अडानी के बाद मुंबई के रियल एस्टेट पर अंबानी का कब्जा, जबकि टैक्स पेयर्स के पैसे से इन्फ्रास्ट्रक्चर निर्माण 

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जी हां, पूरे घटनाक्रम की बारीकी से पड़ताल करने पर ऐसा ही जान पड़ता है कि जिस विकास के नाम पर भारतीय मध्य वर्ग की आंखों के सामने गाजर रखा जाता है, उसका वास्तविक लाभ देश के दो बड़े कॉर्पोरेट के नाम मोदी सरकार ने पहले से ही बैनामा कर रखा था।

महाराष्ट्र विधान सभा चुनाव तक महाविकास अघाड़ी पक्ष की ओर से धारावी स्लम बस्ती के रिडेवलपमेंट प्लान का सारा दारोमदार अडानी समूह के नाम किये जाने का पुरजोर विरोध देखने को मिल रहा था, आज उसके पुरोधा और शिवसेना के मुखिया उद्धव ठाकरे को महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री, देवेंद्र फडणवीस के साथ पींगे बढ़ाते देखा जा सकता है।

बीजेपी की धमाकेदार जीत के साथ ही एशिया की सबसे बड़ी स्लम बस्ती, धारावी के लोगों का संघर्ष और दावेदारी भी तिरोहित हो चुकी है। एमवीए के दूसरे पक्ष शरद पवार तो पहले से अडानी के हितपोषक रहे हैं, नतीजतन मुंबई और महाराष्ट्र की आम जनता और किसानों का पक्ष अकेले कांग्रेस के कंधों पर आ चुका है।

महाराष्ट्र की जीत का असर राजनीतिक गलियारे पर इतना भारी पड़ा है कि तीन दिन से एक बिग ब्रेकिंग न्यूज़ नवी मुंबई से आ रही है, लेकिन कोई चूं तक करने की हिम्मत नहीं कर रहा है। हां, अडानी समूह के न्यूज़ चैनल एनडीटीवी ने अवश्य इस बारे में विस्तार से चर्चा की है। 

खबर यह है कि नवी मुंबई में 5,286 एकड़ की सबसे बड़ी औद्योगिक भूमि पर रिलायंस समूह का कब्जा हो चुका है। इसके लिए रिलायंस समूह को मात्र 2,200 करोड़ रुपये चुकता करने पड़े, जबकि पहले से ही इतने बड़े भूभाग की कीमत 1 लाख करोड़ रुपये आंकी जा रही थी। 

तकरीबन 98% डिस्काउंट पर रियल एस्टेट को रिलायंस ग्रुप के द्वारा हासिल किया जा चुका है। सबसे बड़ी बात, नवी मुंबई इंटरनेशनल एअरपोर्ट और अटल सेतु के बिल्कुल पास की यह भूमि निकट भविष्य में एक ऐसी मेगासिटी में तब्दील होने की संभावना रखती है, जिस पर मुकेश अंबानी चीन के शेनजेन स्पेशल इकॉनोमिक ज़ोन की तर्ज पर वर्ल्ड क्लास सिटी बनाने का सपना पिछले दो दशक से देख रहे थे।

इस संबंध में पुरानी रिपोर्टों को पढ़ने पर पता चलता है कि असल में यह सपना मुकेश अंबानी के पिता धीरू भाई अंबानी का था, जिसे अब अमली जामा पहनाने का वक्त आ चुका है। 2021 की एक रिपोर्ट के मुताबिक, नवी मुंबई में वैश्विक स्तर पर इकॉनोमिक सेंटर बनाने के लिए रिलायंस इंडस्ट्रीज ने महाराष्ट्र सरकार के साथ आधिकारिक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किया था।

इसमें वैश्विक गठबंधन के रूप में दुनिया के शीर्ष एकीकृत डिजिटल एवं सर्विसेज और औद्योगिक क्षेत्रों को शामिल किये जाने की बात कही गई थी।

वहीं रायटर्स के मुताबिक, वैश्विक स्तर पर वेयरहाउसिंग की बढ़ती जरूरत के मद्देनजर रिलायंस समूह मुंबई में इसका इस्तेमाल बड़े पैमाने पर कर सकता है। भारत सरकार पहले ही अटल सेतु पर 17,840 करोड़ खर्च कर देश का सबसे मूल्यवान इंफ्रास्ट्रक्चर खड़ा कर चुकी है। जब लोकसभा चुनाव से पहले इसका उद्घाटन किया जा रहा था, तब आम लोगों को इसका महत्व समझ नहीं आ रहा था, लेकिन अब जल्द ही समझ आने लगेगा। 

इसी तरह 2021 में 16,700 करोड़ रुपये की लागत से बनने वाले नवी मुंबई इंटरनेशनल एअरपोर्ट के उद्घाटन का समय भी नजदीक है। यह एअरपोर्ट अडानी समूह का पहला ग्रीनफील्ड प्रोजेक्ट होने जा रहा है।

इस प्रकार, केंद्र की मोदी सरकार ने थाली में सजाकर विश्व स्तरीय इंफ्रास्ट्रक्चर खड़ा कर दिया है, जिसके सहारे रिलायंस समूह के लिए लंबी छलांग लगाना बेहद आसान हो चुका है। इस महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट को देखते हुए लगता है कि निकट भविष्य में यह देश की सबसे वैल्युएबल प्रॉपर्टी में तब्दील हो जाए, तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए।

लेकिन बात सिर्फ यहीं तक सीमित नहीं है। भारत में रिलायंस रिटेल को मजबूती से खड़ा करने के लिए भी एक महत्वपूर्ण करार हुआ है। चीन की एप्प बेस्ड रिटेल जायंट (shein) शेन, जिसे जून 2020 में लगभग 200 अन्य चीनी कंपनियों की तरह भारत में प्रतिबंधित कर दिया गया था, की रिलायंस रिटेल के तहत भारत में एंट्री की अनुमति मिल गई है। 

Shein को भारतीय रिटेल बाजार में लाने की पहल के पीछे ईशा अंबानी का हाथ बताया जा रहा है, जो रिलायंस रिटेल की प्रबंध निदेशक और मुकेश अंबानी की बेटी हैं, जिनका विवाह पीरामल परिवार में हुआ है। असल में रिलायंस रिटेल पिछले कुछ समय से टाटा समूह के रिटेल ब्रांड जूडियो और फ्लिप्कार्ट से प्रतिस्पर्धा में पिछड़ता जा रहा था।

बता दें कि जुडियो अपने सस्ते दाम और स्टाइलिश कपड़ों के लिए जनरेशन Z के बीच बेहद लोकप्रिय होता जा रहा है। इस मुकाबले में खुद को बनाये रखने के लिए पहले रिलायंस रिटेल ने अगस्त 2023 में यूस्टा को लॉन्च किया और पहले साल में ही इसके 50 स्टोर खुल गए हैं। इन स्टोर्स में ज्‍यादातर प्रोडक्ट 499 रुपये से भी कम के हैं। 

लेकिन रिलायंस रिटेल लगातार कमजोर डिमांड से जूझ रही थी। अंबानी समूह में Shein को अपने समूह के तहत लाने की बात पिछले एक वर्ष से चल रही थी, लेकिन इसमें सबसे बड़ी अड़चन 2020 से भारत-चीन के बीच संबंधों में कड़वाहट आड़े आ रही थी।

हाल के दिनों में भारत-चीन संबंधों में फिर से माधुर्य आखिर किस वजह से घुला, यह अभी शोध का विषय है। लेकिन भारतीय रिटेल बाजार में Shein के साथ रिलायंस रिटेल का प्रवेश निश्चित रूप से उसे बाकी प्रतिद्वंदियों से मीलों आगे ले जाने की क्षमता रखता है।

इसकी मिसाल, अमेरिकी, मेक्सिकन और यूरोपीय बाजार में देखी जा सकती है। मई 2022 में ही Shein ने ज़ारा और H&M जैसे वैश्विक ब्रांड्स को पीछे छोड़ दुनिया की सबसे सफल रिटेल फैशन ब्रांड के रूप में प्रतिष्ठापित कर लिया था।

अक्टूबर 2008 में चीनी उद्यमी क्रिस जू द्वारा ZZKKO के रूप में चीन के नानजिंग प्रान्त में स्थापित, Shein 2022 तक दुनिया की सबसे बड़ी फैशन रिटेलर ब्रांड बन चुकी थी। पश्चिमी देशों से चीनी उत्पाद पर लगाये जा रहे प्रतिबंधों के मद्देनजर वर्तमान में कंपनी का मुख्यालय वर्तमान में सिंगापुर में है।

हालांकि, कंपनी अभी भी बड़ी मात्रा में गुआंगज़ौ के थोक वस्त्र बाजार से उत्पादों की सोर्सिंग करती है। हाल के वर्षों में कंपनी ने मेक्सिको में सैकड़ों फैक्ट्री लगाई हैं।

जैसा कि दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए प्रचार अभियान में देश देख रहा है कि देश में बढ़ती गरीबी और ग्रामीण क्षेत्रों से पलायन कर महानगरों में झुग्गी-झोपड़ियों में आसरा ढूंढने वाले करोड़ों लोगों के सामने शहर से दूर 1,600 मकान दिखाकर बहुसंख्यक जनता को भविष्य के दिवास्वप्न दिखाए जा रहे हैं, लेकिन वहीं दूसरी तरफ धारावी और नवी मुंबई की प्राइम प्रॉपर्टी को कौड़ियों के हाथ देश के सबसे अमीर परिवारों को बेच भारत का शासक वर्ग बड़ी बेहयाई से आंखों में धूल झोंकने में कामयाब है। 

इस लूट पर लगभग सभी राजनीतिक दलों की चुप्पी बताती है कि हमारा चुनावी लोकतंत्र आज किस कदर खोखला और शक्तिहीन हो चुका है। टाटा, वालमार्ट, अमेज़न और रिलायंस समूह के बीच भारतीय वस्त्र उद्योग का चीरहरण मोदी के मेक इन इंडिया की हकीकत को बयां कर रहा है।

हजारों करोड़ की प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव का बूस्टर डोज देकर जिन विदेशी कंपनियों को निवेश का चारा दिया जाता है, उन्हीं के आंकड़ों को दिखाकर ‘मेक इन इंडिया’ का ढोल इतने जोरशोर से बजाया जा रहा है, उसकी पोल धीरे-धीरे आम भारतीय के सामने बेपर्दा होती जा रही है। 

बड़ा सवाल यह है कि क्या नवी मुंबई के इस प्राइम लैंड की लूट पर जय महाराष्ट्र की उद्घोषणा करने वाली दो मराठी पार्टियां शिवसेना (उद्धव) और एनसीपी (शरद पवार) का मुंह खुलेगा भी या नहीं? 

(रविंद्र पटवाल जनचौक संपादकीय टीम के सदस्य हैं)

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