Friday, March 29, 2024

सुप्रीम कोर्ट में हारने के बाद भी अडानी पावर हरियाणा को नहीं दे रहा बिजली

क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि आपने किसी राज्य को एक निश्चित दर पर 25 साल के लिए बिजली आपूर्ति का समझौता किया है और कुछ साल बाद उत्पादन लागत बढ़ने के नाम पर बिजली मंहगी करना चाहते हैं और इस मुद्दे पर उच्चतम न्यायालय में पराजित होने के बाद आप बिजली आपूर्ति बंद कर सकते हैं? इसका उत्तर नहीं है क्योंकि आपके समझौते में स्पष्ट उल्लेख है कि लागत बढ़ने का असर समझौते पर नहीं पड़ेगा। उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि ईंधन की लागत में परिवर्तन, या समझौते को निष्पादित करने के लिए कठिन हो जाना, पीपीए के तहत ही अप्रत्याशित घटनाओं के रूप में नहीं माना जाता है। यह कारनामा अडानी पॉवर ने हरियाणा के साथ किया है और भाजपा की खट्टर सरकार पता नहीं किस भय से अडानी पॉवर के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं कर रही है और आश्चर्यजनक चुप्पी साध कर बैठी है।

नतीजतन हरियाणा भीषण बिजली कटौती के दौर से गुजर रहा है। असहनीय गर्मी लोगों को झुलसा रही है और 12 घंटे तक की बिजली कटौती ने जीवन दुश्वार कर दिया है। खेती सूखे की कगार पर है व पूरे प्रांत में उद्योग ठप्प पड़े हैं। मई महीने में प्रांत को 9500 मेगावॉट बिजली की आवश्यकता है।

जुलाई से सितंबर, 2022 तक हर महीने प्रांत में बिजली की मांग लगभग 12,000 मेगावॉट होगी। इस मांग के मुकाबले में जून से सितंबर तक हर महीने 3000 मेगावॉट से 4000 मेगावॉट बिजली की कम आपूर्ति हो पाएगी। कारण – अडानी पॉवर, मुंद्रा, गुजरात से मिलने वाली 1424 मेगावॉट बिजली का 1 यूनिट भी न मिलना व प्रांतीय सरकार की विफलता के चलते खुद के बिजलीघरों में उत्पादन न हो पाना।

कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव रणदीप सिंह सुरजेवाला ने आरोप लगाया कि हरियाणा सरकार को अडानी ग्रुप की वजह से प्रतिदिन 140 करोड़ 50 लाख रुपये की चपत लगेगी। एग्रीमेंट के मुताबिक अडानी की ओर से प्रदेश को बिजली सप्लाई नहीं की जा रही है। ऐसे में सरकार को मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ की प्राइवेट कंपनियों ने महंगी दरों पर बिजली खरीदनी पड़ी है। मध्य प्रदेश की एमबी पावर के साथ पांच रुपये 70 पैसे और छत्तीसगढ़ की आरकेएम पावर के साथ पांच रुपये 75 पैसे प्रति यूनिट के हिसाब से बिजली खरीद का समझौता हुआ है। यदि अडानी ग्रुप की ओर से हरियाणा को समझौते के मुताबिक बिजली सप्लाई जारी रखी जाती तो यह नुकसान न उठाना पड़ता।

कांग्रेस महासचिव रणदीप सुरजेवाला ने कहा कि अडानी पावर ने खुद ही भूपेंद्र सिंह हुड्डा के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार में 24 नवंबर, 2007 को 2 रुपये 94 पैसे प्रति यूनिट के हिसाब से 1424 मेगावाट बिजली सप्लाई के लिए कंपटिटिव बिड दी थी। हुड्डा सरकार ने 31 जुलाई 2008 को अडानी ग्रुप की बिड को मंजूर किया और 25 वर्षों के लिए समझौता किया गया। इसके लिए बाकायदा बिजली खरीद समझौता (पीपीए) पर साइन हुए। गुजरात के मुंद्रा से महेंद्रगढ़ तक अडानी पावर द्वारा बिजली की लाइन भी बिछाई गई। सुरजेवाला ने आरोप लगाया कि राज्य सरकार अडानी ग्रुप के साथ मिलकर प्रदेश पर आर्थिक बोझ डाल रही है। पिछले साल से ही अडानी ग्रुप हरियाणा को बिजली सप्लाई नहीं कर रहा, लेकिन सरकार ने कोई कदम नहीं उठाया।

2010-11 में इंडोनेशिया में कोयले के रेट के बारे में कानून में बदलाव हुआ। इसके आधार पर अडानी पावर ने हरियाणा के साथ हुए पीपीए को सिरे से खारिज करने या फिर कोयले की बढ़ी हुई कीमतें हरियाणा द्वारा देने की मांग रखी। सुरजेवाला ने कहा कि यह मामला विभिन्न संस्थाओं व आयोग से होते हुए सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा। सुप्रीम कोर्ट ने अडानी ग्रुप की दोनों मांगों को खारिज कर दिया। हरियाणा राज्य बिजली विनियामक आयोग (एचइआरसी) ने भी हरियाणा सरकार द्वारा बिजली की खरीद अडानी पावर की ‘रिस्क एंड कास्ट’ पर नहीं करने पर सवाल उठाए हैं। रणदीप ने इस बाबत छह अप्रैल 2022 को एचईआरसी द्वारा दिए गए आदेशों की कापी भी मीडिया को सौंपी है। उन्होंने आरोप लगाए कि बिजली खरीद में बड़ा घोटाला किया जा रहा है।

खट्टर सरकार ने मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ की दो प्राइवेट कंपनियों से तीन साल 500 मेगावाट बिजली खरीदने का एग्रीमेंट किया है। अडानी से दो रुपये 94 पैसे में बिजली आनी थी, जो नहीं आ रही। अब पांच रुपये 75 पैसे में खरीदने की वजह से दो रुपये 81 पैसे प्रति यूनिट अधिक दाम देने होंगे। सरकार रोजाना 140 करोड़ 50 लाख रुपये बिजली खरीद पर अतिरिक्त खर्च करेगी। यानी सालाना 51 हजार 282 करोड़ रुपये का बोझ प्रदेश पर पड़ेगा। इसलिए सरकार को अडानी ग्रुप से समझौते के मुताबिक बिजली हासिल करने के गंभीर प्रयास करने चाहिए, ताकि उसे दूसरी कंपनियों से महंगी बिजली न खरीदनी पड़े।

यह तथ्य काबिले गौर है कि 24 नवम्बर 2007 को  अडानी पॉवर ने 25 साल के लिए 1424 मेगावॉट बिजली ₹2.94/Kwh हरियाणा को सप्लाई करने के लिए कंपटिटिव बिड दी। 31 जुलाई, 2008 को अडानी पॉवर की बिड मंजूर कर ली गई। 07 अगस्त, 2008 को हरियाणा की बिजली कंपनियों द्वारा 1424 मेगावॉट बिजली ₹2.94 प्रति यूनिट के रेट से 25 साल के लिए खरीदने हेतु अडानी पॉवर से ‘बिजली खरीद समझौता’ (पीपीए) कर लिया गया, जिसके तहत मुंद्रा से महेंद्रगढ़ तक अडानी पॉवर द्वारा बिजली की लाईन भी बिछाई गई।

वर्ष 2010-11 में इंडोनेशिया में कोयले के रेट को लेकर कानून में बदलाव हुआ। इसके आधार पर अडानी पॉवर ने हरियाणा के साथ हुए पीपीए को सिरे से खारिज करने या बढ़ी हुई कोयले की कीमतें हरियाणा द्वारा दिए जाने की मांग रखी।

11अप्रैल 2017 को सेन्ट्रल इलेक्ट्रिसिटी रेगुलेटरी कमीशन (सीइआरसी) से सुप्रीम कोर्ट तक लंबी कानूनी लड़ाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने अडानी पॉवर द्वारा पीपीए को सिरे से खारिज किए जाने या फिर इंडोनेशिया के कोयले की बढ़ी हुई कीमत हरियाणा द्वारा दिए जाने की मांग को सिरे से खारिज कर दिया ।

एनर्जी वाचडॉग बनाम सीइआरसी एवं अन्य 2017 वाल्यूम 14 सुप्रीम कोर्ट केसेज 80 में सुप्रीम कोर्ट से स्पष्ट निर्णय दिया जिसमें पैरा 44 में कहा गया है कि इंडोनेशियाई कोयले की कीमत में वृद्धि, उनके अनुसार, अप्रत्याशित थी क्योंकि पीए 2006 से 2008 में कभी-कभी दर्ज किए गए थे, और कीमत में वृद्धि केवल 2010 और 2011 में हुई थी। कीमत में इस तरह की वृद्धि भी है उनके नियंत्रण में बिल्कुल नहीं है और इसलिए, क्लॉज 12.7 के साथ पढ़ा गया क्लॉज 12.7 लागू होगा।

निर्णय के पैरा 46 में कहा गया है कि यह खंड यह स्पष्ट करता है कि ईंधन की लागत में परिवर्तन, या समझौते को निष्पादित करने के लिए कठिन हो जाना, पीपीए के तहत ही अप्रत्याशित घटनाओं के रूप में नहीं माना जाता है।

इसी क्रम में पैरा 47 में कहा गया है कि इसलिए, हम इस विचार के हैं कि न तो अनुबंध का मूल आधार हटा दिया गया था और न ही कोई निराशाजनक घटना थी, कोयले की कीमत में वृद्धि को छोड़कर, खंड 12.4 द्वारा बाहर रखा गया था। परिणामस्वरूप, हम हैं इस विचार से कि न तो खंड 12.3 और न ही 12.7, अनुबंध अधिनियम की धारा 32 के संदर्भ में, लागू होंगे ताकि प्रतिवादियों को प्रतिपूरक शुल्क प्रदान किया जा सके हालांकि, डॉ. सिंघवी ने तर्क दिया कि यदि खंड 12 को लागू नहीं किया जाता है, तो धारा 56 के तहत हताशा पर निर्धारित कानून लागू होगा ताकि उत्तरदाताओं को अप्रत्याशित घटना के आधार पर आवश्यक राहत मिल सके। एक बार यह मानने के बाद कि क्लॉज 12.4 लागू होता है, जिसके परिणामस्वरूप ईंधन की कीमत में वृद्धि को संविदात्मक रूप से एक अप्रत्याशित घटना के रूप में नहीं माना जा सकता है, इस अनुरोध की सराहना करना मुश्किल है कि वैकल्पिक धारा 56 में लागू होगा।

साल 2021 से ही इंडोनेशिया के कोयले की बढ़ी हुई कीमतों को कारण बताकर अडानी पॉवर ने हरियाणा की बिजली कंपनियों को बिजली सप्लाई रोक रखी है। अडानी पॉवर को पीपीए के मुताबिक बिजली सप्लाई करने के लिए बाध्य करने की बजाय खट्टर सरकार ने रहस्यमयी चुप्पी साध रखी है। उल्टा खट्टर सरकार हरियाणा के खजाने पर सैकड़ों करोड़ रुपये का बोझ डालकर ₹5 से ₹8 प्रति यूनिट तक की शॉर्ट टर्म बिजली की खरीद कर रहे हैं।

गौरतलब है कि खट्टर सरकार यह महंगी बिजली अडानी पॉवर की ‘रिस्क एवं कॉस्ट’ पर नहीं कर रही। यहां तक कि एचइआरसी ने भी खट्टर सरकार द्वारा महंगी बिजली की खरीद अडानी पॉवर की ‘‘रिस्क एंड कॉस्ट’’ पर न करने पर सवाल उठाया है।

हरियाणा सरकार ने अब 15 अप्रैल, 2022 से 14 अप्रैल, 2025 – 3 साल के लिए 500 मेगावॉट बिजली एमबी पॉवर, मध्यप्रदेश से ₹5.70 प्रति यूनिट की दर से व आरकेएम पॉवर, छत्तीसगढ़ से ₹5.75 प्रति यूनिट की दर से खरीदने का निर्णय किया है।

दरअसल अडानी पॉवर के पीपीए में जो बिजली हरियाणा को ₹2.94 प्रति यूनिट मिलनी थी, वह उपरोक्त दोनों पीपीए में ₹5.75 प्रति यूनिट की दर से मिलेगी। इसका मतलब हरियाणा को ₹2.81 प्रति यूनिट कीमत अधिक देनी होगी। केवल 500 मेगावॉट बिजली खरीद पर, अतिरिक्त देय राशि ₹140.50 करोड़ प्रति दिन या ₹51,282 करोड़ सालाना होगी। ज्ञात रहे कि इसके अलावा भी हरियाणा शॉर्ट टर्म पॉवर के नाम पर और अधिक महंगी बिजली खरीद रहा है, क्योंकि अडानी पॉवर की बिजली उपलब्ध नहीं।

अभी 22 अप्रैल, 2022 को ही मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने गुरुग्राम में कहा कि वह प्राइवेट बिजली उत्पादक कंपनियों को अनुरोध करेंगे कि वे रीज़नेबल रेट पर बिजली दें। अगर अडानी पॉवर को कोयले की बढ़ी हुई कीमतें दी गईं, तो सरकारी खजाने पर सालाना 2200 करोड़ रु. का अतिरिक्त बोझ पड़ेगा। कुछ इसी तरह की बात देश के बिजली मंत्री ने 19 अप्रैल, 2022 की बैठक में कही है।

सवाल है कि वर्ष  2021 से लगातार 1424 मेगावॉट बिजली सप्लाई न करने पर भाजपा-जजपा सरकार द्वारा अडानी पॉवर के खिलाफ क्या कार्रवाई की गई। मुख्यमंत्री व सरकार भविष्य में यह 1424 मेगावॉट बिजली सप्लाई सुनिश्चित करने के लिए क्या कार्रवाई करेंगे?खट्टर सरकार महंगी बिजली की खरीद अडानी पॉवर के ‘रिस्क व कॉस्ट’ पर क्यों नहीं कर रही?सवाल यह भी है कि 500 मेगावॉट महंगी बिजली ₹5.75 प्रति यूनिट खरीदने से सरकार के खजाने पर पड़ने वाले सालाना ₹51,282 करोड़ के बोझ की रिकवरी खट्टर सरकार कब तक और कैसे करेगी?

मुख्यमंत्री व केंद्रीय बिजली मंत्री अडानी पॉवर को पीपीए में निर्धारित ₹2.94 प्रति यूनिट के रेट के अलावा अतिरिक्त रेट देने की चर्चा बार-बार क्यों कर रहे हैं? क्या यह सही नहीं कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा कोयले की बढ़ी हुई कीमतों का मुआवज़ा हरियाणा सरकार द्वारा दिए जाने के बारे में अडानी पॉवर की दलील को पहले ही रद्द कर दिया गया है? क्या अडानी पॉवर को कोयले की बढ़ी कीमतों के भुगतान के कारण हरियाणा सरकार को 2200 करोड़ का अतिरिक्त चूना नहीं लगेगा? इसके लिए कौन जिम्मेवार होगा?

(वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।)

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