Tuesday, April 16, 2024

नोटबंदी पर प्रधानमंत्री द्वारा दिए गए सार्वजनिक आश्वासन और उनकी अवहेलना

सुप्रीम कोर्ट में नोटबंदी से जुड़ी 58 जनहित और अन्य याचिकाओं पर, सुनवाई चल रही है। इन्ही याचिकाओं में एक याचिका है जिसमे, प्रधानमंत्री द्वारा दिए गए, इस आश्वासन पर, एक कानूनी विंदु उठाया गया है कि, क्या प्रधानमंत्री द्वारा दिए गए किसी आश्वासन को, सरकार, मानने से इंकार कर सकती है? क्या प्रधानमंत्री के नीतिगत आश्वासनों की अवहेलना, उन्हीं के प्रशासनिक तंत्र द्वारा, किया जा सकता है?

इस याचिका पर, याचिकाकर्ता की ओर से, अपना पक्ष प्रस्तुत करते समय, याचिकाकर्ता के वकील, श्याम दीवान ने, अदालत में कहा कि, “केंद्र सरकार या भारतीय रिजर्व बैंक को विमुद्रीकरण की पूर्व संध्या पर, प्रधान मंत्री द्वारा राष्ट्र को दिए गए इन आश्वासनों की उपेक्षा करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है, जिसमे, पुराने नोटों को बदलने की सुविधा, मार्च 2017 तक जारी रहने का स्पष्ट आश्वासन दिया गया था, और इसकी अवहेलना,  एक व्यक्ति को, दिए गए, उसके  मौलिक और संवैधानिक अधिकारों का, उल्लंघन होगा।”

वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम दीवान ने, सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ को अवगत कराया कि, “भारतीय प्रधान मंत्री, ने, जब इस, बेहद महत्वपूर्ण नीति की घोषणा की थी, तो उन्होंने इन आश्वासनों के बारे के, कुछ सोच समझ कर ही कहा होगा। यह आश्वासन, उचित आचरण के रूप में, एक उपयुक्त बेंचमार्क प्रदान करता है। अब, इस आश्वासन से हटना (या इसे पूरा नहीं किया जाना) बेहद अनुचित है।” 

संविधान पीठ के समक्ष, श्याम दीवान कहते हैं, “भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली सरकार के नवंबर 2016 में 500 रुपये और 1,000 रुपये के उच्च मूल्य के करेंसी नोटों को विमुद्रीकृत करने के फैसले को चुनौती देने वाली 58 याचिकाओं के एक बैच की सुनवाई, पांच-न्यायाधीशों की खंडपीठ, जिसमें जस्टिस एस. अब्दुल नज़ीर, बी.आर. गवई, ए.एस. बोपन्ना, वी. रामासुब्रमण्यन, और बी.वी. नागरत्ना, हैं द्वारा की जा रही है। अन्य बातों के साथ-साथ, 8 नवंबर के सर्कुलर की वैधता पर भी संविधान पीठ, विचार कर रहे हैं, जिसके कारण, नोटबंदी नीति को आकार मिला।”

वित्त मंत्रालय, रिज़र्व बैंक और पत्र सूचना कार्यालय द्वारा जारी अधिसूचनाओं, नोटिसों, परिपत्रों और प्रेस विज्ञप्तियों के संकलन के माध्यम से अदालत में अपनी बात रखते हुए वरिष्ठ वकील, श्याम दीवान ने कहा, “यह सब, पूरी तरह से उस आश्वासन के अनुरूप था, जो प्रधानमंत्री द्वारा, अपने संबोधन में कहा गया था। हर कोई-प्रधानमंत्री, सरकारी ब्यूरो, वित्त मंत्रालय, प्रेस ब्यूरो, रिज़र्व बैंक-एक स्वर में बोल रहा था। मोटे तौर पर, यह बात तय हो गई थी कि, माह दिसंबर का अंत, नोट बदलने की, अंतिम तिथि नहीं थी।” 

श्याम दीवान, एक पीड़ित याचिकाकर्ता की ओर से पेश हो रहे थे, जो अप्रैल 2016 में विदेश यात्रा के दौरान 1.62 लाख रुपये नकद छोड़ गया था, लेकिन जब वह फरवरी 2017 में देश लौटा तो अपने, रद्द हो चुके, करेंसी नोटों की अदला बदली नहीं कर सका था। 

30 दिसंबर, 2016 को, निर्दिष्ट बैंक नोट (दायित्वों की समाप्ति) अध्यादेश द्वारा प्रदत्त शक्ति का प्रयोग करते हुए, जिसे उसी दिन भारतीय रिज़र्व बैंक की धारा 34 के तहत रिज़र्व बैंक की देनदारियों को वैधानिक रूप से समाप्त करने के लिए तय किया गया था। यह नोट बदलने की आखिरी तारीख थी। यह गारंटी, आरबीआई अधिनियम, 1934, धारा 26(1) के तहत विमुद्रीकृत बैंक नोटों के, बदलने के संबंध में केंद्र सरकार की गारंटी थी। लेकिन, केंद्र सरकार ने, यह भी अधिसूचित किया था कि, पुराने नोटों को बदलने के लिए “अनुग्रह अवधि” भारत के निवासियों के लिए 31 मार्च, 2017 तक और अनिवासियों एनआरआई के लिए 30 जून, 2017 तक बढ़ाई जाएगी। यानी इस संबंध में दो नोटिफिकेशन थे। आरबीआई एक्ट के अनुसार, नोट, 31 दिसंबर 2016 तक बदले जाएंगे, और इससे अलग, सरकार के ही, एक नोटिफिकेशन अनुसार, करेंसी नोट 31 मार्च और 30 जून 2017 तक बदले जा सकते हैं। आरबीआई और सरकार के यह दोनों नोटिफिकेशन, परस्पर विरोधाभासी निर्णय को अभिव्यक्त कर रहे थे। 

इसी को स्पष्ट करते हुए श्याम दीवान ने आगे बताया कि, “उस प्रावधान के आधार पर जो यह, अनिवार्य करता है कि, प्रस्तुत किए गए निर्दिष्ट बैंक नोट की राशि, विदेशी मुद्रा प्रबंधन (मुद्रा का निर्यात और आयात) विनियम, 2015 के तहत निर्दिष्ट राशि से अधिक नहीं होनी चाहिए। अनुग्रह अवधि, केवल उन लोगों के लिए बढ़ाई गई थी जो  “देश से, बाहर अपना पैसा ले गये थे और इसे वापस लाये थे। परंतु, सरकार द्वारा लगाई गई शर्त, याचिकाकर्ता जैसे व्यक्ति के लिए, अधिसूचना के कार्यान्वयन को, पूरी तरह से बाहर कर देती है। एक भारतीय जो विदेश यात्रा करता है, अपना पैसा भारत में छोड़ देता है, और 31 दिसंबर, 2016 के बाद वापस आ जाता है, उसे लाभ के दायरे से बाहर रखा जाता है। इस तरह से अधिसूचना का कार्यान्वयन होता है। यही कारण है कि, उनका आवेदन खारिज कर दिया गया था।”

श्याम दीवान की इस शिकायत के जवाब में कि, “किसी भी अधिसूचना में याचिकाकर्ता जैसी स्थिति पर विचार नहीं किया गया है।”

पीठ ने एडवोकेट, श्याम दीवान को आश्वासन दिया कि, दावों की वास्तविकता के सत्यापन के बाद स्वतंत्र मामलों पर रिज़र्व बैंक द्वारा उप-धारा (2) के तहत विचार किया जा सकता है।  2017 अधिनियम की धारा 4 या केंद्रीय बोर्ड द्वारा धारा 4 की उप-धारा (3) के तहत, “यदि रिज़र्व बैंक या केंद्रीय बोर्ड द्वारा उचित तरीके से इस शक्ति का प्रयोग नहीं किया जाता है और प्रासंगिक  कारकों, व्यक्तिगत मामलों में, हम यह मान सकते हैं कि उनके पास होना चाहिए।” यह बात पीठ की तरफ से, न्यायमूर्ति गवई ने कहा।  

हालांकि, दीवान ने कहा, “यह अदालत व्यक्तिगत मामलों में हस्तक्षेप कर सकती है, लेकिन हमारे देश की विशालता और परिस्थितियों को देखते हुए, रिजर्व बैंक को व्यापक दृष्टिकोण अपनाने की जरूरत है। इस तरह की परिस्थितियों के लिए उनके पास एक सामान्य प्राविधान होना चाहिए।”

श्याम दीवान ने बैंक नोट विमुद्रीकरण को इस आधार पर भी चुनौती दी कि, “यह कानून के अधिकार के बिना, संपत्ति से वंचित करने के समान है और यह अनुच्छेद 14 के संवैधानिक कारकों  को पारित नहीं करता है।”

न्यायमूर्ति गवई ने आश्चर्य व्यक्त किया कि, “क्या अदालत द्वारा आरबीआई को निर्देशित करने के बाद, यह प्रश्न जीवित रहेंगे कि, बैंक सुझाए गए तरीके से अपनी शक्ति का प्रयोग करेगा, ऐसे लोगों के आवेदनों पर विचार करेगा, जो वैध कारणों से निर्धारित समय के भीतर पुराने करेंसी नोटों को बदलने में असमर्थ थे?

दीवान ने स्वीकार किया, “अगर मुझे पर्याप्त राहत मिलती, तो एक तरह से यह मुद्दा नहीं उठता ।”  

हालांकि, उन्होंने जल्दी से कहा कि “संवैधानिक मुद्दे को पहचानना” महत्वपूर्ण था क्योंकि यह रिजर्व बैंक और केंद्र सरकार के “बाध्य कर्तव्यों को बढ़ाता है।”

वरिष्ठ वकील ने यह भी कहा, “यह नीति की आलोचना नहीं है। यह केवल यह इंगित करने के लिए है कि “अगर इस तरह की शक्ति को अनियंत्रित और अनियंत्रित छोड़ दिया जाता है, तो यह नागरिकों के जीवन के लिए बड़े पैमाने पर और निरंतर परिणाम पैदा कर सकता है।”

श्याम दीवान द्वारा व्यक्त की गई भावनाओं को, अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने भी, प्रतिध्वनित किया गया। एडवोकेट, प्रशांत भूषण, एक शोक संतप्त पत्नी की ओर से, अदालत में, उपस्थित हो रहे थे, जिसने अपने पति की बचत राशि के करेंसी नोटों की अदला बदली करने की मांग की थी, जिसे, पुराने नोटों की अदला बदली का नियम ही, आदान-प्रदान के लिए तयशुदा अवधि के समाप्ति हो जाने के बाद ही पता चला। प्रशांत भूषण ने कहा, “ऐसे कई लोग होंगे जो इस अदालत में नहीं आ सकते हैं।” प्रधान मंत्री ने कहा था कि, “मार्च के अंत तक, अदला बदली की सुविधा, मिलेगी और यह बात उन्होंने, राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में कही थी। अचानक इस सुविधा का बंद हो जाना अनुचित है, और यहां तक ​​कि, एक तरह की यह, फिक्सिंग भी है। मनमानी समय सीमा जो वास्तविक लोगों को अपनी गाढ़ी कमाई का उपयोग करने या बदलने से रोकती है, पूरी तरह से गलत है।”

यह कहना है एडवोकेट, प्रशांत भूषण का, जो उन्होंने अपना पक्ष प्रस्तुत करते समय, संविधान पीठ को बताया। 

नोटबंदी की याचिकाओं की सुनवाई करते समय जिस तरह से नए नए तथ्य और विसंगतियां, संविधान पीठ के समक्ष सामने आ रही हैं वह सरकार और  गवर्नेंस की हैरान कर देने वाली अक्षमता को ही उजागर कर रही है। यह अक्षमता, नोटबंदी का निर्णय करने से लेकर, उसे लागू करने तक में कदम कदम पर दिख रही है। इस याचिका में एक महत्वपूर्ण रोचक विंदु कि, प्रधानमंत्री के संबोधनों में, जो आश्वासन और नीतिगत वायदे दिए जाते हैं तो, उनकी कानूनी स्थिति क्या है? क्या उनकी अवहेलना या उल्लंघन, सरकार के प्रशासनिक तंत्र द्वारा की जानी चाहिए या नहीं? या, प्रधानमंत्री के, यह सब संबोधन, उद्बोधन, केवल एक वाक विलास हैं और उनकी कोई वैधानिक स्थिति नहीं है? सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ का इस बारे में क्या दृष्टिकोण रहता है, यह देखना दिलचस्प होगा। अभी सुनवाई जारी है। 

(विजय शंकर सिंह रिटायर्ड आईपीएस हैं और कानपुर में रहते हैं।)

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

Related Articles