असम विधानसभा चुनाव में तीन गठबंधन आमने-सामने होंगे। गठबंधनों का स्वरूप स्पष्ट हो जाने के बाद राजनीतिक दलों में सीटों के बंटवारे की बातचीत आरंभ हो गई है। विभिन्न दलों की ओर से अपनी चुनावी ताकत का आकलन करने के लिए मतदाताओं के बीच सर्वेक्षण कराए गए हैं। सर्वेक्षण के आरंभिक आकलनों के अनुसार अभी दोनों मुख्य गठबंधन पचास-पचपन सीटों पर आगे नजर आ रहे हैं। सीटों की संख्या का घटना या बढ़ना चुनाव अभियान के स्वरूप और तीसरे मोर्चे के प्रदर्शन पर निर्भर करेगा।
सबसे बड़ा गठबंधन कांग्रेस का है। उसके साथ बंगाली मुसलमानों में आधार रखने वाली यूडीएफ के अलावा भाकपा, माकपा और भाकपा (माले) के साथ-साथ आंचलिक गण मोर्चा भी है। जाहिर है कि इस गठबंधन में सीटों को लेकर अधिक खींचतान होगी, हालांकि इन सभी पार्टियों के आधार क्षेत्र मोटा-मोटी स्पष्ट हैं।
एआईयूडीएफ की पकड़ ब्रह्मपुत्र घाटी में बांग्लाभाषी मुसलमानों के बीच निचले असम के धूबड़ी, ग्वालपाड़ा, बरपेटा आदि जिलों में है तो माकपा भी ब्रहमपुत्र घाटी के बांग्लाभाषी क्षेत्र खासकर नलबारी और बरपेटा जिलों में मजबूत है। सरभोग चुनाव क्षेत्र में लंबे समय से इसके उम्मीदवार जीतते रहे हैं। भाकपा उपरी असम के शिवसागर, लखीमपुर और धेमाजी जिलों में मजबूत रही है। भाकपा (माले) की पकड़ कार्बी आंग्लाग स्वायत्तशाषी पहाड़ी जिलों में है, जहां वह सभी सीटों पर लंबे समय तक जीतती रही है।
अभी इन पहाड़ी क्षेत्रों से भाजपा के विधायक हैं। आंचलिक गण मोर्चा का कोई क्षेत्र तो नहीं बताया जा सकता पर जिन इलाकों में क्षेत्रीयता की राजनीति प्रभावी होगी, वहां इसके उम्मीदवार बेहतर करेंगे। कांग्रेस पूरे असम के अल्पसंख्यक इलाकों में बेहतर पकड़ रखती है। वैसे चाय बागान मजदूरों के बीच उसकी पकड़ थोड़ी कमजोर हुई है, लेकिन चाय मजदूरों में जो समुदाय ईसाई बन गए हैं उनमें कांग्रेस का कोई मुकाबला नहीं है।
कांग्रेस के नेतृत्व में छह दलों का यह महागठबंधन कॉमन मिनिमम प्रोग्राम तैयार करने की कोशिश में है। आंचलिक गण मोर्चा के संयोजक अजीत भुइयां (सांसद, राज्यसभा) ने कांग्रेस को छोड़कर जो महागठबंधन में शामिल हैं, उन दलों की बैठक बुलाई और संयुक्त कार्यक्रम के बारे में वामदलों से सुझाव मांगे। इसके साथ ही सीटों के बंटवारे की बातचीत भी शुरू हो गई। पहले कांग्रेस के अतिरिक्त पांच दलों के बीच बैठकों का दौर चला। उनके बीच बनी सहमति के आधार पर कांग्रेस के साथ बातचीत की जाएगी।
मौजूदा स्थिति में एआईयूडीएफ (आल इंडिया यूनाइटेड डिमोक्रेटिक फ्रंट) लगभग तीस सीटों पर अपना उम्मीदवार देना चाहती है, पर गठबंधन के हित में लचीलापन अपनाने के लिए तैयार है। पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि हम सीटों के बंटवारे की बातचीत 30 सीटों पर दावेदारी के साथ शुरू करेंगे, पर इन चुनावों में भाजपा गठबंधन को परास्त करने की गरज से महागठबंधन के हित में लचीला रुख अपनाएंगे। पार्टी की कांग्रेस से यह सहमति हो गई है कि उन क्षेत्रों में उसी पार्टी का उम्मीदवार दिया जाएगा, जहां उसका उम्मीदवार पिछले चुनाव में जीता था। वर्तमान विधानसभा में यूडीएफ के 14 विधायक हैं। बातचीत मुख्य रूप से उन क्षेत्रों के लिए होनी है, जहां कांग्रेस या यूडीएफ के विधायक नहीं हैं।
अभी यूडीएफ आंतरिक सर्वे कर रही है, जिससे उन क्षेत्रों को चिन्हित किया जा सके जहां पार्टी जीत सकने की स्थिति में है। कुछ क्षेत्रों में पार्टी उम्मीदवार दूसरे स्थान पर रहे, फिर कुछ ऐसे क्षेत्र हैं जहां पार्टी ने 2006 या 2011 में जीत हासिल की थी। इनके अलावा कुछ सीटें ऐसी भी हैं, जहां उसकी मजबूत उपस्थिति है, पर कभी जीत नहीं सकी है। इस तरह की सभी सीटों की सूची बनाई गई है जिसे कांग्रेस के साथ बैठक में प्रस्तुत किया जाएगा।
भाजपा में भी सब कुछ सामान्य नहीं है। पार्टी के दस-पंद्रह विधायकों को फिर से उम्मीदवारी मिलने की उम्मीद नहीं है। साथ ही पार्टी उन पांच सीटों पर अपना उम्मीदवार देने की कोशिश में है, जिन्हें पिछले चुनाव में उसकी साझीदार पार्टी असम गण परिषद ने जीता था। पर उसके निवर्तमान विधायक के जीतने की उम्मीद नहीं है। सूत्रों के अनुसार पार्टी का आंतरिक सर्वेक्षण इस महीने पूरा हो जाएगा, फिर सीटों की तस्वीर पूरी तरह साफ होगी।
आरंभिक आंकलन के अनुसार इन दस-पंद्रह विधायकों के आगामी चुनावों में जीतने की उम्मीद नहीं दिखती। इसलिए पार्टी उम्मीदवार बदलना चाहती है। पार्टी ने अपने नेताओं से पार्टी टिकट पाने के लिए आवेदन देने से मना किया है और कहा है कि पार्टी स्वयं जीतने वाले उम्मीदवारों का चयन करेगी। इसके लिए कई स्तरीय सर्वेक्षण कराए जा रहे हैं।
भाजपा और उसकी साझीदार अगप के नेताओं के बीच गठबंधन के उम्मीदवारों को लेकर आरंभिक बातचीत चल रही है। अगप के अतिरिक्त यूपीपीएल (यूनाइटेड पिपुल्स पार्टी लिबरल्स) के साथ भी भाजपा का गठबंधन है जो बोड़ो इलाके की पार्टी है। उस क्षेत्र में 12 विधानसभा चुनाव क्षेत्र हैं। उन क्षेत्रों में यूपीपीएल का उम्मीदवार दिया जाना तय सा है। पर भाजपा और अगप के बीच कुछ सीटों की अदला बदली हो सकती है। अगप अध्यक्ष अतुल बोरा ने कहा है कि हमारी पार्टी केवल जीत सकने वाली सीटों से अपना उम्मीदवार देगी, इसके लिए सीटों की अदला बदली के लिए हम प्रस्तुत हैं।
भाजपा ने अपने समर्थकों से सीधा संवाद कायम करने के लिए इस बार चुनाव घोषणापत्र में आम लोगों के विचारों को शामिल करने की घोषणा की है। उसने घोषणापत्र तैयार करने के लिए एक समिति बना दी है, जिसे आम लोगों के विचारों को इकट्ठा करने का जिम्मा दिया गया है। मुख्यमंत्री सर्वानंद सोनोवाल ने कहा है कि पार्टी का प्रयास है कि पार्टी के घोषणापत्र में उन मुद्दों को शामिल किया जाए जो सरकार से लोग चाहते हैं, लेकिन एनआरसी और सीएए की वजह से आमजनों को हुई परेशानियों का जिम्मेदार भाजपा को ही माना जा रहा है, यह तो चुनावों में दिखेगा कि लोगों की इस नाराजगी का भाजपा के चुनावी गणित पर कितना असर होगा।
तीसरे मोर्चा में जातीय परिषद और राइजर दल राष्ट्रीय नागरिकता पंजी(एनआरसी) के प्रक्रिया के दौरान लोगों को हुई कठिनाई और नागरिकता संशोधन कानून से आम जनों के मन में उपजी आशंकाओं को कुरेदते हुए चुनावी फसल काटना चाहते हैं। असम छात्र संघ और दूसरे छात्र युवा संगठन इसी गठबंधन के साथ होंगे। इसे देखते हुए आसानी से कहा जा सकता है कि भाजपा के लिए यह चुनाव आसान नहीं है।
(अमरनाथ वरिष्ठ पत्रकार हैं।)