Friday, April 19, 2024

आखिर इरफ़ान हार गए कैंसर से जंग, नहीं रहा चेहरे और आँखों से अभिनय का जादूगर

नई दिल्ली। अभिनेता इरफ़ान खान कान निधन हो गया है। उन्होंने बुधवार को मुंबई स्थित कोकिलाबेन धीरूबाई अंबानी अस्पताल में अंतिम सांस ली।

इरफ़ान कैंसर की बीमारी से पीड़ित थे। हालाँकि अभी वह यूरोप से इलाज करा के लौटे थे। इरफ़ान को 28 अप्रैल को कोलोन इंफ़ेक्शन के चलते आईसीयू में भर्ती किया गया था। लेकिन उनका स्वास्थ्य लगातार गिरता जा रहा था। और 29 अप्रैल को उन्होंने आख़िरी सांस ली।

इरफ़ान के स्वास्थ्य में उसी समय से गिरावट शुरू हो गयी थी जब 2018 में उनको न्यूरोइंडोक्राइन कैंसर से पीड़ित होने के बारे में पता चला था। वह इलाज के लिए लगातार लंदन आते जाते रहते थे। ख़राब स्वास्थ्य के चलते इरफ़ान अपनी आख़िरी फ़िल्म ‘अंग्रेज़ी मीडियम’ का प्रमोशन भी नहीं कर पाए।

2018 में उन्होंने एक बयान दिया था जिसमें उन्होंने कहा था कि ‘मुझे लगता है कि मैंने आत्मसमर्पण कर दिया है’। इरफ़ान अपनी बेहद गहरी और प्रभावशाली एक्टिंग के लिए जाने जाते थे। चेहरे के भाव और आँखों के इशारे से वह पर्दे पर बहुत कुछ कह देते थे जो किसी और एक्टर के लिए कर पाना बेहद मुश्किल था। इरफ़ान भले ही न हों लेकिन सिनेमा के रुपहले पर्दे पर उनके जिए किरदार हमेशा-हमेशा के लिए ज़िंदा रहेंगे। 

इरफ़ान ने अपने अंतिम दम तक जानलेवा बीमारी से लड़ाई लड़ी लेकिन अंत में वह हार गए। बताया जाता है कि वह अपने क़िस्म का विशिष्ट कैंसर था। हालांकि ऐसा लग रहा था कि वह उससे उबर जाएँगे। लेकिन नियति को कुछ और ही मंज़ूर था। आज से तीन-चार दिन पहले उनकी माँ का जयपुर में निधन हो गया था। और वह उनके अंतिम संस्कार में भी हिस्सा नहीं ले पाए थे। वीडियो कांफ्रेंसिंग के ज़रिये ही उन्होंने पूरा कार्यक्रम देखा।

फ़िल्म जगत से उनके निधन पर प्रतिक्रियाएँ और श्रद्धांजलियाँ आनी शुरू हो गयी हैं। फ़िल्म निर्माता सुजित सरकार ने ट्विटर पर कहा कि “मेरे प्यारे इरफान। तुमने लड़ाई लड़ी, लड़ी और खूब लड़ी। मुझे तुम पर हमेशा गर्व रहेगा…..हम फिर मिलेंगे….सुतापा और बाबिल को सहानुभूति….सुतापा तुमने भी पूरी ताक़त से लड़ाई लड़ी। शांति और ओम शांति। इरफ़ान सैल्यूट।”
इरफ़ान 7 जनवरी, 1966 को जयपुर में पैदा हुए थे। वह घर पर साहबजादे इरफ़ान अली खान के नाम से बुलाए जाते थे। एनएसडी में पढ़ाई के लिए स्कॉलरशिप हासिल करने के दौरान वह एमए की पढ़ाई कर रहे थे। एनएसडी के बाद इरफ़ान एक्टिंग के अपने सपने को पूरा करने के लिए मुंबई चले गए। इसी दौरान वह चाणक्य, भारत एक खोज, बनेगी अपनी बात और चंद्रकांता समेत टीवी के कई सीरियलों में अपने अभिनय का जादू दिखाया।

उन्होंने अपनी पहली फ़िल्म मीरा नायर के साथ 1988 में ‘सलाम बॉम्बे’ की। बहुत सालों तक संघर्ष करने के बाद उन्हें सफलता 2001 में आसिफ़ कपाड़िया की फ़िल्म ‘द वैरियर’ से मिली। इरफ़ान के नाम कई ऐसी फ़िल्में हैं जो उन्हें हमेशा के लिए ज़िंदा रखेंगी। इनमें हासिल, मकबूल, लाइफ़ इन मेट्रो, पान सिंह तोमर, दि लंच बॉक्स, हैदर, पीकू और तलवार शामिल हैं।

अंतरराष्ट्रीय सिनेमा में भी इरफ़ान ने अपनी छाप छोड़ी जब उन्होंने नेमसेक में काम किया। इसके अलावा द दार्जिलिंग लिमिटेड, स्लमडॉग मिलेनयेर, लाइफ़ आफ पाई और जुरासिक वर्ल्ड कई ऐसी फ़िल्में हैं जिनमें उन्होंने अपने अभिनय का जादू बिखेरा। इस तरह से तीन दशक के अपने कैरियर में इरफ़ान ने 50 से ज़्यादा फ़िल्मों में काम किया। उन्हें इसके लिए एक नेशनल अवार्ड और चार बार फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार भी मिले। 2011 में इरफ़ान को पद्मश्री पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था। इरफ़ान अपने पीछे पत्नी सुतापा सिकदर और दो बच्चे बाबिल और अयान को छोड़ गए हैं।

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