पटना। मुजफ्फरपुर डीबीआर मामले में आज (गुरुवार) ऐपवा की महासचिव मीना तिवारी और राज्य सचिव अनीता सिन्हा पीड़ितों के न्याय के सवाल पर अपना ज्ञापन लेकर डीजीपी कार्यालय पहुंचे, लेकिन डीजीपी कार्यालय से उन्हें समय नहीं मिला। तब ऐपवा नेताओं ने एडीजी संजय सिंह से मुलाकात कर डीबीआर मामले में अपना ज्ञापन सौंपा।
ऐपवा महासचिव मीना तिवारी ने इस मामले में स्थानीय प्रशासन से लेकर उच्च स्तर के पुलिस अधिकारियों के रवैये को लेकर काफी रोष प्रकट किया है। कहा कि बिहार में भाजपाइयों द्वारा सत्ता हड़प लेने के बाद पुलिस अधिकारियों का मनमानापन और बढ़ गया है। नीतीश कुमार ने इस गंभीर मसले पर चुपी साध रखी है।
अभी तक मुख्य अभियुक्त मनीष सिन्हा की गिरफ्तारी नहीं हुई है। उलटे हर रोज पीड़ित युवतियों को नई-नई धमकी मिल रही है, उन्हें लगातार परेशान किया जा रहा है, एक पीड़िता के गायब होने की खबर है। इन सबके बावजूद राज्य सरकार एक शब्द नहीं बोल रही है। वह अपराधियों के बचाव में खड़ी है। लेकिन हम अपने संघर्ष के बूते न्याय हासिल करके रहेंगे। उन्होंने कहा कि इस मसले को विधानमंडल के आगामी सत्र में पुरजोर तरीके से उठाया जाएगा।
डीजीपी को सौंपा गया ज्ञापन
डीजीपी को दिए गए ज्ञापन में लिखा है कि- महिला संगठन ऐपवा की एक जांच टीम विगत 29 जून को डीबीआर कांड की जांच में मुजफ्फरपुर गई थी और पीड़ित युवतियों से मुलाकात व बातचीत की। ये लड़कियां उस वक्त अहियापुर थाने में गवाही देने पहुंची थीं।
हमारी जांच और अखबारों में अब तक आई खबरें डीबीआर कंपनी द्वारा रोजगार के नाम पर ठगी के एक बड़े नेटवर्क की ओर संकेत करते हैं। कई बार इस कंपनी का फर्जीवाड़ा सामने आया, उसके बावजूद नाम बदल-बदल कर यह कंपनी 18 से 22 साल के उम्र के युवक-युवतियों को अपने जाल में फंसाते रही है। एडवांस के नाम पर 20500 रुपये की ठगी करती है, फिर उन्हीं युवक-युवतियों पर अन्य लोगों को कंपनी से जोड़ने का दवाब बनाती है। ऐसा न करने पर उनके साथ मारपीट की जाती है। कुछ युवतियों के साथ यौन अपराध-बलात्कार भी किए गए हैं। विदित हो कि इनमें अधिकांश युवक-युवतियां बेहद गरीब परिवेश से आते हैं। कई लड़कियों ने बताया कि उन्होंने कर्ज पर पैसा लेकर कंपनी में जमा किया है।
स्थानीय प्रशासन की भूमिका बेहद नकारात्मक और मामले की लीपापोती करने वाला रहा है। अभी तक कोर्ट के माध्यम से एक पीड़िता मुकदमा दर्ज करा सकी है। होना तो यह चाहिए था कि प्रशासन अपनी पहलकदमी पर अन्य लड़कियों का भी एफआईआर दर्ज करता, लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है।
जिस पीड़िता ने मुकदमा किया है, उसने अहियापुर थाने में खुलकर अपने साथ हुए अपराधों की चर्चा की। वह बार-बार कह रही है कि तिलक सिंह ने उसके साथ जबरदस्ती की, लेकिन प्रशासन उसे प्रेम प्रसंग बताता रहा और अब उस पीड़िता के पक्ष में जो लड़कियां गवाही दे रही हैं, उनसे प्रशासन पूछ रहा है कि वे लोग उक्त पीड़िता को कैसे जानती हैं? यहां तक कि उक्त पीड़िता का मोबाइल भी थाने ने जब्त कर रखा है। इससे स्पष्ट होता है कि प्रशासन राजनीतिक दबाव में काम कर रहा है।
यह आश्चर्यजनक है कि 15 दिन गुजर जाने के बाद भी मुख्य अभियुक्त सीएमडी मनीष सिन्हा की गिरफ्तारी नहीं हो सकी है और वह खुलेआम घूम रहा है तथा पीड़िता को तरह-तरह से डरा-धमका रहा है। सिवान की एक पीड़िता धमकी मिलने के बाद लापता बताई जा रही है। पीड़िता का लगातार पीछा किया जा रहा है और कुछ लड़कियों को इस बीच सड़क पर धक्के भी मारे गए। मुख्य अभियुक्त मनीष सिन्हा राजनीतिक रसूख वाला आदमी है। वह खुलेआम बोलता रहा है कि उसके संबंध सरकार के बड़े-बड़े मंत्रियों से है, कुछ नहीं हो सकता। वह तरह-तरह से मुकदमा वापसी का दबाव बनाता रहता है। स्थानीय प्रशासन को ये सारी बातें पता है लेकिन वह अपराधियों को गिरफ्तार नहीं कर रहा है।
ऐसी परिस्थति में ऐपवा की मांग है:
1. चूंकि जिला प्रशासन की भूमिका बेहद संदेहास्पद है, अतः इस मामले में अविलंब राज्य स्तर का एसआईटी का गठन हो।
2. इस घटना ने एकबार फिर से बिहार को शर्मसार किया है। राजनीतिक संरक्षण और प्रशासनिक मिलीभगत के बिना यह संभव नहीं है, इसलिए मामले की उच्चस्तरीय न्यायिक जांच होनी चाहिए।
3. पीड़िता द्वारा दर्ज मुकदमे के मुख्य अभियुक्त मनीष सिन्हा की तत्काल गिरफ्तारी हो।
4. सरकार व प्रशासन स्वतः संज्ञान लेते हुए अन्य पीड़ित युवतियों का मुकदमा दर्ज हो।
5. ठगी करने वाली डीबीआर कंपनी का रजिस्ट्रेशन तत्काल खत्म करते हुए उसे प्रतिबंधित किया जाए।
6. सभी युवक-युवतियों का पैसा वापस किया जाए। उनकी सुरक्षा की गारंटी जाए!
डीबीआर कंपनी के फर्जीवाड़े, ठगी, लड़के-लड़कियों से मारपीट और यौन शोषण-बलात्कार की घटना में आपसे आग्रह है कि आप अपने स्तर से हस्तक्षेप करें ताकि सैकड़ों युवक-युवतियों को न्याय मिल सके।
(प्रेस विज्ञप्ति)