कुछ सालों पहले इस बात की कल्पना करना मुश्किल था कि विश्व पुस्तक मेला में जय श्रीराम का आक्रामक नारा गूंजेगा और हिंदुत्व की विजय पताका फहराई जाएगी। हिंदुत्वादी गुंडे भारत माता की जय का नारा लगाते हुए ईसाइयों के स्टॉल के सामने भीड़ की शक्ल में इकट्ठा होंगे, उन्हें डराएंगे और धमकाएंगे और उन्हें बाइबिल बांटने से रोक देंगे।
बाइबिल बांटने की कोशिश को सनातन धर्म पर हमला और हिंदुओं का धर्म परिवर्तन कराने की कोशिश कहेंगे। सुरक्षा गार्ड उन्हें रोकने की कोई कोशिश नहीं करेंगे। मेले में मौजूद ज्यादातर लोग ठहरे सब कुछ देखते रहेंगे और यह उम्मीद करेंगे कि सुरक्षा गार्ड इन गुंडों को रोकेंगे। कुछ लोगों ने आगे बढ़कर उन्हें रोकने और सवाल पूछने की भी कोशिश की।
लेकिन सुरक्षा गार्ड उन्हें रोकने की कोई कोशिश करते हुए नहीं दिखे, बल्कि उन लोगों को डरा-धमका रहे थे, जो यह सवाल पूछ रहे थे कि आखिर ऐसे कैसे अंदर घुस गए और इस तरह की मनमानी क्यों कर रहे हैं। ये पुस्तक मेले के किसी शेल्फ में रखी किताब का कोई फिक्शन नहीं है, ऐसा वाकई हुआ है। एक मार्च को 2 बजे के करीब।
हालांकि इससे पहले विश्व पुस्तक मेले में जय श्रीराम का यह नारा 25 फरवरी को भी हिंदुत्वादी समूहों की ओर से लगाया गया था, लेकिन उस दिन उनकी आक्रामकता थोड़ी कम थी। उस दिन उन्होंने स्टॉल विशेष को निशाना नहीं बनाया था। लेकिन पुस्तक मेले की आयोजक संस्था नेशनल बुक ट्रस्ट ने इस पर कोई कार्रवाई नहीं की, जबकि लोगों ने इसकी शिकायत की थी।
आयोजक संस्था का कहना है कि उनके पास कोई लिखित शिकायत नहीं आई। नेशनल बुक ट्रस्ट भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय के अधीन है और महज़ कहने के लिए ही स्वायत्त संस्था है। हालांकि लगता है कि यह संस्था भी दूसरी स्वायत्त संस्थाओं की तरह आरएसएस-भाजपा की विचारधारा के सामने समर्पण कर चुकी है। यह चीज तब और साफ हो गई, जब 1 मार्च को हिंदुत्वादी गुंडे जोर-जोर से नारे लगाते रहे।
ईसाई धर्म के मानने वालों को धमकाते रहे। लेकिन उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई। पुलिस भी इस मामले में लीपापोती कर रही है। उसका कहना है कि कुछ लोग आए थे, नारे लगाए और चले गए। पुलिस का यह भी कहना है कि उसे कोई लिखित शिकायत नहीं मिली है, वह किसके खिलाफ कार्रवाई करे। जबकि उपद्रवियों की इस भीड़ की अगुवाई करने वाला साफ-साफ शब्दों में अपना नाम और अपने संगठन का नाम बता रहा था।
ऐसा नहीं है कि विश्व पुस्तक मेले में सिर्फ ईसाई धार्मिक समूहों का स्टॉल लगा है। हिंदू, मुस्लिम और ईसाई तीनों धार्मिक समूहों ने अपना स्टॉल लगाया है। सबसे ज्यादा धार्मिक स्टॉल हिंदुओं के ही दूसरे कई संप्रदायों से जुड़े हैं। सच तो यह है कि हिंदी के हॉल में एक बड़ा हिस्सा धार्मिक स्टॉलों का ही है। हर साल ये धार्मिक स्टॉल बढ़ते जा रहे हैं।
सभी धार्मिक स्टॉलों के लोग अपने-अपने धर्म और संप्रदायों की विशेषता बताते हैं। हर साल हिंदुओं, मुसलमानों और ईसाईयों के धार्मिक स्टॉलों में धार्मिक किताबें मुफ्त बांटी जाती हैं। कभी किसी ने कोई एतराज नहीं किया। विश्व पुस्तक मेले में यह पहली बार हुआ कि हिंदू संगठनों के गुंडे पुस्तक मेले में घुसकर अल्पसंख्यक धार्मिक समुदायों के लोगों को निशाना बना रहे हैं।
विश्व पुस्तक मेले में ईसाई धार्मिक समुदायों को निशाना बनाना देश भर में धार्मिक अल्पसंख्यकों को निशाना बनाने की हिंदूवादी संगठनों की गतिविधियों की एक कड़ी है। आज हिंदुत्व के नाम पर ईसाइयों को निशाना बनाया जा रहा है। कल हिंदू धर्म-संस्कृति और हिंदूवादी राजनीति की आलोचना करने वाली किताबों को भी निशान बनाया जाएगा।
पुस्तक मेले में जो दलित-बहुजन स्टॉल हैं, वहां मौजूद बहुत सारी किताबें हिंदू धर्म की तीखी आलोचना करती हैं। जोतिराव फुले, सावित्रीबाई फुले, रामासामी पेरियार और डॉ.आंबेडकर की अधिकांश किताबें हिंदू धर्म और हिंदुत्व की राजनीति पर तीखा प्रहार करती हैं। वेदों, गीता और रामायण की तीखी आलोचना करती हैं। यही मामला ज्यादातर दलित-बहुजन और आदिवासी लेखकों की रचनाओं में भी दिखाई देती है।
कल ये हिंदुत्ववादी संगठन इन किताबों को रखने और बेचने पर रोक लगाने की बात करेंगे। विश्व पुस्तक मेले में बहुत सारे वामपंथी विचारों की किताबों का भी स्टॉल लगा है, जिसमें धर्म और ईश्वर की खुली आलोचना की गई है। भगत सिंह अपने लेखों में सीधे ईश्वर और धर्म को चुनौती देते हैं। राहुल सांकृत्यायन धर्म, ईश्वर और जाति आदि के विनाश की बात करते हैं। कल इन किताबों को भी ये हिंदुत्वादी संगठन और उनके गुंडे निशाना बनाएंगे।
देशभर में यही प्रक्रिया दोहराई जा रही है। पहले हिंदुत्व के नाम पर ईसाइयों और मुसलमानों को निशाना बनाया जाता है। फिर दलित-बहुजनों-आदिवासियों और वामपंथियों को निशान बनाया जाएगा। उसके बाद हर तार्किक और बौद्धिक किताब को निशाना बनाया जाएगा। क्योंकि हिंदुत्वादी हर तरह के तर्क और वैज्ञानिक नजरिए के घोषित शत्रु हैं।
विश्व पुस्तक मेले में बजरंगियों का हंगामा पुस्तकों के भविष्य के लिए खतरनाक संकेत है।
(सिद्धार्थ की रिपोर्ट।)
Its sad to see such a lunatic act….this is extension of same gimmick which claims secularism is going to be destroyed by any act (which elites can categorize as ‘religious’ by hook or crook) of Hindu community
Biased article