Friday, April 19, 2024

चीन और नेपाल के बाद अब भूटान ने भी तिरछी की निगाहें

भूटान सरकार के एक फैसले से उससे सटे असम के हजारों किसानों की रोजी-रोटी खतरे में पड़ गई है। दरअसल असम के बक्सा जिले के किसान सीमा पार बहने वाली कालानदी से नहरों के जरिए सिंचाई के लिए पानी लाकर अपने धान के खेतों की सिंचाई औऱ बुवाई करते थे। इसके लिए स्थानीय लोग हर साल धान के सीजन से पहले सीमा पार जाकर नहर की मरम्मत और साफ-सफाई करते थे ताकि पानी के बहाव में कोई बाधा नहीं पहुंचे। लेकिन इस बार भूटान सरकार ने पहले तो कोरोना के कारण जारी लॉकडाउन का हवाला देकर भारतीय किसानों के सीमा पार करने पर पाबंदी लगा दी और अब इस सप्ताह अचानक नहर के पानी भी बंद कर दिया। नतीजतन छह हजार से ज्यादा किसानों की आजीविका खतरे में पड़ गई है। अब फसलों की रोपाई करने की बजाय यह लोग सड़कों पर उतर कर विरोध-प्रदर्शन कर रहे हैं।

इन किसानों ने राज्य सरकार से केंद्र के जरिए भूटान सरकार के समक्ष इस मुद्दे को उठाने की मांग करते हुए चेताया है कि अगर उनकी मांग नहीं मानी गई तो इस आंदोलन को और तेज किया जाएगा।

भूटान से जुड़ा इलाका।

भूटान की कालानदी नदी को असम के सीमावर्ती बक्सा जिले के किसानों की जीवनरेखा कहा जाता है। उस नदी से निकलने वाली कृत्रिम नहर से ही जिले के 26 गावों के किसान फसलों की सिंचाई करते रहे हैं। सिंचाई के लिए बनाई गई इस नहर का स्थानीय भाषा में डोंग कहा जाता है। वर्ष 1953 से ही स्थानीय किसान इस नहर से आने वाले पानी से ही खेतों की सिंचाई करते रहे हैं। लेकिन भारत सरकार के दूसरे पड़ोसियों के साथ उलझे रहने के मौके का फायदा उठाते हुए भूटान सरकार ने चुपके से इस नहर का बहाव रोक दिया है। भूटान के इस फैसले के बाद इलाके के छह हजार से ज्यादा किसान नाराज हैं। उनका कहना है कि इससे खेती में भारी दिक्कत का सामना करना होगा।

कालीपुर-बोगाजुली-कालानदी आंचलिक डोंग बांध समिति के बैनर तले प्रदर्शन में शामिल एक किसान बी नार्जरी कहते हैं, “हमने पहले की तरह इस साल भी अपने धान के खेतों में बीजारोपण की प्रक्रिया शुरू की थी। लेकिन अचानक पता चला कि भूटान ने नहर के जरिए आने वाले पानी को रोक दिया है। इससे हमारे लिए भारी मुसीबत पैदा हो जाएगी।”

भूटान की राजधानी थिम्पू।

समिति का आरोप है कि भूटान सरकार ने इस फैसले के पीछे निराधार दलीलें दी हैं। कोरोना का भला नहर के पानी से क्या मतलब है? समिति के सदस्यों का कहना है कि वह लोग भूटान में छोटा-सा बांध बनाकर अपने धान के खेतों में पानी लाए थे। हर साल स्थानीय लोग वहां जाकर बांध की मरम्मत और नहर की साफ-सफाई का काम करते रहे हैं। लेकिन लॉकडाउन का हवाला देते हुए अब भूटान सरकार ने स्थानीय लोगों के सीमा पार जाने पर पाबंदी लगा दी है। इससे किसानों को धान की खेती के लिए पानी के गंभीर संकट का सामना करना पड़ रहा है। नार्जरी कहते हैं कि सरकार को इस समस्या का शीघ्र समाधान करना चाहिए। अगर सरकार हमारी मांग पूरी नहीं करती हैं तो हम अपना आंदोलन तेज करेंगे।

(कोलकाता से प्रभाकर मणि तिवारी की रिपोर्ट। शुक्रवार से साभार।)

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