Friday, March 29, 2024

सर्वोदय समाज का 48 वां सम्मेलन संपन्न, गांधीजनों ने लिया लोकतंत्र बचाने का संकल्प

वर्धा। सर्वोदय समाज और उनके मानने वालों की देश को समझने का अपना नजरिया है। वो अपने ढ़ंग से किसी स्थिति का विश्लेषण करते हैं। लेकिन 48 वां सर्वोदय समाज सम्मेलन के समापन पर जिस राजनीतिक प्रस्ताव को पेश करके देश को इस बात से आगाह किया गया है कि सत्ता की वैचारिकी द्वारा देश के अंहिसक समाज को हिंसक समाज बनाकर देश के ताने-बाने को छिन्न-भिन्न करने का ख़तरनाक खेल खेला जा रहा है।

हालांकि इस वर्तमान परिस्थितियों के विश्लेषण करने वाले इस राजनैतिक प्रस्ताव को सर्वोदय की भाषा में निवेदन कहा गया। जिसमें कहा गया है कि देश ने अपनी 75 वर्ष की लंबी यात्रा में लोकतंत्र पर आए तमाम संकट देखे हैं और उनका सामना भी किया है। इन संकटों में आपातकाल प्रमुख है। उस दौरान गांधीजनों का संघर्ष भारत में लोकतंत्र की बहाली में महत्वपूर्ण साबित हुआ था। परंतु वर्तमान में सत्ता प्रतिष्ठान द्वारा लोकतंत्र को जिस संकट में डाला जा रहा है वह अभूतपूर्व है।

भारत के परम्परागत अहिंसक समाज को सांगठनिक तरीके से हिंसक बनाने की कोशिश की जा रही है। सत्य की जगह असत्य को स्थापित करने को जैसे राजकीय मान्यता मिल रही है। सत्तारूढ़ दल और उनके सहयोगी संगठनों द्वारा भारतीय लोकतंत्र में चुनाव को अर्थहीन बनाने का कुचक्र जा रहा है। चुनी हुई सरकार एक झटके में बदल दी जाती है और जनता अवाक खड़ी रह जाती है।

इस प्रस्ताव में कहा गया है कि देश राजनीतिक तौर एक ऐसे काल से गुजर रहा है, जिसमें आजादी के बाद पहली बार भारतीय संविधान की मनमानी व्याख्या करके अपने निहितार्थ निकाले जा रहे हैं, भारत के संघवाद, बहुलतावादी चरित्र, सांप्रदायिक सौहार्द पर संकट के बादल नजर आ रहे हैं। भारत के संविधानिक प्रावधानों की मन माफिक विवेचना करके राजनैतिक स्वार्थ साधा जा रहा है।

देश के प्राकृतिक संसाधनों की लूट हो रही है। सरकारी संपत्ति की चोरी को सरकारी संरक्षण और स्वीकृति मिलती जा रही है। राष्ट्र की संपत्ति का संग्रहण कुछ गिने-चुने लोगों के पास केन्द्रित होता जा रहा है। इसके प्रमाण में हम भारत में बढ़ती आर्थिक असमानता देख रहे हैं।

नई आत्मघाती आर्थिक नीतियों की वजह से भारत में बेरोजगारी पिछली आधी शताब्दी में सर्वाधिक है, युवा लगातार हतोत्साहित हो रहे हैं। गांधीजी तो मानते थे कि बिना रोजगार कोई भी व्यक्ति गरिमामय जीवन नहीं जी सकता। आज करोड़ों-करोड़ लोग नैराश्य में डूबते जा रहे हैं। युवा बेरोजगार और किसान आत्महत्या कर रहे हैं। सरकारी भर्ती में होने वाले घोटालों के चलते उन्हें रोजगार नहीं मिल पा रहा है।

कुछ पूंजीपतियों के हितों को संरक्षण देने और उनपर निर्भर नीतियों के कारण अधिक रोजगार देने वाले छोटे उद्योग, जिनमें ग्रामोद्योग भी शामिल है, अब अंतिम सांस ले रहे हैं। इसके चलते भारत में धर्मांधता का भयावह दौर शुरू हो गया है। अनेक ऐसे लोग जो स्वयं को धर्म का प्रवर्तक कहते थे आज हत्या व बलात्कार के मामलों में सजायाफ़्ता होकर जेल में है।

इस निवेदन/प्रस्ताव में मीडिया के दुष्प्रचार पर इशारा करते हुए यह दुख प्रकट किया गया है कि धार्मिक धुर्वीकरण से जनता के एक वर्ग का मोह सत्तारूढ़ दल से नहीं छूट रहा है। ऐसे में हम गांधीजनों को पुनः धर्म को लेकर बापू के विचारों को प्रसारित व प्रचारित करना अनिवार्य हो गया है। आज धर्म की आड़ में समाज के तमाम वर्गों को भयभीत किया जा रहा है। इससे समाज में विभाजन बढ़ता जा रहा है। हमारे संविधान की मंशा के विपरीत आचरण हो रहा है। हमें याद रखना होगा कि बापू ने अपने रचनात्मक कार्यों में पहला स्थान “सर्वधर्म समभाव” को ही दिया था। अल्पसंख्यक आज भयभीत है और ऐसा किसी एक वर्ग के ही साथ नहीं है।

संवैधानिक हकमारी और संसाधनों की लूट से जहां भारतीय समाज के प्रमुख अंग अनुसूचित जाति और जनजातियों के मध्य भी लगातार असुरक्षा बढ़ रही है। नई आर्थिक नीतियों और अंधाधुंध निजीकरण की वजह से उनके लिए आरक्षित नौकरियां कमोवेश खत्म हो गई है। इन वर्गों में भी आक्रमकता और हताशा बढ़ती जा रही है। ऐसे में गांधीजनों को इस विषय पर गंभीर मंथन करना अनिवार्य हो गया है।

इस दौर में भारत में महिलाओं के खिलाफ हो रहे अपराधों में व्याप्त बर्बरता और नृशंसता सभी सीमाएं लांघ रही हैं। उनमें व्याप्त असुरक्षा हमारे लिए शर्म का विषय है। मनोरंजन के भ्रष्ट माध्यमों और सोशल मीडिया में बढ़ती अश्लीलता ने इसे और हवा दी है

गौरतलब है भारत में लोकतांत्रिक, संविधानिक संस्थाओं का वास्तविक स्वरूप अब खतरे में है। उनका मनचाहा और मनमाना दुरुपयोग हो रहा है। इनका एक पक्षीय होना भारतीय लोकतंत्र के लिए विनाशकारी सिद्ध हो सकता है। भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने को लेकर प्रयास चल रहे हैं।

गांधी, नेहरू, विनोबा, जयप्रकाश, मौलाना आजाद जैसे विभूतियों और भारत की महान सांस्कृतिक परंपरा से बने और विकसित हुए भारत नामक विचार को नष्ट किए जाने के प्रयास चल रहे हैं। देश में फासीवाद व्यवस्था और फासीवाद पनप रहे हैं। इससे हमें देश को बचाना होगा। देश में बढ़ती बेरोजगारी के बरअक्स दो चार उद्योगपतियों का आर्थिक आकाश छू लेना इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है। हम इस प्रवृत्ति की निंदा करते हैं।

हम सब जानते हैं कि भारत कृषि निर्भर देश है। गांधी जी ने तो ग्राम स्वराज का न केवल नारा दिया था बल्कि उसे पाने का तरीका भी समझाया था। आज भारत में कृषि और कृषक दोनों संकट में है। यदि ये संकट में रहते हैं तो भारत भी संकट के बाहर नहीं आ सकता। कृषि और गांव बचेंगे तो ही भारत बचेगा। किसान आंदोलन के दौरान बहुत सी विषमताएं उभर कर सामने आई थी।

प्रस्ताव में गांधीजनों को आवाहन किया कि “खादी” के महत्व को पुनः स्थापित करना होगा। विनोबा ने खादी को बापू का सर्वश्रेष्ठ अविष्कार कहा है। खादी एक परिपूर्ण जीवन शैली है, यह महज एक वस्त्र भर नहीं है, गांधी विचार से ओतप्रोत अर्थव्यवस्था जिसे जेसी कुमारप्पा ने बहुत सुंदरता से व्याख्यायित किया है जो आशा की एकमात्र किरण नजर आ रही है। हमें उसका प्रचार करना होगा।

आज बापू के विचारों को अप्रासंगिक बनाने के प्रयास जोर शोर से चल रहे हैं। गांधी का नाम भले ही लिया जा रहा हो लेकिन वास्तविकता इसके उलट ही है। पहले भी कहा है कि सर्वोदय समाज और भारतीय समाज के समक्ष कभी भी इतनी विकट और विषम परिस्थितियां नहीं थी। आज मानव और मानवीय मूल्य दोनों ही गंभीर संकट के दौर से गुजर रहे हैं। मानवाधिकारों पर खतरा मंडरा ही रहा है।

प्रस्ताव में कहा गया कि यह याद रखना होगा कि सर्वोदय समाज की स्थापना के समय जो विराट व्यक्तित्व हमारे साथ थे वैसे अब नहीं है। अतः हमें उनसे प्रेरणा लेकर सामूहिक प्रयास करने होंगे। बापू के एकादश व्रत प्रकाशस्तंभ की तरह हमारे साथ है।

48 वें सर्वोदय समाज सम्मेलन यह संकल्प लिया गया है कि समाज, मनुष्यता और भारतीय लोकतंत्र के बचाने के संघर्ष में सक्रिय भूमिका निभाएगा। वह हमेशा की तरह धर्मनिरपेक्ष व लोकतंत्र में विश्वास रखने वालों का साथ देता रहेगा। इस दिशा में जैसे-जैसे हम आगे बढ़ते जाएंगे हमारी भूमिका और भी प्रभावी होती जाएगी।

सर्वोदय समाज का मानना है कि सनातन मूल्य कभी नष्ट नहीं होते। परंतु उन्हें प्रसारित तो करते रहना पड़ता है। यह सम्मेलन इस बात को लेकर प्रतिबद्ध है कि वह लोकतंत्र, संविधान व धर्मनिरपेक्षता को बचाने के प्रत्येक संघर्ष में सहभागी बनने और पहल करने का संकल्प लेता है।

प्रस्ताव के अंत में बापू के इस कथन को दोहराया गया कि “मैं यह सिद्ध कर दिखाने की आशा रखता हूं कि सच्चा स्वराज्य थोड़े लोगों के द्वारा सत्ता प्राप्त करने से नहीं, बल्कि सब लोगों द्वारा सत्ता के दुरुपयोग का प्रतिकार करने की क्षमता प्राप्त करने से हासिल किया जा सकता है। दूसरे शब्दों में, स्वराज्य जनता में इस बात का ध्यान पैदा करने से प्राप्त किया जा सकता है कि सत्ता का नियमन और नियंत्रण रखने की क्षमता उसमें है।

सम्मेलन का यह प्रस्ताव मध्य प्रदेश सर्वोदय मंडल के अध्यक्ष चिन्मय मिश्र ने पढ़ा, जिसका सर्वसम्मति से देश भर से जुटे लोकसेवकों, सर्वोदय मित्रों, गांधीवादियों में हाथ उठाकर अपनी सहमति जाहिर की।

इससे पहले तीन दिनी सम्मेलन में देश के विकास के तरीकों, कथित सभ्यताओं के संघर्ष की आड़ में राजनैतिक हित साधना, युवाओं की हताशा, वैश्विक परिदृश्य और गांधीजनों की भूमिका आदि विषयों पर गांधीवादियों ने विचार विमर्श किया गया। जिसमें कहा गया कि राजनैतिक स्वार्थ और गलत नीतियों ने जो बीज बोए हैं, उससे हिंसक समाज का निर्माण हुआ है। इसके लिए उत्तरदायी लोकतंत्र की वर्तमान व्यवस्था भी है, इसमें अल्पसंख्यकों की उपेक्षा करने का हिंसक कृत्य भी है।

बहुसंख्यकवाद पर आधारित व्यवस्था ने हिंसा को जन्म दिया है और एक अहिंसक समाज के निर्माण में बाधा उत्पन्न की है। एक अन्य कारक व्यक्तिगत स्वामित्व अधिकारों पर आधारित आर्थिक व्यवस्था है। इसने धर्म, जाति, लिंग आदि के क्षेत्र में असमानता को जन्म दिया है। तीसरा कारक एक ज्ञान प्रणाली है, जहां प्रत्येक व्यक्ति के ज्ञान की उपेक्षा की जाती है और कुछ बुद्धिजीवियों को अनुचित महत्व दिया जाता है। हम सभी की सहमति से बनी निर्णय लेने की प्रणाली से अहिंसक समाज का निर्माण कर सकते हैं। जबकि देश का मंत्र जय जगत होना चाहिए, तंत्र ग्रामदान से ग्रामस्वराज, और विश्व शांति होना चाहिए।

पूर्व सांसद मीनाक्षी नटराजन ने अपने भाषण में चिंता जताई कि हम मनुष्यों के पास केवल एक ग्रह पृथ्वी है और पृथ्वी के बाहर कोई जीवन नहीं है। प्रकृति हमारे नियंत्रण में नहीं हो सकती क्योंकि हम प्रकृति का हिस्सा हैं और इसके बाहर नहीं। यदि हम प्रकृति को नष्ट करते हैं, तो हम इसे पूंजी या अपने धन से नवीनीकृत नहीं कर सकते।

उन्होंने कहा कि हाल के सर्वेक्षण से पता चलता है कि देश के 623 जिलों में सबसे अधिक वन क्षेत्र वाले 150 जिले हैं, उन जिलों में लोग विस्थापन और कुपोषण के शिकार हैं, जिसका अर्थ है कि प्रकृति की रक्षा करने वाली आबादी के साथ विकास मॉडल द्वारा क्रूरतापूर्वक व्यवहार किया जा रहा है।

गांधी शांति प्रतिष्ठान के अध्यक्ष ने जहां वर्तमान परिस्थितियों में सभी तरह के रचनात्मक कार्यों से अधिक वरीयता देश के राजनैतिक परिदृश्य को बदलने की बताई वहीं गुजरात के उत्तम भाई परमार ने देश में दूसरे स्वतंत्रता आंदोलन को चलाने की बात कही।

उत्तराखंड सर्वोदय मण्डल के अध्यक्ष इस्लाम हुसैन ने जहां देश की प्रगति में बाधक एक खास तरह की मानसिकता को इंगित करते हुए कहा कि बंगलादेश की प्रगति में जहां शान्ति एक बड़ा कारण है वहीं हमारे देश में एक खास तरह की अशांति समर्थकों की मानसिकता के कारण विकास के मानकों में हम पिछड़ते जा रहे हैं।

गांधी स्मारक निधि के संजय सिंह ने बताया कि जब तक व्यक्ति का सर्वांगीण विकास नहीं होगा, तब तक अहिंसक समाज का निर्माण नहीं हो सकता। गांधी के विचारों में मानव के रचनात्मक विकास की क्षमता है।

गांधी संग्रहालय, दिल्ली के संयोजक अन्नामलाई ने बताया कि 19वीं सदी और 20वीं सदी की शुरुआत में क्रूर हिंसा और विश्व युद्ध देखे गए। गांधी अहिंसा का प्रयोग करने वाले एकमात्र व्यक्ति थे। उनके आंदोलन में महिलाओं, बच्चों और युवाओं की उच्च भागीदारी देखी गई। लेकिन आज हमने उनकी सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित नहीं की है। यदि हम अहिंसक क्रांति प्राप्त करना चाहते हैं, तो हमें महिलाओं और युवाओं के साथ जुड़ना चाहिए। महाराष्ट्र से रवींद्र रूपम ने कहा कि गांधीवादी विचार हमारी पारिवारिक और सामाजिक संस्थाओं जैसी संस्थाओं तक नहीं फैले हैं, जबकि फासीवादी समूह लोगों को बेहतर तरीके से लामबंद करते जा रहे हैं।

मगन संग्रहालय वर्धा की अध्यक्षा डा. विभा गुप्ता ने कहा कि हमें अपनी ताकत को पहचानना चाहिए कि पूरे देश में बड़ी संख्या में ऐसे संगठन हैं, जो गांधीवादी विचारों पर जमीनी स्तर पर काम कर रहे हैं। केवल उन्हें ठीक से गिना या दस्तावेज नहीं किया गया है। उन्होंने कहा कि हम गांधी के राजनीतिक अहिंसा प्रयोगों के बारे में बहुत कुछ जानते हैं, लेकिन कुटीर उद्योगों के क्षेत्र में उनके अनूठे प्रयोगों के बारे में कम जानते हैं।

उन्होंने पर्यावरण के अनुकूल घरों, मवेशियों की स्थानीय नस्लों के साथ प्रयोग करते हुए और समाधान खोजने के लिए वैज्ञानिकों के साथ काम किया। उन्होंने आगे कहा की वैश्वीकरण और इस बहुराष्ट्रीय कंपनियों के प्रभुत्व के युग में, हमें आत्मनिर्भर बनने और प्रकृति की रक्षा के लिए विभिन्न प्रकार के स्वराज की दिशा में काम करने की आवश्यकता है।

सम्मेलन में वर्ष 2022 का गांधी पुरस्कार, सतारा, महाराष्ट्र के सत्कार मूर्ति अन्नासाहेब जाधव को प्रदान किया गया। इस पुरस्कार के तहत एक लाख रुपये का चेक और शॉल प्रदान किया गया। वर्ष 2021 में शुरू किया गया यह गांधी पुरस्कार सर्वोदय विचारों को बढ़ावा देने के लिए जमीनी स्तर पर काम करने वाले एक वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता को दिया जाता है। इस अवसर पर सत्कार मूर्ति अन्ना साहेब जाधव ने बताया कि वह पिछले 50 वर्षों से सर्वोदय आंदोलन का हिस्सा रहे हैं। उन्होंने कहा कि चेंजमेकर्स के तौर पर हमें राजनीति को जनहित में लाना है।

सम्मेलन को सर्वोदय समाज के संयोजक सोमनाथ रोड़े, सम्मेलन स्वागत समिति के सुनील केदार, महात्मा गांधी की पौत्री तारा गांधी भट्टाचार्य, वरिष्ठ गांधीवादी अमरनाथ भाई, सेवाग्राम आश्रम प्रतिष्ठान की अध्यक्षा आशा बोथरा, सर्व सेवा संघ के ट्रस्टी अशोक शरण ली शेख हुसैन, सर्व सेवा संघ के अध्यक्ष चंदन पाल, सुरंग बरंठ, रमेश ओझा, सेवाग्राम आश्रम के पूर्व अध्यक्ष टीआरएन प्रभु, डा. अभय बंग, अरविंद अंजुम, शिवचरण ठाकुर, बजरंग सोनावले, गौरांग महापात्र, उत्तर प्रदेश सर्वोदय मण्डल के अध्यक्ष रामधीरज, अशोक भारत, मनोज ठाकरे डॉ. विश्वजीत अरविंद कुशवाहा, सवाई सिंह, प्रदीप खेलुरकर, रामधीरज, रमेश दाणे, शंकर नायक, अविनाश काकड़े, उषा विश्वकर्मा, सदाशिवम पिल्लई, सिद्धेश्वर पिल्लई, मदन मोहन वर्मा, मिहिर कटारिया, मारुति तरुण, प्रह्लाद निमारे, मिहिर प्रताप, शंकर राणा, आदि ने भी अपने महत्वपूर्ण विचार रखे।

(सेवाग्राम आश्रम से इस्लाम हुसैन की रिपोर्ट।)

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