10 वर्षों तक पूर्ण बहुमत वाली मोदी सरकार को भले ही तीसरी बार भी सरकार बनाने का मौका हासिल हो गया हो, लेकिन संसद में बहुमत हासिल करने के लिए आवश्यक 272 की संख्या से 32 सीट कम हासिल करने वाली भाजपा को अब मोदी सरकार की बजाय एनडीए सरकार सुनना कितना कड़वाहट भरा लग रहा होगा, इसका सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है। इस सबके बावजूद, अभी तक पीएम नरेंद्र मोदी ने कुल-मिलाकर ऐसा माहौल बनाने की कोशिश की है, जैसे कुछ हुआ ही न हो। नई सरकार में एक-आध को छोड़ वही चेहरे मंत्रिमंडल में बने हुए हैं, और अटकलबाजियों के बावजूद घटक दलों को कोई खास महत्वपूर्ण मंत्रिमंडल नहीं सौंपा गया है। कुल मिलाकर 4 जून के बाद सतह पर अभी भी लग सकता है कि सब कुछ ठीक ठाक चल रहा है, और इस दफा भी पीएम मोदी बिना किसी बाधा के अपना कार्यकाल सफलतापूर्वक पूरा कर सकेंगे।
लेकिन राजनीति के जानकार इससे इत्तिफाक नहीं रख पा रहे। तमाम तथ्य इस बात की गवाही चीख-चीख कर दे रहे हैं कि नरेंद्र मोदी के लिए कुछ भी ठीक नहीं चल रहा है। अपेक्षाकृत बेहद सशक्त विपक्ष और खंडित जनादेश को तो फिलहाल एक तरफ रख दें, भाजपा का पितृ संगठन आरएसएस और उसके सहायक संगठन ही नहीं, स्वयं भाजपा के भीतर रार मची है। नरेंद्र मोदी की स्टाइल अभी भी वही बनी हुई है, लेकिन तौर-तरीकों में बदलाव स्पष्ट नजर आने लगा है।
लोकसभा स्पीकर पद के लिए आम सहमति बनाने की जिम्मेदारी रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के जिम्मे सौंपी गई है, जिनको लेकर चुनाव से पहले कहा जाने लगा था कि इस दफा इन्हें भी आराम करने की सलाह दी जा सकती है। सारा देश इस तथ्य से वाकिफ है कि 2014 से मई 2024 तक सरकार कैसे चलाई गई? पार्टी के बाहर ही नहीं पार्टी के भीतर भी कितने लोग हैं, जो मानते हैं कि सरकार चलाने की इस शैली ने भाजपा को कितना नुकसान किया है।
बहरहाल, यदि 18वीं लोकसभा के पहले संसद सत्र पर केंद्रित करें तो हमें देखना होगा कि एनडीए सरकार को किन चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है और केंद्र सरकार उनसे निपटने में कितनी सफल रहती है? मोदी-शाह की सरकार चलाने की स्टाइल और राज्यों में विपक्षियों से निपटने या दलों में तोड़-फोड़ करने का इतिहास असल में लोकसभा अध्यक्ष की कुर्सी को प्रधान मंत्री पद से भी महत्वपूर्ण बना देता है।
वास्तविकता तो यह है कि विपक्ष ही नहीं, एनडीए में शामिल घटक दल भी चाहते हैं कि लोकसभा अध्यक्ष की कुर्सी पर किसी ऐसे व्यक्ति को चुना जाना चाहिए जो मोदी-शाह के प्रभाव से पूरी तरह से मुक्त हो। हर किसी को भय है कि यह सरकार मौका लगते ही भाजपा की लोकसभा सांसदों की संख्या को 240 से 272 पार कराने के लिए साम, दाम, दंड और भेद किसी से भी नहीं चूकेगी। इस तथ्य से वो जेडीयू भी वाकिफ है, जिसने बिना शर्त लोकसभा अध्यक्ष पद के लिए भाजपा के पक्ष में बयान दिया है। संयुक्त विपक्ष अपने संख्याबल को बड़ी आसानी से 234 से 240-45 तक ले जा सकता है, लेकिन बहुमत के आंकड़े से वह तब तक दूर रहने वाली है, जब तक जेडीयू और टीडीपी के लिए एनडीए गठबंधन में रहना असहनीय न हो जाये।
इसलिए, फिलहाल तो बिहार और आंध्र प्रदेश की जरूरतों और अपने प्रभाव को पुख्ता करने के लिए लगता है नितीश और नायडू, दोनों ही इसे जारी रखेंगे और लोकसभा अध्यक्ष पद को लेकर ऐतराज नहीं जताने जा रहे हैं। लेकिन क्या बदले में, इन दोनों राज्यों को विशेष राज्य का दर्जा या भारी आर्थिक मदद पक्के तौर पर मिलने जा रही है, इस पर सभी की निगाहें रहेंगी। पिछले 10 वर्षों के दौरान बार-बार छले जाने वाले ये दोनों दल, क्या इस बार एक मजबूर सरकार का दुमछल्ला बने रहेंगे, ऐसा हर्गिज नहीं लगता। प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी अपने व्यक्तिगत करिश्मे को देश की आम जनता तक के बीच खोते जा रहे हैं, ऐसे में राजनीति के सबसे मंजे हुए खिलाड़ियों में शुमार चंद्रबाबू नायडू और नितीश कुमार को चकमा देने की बात तो कोई भूल कर भी नहीं सोच सकता, क्योंकि ये दोनों राजनेता खुद एनटीआर, आरजेडी और भाजपा को चकमा दे चुके हैं।
लेकिन लगता है 24 जून से पहले ही सरकार और विपक्ष के बीच में तनातनी शुरू हो चुकी है। 7 दफा लोकसभा सांसद चुने गये भाजपा सांसद भर्तहरी माहताब को प्रोटेम स्पीकर के तौर नियुक्त किये जाने पर मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस ने सख्त एतराज जताया है, क्योंकि 18वीं लोकसभा में ऐसे दो सांसद चुने गये हैं, जो 8 बार लोकसभा चुनाव जीत चुके हैं। कांग्रेस के अनुसार, प्रोटेम स्पीकर की नियुक्ति के लिए सबसे अधिक बार चुनकर आने वाले सांसद को नियुक्त किये जाने की परंपरा रही है, लेकिन भाजपा ने नए कार्यकाल शुरू होने से पहले ही अपनी मंशा जाहिर कर विपक्ष को अपने खिलाफ लामबंद कर लिया है। इस पर केंद्रीय मंत्री किरण रिजूजू ने पलटवार करते हुए ब्रिटिश पार्लियामेंट का हवाला दिया है, और कहा है कि कांग्रेस पार्टी इस मुद्दे पर देश को दिग्भ्रमित कर रही है। उनके अनुसार, लगातार सबसे अधिक बार चुन कर आने वाले सांसद को ही प्रोटेम स्पीकर के तौर पर नियुक्त किये जाने की परंपरा रही है।
इसके अलावा, नीट परीक्षा में धांधली, पश्चिम बंगाल में एक बार फिर बड़ी रेल दुर्घटना, एग्जिट पोल से पहले शेयर मार्केट में पैसा लगाकर भारी मुनाफा कमाने के लिए नरेंद्र मोदी और अमित शाह की ओर से व्यक्तिगत अपील और मणिपुर में एक वर्ष से जारी अशांति जैसे मुद्दे अभी से मुहं बाए इंतजार कर रहे हैं। ये सभी मुद्दे बेहद व्यापक स्वरुप लिए हुए हैं, और एनडीए सरकार के पास इन मुद्दों पर यथोचित जवाब नहीं है। लेकिन नीट परीक्षा में धांधली का मुद्दा इतना गहराता जा रहा है कि संभवतः विपक्ष इसी मुद्दे को केंद्र में रखकर पीएम नरेंद्र मोदी को शुरू से ही पूरी तरह से निस्सहाय बना देना चाहता है।
नीट परीक्षा में धांधली को लेकर जिस तरह से भाजपा और सरकार रक्षात्मक मुद्रा अपना रही है, उससे साफ़ जाहिर होता है कि पहली बार भाजपा के सवर्ण वोट बैंक में भाजपा सरकार के खिलाफ तेज गुस्से की लहर दौड़ी है। इससे पहले यूपी में सिपाही भर्ती घोटाला भले ही व्यापक स्वरूप लिया हो, लेकिन नीट परीक्षा में एमबीबीएस डॉक्टर बनने की होड़ में लगे बच्चों का बड़ा वर्ग इसी मध्य वर्ग और उच्च मध्य वर्ग से आता है, जो भाजपा का सबसे बड़ा समर्थक वर्ग रहा है। आज उसे महसूस हो रहा है कि यह धोखा तो उसके साथ भी हो रहा है, और उसके बच्चों का भविष्य मौजूदा सरकार के हाथ में बिल्कुल सुरक्षित नहीं है। नतीजतन, देश भर में जगह-जगह बड़े पैमाने पर लोग सड़कों पर निकलने लगे हैं। देश में कई स्थानों पर छात्रों, राजनीतिक पार्टियों के कार्यकर्ताओं ने धरना प्रदर्शन और गिरफ्तारी दी है।
18वीं लोकसभा में लगता है कांग्रेस भी शिक्षा और रोजगार के मुद्दे पर लंबी लड़ाई के मूड में है। इस बार संसद के भीतर भाजपा अपनी मनमानी कर पायेगी, ऐसा संभव नहीं लगता। कांग्रेस नेता जयराम रमेश के अनुसार, इस बार एनडीए और इंडिया गठबंधन लगभग बराबरी पर हैं, और यदि केंद्र ने संसद में बुलडोजर नीति का अनुसरण किया तो विपक्ष जवाब में काउंटर-बुलडोजर चलाएगा। नीट और यूजीसी-नेट परीक्षा के प्रश्नपत्र लीक पर सरकार अब पूरी तरह से रक्षात्मक मुद्रा में आ चुकी है। एनसीईआरटी पाठ्यपुस्तकों में बदलाव पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए जयराम रमेश का कहना था कि एनसीईआरटी राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के इशारे पर संविधान पर हमले कर रही है। नीट परीक्षा में धांधली को लेकर कांग्रेस ने संसद के भीतर इस मुद्दे को प्रमुखता से उठाने का मन बनाया लगता है। कल देश के विभिन्न शहरों में कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने नीट परीक्षा को तत्काल रद्द किये जाने की मांग करते हुए प्रदर्शन आयोजित किए।
केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान की भूमिका को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं। जब लोकसभा चुनावों के नतीजे आ रहे थे, उसी दौरान नीट एग्जाम के नतीजे क्यों घोषित किये गये, इसको लेकर भी लोगबाग आपस में बातें कर रहे हैं। उस दौरान शिक्षा मंत्री ने साफ़ तौर पर ऐलान कर दिया था कि नीट में कोई खास गड़बड़ी नहीं पाई गई है। इसके बाद भी उन्होंने रह-रहकर ऐसे बयान दिए, जिनसे साफ़ जाहिर होता था कि सरकार कुछ छात्रों के लिए पुनः परीक्षा की व्यवस्था कर इसी रिजल्ट को बहाल करने के मूड में है। लेकिन छात्रों के विरोध, हर रोज नीट घपले को लेकर होने वाले खुलासों और एलीट वर्ग की बढ़ती नाराजगी ने केंद्र सरकार के होश उड़ा दिए। आरएसएस से संबद्ध छात्र संगठन, एबीवीपी तक ने लेफ्ट से जुड़े छात्र संगठनों की इस आंदोलन में बढ़-चढ़कर उपस्थिति को देखते हुए, केंद्र सरकार की भूमिका को लेकर सवाल खड़े करने शुरू कर दिए।
हालत यह हो चुकी है कि कल शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान, जिन्हें 21 जून को योग दिवस के कार्यक्रम में हिस्सा लेना था, को दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्रों के विरोध के चलते अपने कार्यक्रम को निरस्त करना पड़ा। एक नई सरकार के लिए इसे सिर मुड़ाते ही ओले पड़ने वाली स्थिति कही जा सकती है। अब शिक्षा मंत्री कह रहे हैं कि, “एनटीओ हो या एनटीओ में कोई भी बड़ा व्यक्ति हो, जो इसमें दोषी पाया जायेगा उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जायेगी।”
अभी कुछ देर पहले केंद्र सरकार की ओर से घोषणा की गई है कि नीट परीक्षा के बाद यूजीसी नेट परीक्षा का पर्चा भी लीक हो जाने पर देशव्यापी विरोध को देखते हुए विशेषज्ञों की एक उच्च स्तरीय समिति के तत्वावधान में निष्पक्ष एवं पारदर्शी तरीके से परीक्षाओं का आयोजन किया जायेगा। ऐसा लगता है कि सरकार को विपक्ष की मजबूत ताकत और सड़क पर मध्य वर्ग और छात्रों की भारी नाराजगी का अंदाजा लग चुका है। सरकार का यह कदम मोदी 01 और मोदी 02 से पूरी तरह से उलट नजर आता है।
यह अलग बात है कि इस उच्च स्तरीय विशेषज्ञ समिति में सदस्य किसे बनाया जाता है? इसके पीछे की वजह यह है कि, पिछले दस वर्षों के दौरान शिक्षा के क्षेत्र में जो भी उल्लेखनीय हस्ताक्षर मौजूद थे, उन्हें तो चुन-चुनकर हिंदुत्ववादी शक्तियों के द्वारा पहले ही हाशिये पर डालने की कवायद की जा चुकी थी। विश्विद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के चेयरमैन पद पर आसीन जगदेश कुमार मोदी शासन 01 में लंबे अर्से तक जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय के कुलपति पर पर आसीन रहे, और उनके कार्यकाल में ही देश के सबसे प्रतिष्ठित विश्विवद्यालय, फैकल्टी और छात्रों की छवि को धूमिल करने के लिए आरएसएस-भाजपा और सरकार समर्थको ने क्या-क्या धत करम नहीं किये, इससे पूरा देश वाकिफ है।
पीड़ित छात्र देश में एनटीए की व्यवस्था से बेहद खफा हैं। उनका मानना है कि पिछले 5 वर्ष से भी अधिक समय से एनटीए के माध्यम से नीट परीक्षा संदेह के घ्रेरे में है। मोदी सरकार द्वारा गठित नेशनल टेस्टिंग एजेंसी की हालत इतनी खस्ताहाल है कि नीट परीक्षा के बाद हाल ही में आयोजित यूजीसी नेट परीक्षा को भी निरस्त करना पड़ा है।
इसके अलावा, कल देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में देश के सबसे लंबे फ्लाईओवर अटल सेतु में जगह-जगह पर आई दरारों की खबर ने हंगामा खड़ा कर दिया है। कांग्रेस के महाराष्ट्र प्रदेश अध्यक्ष नाना पटोले के वायरल वीडियो के बाद से अटल सेतु का मुद्दा सोशल मीडिया में सुर्ख़ियों में है। असल में यह प्रोजेक्ट शुरू से विवादों के घेरे में था, क्योंकि प्रोजेक्ट की लागत अविश्वसनीय रूप से करीब 18,000 करोड़ रुपये होने की वजह से इतना भारी टोल टैक्स (दोनों तरफ का टैक्स करीब 600 रुपये) को आम मुंबईकर के लिए वहन कर पाना नामुमकिन है।
जनवरी 2024 में स्वयं पीएम नरेंद्र मोदी के कर-कमलों से इस फ्लाईओवर का उद्घाटन हुआ था, लेकिन 6 महीने के भीतर ही दरार की खबर ने मोदी सरकार के भ्रष्टाचार मुक्त सरकार देने के दावे की पोल खोलकर रख दी है। बहरहाल, यह मुद्दा अभी भी डेवलपिंग स्टेज में है। सारी निगाहें लोकसभा स्पीकर और नीट परीक्षा में बड़े पैमाने पर धांधली को लेकर सरकार के रुख पर टिकी रहने वाली हैं। इन्हीं सवालों से तय होगा कि मौजूदा एनडीए सरकार खुद को कितनी दूर तक खींच पाने में सक्षम रहने जा रही है।
(रविंद्र पटवाल जनचौक संपादकीय टीम के सदस्य हैं)
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