Friday, March 29, 2024

ऑस्ट्रेलियाई विश्वविद्यालयों ने लगाया 5 भारतीय राज्यों के छात्रों के प्रवेश पर बैन

नई दिल्ली। ऑस्ट्रेलिया के पांच विश्वविद्यालयों ने भारत के कुछ राज्यों के छात्रों के प्रवेश पर रोक लगा दिया है। भारतीय छात्र अब ऑस्ट्रेलिया में पढ़ने का सपना पूरा नहीं कर पाएंगे। फर्जी आवेदनों में हो रही बढ़ोत्तरी को देखते हुए ऐसा किया गया है। कुछ भारतीय छात्र सस्ते शिक्षण संस्थानों में एडमिशन लेकर वहां काम करने लगते हैं। जिसे देखते हुए ऑस्ट्रेलियाई विश्वविद्यालयों ने ये कदम उठाया है।

हैरानी की बात तो ये है कि ऑस्ट्रेलिया के विश्वविद्यालयों ने ये फैसला ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री एंथनी अल्बनीज के भारत दौरे के ठीक बाद लिया है। अल्बनीज ‘ऑस्ट्रेलिया के शैक्षिक संबंधों का जश्न मनाने और ऑस्ट्रेलियाई विश्वविद्यालयों और कॉलेजों के साथ एक नए समझौते की घोषणा करने’ के लिए भारत आए थे। ऑस्ट्रेलिया और भारत के बीच योग्यता की पारस्परिक मान्यता, जो किसी भी देश में विश्वविद्यालय यात्रा को आसान बनाएगी, उनकी यात्रा का एक प्रमुख हिस्सा था।

ऑस्ट्रेलियाई अखबारों द एज और सिडनी मॉर्निंग हेराल्ड ने ईमेल की समीक्षा किए जाने के बाद बताया कि, ‘भारतीय छात्रों के आवेदनों पर कड़ी कार्रवाई’ की जा रही है। अखबारों के मुताबिक भारतीय छात्रों के प्रवेश पर रोक लगाने वालों में विक्टोरिया विश्वविद्यालय, एडिथ कोवान विश्वविद्यालय, वोलोंगोंग विश्वविद्यालय, टोरेंस विश्वविद्यालय और दक्षिणी क्रॉस विश्वविद्यालय हैं।

रिपोर्ट के अनुसार, ये बैन भारत के पांच राज्यों से आने वाले आवेदनों पर लगाए गए हैं, जिनमें पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और गुजरात शामिल हैं। एडिथ कोवान विश्वविद्यालय ने फरवरी में ही पंजाब और हरियाणा के आवेदकों पर रोक लगा दिया था। हेराल्ड के मुताबिक विक्टोरिया विश्वविद्यालय ने मार्च में यूपी, राजस्थान और गुजरात सहित पांच भारतीय राज्यों के छात्रों के आवेदनों पर रोक लगा दिया था।

हेराल्ड के अनुसार, विक्टोरिया विश्वविद्यालय के क्षेत्रीय भर्ती प्रबंधक एलेक्स हैनलॉन ने शिक्षा एजेंटों को लिखा कि ऑस्ट्रेलियाई वीजा की आवश्यकताओं को पूरा नहीं करने वाले कई आवेदनों के कारण विश्वविद्यालय अपने जोखिम को कम करने के लिए ये रोक लगा रहे हैं। एक विश्वविद्यालय के प्रवक्ता ने कहा कि रोक में ‘आवेदकों की पढ़ाई में गैप का आकलन करना शामिल है ताकि यह तय किया जा सके कि वे ऑस्ट्रेलिया में अंतरराष्ट्रीय अध्ययन के लायक हैं भी या नहीं।‘

रिपोर्ट में कहा गया है कि दक्षिण एशिया से ऑस्ट्रेलियाई विश्वविद्यालयों में आवेदकों की संख्या में बढ़ोत्तरी हुई है, जो 2019 में भारत से 75,000 छात्रों को प्रवेश देने के पिछले रिकॉर्ड को भी तोड़ सकता है। जब कोरोना महामारी अपने चरम पर थी तब ऑस्ट्रेलिया ने अपनी सीमाओं को बंद कर दिया था जिसके बाद, 2021 में धीरे-धीरे फिर से खोलना शुरू किया है। ऑस्ट्रेलियाई गृह मंत्रालय ने अपने एक बयान में कहा कि, ‘हमने अधूरे आवेदनों और गलत जानकारी और दस्तावेज में बढ़ोत्तरी देखी।‘

सिडनी मॉर्निंग हेराल्ड के अनुसार, विश्वविद्यालयों ने पाया कि कई आवेदक ऑस्ट्रेलियाई वीजा जरूरतों को पूरा नहीं कर रहे थे। इसलिए, विश्वविद्यालयों ने कुछ भारतीय राज्यों के छात्रों के प्रवेश पर विशेष रोक लगाए हैं। रिपोर्ट के अनुसार, भारतीयों के लिए ऑस्ट्रेलिया काम करने और स्थायी रूप से रहने के लिए पसंदीदा जगह बन गया है। इसलिए भी आवेदनों में बढ़ोत्तरी हुई है।

रिपोर्ट के अनुसार, ऑस्ट्रेलिया के गृह मंत्रालय ने ऑस्ट्रेलिया के व्यावसायिक क्षेत्र में अध्ययन करने के लिए भारत के 94% अच्छे से अच्छे आवेदकों को भी खारिज कर दिया। जबकि यूएस, यूके और फ्रांस के आवेदकों के लिए यह आंकड़ा 1% से भी कम था। वहीं  रिकॉर्ड के अनुसार साल 2006 में, भारत के 91% आवेदकों को स्वीकार किया गया।

मार्च में एक विश्वविद्यालय ने भारत, नेपाल, बांग्लादेश, पाकिस्तान, लेबनान, मंगोलिया, नाइजीरिया और दूसरे देशों के छात्र आवेदकों के प्रवेश के लिए एक प्रतियोगिता परीक्षा की शर्त रखी। हेराल्ड की रिपोर्ट में कहा गया है कि स्कॉट मॉरिसन के नेतृत्व वाली पिछली सरकार ने जनवरी 2022 में छात्रों के 20 घंटे की काम की सीमा को हटा दिया था जिसके बाद से दक्षिण एशिया से आवेदनों की बाढ़ आनी शुरू हो गई।

रिपोर्ट में कहा गया है कि अल्बानियाई सरकार 1 जुलाई को इस कार्य सीमा को फिर से लागू करेगी, और इसे सप्ताह में 24 घंटे तक बढ़ा देगी। संघीय शिक्षा विभाग के आंकड़ों के मुताबिक, सिडनी विश्वविद्यालय को 2021 में ट्यूशन देने वाले अंतरराष्ट्रीय छात्रों से 1.4 बिलियन डॉलर की आय हुई, मोनाश विश्वविद्यालय को 917 मिलियन डॉलर और क्वींसलैंड विश्वविद्यालय को 644 मिलियन डॉलर मिले।

सिडनी मॉर्निंग हेराल्ड से बात करते हुए, विक्टोरिया यूनिवर्सिटी के मिशेल इंस्टीट्यूट के निदेशक, पीटर हर्ले ने कहा कि ‘मोनाश, मेलबर्न, सिडनी और न्यू साउथ वेल्स विश्वविद्यालय जैसे कई विश्वविद्यालयों को पहले से ही घरेलू छात्रों की तुलना में अंतरराष्ट्रीय छात्रों से अधिक राजस्व मिलते हैं।‘ उन्होंने कहा कि ‘अंतर्राष्ट्रीय शिक्षा एक अविश्वसनीय रूप से मूल्यवान संसाधन है। यह वास्तव में अहम है कि हम इस पर ठीक तरह से रोक लगायें ताकि इससे सबको विशेष रूप से अंतर्राष्ट्रीय छात्रों को लाभ हो।‘

एक तरफ तो ऑस्ट्रेलिया अंतरराष्ट्रीय छात्रों के प्रवेश पर रोक लगा रहा है दूसरी तरफ बाहर के मेहनतकश छात्रों की उसे जरूरत भी है, जिसे ऑस्ट्रेलिया नजरअंदाज नहीं कर पा रहा है। हर्ले के मुताबिक अंतर्राष्ट्रीय छात्र, देश के उच्च शिक्षा क्षेत्र में छात्र और ऑस्ट्रेलियाई बाजार में कर्मचारी दोनों तरह से काम करते हैं। हर्ले ने कहा कि हमें इस तरह के मैनपावर की जरूरत है।

आंकड़ों के अनुसार, कोई भी ऑस्ट्रेलियाई विश्वविद्यालय अब अंतरराष्ट्रीय छात्रों के बिना कार्य नहीं कर सकता है, क्योंकि वे घरेलू छात्रों की तुलना में तीन गुना ज्यादा ट्यूशन फीस देते हैं। इसके अलावा, कुछ भारतीय राज्यों के छात्रों के नामांकन की सीमा ने शिक्षा के दलालों के बिजनेस, ऑस्ट्रेलियाई विश्वविद्यालयों और व्यावसायिक प्रशिक्षण संस्थानों के लिए काम करने वाले नियोक्ताओं और अनुभवहीन और कमजोर छात्रों के शोषण की ओर भी ध्यान आकर्षित किया है।

(द वायर में प्रकाशित खबर पर आधारित।)

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