फातिमा शेख के जन्मदिन पर डीयू में जंग  

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बात छोटी सी है किंतु गहरे संकेत इसमें छुपे हुए हैं। दिशा छात्र संगठन द्वारा फातिमा शेख की जन्म जयंती पर सावित्रीबाई फुले और फातिमा शेख की याद में शिक्षा का अधिकार रैली का आयोजन किया गया था। इस आयोजन में पुलिस अधिकारियों और पुलिस बल के साथ छात्र-छात्राओं की भिड़ंत हो गई।

संगठन के छात्र दोनों महिलाओं के शिक्षा के क्षेत्र में अवदान का स्मरण करने परिसर में एकत्रित हुए थे। वे दोनों महिलाओं की फोटो रखे हुए थे। उनके अवदान पर छात्र छात्राएं अपने वक्तव्य दे रहे थे। उन्होंने दीवार पर दोनों की स्मृति में शिक्षा सम्बंधी उनके पोस्टर भी लगा रखे थे। वे जनगीत गाकर शिक्षित बनने का आह्वान कर रहे थे।

यह सब दिल्ली पुलिस को अखर गया। उन्होंने दीवार से फोटो हटाकर फाड़े, फातिमा जी की फोटो को भी क्षतिग्रस्त किया और फिर बीच कार्यक्रम में पहुंच कर छात्र- छात्राओं से उनके नाम पते और मोबाइल नंबर मांगना शुरू कर दिया। जब उनसे पूछा गया कि ये कोई गुनाह किया है?

तो पुलिस अधिकारी उन पर एफआईआर दर्ज कराने की बात करने लगे। तनाव बढ़ता देख विश्वविद्यालय के प्रॉक्टर महोदय पधारे उन्होंने पुलिस प्रशासन के पक्ष में, छात्रों के इस कार्य को ग़लत बताया। विद्यार्थी इसे अलोकतांत्रिक बताते रहे।

उनके कार्यक्रम के बीच पहुंच कर पुलिस ने इन महान महिलाओं के सम्मान को क्षति पहुंचाई है। जिससे विश्वविद्यालय में असंतोष का माहौल है।

आक्रोशित छात्र संगठन ने कल ‘शिक्षा के अधिकार पर फ़ासिज़्म का हमला’ विषय पर एक डिस्कशन आयोजित किया है। शायद इससे प्रशासन और सरकार की आंख खुले।

इस घटना से यह साबित होता है कि एक दलित सावित्रीबाई फुले और मुस्लिम फातिमा शेख के प्रति सरकार और प्रशासन का क्या रवैया है?

कह सकते हैं दिल्ली विधानसभा चुनाव की घोषणा हो चुकी है इसलिए इस कार्यक्रम को रोका गया ,किंतु यह किसी सार्वजनिक मंच से कार्यक्रम नहीं हो रहा था। जैसा कि प्रतिवर्ष यह आयोजन सौजन्यता पूर्वक होता रहा है इस बार आपत्ति क्यों की गई।

हम सब जानते हैं कि महिलाओं में शिक्षा की अलख जगाने वाली महिलाओं में सावित्रीबाई फुले के साथ फातिमा शेख का नाम भी दर्ज होता है। फातिमा शेख ही वह शख्सियत हैं जिन्होंने सावित्रीबाई फुले को अपने घर में स्त्रियों को पढ़ाने के लिए अपने घर में जगह दी।

ऐसा कहा जाता है कि जब सावित्रीबाई और फातिमा शेख ने घर-घर जाकर दलितों और महिलाओं की शिक्षा की बात की, तो उनके इस काम से नाराज़ होकर उनके परिवार वालों ने उन्हें घर से निकाल दिया था। तब दोनों पति-पत्नी को फातिमा जी ने अपने घर में शरण दी।

फातिमा शेख, ज्योतिबा और सावित्रीबाई फुले जब महिलाओं को शिक्षित करने का प्रयास कर रहे थे। तब कुछ कट्टर पंथियों ने महिलाओं को शिक्षित करने की इस मुहिम को पसंद नहीं किया। फातिमा शेख ने फुले दम्पत्ति के साथ कंधे से कंधा मिलाकर समर्थन दिया और उनके साथ इस आंदोलन में कूद पड़ीं।

तरह-तरह के अवरोधों और अपमान जनक व्यवहार को नज़र अंदाज़ करते हुए वे अपने लक्ष्य में सफ़ल रहे। फातिमा और सावित्रीबाई ने घर-घर जाकर लड़कियों को घर से शिक्षा हेतु निकाला। वे पढ़ने वाली लड़कियों के घर जाकर सुरक्षित शाला लातीं और सुरक्षित घर छोड़कर आती थीं ताकि कट्टर पंथी उन्हें परेशान ना करें।

सोचिए यदि इन महिलाओं ने सन् 1848 में महिलाओं की शिक्षा की हठ ना ठानी होती तो क्या आज भारत की सभी वर्ग की महिलाएं हर क्षेत्र में हमें काबिज दिखाई देतीं। महिलाओं की इस तरक्की और बराबरी के अधिकार से नाखुश वर्तमान सरकार देश में मनुवादी सोच को थोपने के प्रयास में लगी है। डीयू में पुलिस का पहुंचना अनुचित कदम है। शिक्षा जगत के इन महान पुरखों का स्मरण करना कौन सा गुनाह है? 

भारत की इन महान महिलाओं के अवदान को सभी शिक्षित लोगों को तो याद रखना ही होगा। वे निश्चित फासिस्टवादी होंगे, जिन्हें ऐसे महत्वपूर्ण कार्यक्रम से आपत्ति है। वे उसे बंद करवाते हैं और कार्यक्रम करने वाले युवाओं को एफआईआर करने की धमकी देते हैं।

इसी सिलसिले में हुई एक घटना याद आती है, जब एक साल गणतंत्र समारोह में गांधी जी और अम्बेडकर की फोटो देखकर गांव वाले सरस्वती जी की फोटो ना देखकर शिक्षिका पर हमलावर हो जाते हैं, तब शिक्षिका पूछती है कि आप बताइए सरस्वती का शिक्षा के क्षेत्र में क्या योगदान है? तब सन्नाटा खिंच जाता है।

वाकई यदि सरस्वती का वास्तविक रूप देखना है तो वह फातिमा शेख और सावित्रीबाई फुले में मिलेगा। संयोग से 3 जनवरी सावित्री जी का और 9 जनवरी फातिमा शेख का जन्मदिन है जो देश में महिला संगठनों और देश के कई विद्यालयों में मनाया गया। इसे ही दिशा छात्र संगठन के छात्र डीयू परिसर में मना रहे थे।

कुल मिलाकर यह घटना ये संदेश देती है कि वर्तमान प्रशासन, सरकार के एजेंडे के तहत् महिला शिक्षा और दलित- मुस्लिम के प्रति हमलावर है। यह घोर फासिस्ट कदम है। इसका तल्ख विरोध होना चाहिए।

(सुसंस्कृति परिहार लेखिका और एक्टिविस्ट हैं।)

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