कोलकाता की महिला डॉक्टर के हत्यारे कौन हैं? कैसे खत्म होगी बलात्कार की संस्कृति?

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8 अगस्त, 2024 वृहस्पतिवार को कोलकाता में एक होनहार 28-वर्षीय महिला पीजीटी डाक्टर की मौत से शहर की मेडिकल बिरादरी बुरी तरह से आहत और आक्रोशित है। वह वारपाथ पर है क्योंकि मामला अत्यंत गम्भीर है- बलात्कार और हत्या का- जिसे पुलिस ने भी अपने बयान में पुष्ट कर दिया है, और एक व्यक्ति को शक के आधार पर गिरफ्तार भी किया है। 

घटना आरजी कार मेडिकल कॉलेज की है, जहां युवा डॉक्टर पल्मोनरी विभाग में पीजीटी द्वितीय वर्ष की ट्रेनी थी। पीड़िता के साथ काम करने वाले जूनियर डॉक्टरों ने बताया कि उस रात वह उनके साथ 2 बजे रात तक ड्यूटी पर थी। युवती के माता-पिता ने भी उससे फोन पर बात की थी और उनके अनुसार वह बिलकुल नॉर्मल थी। ड्यूटी के बाद वह थक गयी और राज्य-संचालित अस्पताल की तीसरी मंज़िल पर स्थित सेमिनार रूम में आराम करने चली गयी।

पर सुबह वह अर्ध-नग्न अवस्था में मृत पायी गयी। उसकी देह पर ढेर सारे घाव थे, आंखों से, मुंह से और गुप्तांगों से खून बह रहा था; होंठ, उंगली, गर्दन, पैर, हाथ और पेट पर घाव थे और गर्दन की हड्डी तक टूटी हुई थी। लगता है उसका गला निर्ममता के साथ घोंट दिया गया था ताकि अपराधी की पहचान करने वाला कोई न बचे, क्योंकि वह अकेली थी। इस हैवानियत व दरिंदगी के लिये जो भी ज़िम्मेदार है, उसे फांसी देने की मांग ज़ोर पकड़ रही है। सीबीआई जांच की मांग भी की जा रही है- इस पर ममता कह रहीं हैं कि उन्हें एतराज़ नहीं है।

एक अनजान व्यक्ति की गिरफ्तारी हुई है, जिसे सिविक वॉलिंटियर कहा जा रहा है, और एसआईटी द्वारा मामले की तह तक जाने की बात सरकार की ओर से आई है; अस्पताल में पैनल भी गठित हुआ है। पर कोलकाता के तमाम मेडिकल कालेजों और संस्थानों के छात्र मानने को तैयार नहीं हैं कि इतनी आसानी से मामले को रफा-दफा कर दिया जाये। इमर्जेंसी को छोड़कर उन्होंने सभी सेवाएं ठप्प कर दी हैं और उन्होंने सरकार को अल्टीमेटम भी दिया है कि यदि 24 घंटों के भीतर उनकी मांगें मानी नहीं जातीं, तो वे सभी मेडिकल संस्थाओं के साथ मिलकर सभी काम रोक देंगे।

क्या हैं डाक्टरों की मांगें?

फेडरेशन ऑफ रेसिडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन (FORDA) ने केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा को घटना को लेकर चिट्ठी लिखी है। उन्होंने निम्नलिखित मांगें की हैं-

  1. इस दुर्दांत अपराध की तत्काल, निष्पक्ष और पारदर्शी तरीके से जांच की जाए, अपराधियों को गिरफ्तार कर कड़ी से कड़ी सज़ा दी जाए।
  2. वर्तमान अस्पताल के प्रबंधक, जो ट्रेनी की सुरक्षा के लिये उत्तरदायी थे, के खिलाफ सख्त कार्यवाही की जाए। 
  3. सरकार डाक्टरों के लिये बने केंद्रीय सुरक्षा कानून को लागू करे।

FORDA ने कार्यवाही न होने पर आंदोलन तेज़ करने का आवाहन किया है।

पर प्रयागराज के डॉ. कमल उसरी, जो आल इंडिया काउंसिल ऑफ ट्रेड यूनियन्स के राष्ट्रीय सचिव हैं, कहते हैं कि “यह बहुत ही दुःखद व दर्दनाक घटना है। दरअसल, पुरुषों में महिलाओं के प्रति बराबरी व सम्मान की भावना की अभी भी बहुत कमी है। समाज के एक बड़े हिस्से में आज भी महिला चाहें अधिकारी हो, कर्मचारी हो या घरेलू औरत, पुरुषों की निगाह में अभी भी वह मात्र पुरुषों पर निर्भर और अधीन है।

मुझे लगता है, इसलिए कामकाजी महिलाओं के कार्यस्थल पर कभी भी अकेले ड्यूटी पर नहीं लगाना चाहिये, खासकर कई पुरुषों के बीच। यदि कोई महिला चिकित्सक है, तो उसके आस-पास, ओपीडी या वार्ड में, नर्सिंग स्टाफ़, सिक्योरिटी के साथ ही सीनियर व जूनियर महिलाएं रहें, तभी इस तरह की जघन्य घटनाओं में कमी आ सकती है। साथ ही, इस तरह के अपराधियों को कड़ी से कड़ी सजा फास्ट ट्रैक कोर्ट के माध्यम से देने की व्यवस्था की जानी चाहिए।” 

प्रयागराज की महिला चिकित्सक डा. निधि मिश्र ने कहा कि “जिस सुरक्षा कानून की बात की जा रही है, वह ऐसे केस में लागू नहीं होता। उसका मकसद तो मरीजों के परिवार द्वारा चिकित्सकों पर होने वाली हिंसा को रोकना भर है। दूसरी बात कि सीसीटीवी कैमरा अपराधी की पहचान करने में भले ही मदद करे, उसके डर से अपराध नहीं रुकते। और सबसे बड़ी बात कि यौन उत्पीड़न के विरुद्ध कानून होने के बावजूद अस्पतालों में कोई शिकायत सेल नहीं है। कई बार घटना छोटी-मोटी मज़ाक या कुछ हल्की छेड़छाड़ से शुरू होती है, और उसे नज़रंदाज़ कर दिया जाता है। फिर वह भयानक रूप ले लेती है। तब लोग जागते हैं और आनन-फानन में कमेटी गठित करने लगते हैं, जो नियम के अनुसार भी नहीं होता।” 

इस घटना से जुड़े बहुत सारे सवाल अनुत्तरित हैं। मसलन रेजिडेंट डॉक्टर को आराम करने की कोई जगह क्यों नहीं मिल पायी? ड्यूटी रूम के नाम पर जो कमरा था, उसे टेस्टिंग रूम के तौर पर इस्तेमाल किया जाता था; इसलिये मरीज आ जाने पर कमरा खाली नहीं रहता था। ऐसा क्यों? सेमिनार रूम में सीसीटीवी कैमेरे नहीं लगे थे, क्यों? जिस व्यक्ति को ‘अनजान’ कहकर गिरफ्तार किया गया है, वह क्या सचमुच असली अपराधी है? या कि पुलिस ने किसी अनजान को पकड़ लिया है और उससे कुछ कबुलवा कर आन्दोलन को शांत करने कि कोशिश चल रही है?

अब तक पता नहीं चला है कि यह अनजान आदमी अक्सर सभी विभागों में कैसे प्रवेश पा जाता था, जैसा कि कहा जा रहा था। रात 2 बजे घटना हुई है, तो क्या रात को गार्ड सो रहे थे? उन्होंने कैसे उसे अंदर प्रवेश करने दिया? या कोई अंदर का आदमी ही अपराधी है? कई डॉक्टरों का कहना है कि गार्ड अधिकतर सोते हुए मिलते थे, पर उन पर कोई कार्यवाही नहीं होती थी। आखिर क्यों, जबकि मरीजों के साथ अनेकों लोग अंदर-बाहर आते जाते थे और रात में भी रुकते थे? 

इलाहाबाद में लगभग 2 दशक पहले ऐसी एक दर्दनाक घटना नाज़रेथ अस्पताल में घटित हुई थी। एक रेजिडेंट डॉक्टर के साथ एक दूसरी डॉक्टर के लड़के छेड़खानी करते थे। महिला ने इस पर कई बार एतराज़ किया और उन्हें सार्वजनिक तौर पर डांटा भी। बदले की भावना के तहत उन्होंने उसके साथ कैम्पस में ही बलात्कार किया और हत्या कर दी।

उस समय सीसीटीवी कैमरा का प्रचलन नहीं था, फिर भी साक्ष्य के आधार पर अपराधी युवकों को जेल की हवा खानी पड़ी थी और उनकी मां को नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया था। पूरे शहर में चर्चा थी और उनको काफी बदनामी झेलनी पड़ी। काफी समय तक किसी अस्पताल में उन्हें प्रैक्टिस करने की छूट नहीं थी। पर कुछ वर्षों बाद उन्हें वापस बहाल कर लिया गया और वह सेवानिवृत्त होने तक उसी अस्पताल में कार्यरत रहीं। लड़के भी जमानत पर छूट गये।

ऐसी घटनाएं देश भर के कई मेडिकल संस्थानों में होते रहे हैं, उदाहरण के लिये दिल्ली के प्रख्यात मौलाना आज़ाद मेडिकल कालेज में 2002 में महिला ज़िंदा बच गयी थी और अपराधियों को पकड़ने में पुलिस की मदद करती रही। अंत में उसे सफलता भी मिली। वडोदरा में गुजरात गोत्री मेडिकल अस्पताल में भी एक ऐसी घटना को एक सीनियर एमबीबीएस ने अपनी एक जूनियर के साथ बलात्कार कर अंजाम दिया था।

पर इतिहास में सबसे ह्रदय विदारक घटना थी नर्स अरुणा शानबाग की, जो किंग एडुअर्ड मेडिकल कालेज, मुम्बई में कार्यरत थी। उसके साथ अस्पताल के बेसमेंट में यौन हिंसा हुई और चेन से गले को बांधने से वह कोमा में चली गयी। वह 42 वर्ष तक कोमा में रहने के बाद न्यूमोनिया होने पर मरीं। पर पहचान न होने के चलते अपराधी बच गया और एक आयल कम्पनी में नौकरी पा गया। इस बीच उसने अस्पताल में घुसकर अरुणा की हत्या करने का प्रयास भी किया, जिसके बाद उसे पकड़ा गया। अरुणा के देखभाल की ज़िम्मेदारी नर्सों ने अपने ऊपर ली, क्योंकि परिवार वाले थक चुके थे। इस घटना के 50 साल बाद भी अस्पतालों में सुरक्षा के लिये सख्त कानून नहीं बनाये गये। यह घटना 1973 की थी।

पर, लगातार ऐसी घटनाओं के होते रहने से समझ में आता है कि अस्पतालों में सभी डॉक्टर, नर्स, और यहां तक कि मरीज भी कितने असुरक्षित हैं। एक तरफ ज़्यादातर अस्पतालों में इलाज के नाम पर लूट चलती है, तो दूसरी ओर अकुशल कर्मचारियों को बिना किसी जांच-पड़ताल के काम पर रख लिया जाता है, क्योंकि वे कम तनख्वाह पर काम करते हैं; ठेकेदारी प्रथा भी चलती रहती है। रेजिडेंट डॉक्टरों के लिये न्यूनतम सुविधायें नहीं रहतीं और किसी की कोई जवाबदेही नहीं होती। आरजी कॉर मेडिकल कालेज में तो महिलाओं और पुरुषों के लिये अलग शौचालय तक नहीं थे, जबकि इसकी मांग काफी समय से की गयी थी। 

इस घटना के बाद से भाजपा विपक्ष की भूमिका लेना चाह रही है, और मामले का राजनीतिकरण कर रही है। इसलिये भाजपा कार्यकर्ता अचानक बहुत सक्रियता दिखाने लगे हैं, पर रेजिडेंट डाक्टरों ने “गो बैक” के नारे लगाकर उन्हें हटाया है। वैसे भी भाजपा को महिला सुरक्षा की बात करने का कोई अधिकार नहीं है, क्योंकि उसके कई नेताओं ने महिलाओं के साथ जघन्यतम यौन अत्याचार ही नहीं किये, बल्कि बलात्कार की संस्कृति का महिमामंडन कर उसे बढ़ावा दिया है। वाम दल भी अस्पताल के बाहर प्रदर्शन करके समर्थन दे रहे हैं। पर वाम महिला आंदोलन को अभी औरतों के हक के लिये बहुत कुछ करना बाकी है, जो पैरेंट पार्टी के पिछलग्गू बने रहकर सम्भव नहीं है।

पर ज़रूरत है एक दीर्घकालिक संघर्ष की, जिससे सभी कामकाजी महिलाएं और आम महिलाएं भी सुरक्षित रह सकें। और यह केवल कुछ कानून बनाकर नहीं हो सकता। महिलाओं को हर संस्थान में, बसों और ट्रेनों में और, यहां तक कि सड़कों पर भी एकताबद्ध होकर और समूहों का निर्माण करके प्रतिरोध में उतरना चाहिये। मुझे याद है कि नोएडा में एक व्यक्ति ने अपने यहां काम करने वाली कामगारिन के साथ बदतमीज़ी की थी; तो पहले तो उसने प्रतिरोध किया; अगले दिन सारी बस्ती को जुटा लाई और वे उत्पीड़क को पीटने की तैयारी कर ही रहे थे कि वह घर छोड़कर भाग गया। ये तो रही गरीब कामगारिनों की बात, पर मध्यम वर्ग की महिलाओं को भी अपने छोटे-छोटे मतभेदों को दरकिनार कर एकजुट होना होगा और छोटी से बड़ी लड़ाइयों के लिये कमर कसना होगा, बलात्कार की संस्कृति को जड़ से खत्म करना होगा।  

(कुमुदिनी पति लेखिका और सामाजिक कार्यकर्ता हैं तथा महिलाओं के सवालों पर लड़ती रहती हैं।) 

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