Friday, April 19, 2024

एटॉर्नी जनरल वेणुगोपाल ने भी कहा- प्रशांत भूषण को नहीं मिलनी चाहिए सजा

नई दिल्ली। आज प्रशांत भूषण की अवमानना मामले में सजा की सुनवाई दिलचस्प मोड़ पर पहुंच गयी। कोर्ट ने सुनवाई को दो-तीन दिन के लिए टाल दिया है। उसके मुताबिक ऐसा प्रशांत भूषण को अपने बयान पर विचार करने के मकसद से किया जा रहा है। हालांकि प्रशांत भूषण ने कहा कि वह कतई उस पर पुनर्विचार नहीं करने जा रहे हैं और इससे कोर्ट का ही समय जाया होगा। बावजूद इसके सुनवाई को टाल दिया गया। लेकिन इस पूरे मामले में सबसे दिलचस्प रहा एटार्नी जनरल वेणुगोपाल का स्टैंड। 

अवलन तो कोर्ट ने अवमानना को लेकर उनसे उनकी राय नहीं मांगा। और जब उनसे पूछा कि क्या प्रशांत को सजा दी जानी चाहिए तो उन्होंने कहा कि नहीं, प्रशांत को सजा नहीं दी जानी चाहिए। उन्होंने बेंच से कहा कि “मैं लॉर्डशिप से उन्हें (प्रशांत) दंडित नहीं करने का निवेदन करता हूं।”

उठने से पूर्व बेंच ने जब एटार्नी जनरल को अपना पक्ष रखने के लिए कहा तो उन्होंने कहा कि उनके पास सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की सूची है जिन्होंने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट में डेमोक्रेसी फेल कर गयी है। इसके साथ ही उन्होंने आगे कहा कि उनके पास रिटायर्ड जजों के बयानों के भी हिस्से हैं जिसमें उन्होंने कहा था कि उच्च न्यायपालिका में भ्रष्टाचार है। 

एटार्नी जनरल ने कहा कि अगर इस कोर्ट के पांच जज इस बात को मानते हैं कि लोकतंत्र नाकाम हो गया है…..इस पर बेंच की अध्यक्षता कर रहे जस्टिस अरुण मिश्रा ने उन्हें बीच में ही रोकते हुए कहा कि ‘हम मेरिट पर सुनवाई नहीं कर रहे हैं श्रीमान एटार्नी’। 

इसके पहले मामले ने उस समय एक और मोड़ ले लिया जब जस्टिस मिश्रा ने कहा कि ट्वीट की जगह प्रशांत का कोर्ट में दिया गया बयान अवमानना के दायरे में आ गया है। और अगर प्रशांत इस बयान को वापस ले लें तो मामले पर फिर से विचार संभव है। इस पर प्रशांत ने कहा कि “मेरा बयान पूरा सोझ-समझ कर दिया गया है। अगर मी लॉर्ड मुझे समय देना चाहते हैं तो मैं इसका स्वागत करता हूं। लेकिन मैं नहीं सोचता कि यह किसी भी रूप में उपयोगी साबित होगा। यह कोर्ट के समय की बर्बादी होगी। ऐसा शायद कुछ नहीं होने जा रहा है कि मैं अपना बयान बदलूंगा।“

इस पर जस्टिस मिश्रा ने कहा कि “लेकिन मैं आपको समय देना चाहता हूं। बाद में जिससे यह शिकायत न हो कि समय नहीं दिया गया।”

इसके बाद बेंच ने आदेश दिया जिसमें कहा गया है कि “सुनवाई टाली जाती है, स्थगन निवेदन का विरोध नहीं किया गया जैसा कि सालीसिटर जनरल को एक दूसरी बेंच में दो बजे सुनवाई में शामिल होना है।”

उसके पहले प्रशांत भूषण के एडवोकेट राजीव धवन और दुष्यंत दवे ने पूरी मजबूती के साथ भूषण का पक्ष रखा। बहस के दौरान बेंच के साथ उनकी कई बार तीखी नोकझोंक भी हुई। धवन ने जब यह कहा कि एफिडेविट के दूसरे हिस्से पर बेंच ने गौर नहीं किया। तो इस पर जस्टिस मिश्रा ने कहा कि क्या आप चाहते हैं कि उस पर सुनवाई और बहस हो? साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि यह बेंच को घेरे में लेने की कोशिश है। दरअसल प्रशांत भूषण की ओर से जमा किए गए एफिडेविट में जजों के भ्रष्टाचार के मुद्दों को उठाया गया है। और इसमें कई पूर्व चीफ जस्टिस से रिटायर्ड जज तक शामिल हैं।

इस बीच, जस्टिस गवई ने प्रशांत भूषण से पूछा कि क्या आप अपने बयान पर फिर से विचार करना चाहेंगे? उसका जवाब देते हुए भूषण ने कहा कि मैं बयान पर फिर से विचार नहीं करूंगा। जहां तक समय देने की बात है तो मैं नहीं समझता इससे कोई उद्देश्य पूरा होने जा रहा है।

एटार्नी जनरल के प्रशांत को सजा न देने की बात पर जस्टिस मिश्रा ने कहा कि “हम आपके प्रस्ताव (उन्हें सजा नहीं देने) पर तब तक विचार नहीं करेंगे जब तक वह अपने बयान पर फिर से नहीं सोचते हैं।“  

जस्टिस मिश्रा ने कहा कि “हमें यह सोचना होगा कि उनका बयान बचाव में दिया गया है या फिर भड़काने के लिए।” साथ ही उन्होंने एटार्नी जनरल से कहा कि कोई भी बयान देने से पहले पूरे पक्ष को सुनने के बाद ही अपना रुख तय करें।

बहस के दौरान धवन ने दोहराया कि सुप्रीम कोर्ट के तीन पूर्व जजों ने भूषण के बयान का समर्थन किया है। इस पर जस्टिस मिश्रा ने धवन से कहा कि “कृपया उस पर हमारी टिप्पणी मत लीजिए। कृपया इन सब चीजों पर बहस मत कीजिए।”

जस्टिस मिश्रा ने कहा कि “जहां तक सजा की जब बात आती है तो हम तभी उदारता बरत सकते हैं जब सामने वाला शख्स माफी मांगे या फिर सही मायने में अपनी गलती को महसूस करे”।

जस्टिस मिश्रा ने कहा कि सच्चाई यह है कि आप बहुत सारी चीजें अच्छी कर रहे हैं इसका यह मतलब नहीं है कि आपकी गलतियों को माफ कर दिया जाएगा।

जस्टिस गवई ने कहा कि बार और बेंच के बीच आपसी सम्मान होना चाहिए। इस पर धवन ने कहा कि संस्था में हमारा विश्वास है। मेरा भी और उसी तरह से भूषण का भी।

बहस के दौरान धवन ने मुलगावकर केस का हवाला दिया जिसमें जस्टिस कृष्ण अय्यर ने सुझाव दिया था कि न्यायपालिका को अपने खिलाफ टिप्पणी को दरकिनार कर देना चाहिए। उन्होंने कहा कि मलगावकर गाइडलाइन कोर्ट की ‘लक्ष्मण रेखा’ का हिस्सा है।  

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