न भारत में किसी भी राजनीतिक आंदोलन के लिए एक चुनौती बन गया है। इस विषय पर भारतीय कम्युनिस्ट आंदोलन में भी बहुत सी बहसें आज चल रही हैं।
इसी कड़ी में 6 अक्टूबर 2024 रविवार को दिल्ली के अम्बेडकर भवन में सर्वहारा जनमोर्चा (प्रोलेतेरियन पीपुल्स फ्रंट) द्वारा ‘जाति उन्मूलन का कार्यभार और मज़दूर वर्ग का मिशन’ विषय पर एक कन्वेंशन आयोजित किया गया। कन्वेंशन में दस राज्यों- दिल्ली, यूपी, राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र और उत्तराखंड से क़रीब 150 प्रतिनिधियों ने भाग लिया, जिसमें सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ता, छात्र, शोधकर्ता, शिक्षक, अधिवक्ता, मज़दूर व ट्रेड यूनियन कार्यकर्ता शामिल थे।
कार्यक्रम की शुरुआत 1.45 अपराह्न से अरुणोदय सांस्कृतिक टीम द्वारा एक क्रांतिकारी गीत ‘चले चलो दिलों में घाव लेकर’ के साथ हुई, इसके बाद प्यारेलाल ‘शकुन’ ने सभागार में उपस्थित सभी का स्वागत करते हुए आरंभिक वक्तव्य रखा और अध्यक्ष मंडल को सम्मेलन की अध्यक्षता और संचालन हेतु मंच पर आमंत्रित किया।
अध्यक्ष मंडल में मुकेश असीम, विदुषी प्रजापति, प्यारेलाल शकुन, रामदयाल पासवान और रामनरेश यादव उपस्थित थे। विमर्श की शुरूआत करते हुए सर्वहारा जनमोर्चा की ओर से तैयार किए गए आधारपत्र को मोर्चा के संयोजक मुकेश असीम ने प्रस्तुत किया तथा भिन्न सांगठनिक प्रतिनिधियों व बुद्धिजीवियों को इस पर अपने विचार प्रस्तुत करने के लिए आमंत्रित किया।
सर्वहारा जनमोर्चा की ओर से ‘जाति उन्मूलन कार्यक्रम की दिशा में’ शीर्षक से आधारपत्र में जाति उन्मूलन की दिशा में अब तक के विचारों और प्रयासों की संक्षिप्त ऐतिहासिक समीक्षा रखते हुए इनकी सीमाओं का विश्लेषण रखा गया।
भारत में सामंतवाद और औपनिवेशिक शासन के ख़िलाफ़ मज़दूरों-किसानों के नेतृत्व में नीचे से क्रांतिकारी भूमिसुधारों को अंजाम तक पहुंंचाते हुए जनवादी क्रांति सम्पन्न होती, तो वह जाति और जाति आधारित उत्पीड़न को बहुत हद तक कमजोर कर देती।
परन्तु एक जुझारू जनवादी क्रांति के बजाय भारतीय पूंजीवादी वर्ग साम्राज्यवाद व ज़मींदारों के साथ समझौते द्वारा सत्ता में आया और भू-मालिकाना बड़े हद तक सवर्ण ज़मींदारों के पास ही रह जाने से जाति उत्पीड़न का आधार लगभग अटूट ही रह गया।
दलित जातियों को आरक्षण के सीमित अधिकार, जातिगत पेशों के टूटने तथा सार्वजनिक जीवन में छुआछूत की बहुत हद तक समाप्ति के बावज़ूद पूंजीवाद ने भी जाति को अपने वर्गीय शासन के हित व सुरक्षा में चुनावी राजनीति के अंतर्गत संयोजित कर लिया है।
पूंजी व सम्पदा के बढ़ते संकेंद्रण व आर्थिक संकट की वजह से उभारे जा रहे फासीवाद के दौर में मेहनतकश वंचितों पर जाति उत्पीड़न के बढ़ने की प्रवृत्ति देखी जा सकती है।
अतः अब जाति उन्मूलन का संघर्ष सर्वहारा वर्ग द्वारा पूंजीवाद के उन्मूलन के संघर्ष का अभिन्न अंग बन गया है। मज़दूर वर्ग निजी सम्पत्ति के उन्मूलन व वर्गहीन समाज बनाने के अपने ऐतिहासिक मिशन को पूरा करने के कार्यभार के अंतर्गत ही जाति सहित सभी प्रकार के शोषण और उत्पीड़न के उन्मूलन का कार्यभार भी पूरा करेगा।
इस अंतिम लक्ष्य के अंतर्गत मौजूदा दौर में भी जाति विरोधी संघर्ष के कुछ फौरी कार्यभार हैं। आधारपत्र में सर्वहारा वर्गीय दृष्टिकोण से एक जाति उन्मूलन कार्यक्रम की प्रस्तावित रूपरेखा सहित कुछ फौरी कार्यभारों की चर्चा भी की गई।
विभिन्न संगठनों के प्रतिनिधि वक्ताओं द्वारा सर्वहारा जनमोर्चा को एक महत्त्वपूर्ण सवाल पर चर्चा आयोजित करने के लिए बधाई देते हुए गंभीर व तीखी बहस की गई, जिसमें उपस्थित श्रोताओं के बीच से भी कई हस्तक्षेप किए गए।
इसमें कई असहमतियों, आलोचनाओं व सुझावों को रखा गया तथा सर्वहारा वर्गीय दृष्टिकोण से एक जाति उन्मूलन कार्यक्रम तैयार करने हेतु मज़दूर वर्ग की क्रांतिकारी शक्तियों के बीच और भी व्यापक बहस को आगे बढ़ाने की ज़रूरत पर बल दिया गया।
वक्ताओं में शामिल थे- तुहिन देव (भाकपा माले रेड स्टार), जेपी नरेला (जाति उन्मूलन संगठन), नन्हेंलाल (जाति उन्मूलन संघ/चार्वाक), शोवन चक्रवर्ती (प्रोफेसर, पटना साइंस कॉलेज), अलोक (मज़दूर एकता केन्द्र), श्याम नारायण सिंह (मंथन पत्रिका), बुद्धेश (विकल्प मंच, सहारनपुर), लखविंदर (सम्पादक, मुक्ति संग्राम अखबार), विमल त्रिवेदी (भाकपा-माले मास लाइन), अर्जुन प्रसाद सिंह (डेमोक्रेटिक पीपुल्स फ्रंट), सुभाष (श्रमिक संग्राम कमेटी),अमृतलाल (जयपुर में सामाजिक कार्यकर्ता), प्रवेन्द्र (मज़दूर सहायता समिति), सौरभ (समाजवादी लोकमंच), संतोष (मज़दूर पत्रिका,वीर भगत (भाकपा-माले), सुजॉय (कम्युनिस्ट लीग फ़ोर्थ इंटरनेशनलिस्ट), शाम्भवी (कलेक्टिव छात्र संगठन), निरंजन (एआईआरएसओ), महावीर पोद्दार (हज़ारीलाल में सामाजिक कार्यकर्ता), अजय सिंह (पीआरसी सीपीआई एमएल)।
सभी वक्ताओं ने इस विषय पर अपने विचारों को तथा आधारपत्र पर टिप्पणियों-मतभेदों को मंच से प्रस्तुत किया।
सभागार में कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी ऑफ इंडिया, प्रगतिशील महिला एकता केन्द्र, इफ्टू (सर्वहारा), विमुक्त स्त्री मुक्ति संगठन, पीडीवाईएफ, बिहार ग्रामीण मज़दूर यूनियन, निर्माण मज़दूर संघर्ष यूनियन (पटना), खान मज़दूर कर्मचारी यूनियन (पश्चिम बंगाल), मायापुरी मज़दूर यूनियन (दिल्ली), के प्रतिनिधि शामिल थे, इसके अतिरिक्त लाल झंडा मज़दूर यूनियन (समन्वय समिति), इंकलाबी मज़दूर केन्द्र तथा कर्नाटका जनशक्ति की तरफ़ से कन्वेंशन की सफलता की शुभकामनाएं और उपस्थित न रह पाने पर खेद व्यक्त करते हुए आयोजकों को लिखित संदेश भेजे गए थे।
क्रांतिकारी व प्रगतिशील साहित्य उपलब्ध कराने हेतु सभागार में ही गार्गी प्रकाशन, मुक्ति संग्राम, मंथन पत्रिका, कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी, यथार्थ पत्रिका व सर्वहारा अखबार के साथियों ने बुक स्टॉल भी लगाए थे।
अन्त में अध्यक्ष मंडल की तरफ से विदुषी ने सभागार में यह प्रस्ताव पेश किया कि जाति उन्मूलन और मज़दूर वर्ग के ऐतिहासिक मिशन के गंभीर विषय पर जो विमर्श इस कन्वेंशन में सफलतापूर्वक संपन्न हुआ है।
इसे ही पहला कदम मानते हुए इसे और आगे बढ़ाने और जाति उन्मूलन के कार्यभार की दिशा में एक ठोस मुकाम या पड़ाव तक पहुंचाने के लिए कन्वेंशन में पेश हुए सभी वक्तव्यों और विचारों का समाहार तथा उन पर लिखित पेपर सर्वहारा जनमोर्चा की प्रस्तावक कमेटी द्वारा तैयार किया जाएगा और समस्त क्रांतिकारी व प्रगतिशील आन्दोलन के बीच आगे के विमर्श हेतु प्रसारित किया जाएगा।
तालियों की गड़गड़ाहट से यह प्रस्ताव पारित हुआ और इंकलाब ज़िंदाबाद! पूंजीवाद-साम्राज्यवाद मुर्दाबाद! जातिवाद-पितृसत्ता-फासीवाद हो बर्बाद! के नारों के साथ कन्वेंशन का सफलतापूर्वक समापन किया गया।
(सर्वहारा जनमोर्चा द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति पर आधारित)
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