Thursday, March 28, 2024

चिदंबरम को जमानतः सुप्रीम कोर्ट की तल्ख टिप्पणी… सीलबंद कवर दस्तावेज़ के आधार पर ज़मानत देने से इनकार निष्पक्ष सुनवाई के खिलाफ

उच्चतम न्यायालय के जस्टिस आर भानुमति, जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस हृषिकेश रॉय की पीठ  ने आईएनएक्स मीडिया मनी लॉन्ड्रिंग आरोपों के संबंध में प्रवर्तन निदेशालय द्वारा दर्ज मामले में पूर्व केंद्रीय वित्त मंत्री पी चिदंबरम को जमानत दे दी।

इसके साथ ही 106वें दिन उनके जेल से बाहर आने का रास्ता साफ हो गया है, क्योंकि सीबीआई केस में उच्चतम न्यायालय से ही चिदंबरम को पहले ही जमानत मिल चुकी है। पीठ ने दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले की आलोचना करते हुए कहा कि मेरिट पर टिप्पणी नहीं की जानी चाहिए थी, हाईकोर्ट के फैसले को भी रद्द कर दिया है।

उच्चतम न्यायालय ने अपने फैसले में आईएनएक्स मीडिया मामले में जमानत की सुनवाई के दौरान अभियोजन द्वारा प्रस्तुत सील बंद कवर दस्तावेजों पर भरोसा करने वाली अदालतों के काम करने के तरीकों के संबंध में कुछ महत्वपूर्ण तल्ख टिप्पणियां की हैं।

उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि अभियोजन द्वारा प्रस्तुत सील बंद कवर दस्तावेजों के आधार पर निष्कर्षों को इस तरह दर्ज करना जैसे अपराध किया गया है, और जमानत से इनकार करने के लिए ऐसे निष्कर्षों का उपयोग करना, निष्पक्ष सुनवाई की अवधारणा के खिलाफ है।

पीठ ने कहा कि यह निष्पक्ष सुनवाई की अवधारणा के खिलाफ होगा यदि हर मामले में अभियोजन पक्ष सीलबंद कवर में दस्तावेज प्रस्तुत किया जाए और उसी पर निष्कर्ष दर्ज किए जाएं जैसे कि अपराध किया गया और इसे ज़मानत देने या अस्वीकार करने का आधार माना जाए।

उच्चतम न्यायालय ने सुस्पष्ट कर दिया कि जज सील बंद कवर दस्तावेज़ों से निर्णय में तथ्यात्मक निष्कर्षों को दर्ज नहीं कर सकते। हालांकि उच्चतम न्यायालय ने दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा प्रवर्तन निदेशालय द्वारा प्रस्तुत सीलबंद कवर दस्तावेज़ों से निष्कर्ष निकालने को एक अपवाद के रूप में माना। यह जांच के दौरान एकत्र की गई सामग्री/दस्तावेज प्राप्त करने के लिए न्यायालय के लिए खुला होगा और खुद संतुष्ट करने के समान है कि जमानत/अग्रिम जमानत आदि पर विचार करने के उद्देश्य से जांच सही दिशा में आगे बढ़ रही है।

उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि सामग्री में बदलाव करते समय, न्यायाधीश को उनके सामने प्रस्तुत सामग्रियों के आधार पर निष्कर्ष रिकॉर्ड नहीं करना चाहिए। जबकि न्यायाधीश अपने न्यायिक विवेक की संतुष्टि के लिए एक सील बंद कवर में प्रस्तुत सामग्रियों को देखने के लिए सशक्त है, लेकिन न्यायाधीश को सील बंद कवर में प्रस्तुत सामग्रियों के आधार पर निष्कर्ष को रिकॉर्ड नहीं करना चाहिए।

इसलिए, हमारी राय में, सील कवर में सामग्री के आधार पर हाईकोर्ट के न्यायाधीश द्वारा दर्ज किए गए निष्कर्ष उचित नहीं हैं। पीठ ने इस आधार पर दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले को भी रद्द कर दिया है।

चिदंबरम के वकीलों ने दलील दी थी कि दिल्ली उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में ईडी द्वारा दायर जवाबी हलफनामे में दर्ज की गई सामग्री को शामिल किया था। जैसे कि यह लगे कि वे न्यायालय के निष्कर्ष थे। उन्होंने जस्टिस सुरेश कुमार कैत द्वारा लिखित हाईकोर्ट के फैसले के पैरा 57 से 62 के बयानों में स्पष्ट समानता और ईडी द्वारा प्रस्तुत जवाबी हलफनामे के पैराग्राफ 17, 20 और 24 को इंगित किया। 

चिदंबरम के वकीलों की इस दलील का विरोध करते हुए सॉलिसिटर जनरल ने कहा था कि दिल्ली हाईकोर्ट का निष्कर्ष ईडी द्वारा सीलबंद कवर में दिए गए दस्तावेजों पर आधारित था। पीठ ने सीलबंद कवर दस्तावेजों पर अदालत के भरोसा करने की औचित्य पर अपनी व्यवस्था दी है।

पीठ ने कहा कि वह ईडी द्वारा प्रस्तुत सीलबंद कवर दस्तावेजों की जांच करने के लिए इच्छुक नहीं था, लेकिन उन्हें जांच इसलिए करनी पड़ी क्योंकि दिल्ली हाईकोर्ट ने उन दस्तावेज़ों पर भरोसा किया है। पीठ ने कहा कि वर्तमान परिस्थितियों में हम सील बंद कवर दस्तावेज़ खोलने के लिए बहुत अधिक इच्छुक नहीं थे, हालांकि सील बंद कवर में सामग्री उत्तरदाता से प्राप्त हुई थी।

चूंकि उच्च न्यायालय के न्यायाधीश ने सील बंद कवर में दस्तावेजों का उपयोग किया था और वे इससे निश्चित निष्कर्ष पर पहुंचे थे और चूंकि यह आदेश चुनौती के अधीन है, इसलिए हमारे लिए यह भी अनिवार्य हो गया था कि हम सील बंद कवर भी खोलें और सामग्री को देखें ताकि खुद को उस सीमा तक संतुष्ट कर सकें।

पीठ ने दूसरा उदाहरण देते हुए कहा कि इसी तरह की बात पहले भी हुई थी, जब दिल्ली हाईकोर्ट ने आईएनएक्स लेनदेन के संबंध में सीबीआई द्वारा दर्ज मामले में चिदंबरम की जमानत याचिका पर विचार किया। उसमें भी उच्चतम न्यायालय ने उस तरीके को अस्वीकार कर दिया, जिसमें न्यायमूर्ति सुनील गौर ने प्रतिवादी द्वारा दिए गए दस्तावेज़ों की लाइन अपने फैसले में उपयोग की।

उच्चतम न्यायालय ने पांच सितंबर को पारित आदेश में स्पष्ट कहा था कि प्रवर्तन निदेशालय/सीबीआई द्वारा प्रस्तुत दस्तावेज़ में से जज द्वारा नोट निकालना सही नहीं था, जो हमारे विचार में, अग्रिम जमानत के देने/इनकार पर विचार करने के लिए एक सही दृष्टिकोण नहीं है। 

उस मामले में भी उच्चतम न्यायालय  ने सीलबंद कवर को खोलने से मना कर दिया था और दस्तावेजों को इस तर्क से खारिज कर दिया था कि उन पर आधारित टिप्पणियां आरोपी के पूर्व-परीक्षण को रोक सकती हैं। चिदंबरम को आईएनएक्स मीडिया केस के ईडी वाले (मनी लॉन्ड्रिंग) मामले में जमानत मिली है। इससे पहले उन्हें इसी केस के सीबीआई वाले मामले में भी जमानत मिल चुकी है। उच्चतम न्यायालय ने चिदंबरम को कुछ शर्तों के साथ जमानत दी है।

इन शर्तों में कहा गया है कि जमानत मिलने के बाद बिना कोर्ट की इजाजत के विदेश नहीं जा सकते हैं, ईडी वाले केस में जमानत के बाद इस मामले को लेकर किसी भी तरह की बयानबाजी नहीं कर सकते, चिदंबरम इस मामले से जुड़े किसी भी व्यक्ति से संपर्क नहीं कर सकते हैं, किसी भी सुबूत से छेड़छाड़ या फिर किसी गवाह पर दबाव नहीं बना सकते हैं तथा इस मामले को लेकर जमानत के बाद कोई भी मीडिया इंटरव्यू नहीं दे सकते हैं।

पी चिदंबरम को सीबीआई वाले केस में जमानत मिलने के तुरंत बाद ईडी ने उन पर शिकंजा कस लिया था। ईडी ने 16 अक्टूबर को उन्हें गिरफ्तार किया। इसके बाद चिदंबरम ने कई बार जमानत याचिका दायर की, लेकिन उन्हें खारिज कर दिया गया। चिदंबरम ने इससे पहले दिल्ली हाईकोर्ट में जमानत याचिका दायर की थी, लेकिन हाईकोर्ट ने उन्हें जमानत देने से इनकार कर दिया। इसके बाद चिदंबरम ने उच्चतम न्यायालय में जमानत याचिका दायर की और हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी थी।

उच्चतम न्यायालय ने इस मामले में सुनवाई करते हुए फैसला सुरक्षित रख लिया था, जिसके बाद अब चार दिसंबर को फैसला सुनाया गया।

 (जेपी सिंह पत्रकार होने के साथ ही कानूनी मामलों के जानकार भी हैं।)

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

Related Articles