Friday, March 29, 2024

पुस्तक समीक्षा: ताकि इतिहास अपने वास्तविक रूप में आए और झूठ बेपर्दा हो

आधुनिक भारत के निर्माण में पंडित जवाहरलाल नेहरू की भूमिका निर्विवाद रूप से सबसे अहम थी, इससे भला कौन इंकार कर सकता है। समाजवादी-धर्मनिरपेक्ष गणतंत्र की स्थापना से लेकर एक शक्तिशाली संसद और स्वतंत्र न्यायपालिका उन्हीं की कोशिशों से मुमकिन हुई। देश के पहले प्रधानमंत्री के तौर पर उन्होंने उस वक़्त देश को जो दिशा दी, उसने भारत का नाम पूरी दुनिया में रोशन किया। उन्होंने देश को कई क्षेत्रों में आत्मनिर्भर बनाया।

आज भारत की जो सतरंगी तस्वीर दिखाई देती है, उसमें यह खूबसूरत रंग पंडित जवाहरलाल नेहरू ने ही भरे थे। बावजूद इसके उनकी ऐतिहासिक भूमिका और राजनीतिक, आर्थिक नीतियों पर सवाल उठाए जाते हैं। व्हाट्सएप यूनीवर्सिटी के ज़रिए, उनके खि़लाफ़ लगातार झूठ फैलाया जाता है। यहां तक की आज की कई ज्वलंत समस्याओं के लिए भी उन्हें ज़िम्मेदार बताया जाता है।

और यह सवाल वह उठाते हैं, जिनका देश की आज़ादी में कोई योगदान नहीं ? भारत को बनाने में जिन्होंने कोई भूमिका नहीं निभाई। महज़ अपनी क्षुद्र राजनीति के लिए वे नेहरू की छवि को दागदार करने की नाकाम कोशिश करते हैं। जबकि पंडित जवाहरलाल नेहरू का देश की आज़ादी और आधुनिक भारत को बनाने में क्या भूमिका थी, उसे सब जानते हैं। यह सब बातें इतिहास में दर्ज हैं।

लेखक और वरिष्ठ पत्रकार एलएस हरदेनिया के संपादन में प्रकाशित ‘आधुनिक भारत के निर्माता जवाहरलाल नेहरू’ एक ऐसी किताब है, जो न सिर्फ़ पंडित जवाहरलाल नेहरू के बहुआयामी व्यक्तित्व पर अच्छी तरह रोशनी डालती है, बल्कि इसमें कुछ ख़ास लोगों मसलन कम्युनिस्ट लीडर अच्युत मेनन, प्रोफे़सर हीरेन मुखर्जी, शाकिर अली ख़ां, इतिहासकार प्रोफे़सर अर्जुन देव, पी.एन.हक्सर के लेख भी शामिल हैं। जो कि उनकी विचाराधारा से भले ही सहमत नहीं थे, लेकिन देश के लिए दी गई उनकी कुर्बानियों को सलाम करते थे।

उनके दिल में नेहरू के जानिब बेहद इज़्ज़त और सम्मान था। केरल के पूर्व मुख्यमंत्री अच्युत मेनन, जहां भारत को एक औद्योगिक राष्ट्र बनाने में नेहरू के योगदान की तारीफ़ करते हैं, तो वहीं उनकी विदेश नीति की भी सराहना करते हैं, जिससे भारत का क़द दुनिया में ऊंचा उठा।

प्रोफे़सर हीरेन मुखर्जी, नेहरू का भारतीय आत्मा और आकांक्षाओं के सबसे बड़े प्रतीक के तौर पर निरूपण करते हैं। उनका कहना था, ‘‘नेहरू को साम्प्रदायिक विद्वेष से घृणा थी। उनकी यह मान्यता थी कि सामाजिक और आर्थिक न्याय के बिना राजनीतिक स्वतंत्रता अधूरी है।’’ पी.एन.हक्सर के मुताबिक देश में विज्ञान और तकनीकी की नींव जवाहरलाल नेहरू ने ही डाली थी। संसद में उन्होंने ही विज्ञान नीति संबंधी प्रस्ताव पेश किए थे। नेहरू जी का कहना था कि ‘‘हम जितना ज़्यादा प्रकृति को समझने का प्रयास करते हैं, उतने ही हम अंधविश्वास के चंगुल से मुक्त होते हैं।’’ इतिहासकार प्रोफे़सर अर्जुन देव की मान्यता है कि नेहरू ईश्वर की सत्ता में विश्वास नहीं करते थे और वे धर्म से जुड़े अंधविश्वासों के घोर विरोधी थे। इसके साथ ही वे साम्प्रदायिक विचारों के दुश्मन थे।

किताब में पंडित जवाहरलाल नेहरू के भी कुछ महत्त्वपूर्ण लेख ‘स्वयं के बारे में नेहरू’, ‘बापू के बारे में नेहरू की सोच’, ‘हिन्दू महासभा के नेता को नेहरू जी का करारा जवाब’, ‘गांधी की हत्या के बाद सत्ता पलटने का षडयंत्र’ और ‘लेखकों की ज़िम्मेदारी’ शामिल किए गए हैं। यही नहीं उनका संपूर्ण जीवन परिचय और संविधान सभा में नेहरू का ऐतिहासिक भाषण भी है।

जवाहरलाल नेहरू आज़ादी के आंदोलन के दौरान अनेक अख़बारों में छद्म नाम से लेख लिखा करते थे। नवम्बर, 1938 में तो ‘माडर्न रिव्यू’ नामक पत्रिका में उन्होंने ख़ुद अपने बारे में ही एक लेख लिख दिया। किताब में यह दिलचस्प लेख भी है। इस लेख को पढ़ने से मालूम चलता है कि आत्मालोचना और आत्म-विश्लेषण से वह बिल्कुल नहीं घबराते थे।

नेहरू अपने इस लेख में संभावना जताते हैं कि जनता में उनकी लोकप्रियता, उन्हें कहीं तानाशाही की ओर न ले जाए। लेकिन वे अपनी ओर से देशवासियों को यह यक़ीन दिलाते हैं, ‘‘वह फिर से कहना चाहता है कि वह किसी भी हालत में फासिस्ट नहीं बनेगा। यद्यपि उसमें तानाशाह बनने के सभी तत्व मौजूद हैं।’’ (पेज-6) नेहरू इसके आगे लिखते हैं, ‘‘यह संभावना ही जवाहरलाल और भारत के लिए बड़ी ख़तरनाक है। उसे मालूम है कि भारत, सीजर जैसे तानाशाह के नेतृत्व में विकास नहीं कर सकता।’’ (पेज-7) ज़ाहिर है कि आज़ादी के बहुत पहले ही नेहरू ने अंदाज़ा लगा लिया था कि भारत का भविष्य लोकतंत्र में है।

तानाशाही देश के लिए घातक है। तानाशाही प्रवृतियों से देश का विकास नहीं हो सकता। बहरहाल, आज़ादी के बाद जवाहरलाल नेहरू ने लोकतंत्र के प्रहरी के रूप में काम किया। साम्प्रदायिकता और धार्मिक कट्टरता से संघर्ष करते रहे।

महात्मा गांधी की हत्या के बाद 5 फरवरी, 1948 को प्रधानमंत्री के तौर पर उन्होंने सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों को पत्र लिखकर सूचित किया था कि ‘‘देश में सत्ता पलटने का षडयंत्र किया गया था।’’ (‘गांधी की हत्या के बाद सत्ता पलटने का षडयंत्र भी था’, पेज-62) अपने इसी पत्र में नेहरू ने मुख्यमंत्रियों को ताकीद की थी कि ‘‘मेरा आपसे अनुरोध है कि इस तरह के ख़तरनाक तत्वों के ऊपर न सिर्फ़ नियंत्रण रखें, बल्कि उन्हें जड़ से उखाड़ फेंके।’’ (पेज-63)

पंडित जवाहरलाल नेहरू की बेटी इंदिरा गांधी के अपने पिता के बारे क्या विचार थे?, ‘पुत्री की नज़र में पिता’ लेख से नेहरू की शख़्सियत के उन पहलुओं के बारे में जानकारी मिलती है, जिन्हें बहुत कम लोग जानते हैं। इंदिरा गांधी लिखती हैं, ‘‘वे समाजवादी तो थे, और किसी भी प्रकार की तानाशाही प्रवृत्ति के सख़्त विरोधी थे। वे यह भी मानते थे कि वैचारिक स्वतंत्रता के साथ ही आर्थिक और सामाजिक पिछड़ेपन को दूर किया जा सकता है।’’ इसी लेख में इंदिरा गांधी आगे लिखती हैं, ‘‘वे बुनियादी रूप से एक शिक्षक भी थे। अपने भाषणों के माध्यम से आम लोगों तक पहुंचते थे और उनसे ऐसी भाषा में बात करते थे, जिससे वे राष्ट्र और दुनिया की समस्याओं को ठीक से समझ सकें।’’

एक विशेष विचारधारा को मानने वाले अक्सर पंडित जवाहरलाल नेहरू और सुभाष चंद्र बोस को प्रतिद्वंद्वी के तौर पर पेश करते हैं। जबकि यह कोरा झूठ के अलावा और कुछ नहीं। ‘नेहरू और सुभाष के बीच पत्र व्यवहार’ लेख के अंतर्गत सुभाष चंद्र बोस के उन पत्रों की विवेचना की गई है, जो उन्होंने नेहरू के नाम लिखे थे। इन पत्रों में कहीं भी यह नहीं लगता कि इन दोनों के बीच कोई शत्रुता या बैर भाव था। बल्कि कई जगह नेहरू और गांधी के जानिब उनका एहतराम और इज़्ज़त झलकती है।

‘नेहरू जी की नज़र में धर्मनिरपेक्षता’ (डी.आर.गोयल), ‘मेरे कुछ संस्मरण’ (सुभद्रा जोशी), ‘नेहरू और आधुनिक भारत’ (राम पुनियानी), ‘भारत के अतीत के असली उत्तराधिकारी नेहरू’, ‘नेहरू ही हैं आधुनिक भारत के निर्माता’ (एलएस हरदेनिया) आदि लेखों से भी पंडित जवाहरलाल नेहरू की महान विचारधारा और सोच का पता चलता है कि वह किस तरह अपने देश से बेपनाह मुहब्बत करते थे। देश के विकास के लिए उनके दिल में क्या योजनाएं थीं।

नब्बे की उम्र को छू रहे एलएस हरदेनिया अपनी जुझारू और मूल्य आधारित पत्रकारिता के लिए जाने जाते हैं। राष्ट्रीय एकता और धर्मनिरपेक्षता के लिए वह लगातार काम करते रहते हैं। यही नहीं साम्प्रदायिकता के खि़लाफ़ भी वह हमेशा मुखर रहे हैं। उनका ज़्यादातर काम साम्प्रदायिक सद्भाव, कौमी एकता को बचाने और साम्प्रदायिक ताक़तों को बेनक़ाब करने का रहा है।

‘आधुनिक भारत के निर्माता जवाहरलाल नेहरू’ किताब के ज़रिए भी उन्होंने अप्रत्यक्ष रूप से इन्हीं जीवन मूल्यों को बचाने की कवायद की है। क्योंकि जवाहरलाल नेहरू पर हमला, कहीं न कहीं उन मूल्यों और आदर्शों पर हमला है। एल.एस.हरदेनिया ने खुद ही यह किताब प्रकाशित की है। किताब के संपादन, प्रकाशन से लेकर वितरण तक की ज़िम्मेदारी उन्होंने ही उठाई है।

यदि किताब किसी व्यावसायिक प्रकाशक से आती, तो इसका लेआउट एवं प्रकाशन और भी बेहतर होता। किताब और भी ज़्यादा पाठकों तक पहुंचती। फिर भी किताब का इतनी ज़ल्दी दूसरा संस्करण आ जाना, इसकी मक़बूलियत को दर्शाता है।

आज के समय में जब सत्ता पक्ष द्वारा एक मंसूबा-बंद योजना के तहत इतिहास को लगातार विकृत करने की कोशिश की जा रही है या उसे बदला जा रहा है, ‘आधुनिक भारत के निर्माता जवाहरलाल नेहरू’ जैसी अनेक किताबों के प्रकाशन की ज़रूरत है। ताकि देशवासियों के सामने इतिहास अपने वास्तविक रूप में आए और झूठ बेपर्दा हो। 

पुस्तक: आधुनिक भारत के निर्माता जवाहरलाल नेहरू, लेखक एवं संपादक : एल.एस. हरदेनिया
सहयोग राशि : 75, पेज : 96,  प्राप्ति का स्थान : ई-4/45 बंगले नॉर्थ टीटी नगर भोपाल

(समीक्षक ज़ाहिद खान स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

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