नई दिल्ली। जेएनयू से शिक्षा हासिल कर चुके अभिजीत बनर्जी को अर्थशास्त्र का नोबेल पुरस्कार मिला है। और यह नोबेल भी उन्हें भारत में उनके काम के लिए हासिल हुआ है। उन्हें यह पुरस्कार ईस्टर डूफ्लो और माइकेल क्रेमर के साथ साझे रूप में दिया गया है। इसके साथ ही उन्होंने भारत की अर्थव्यवस्था पर टिप्पणी करते हुए कहा है कि भारतीय अर्थव्यवस्था का आधार बहुत कमजोर हो गया है। और आने वाले नजदीक समय में इसका कोई हल भी होता नहीं दिख रहा है।
रॉयल स्वीडिश एकैडमी ऑफ साइंसेज की ओर से आज इसकी घोषणा की गयी। एकैडमी की विज्ञप्ति में कहा गया है कि तीनों को यह पुरस्कार “वैश्विक गरीबी को खत्म करने के उनके प्रायोगिक तरीके के लिए दिया गया है”।
इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित खबर के मुताबिक बयान में कहा गया है कि “इकोनामिक साइंस लौरिएटों द्वारा 2019 में संचालित शोध ने वैश्विक गरीबी से लड़ने की हमारी क्षमता में बेहतर सुधार किया है। केवल दो दशकों में नये प्रयोग पर आधारित तरीके ने विकासवादी अर्थशास्त्र को बिल्कुल बदल कर रख दिया है। यह अब शोध का सबसे उर्बर क्षेत्र बन गया है।”
तीनों अर्थशास्त्रियों के इस प्रयोग से भारत के तकरीबन 50 लाख बच्चों को लाभ हुआ है। ये सभी बच्चे स्कूल में इस कार्यक्रम के हिस्से थे।
इंडियन एक्सप्रेस का कहना है कि उसकी 2015 में बनर्जी और डूफ्लो से बात हुई थी जिसमें उन्होंने सोशल सेक्टर की योजना संबंधी अपने प्रयोग के बारे में विस्तार से बताया था। उन्होंने नरेगा को जरूरतमंद को चिन्हित करने में बेहद नकारा और आरटीई योजना को स्कूलों में सीखने के लिहाज से स्तरीय नहीं होने की बात कही थी।
विकीपीडिया में दिए गए उनके परिचय के मुताबिक अभिजीत 21 फरवरी 1961 को भारत के धुले में पैदा हुए थे। उन्होंने 1981 में कोलकाता के प्रेसीडेंसी कालेज से अपनी बीएससी की। उसके बाद उन्होंने जेएनयू से इकोनामिक्स में एमए किया। 58 वर्षीय अभिजीत फिर इकोनामिक्स में पीएचडी के लिए वह 1988 में हार्वर्ड चले गए। अभिजीत के पिता दीपक बनर्जी भी इकोनामिक्स के प्रोफेसर थे। बाद में वह प्रेसीडेंसी कालेज में अर्थशास्त्र विभाग के अध्यक्ष बने। बनर्जी मौजूदा समय में अमेरिका के एमआईटी इंस्टीट्यूट में फोर्ड फाउंडेशन इंटरनेशनल में इकोनामिक्स के प्रोफेसर हैं।
इस बीच, उन्होंने एक भारतीय चैनल से बात करते हुए कहा कि भारत की अर्थव्यवस्था का आधार बहुत कमजोर हो गया है। मौजूदा डेटा को देखते हुए इसके बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता है। उन्होंने कहा कि पिछले पांच-छह सालों में हमने कुछ विकास दर भी देखा है। लेकिन आगे के बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता है।