लखनऊ। लखनऊ हिंसा मामले में तहसीलदार सदर लखनऊ द्वारा जारी की गई वसूली नोटिस पर कल हुई सुनवाई में इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने सरकार से जवाब तलब किया है। लखनऊ खंडपीठ के न्यायमूर्ति रंजन रे ने सरकार से पूछा है कि जब घटना हुई थी तो वसूली का कोई कानून मौजूद था। हाईकोर्ट ने कहा कि किस कानून के तहत यह नोटिस जारी की गई है।
इस बारे में न्यायालय को सरकार संतुष्ट करे। नोटिस में कहा गया है कि वसूली नोटिस पर याचिकाकर्ता को सुनवाई का अवसर दिया जाए और कानून के अनुरूप ही कार्य किया जाए। न्यायमूर्ति ने अगली सुनवाई की तिथि 14 जुलाई निर्धारित की है।
याचिकाकर्ता ऑल इंडिया पीपुल्स फ्रंट के राष्ट्रीय प्रवक्ता व पूर्व आईजी एसआर दारापुरी ने प्रेस को जारी अपने बयान में कहा कि न्यायालय का यह आदेश स्वागत योग्य है।
उन्होंने बताया की हाईकोर्ट में दाखिल याचिका में कहा गया है कि जिस नियम 143(3) के तहत यह वसूली नोटिस दी गई है वह उत्तर प्रदेश राजस्व नियमावली 2016 के तहत कोई नियम ही नहीं है। याचिका के साथ एडीएम पूर्वी लखनऊ के वसूली आदेश पर दाखिल याचिका में हाईकोर्ट के आदेश को भी संलग्न कर कहा गया था कि वसूली नोटिस जिस आदेश के तहत दी गई है वह आदेश अपने आप में विधि विरूद्ध है।
उन्होंने कहा कि जिस प्रपत्र 36 में यह नोटिस दी गई है उसमें स्पष्ट तौर पर 15 दिन का समय तय किया गया है जिसे मनमर्जीपूर्ण ढंग व विधि के विरुद्ध जाकर तहसीलदार सदर ने सात दिन कर दिया है। इसलिए तहसीलदार सदर की नोटिस उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता व नियमावली का पूर्णतया उल्लंघन है जिसे निरस्त किया जाना चाहिए।
उन्होंने कहा कि इस आदेश के बाद सरकार को सद्बुद्धी आनी चाहिए और राजनीतिक बदले की भावना से की जा रही उत्पीड़नात्मक कार्यवाही पर तत्काल प्रभाव से रोक लगानी चाहिए और न्याय व लोकतंत्र की रक्षा के लिए तत्काल इस नोटिस को रद्द करना चाहिए। साथ ही जिन अधिकारियों ने इस नोटिस के आधार पर लोगों को जेल भेजा, उत्पीड़न किया, उनकी कुर्की की है उन सबको दंडित करने की कार्यवाही करनी चाहिए।
(प्रेस विज्ञप्ति पर आधारित।)