हवाई जहाज वालों को छूट दर छूट, हवाई चप्पल वालों से भेदभाव!

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सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाईकोर्ट के उस फैसले को बरकरार रखा है जिसमें हवाई यात्रा के दौरान बीच वाली सीट को खाली रखना जरूरी है। मगर, अभी जिन उड़ानों में सीटें बुक हो चुकी हैं उन पर यह आदेश लागू नहीं होगा। यह ध्यान दिलाना जरूरी है कि जब बॉम्बे हाईकोर्ट ने फैसला दिया था तब कोरोना का खतरा उस फैसले में हावी था। उसमें केंद्र सरकार की 23 मार्च की गाइडलाइंस भी प्रभावी दिखी थी जिसमें हर उड़ान में बीच वाली सीट खाली रखने की बात कही गयी थी। मगर, ताजा फैसले में कोरोना का खतरा नहीं दिख रहा है। हालांकि केंद्र सरकार ने 23 मार्च की गाइडलाइन को बदलते हुए 22 मई को नयी गाइड लाइन दे दी थी कि बीच वाली सीट के टिकट भी बुक किए जा सकते हैं। सवाल ये है कि टिकट बुक हो जाने के कारण क्या कोरोना अपनी प्रवृत्ति को स्थगित कर लेगा? क्या कोरोना 6 जून तक बीच वाली टिकट के खाली होने तक इंतजार करेगा?  

कोरोना से लड़ाई के इस दौर में ऐसे सवाल मन में इसलिए आते हैं क्योंकि यह लड़ाई इंसान बनाम वायरस है। सरकार, अदालतें, संस्थाएं, आम लोग सभी किसी न किसी रूप में कोरोना से संघर्ष में योगदान कर रहे हैं।  कोरोना से लड़ाई में कोरोना वॉरियर्स के अलावा वे तमाम लोग शामिल हैं जो अपने-अपने घरों में बंद हैं, दो गज दूरी का पालन कर रहे हैं। वे लोग भी हैं जिनके कारोबार तबाह हो गये, जिनकी नौकरियां छिन गयीं। और, निश्चित रूप से वे लोग भी जो कोरोना से संक्रमित हैं, जिनके परिजनों की जान इस बीमारी ने ली है। केंद्र और राज्य की सरकारें इस लड़ाई का नेतृत्व कर रही हैं। फिर भी ऐसा क्यों है कि कोरोना से लड़ाई में हम कमजोर पड़ रहे हैं। दुनिया के स्तर पर कोरोना से पीड़ित देशों के बीच हम टॉप टेन में आ चुके हैं। एक्टिव केस के मामले में पांचवें नंबर पर पहुंच चुके हैं। वे कौन लोग हैं जो कोरोना की इस लड़ाई को कमजोर कर रहे हैं?

क्या गुनहगार हैं भूखे पेट पैदल चलने वाले?

भूखे पेट पैदल चलने को मजबूर हो चुके लोगों को क्या कोरोना की लड़ाई को कमजोर करने का गुनहगार ठहरा दिया जाए? क्या इसलिए कि वे सोशल डिस्टेंसिंग नहीं मान रहे हैं? स्पेशल ट्रेनों में जाने के लिए टिकट देते समय, सीटों पर बैठाते समय और ट्रेनों से उतारते समय टूटते सोशल डिस्टेंसिंग के लिए भी क्या यही गरीब जिम्मेदार हैं? श्रमिक स्पेशल की 72 सीटों वाली बॉगी में कोई सीट खाली नहीं होती। हवाई जहाज की तरह सफर के दौरान भोजन भी इन्हें नहीं दिया जाता। इन्हें वो सहूलियतें क्यों नहीं मिलीं जो हवाई जहाज से अपने-अपने घरों को निकल रहे यात्रियों को मिल रही हैं? पैदल, बस या ट्रेन से चलने वाले लोग हों या हवाई जहाज से- दोनों अपने घर ही तो लौट रहे हैं! इनके साथ अलग-अलग व्यवहार क्यों है? 

कोरोना से लड़ाई के लिए सरकारी नियम गरीबों के लिए इतने कठोर हैं कि उन्हें महसूस होता है कि एक दूसरा संघर्ष भी उन पर थोप दिया गया है। वहीं, दौलतमंद लोगों के लिए सरकार ने इतनी रियायतें कर दी हैं कि कोरोना से लड़ाई उनके लिए आसान हो जाए। सरकार के इस रवैये ने लोकतंत्र और लोकतांत्रिक सरकार के मूल स्वभाव पर बहस छेड़ दी है।

हरियाणा से पैदल चलकर जब गरीब सपरिवार अपने घर के लिए निकलता है तो उसे बॉर्डर पर रोका जाता है। वह जान जोखिम में डालकर यमुना नदी पार कर यूपी में प्रवेश करता है। अगर किसी तरह सड़क मार्ग से दिल्ली आ भी जाता है तो उसे पुलिस की लाठियां खानी पड़ती है। यूपी ने अपने बॉर्डर सील कर रखे हैं। मजदूरों को पैदल नहीं चलने देने की ‘दरियादिली’ है। मगर, बसों की सुविधा इतनी नहीं रही कि सड़क पर पैदल चलना रुक सके। तमाम मुश्किलों के बाद जब गरीब अपने गृह जिले में पहुंचता है तो उन्हें 14 दिन के क्वारंटाइन में भेज दिया जाता है जो किसी यातना शिविर से कम नहीं होता।

पैदल ही नहीं बस या स्पेशल ट्रेनों से अपने प्रांत पहुंचने वालों के साथ भी बर्ताव ऐसा ही है। ट्रेन में दो बोतल पानी और फ्राइड राइस जैसी चीजों के अलावा कुछ नहीं मिलता। गंतव्य को पहुंचने के बाद कोरोना की टेस्टिंग हो, ऐसी भी सुविधा नहीं है। बुखार देख लिया, यही बड़ी बात है। लक्षण मिलने पर टेस्टिंग की बात सरकार करती है। न लक्षण मिलते हैं, न टेस्टिंग होती है। इनकी टेस्टिंग तो तब होती है जब ये किसी कोविड-19 पॉजिटिव पाए गये मरीज के संपर्क वाली चेन में आते हैं। तब तक इन्हें क्वारंटाइन में भेज दिया जाता है। यह वक्त बेहद कठिन होता है- न शौचालय, न साफ पीने का पानी, भोजन के नाम पर मूढ़ी, चूड़ा (पोहा) जैसी चीजें। जेल से भी कठिन जीवन। होम क्वारंटाइन गरीबों के नसीब में नहीं होता। यह पैसे वालों के लिए होता है। 

हवाई जहाज से जाइए, नहीं डराएगा कोरोना

हवाई जहाज से अगर आप अपने गृह प्रांत को जा रहे हैं तो उन सारी मुसीबतों से बच जाते हैं जिनकी ऊपर चर्चा हुई है। हर प्रांत ने अपने यहां अलग-अलग नियम बनाए हैं। मगर, उनमें समानता कितनी जबरदस्त है उस पर गौर कीजिए। बिहार और चंडीगढ़ की बात हम नहीं करेंगे जहां हवाई जहाज से पहुंचने पर क्वारंटाइन होने की बाध्यता नहीं है। मध्यप्रदेश और तेलंगाना के हवाई अड्डे से आप सीधे घर जा सकते हैं अगर आप में कोरोना के लक्षण नहीं हैं। किसी होम आइसोलेशन या क्वारंटाइन की आवश्यकता नहीं है। राजस्थान में मानो बुजुर्ग होना ही गुनाह है। बुजुर्ग यात्री के साथ हवाई जहाज से उतरने पर यहां उन यात्रियों की तरह व्यवहार होगा, जिनमें कोरोना के लक्षण हैं। उन्हें 14 दिन के इंस्टीच्यूशनल क्वारंटाइन में भेजा जाएगा। 

महाराष्ट्र, पंजाब, हिमाचल, झारखण्ड, छत्तीसगढ़, केरल और तमिलनाडु में हवाई यात्रा से आए लोगों को 14 दिन के लिए होम आइसोलेशन या क्वारंटाइन होना होगा। अगर आप कारोबार के सिलसिले में उत्तर प्रदेश आए हैं तो अन्य यात्रियों की तरह 14 दिन घर में रहने की बाध्यता बिल्कुल नहीं है। ठहरने की डिटेल भर दे दीजिए। 7 दिन तक आराम से रहिए। 

हवाई जहाज से उत्तराखण्ड पहुंचे लोगों को 10 दिन तक होटल में या फिर सरकारी निगरानी में रहना होगा। मगर, स्वास्थ्य अधिकारी अगर चाहेंगे तो आप अपने घर पर रहने की सुविधा पा सकते हैं। जाहिर है स्वास्थ्य अधिकारियों की बल्ले-बल्ले है। हरियाणा में हवाई जहाज से आए यात्रियों के लिए कोई बाध्यकारी नियम नहीं है। हां, हरियाणा सरकार की ऐसे लोगों से अपील है कि वे 14 दिन होम आइसोलेशन में रहें।

जम्मू-कश्मीर की उदारता देखिए।  महज 4 दिन तक इंस्टीच्य़ूशनल क्व़ॉरंटाइन में रहना होगा। फिर आप आजाद हैं। ओडिशा में नियम थोड़ा अलग है। अगर हवाई यात्री 72 घंटे में लौट जाता है तो उस पर कोरोना संक्रमण का कोई एहतियात नहीं है। बाकी लोगों को होम आइसोलेशन में रहना होगा। असम में जिस दिन पहुंचते हैं, उसी दिन अगर वापस हों तो कोई नियम नहीं लागू होगा। बाकी मामलों में 7 दिन का इंस्टीच्य़ूशनल और 7 दिन का होम आइसोलेशन लागू होगा।

तमिलनाडु में 14 दिन तक घर में रहना है। जिनके पास ऐसी सुविधा नहीं है वे इंस्टीच्य़ूशनल क्वारंटाइन में रहेंगे। लगभग यही नियम आंध्र प्रदेश में भी है। कर्नाटक में नियम कुछ अलग हैं। चंद राज्यों जैसे महाराष्ट्र, गुजरात, तमिलनाडु, दिल्ली, राजस्थान और मध्यप्रदेश से आए यात्रियों के लिए 7 दिन तक इंस्टीच्यूशनल क्वारंटीन और 7 दिन का होम आइसोलेशन है। बाकी सारे लोग 14 दिन के होम क्वारंटीन में रहें। गर्भवती महिलाएं, बुजुर्ग, 10 साल के बच्चों और बीमार लोगों को इंस्टीच्यूशनल क्वारंटीन से छूट है। 

गोवा में हवाई यात्रा कर पहुंचे लोगों को 2000 रुपये का टेस्ट कराना होगा। रिजल्ट आने तक होम क्वारंटाइन में रहना होगा। टेस्ट पॉजिटिव है तो अस्पताल जाना पड़ेगा। 2000 रुपये का टेस्ट नहीं करा सके तो 14 दिन के लिए होम क्वारंटाइन में जाना जरूरी होगा। मिजोरम में अभी नियम सबसे ज्यादा सख्त हैं। यहां बगैर गृह विभाग की अनुमति के यात्रियों को प्रवेश की अनुमति नहीं है।

कोरोना से लड़ाई के लिए भी जब दो तरह के नियम होंगे, दो प्रकार के आचरण होंगे तो एक ही प्रकार का दंश देने वाले कोरोना से लड़ाई कैसे मजबूत रह सकती है। मजदूर पैदल चलते हैं तो वे लाचार हैं यह बात समझ में आती है। लेकिन उनके पैदल चलने पर देश की सर्वोच्च अदालत भी कुछ कहने को लेकर बेबस हो जाती है तो यह बात कतई समझ में नहीं आती। हवाई यात्रियों को होम क्वारंटाइन या फिर कुछ भी नहीं और गरीबों के लिए क्वारंटाइन की अनिवार्यता!  हवाई जहाज पर चढ़ने वालों के लिए छूट दर छूट और हवाई चप्पल वालों से भेदभाव!- क्या ऐसे लड़ी जाएगी कोरोना से लड़ाई!

(लेखक प्रेम कुमार वरिष्ठ पत्रकार हैं और आजकल आप इन्हें विभिन्न चैनलों के पैनल में देख सकते हैं।)

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