नई दिल्ली। स्वराज इंडिया एवं जय किसान आंदोलन से जुड़े कार्यकर्ताओं ने दिल्ली के सड़कों, चौक चौराहों पर किसान के पुतले लटकाकर सरकार, मीडिया और नीति निर्माताओं को जगाने की कोशिश की है। जब देश में किसानों की आत्महत्या बढ़ गयी है, सरकार इस बात से बेपरवाह है। किसानों पर लगातार बढ़ते कर्ज को देखकर भी सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी है और उसे अन्नदाता की सुध तक नहीं है। ऐसे में देश भर के 180 से अधिक संगठनों ने एक समन्वय समिति की स्थापना की और किसानों के हित में कार्य करने का बीड़ा उठाया। आपको बता दें कि दिल्ली में रहने वाले लोगों को किसानों की दुर्दशा से परिचित कराने के लिए गुरुवार को सुबह समिति के सदस्य स्वराज अभियान के जय किसान आंदोलन ने आईटीओ चौराहे के फ्लाईओवर से फाँसी लगाए हुए किसानों के तीन पुतले लटकाये जिस पर यह बात स्पष्ट लिखा हुआ था कि-ये तीन नहीं तीन लाख हैं। देश में किसानों की दुर्दशा से शहरी लोगों को परिचित कराने का इससे बेहतर मार्ग शायद और नहीं हो सकता था। लेकिन सरकारों को यह भी नागवार गुजरने लगा। थोड़ी ही देर में आईटीओ फ्लाईओवर पर पुलिस पहुंची और उसने सदस्यों को गिरफ्तार कर लिया। देर शाम उन्हें थाने से रिहा किया गया। संगठन ने इसी तरह का एक और कार्यक्रम नोएडा फिल्मसिटी के फ्लाईओवर पर भी किया ।
स्वराज इंडिया का कहना है कि पिछले 10 वर्षों में, भारत के किसानों द्वारा अनाज की पैदावार में 1.5 गुना की वृद्धि की गई है। अनाज, सब्जी, फल मिलाकर उत्पादन 365 करोड़ टन से बढ़कर 534 हुआ है। लेकिन इसी अवधि में 1.5 लाख किसानों ने आत्महत्याएं भी की हैं। सिर्फ 1995 के बाद 3.3 लाख किसानों ने आत्महत्या किया। किसान ने बड़ी मेहनत और ईमानदारी से अनाज उपजाकर देश का पेट भरता आया है, मगर देश उन्हें सम्मानजनक आय का जीवन देने में नाकाम ही रहा है। आज की खेती से किसान अपने परिवार के लिए न्यूनतम साधन भी नहीं जुटा सकता। वास्तव में आज किसान देश को सब्सिडी दे रहे हैं, कारण की किसान को उसके उपज का उचित/पूरा दाम नहीं मिल रहा है।
केंद्र कि वर्तमान सरकार ने अपने चुनावी घोषणापत्र में लिखकर किसान को उसकी लागत में 50% जोड़कर दाम देने का वादा किया था। राष्ट्रीय किसान आयोग की अनुशंसा के मुताबिक़ भी किसान को यह मुनाफ़ा दिया जाना चाहिए था। खेती किसानी का खर्चा बढ़ने के बावजूद भी न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में कोई बढ़ोतरी नहीं हुई है। 2017-18 के 14 खरीफ़ फसलों में से 8 का एमएसपी अनाज उत्पादन के लागत से भी कम रखा गया। सरकार द्वारा किसानों को लाभकारी मूल्य नहीं देने की वजह से उन्हें प्रति वर्ष 2 लाख करोड़ का घाटा होता है। देश इस हद तक किसान का कर्ज़दार है। इसीलिए संगठन क़र्ज़ माफ़ी की नहीं कर्ज़ मुक्ति की मांग कर रहा है।
आपको बता दें कि 1992 में 26% किसानों पर कर्ज़ा था जो कि 2016 में बढ़कर 52% हो गया है। कुछ राज्यों में यह आंकड़ा 89 % से 93 % तक हो गया है जो की अत्यंत भयावह तस्वीर पेश करती है। अधिकांश किसान साहूकार से 24 से 60% के उच्च ब्याज पर ऋण लेने को मजबूर हैं। किसी साल जब प्राकृतिक आपदा, सूखे, और कीट लगने से फसल बर्बाद हो जाती है तो भी सरकार किसान को ऋण से राहत या मुआवजा नहीं देती है। तब निराश और हताश किसान आत्महत्या की राह अपनाता है। किसानों ने देश को काफी कुछ दिया पर क्या देश भी किसान की जरूरतों का ख्याल रखता है। नहीं। इसलिए अब देश का कर्त्तव्य है कि वह किसानों को उसके क़र्ज़ से मुक्ति दिलाने में मदद करे।
खास बात ये है कि स्वराज इंडिया ने इस अभियान को समाज के उच्च तबकों तक पहुंचाने की कोशिश कर रहा है। उसकी कोशिश है कि सेलिब्रिटी समेत समाज का संवेदनशील तबका किसानों के इस सवाल से जुड़े और आगे बढ़कर आवाज उठाए। अभिनेता कमल हासन और गायक शेरगिल का इससे जुड़ना उसी के हिस्से के तौर पर देखा जा रहा है।
किसानों की परिस्थिति में सुधार करने के लिए अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति ने दिल्ली में 20 नवम्बर 2017 को किसान मुक्ति संसद का आयोजन किया है जिसमें देश के कोने-कोने से लाखों किसान दिल्ली आ रहे हैं।