इलाहाबाद हाई कोर्ट ने हर जिले में पब्लिक ग्रीवांस कमेटी बनाने को कहा

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इलाहाबाद हाई कोर्ट ने जस्टिस वीरेंद्र कुमार श्रीवास्तव के कोरोना संक्रमण के कारण हुई मौत के सम्बंध में उनके इलाज में कथित लापरवाही की  जांच के लिए राज्य सरकार को एक समिति का गठन करने का निर्देश दिया है। इसमें एसजीपीजीआई लखनऊ के एक वरिष्ठ पल्मोनोलॉजिस्ट के साथ एक सचिव स्तर के अधिकारी और अवध बार एसोसिएशन के अध्यक्ष या सीनियर एडवोकेट इसके सदस्य होंगे। लखनऊ पीठ  के सीनियर रजिस्ट्रार दिवंगत जस्टिस वीके श्रीवास्तव के संबंध में दो सप्ताह के भीतर रिपोर्ट पेश करेंगे। यूपी सरकार के कोविड प्रबंधन को लेकर इलाहाबाद हाई कोर्ट ने असंतोष जताया है।

जस्टिस सिद्धार्थ वर्मा और जस्टिस अजीत कुमार की खंडपीठ ने कोविड के बढ़ते संक्रमण को लेकर कायम जनहित याचिका पर सुनवाई की। राज्य सरकार की तरफ से कोविड की रोकथाम को लेकर जो हलफनामा पेश किया गया उससे खंडपीठ संतुष्ट नहीं दिखी। खंडपीठ ने कहा कि सेक्रेटरी होम की तरफ से दाखिल हलफनामे में पर्याप्त जानकारी नहीं है। खंडपीठ ने कहा कि कोविड मरीजों को लेकर हेल्थ बुलेटिन भी जारी नहीं किया जा रहा है, जिसके बाद खंडपीठ ने हर जिले में तीन सदस्यों की पेंडमिक पब्लिक ग्रीवांस कमेटी के गठन का निर्देश दिया। साथ ही जिला जज को चीफ ज्यूडीशियल मजिस्ट्रेट या ज्यूडीशियल ऑफिसर रैंक के अधिकारी को नामित करने का आदेश दिया। खंडपीठ ने कहा कि आदेश के 48 घंटे के भीतर चीफ सेक्रेट्री होम को कमेटी गठित करनी होगी। पब्लिक ग्रीवांस कमेटी कोविड के बढ़ते संक्रमण पर नजर रखेगी। अब इस मामले की सुनवाई 17 मई को 11 बजे वीडियो कॉन्फ़्रेंसिंग के माध्यम से होगी।

खंडपीठ ने मंगलवार को कहा कि यूपी पंचायत चुनाव के दौरान ड्यूटी करते समय कोरोना के कारण मारे गए कर्मचारियों को कम से कम एक करोड़ रुपये मुआवजा मिलना चाहिए, क्योंकि उनके लिए अपने कर्तव्यों का पालन करना अनिवार्य था। इसलिए राज्य चुनाव आयोग और सरकार मुआवजे की राशि पर फिर से विचार करे। खंडपीठ ने कहा कि यह ऐसा मामला नहीं है कि किसी ने चुनाव के दौरान अपनी सेवाएं देने के लिए स्वेच्छा से काम किया। चुनाव के दौरान कर्तव्यों को निभाने के लिए नियुक्त किए गए लोगों को अनिवार्य रूप से काम कराया गया, जबकि वे लोगों ने इसके प्रति अनिच्छा दिखाई थी।

खंडपीठ ने कहा कि राज्य सरकार के साथ-साथ राज्य चुनाव आयोग को महामारी के खतरे के बारे में अच्छी तरह से पता है और फिर भी शिक्षक, जांचकर्ता और शिक्षा मित्र को जोखिम उठाने के लिए मजबूर किया गया। उच्च न्यायालय ने पहले कहा था कि ऐसा प्रतीत होता है कि न तो पुलिस और न ही चुनाव आयोग ने चुनाव ड्यूटी पर लोगों को इस घातक वायरस से संक्रमित होने से बचाने के लिए कुछ किया है। खंडपीठ ने कहा कि हमें उम्मीद है कि राज्य चुनाव आयोग और सरकार मुआवजे की राशि पर फिर से विचार करेंगे और अगली तारीख तय की जाएगी। यूपी सरकार ने इससे पहले हाई कोर्ट को बताया था कि वह मारे गए कर्मचारियों को 35 लाख रुपये दे रही है। हाई कोर्ट ने कहा कि यह राशि बहुत कम है। इसे कम से कम एक करोड़ होना चाहिए।

खंडपीठ ने यूपी सरकार को निर्देश दिया कि बहराइच, बाराबंकी, बिजनौर, जौनपुर और श्रावस्ती के शहरी और ग्रामीण दोनों हिस्सों में किए गए कोरोना जांच की संख्या और उस प्रयोगशाला की जांच की जाए, जहां से परीक्षण किया जा रहा है। डेटा 31 मार्च 2021 से आज तक का होना है।

बहराइच, बाराबंकी, बिजनौर, जौनपुर और श्रावस्ती जिलों में शहर और ग्रामीण क्षेत्रों के मामले में खंडपीठ ने शहर की आबादी, बेड के विवरण के साथ लेवल-1 और लेवल-3 अस्पतालों की संख्या, डॉक्टरों की संख्या, लेवल-2, लेवल-3 अस्पताल में एनेस्थेटिस्ट, चिकित्सा और पैरामेडिकल स्टाफ, बीवाईएपी मशीन की संख्या, ग्रामीण आबादी तहसील वार, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों की संख्या, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में बेड की उपलब्धता, जीवन रक्षक उपकरणों की संख्या, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में क्षमता विवरण के साथ, चिकित्सा और अर्ध-चिकित्सा कर्मचारियों की संख्या की जानकारी देने को कहा है।

खंडपीठ ने टीकाकरण पर कहा कि हम आशा करते हैं कि राज्य सरकार 2-3 महीने में अधिकतम संख्या में कम से कम दो तिहाई से अधिक लोगों को टीका लगाने के लिए वैक्सीन खरीदने की कोशिश करेगी। केंद्र सरकार शारीरिक रूप से अक्षम व्यक्तियों, जिन्हें टीकाकरण केंद्रों में नहीं लाया जा सकता है, उनके लिए क्या करेगी। राज्य सरकार यह बताए कि केंद्र सरकार के दिशा-निर्देशों के अभाव में शारीरिक रूप से अक्षम व्यक्तियों को टीका लगाने के लिए क्या तैयारी है। खंडपीठ ने कहा कि हमारी आबादी की एक बड़ी संख्या अभी भी गांवों में रहती है और ऐसे लोग हैं जो केवल 18 और 45 वर्ष की आयु के बीच के मजदूर हैं और वे टीकाकरण के लिए ऑनलाइन पंजीकरण नहीं कर सकते हैं। केंद्र सरकार और राज्य सरकार 18 वर्ष से 45 वर्ष के बीच अशिक्षित मजदूरों और अन्य वो ग्रामीण जो ऑनलाइन पंजीकरण नहीं करवा पा रहे हैं, उनके लिए क्या करेगी यह योजना पेश करें।

खंडपीठ ने यूपी सरकार और अस्पतालों को कोरोना के संदिग्ध मरीजों की मौत संक्रमण से मौत के आंकड़ों में जोड़ने के निर्देश दिए हैं। खंडपीठ ने कहा कि ऐसे मामलों में शवों को बिना प्रोटोकॉल लौटाना भयंकर भूल होगी। अगर मृतक में हृदय रोग या किडनी की समस्या नहीं है तो उसे संक्रमण से मौत ही माना जाए।

सीमित अवधि के लिए अग्रिम जमानत
एक अन्य मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कोरोना संक्रमण से जेलों में अधिक भीड़ होने पर आरोपी की जान को खतरा देखते हुए कहा है कि इस समय आरोपी को सीमित अवधि के लिए अग्रिम जमानत देना उचित है। कोर्ट का कहना है कि प्रदेश में कोरोना के बढ़ते संक्रमण और जेलों में भीड़भाड़ होने से आरोपी के जीवन को जेल में खतरा उत्पन्न हो सकता है। सीमित अवधि के लिए अग्रिम जमानत से जेल में कोरोना संक्रमण फैलने का खतरा कम होगा। यह आदेश जस्टिस सिद्धार्थ ने गाजियाबाद के प्रतीक जैन की अर्जी पर दिया है। याची एक धोखाधड़ी के केस में आरोपी बनाया गया है। कोर्ट ने कहा कि यदि याची गिरफ्तार होते हैं तो उन्हें सीमित अवधि तीन जनवरी 2022 तक के लिए अग्रिम जमानत दी जाए। कोर्ट ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में जेलों में भीड़भाड़ होने से रोकने के लिए निर्देश दिए हैं, ऐसे में इस निर्देश की अनदेखी कर जेलों में भीड़भाड़ बढ़ाने का निर्देश नहीं दिया जा सकता है।

(जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के जानकार हैं। वह इलाहाबाद में रहते हैं।)

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