Thursday, March 28, 2024

बीबीसी की डॉक्यूमेंटरी ने गुजरात दंगों के सच को उघारा

जब ब्रिटेन के प्रधानमंत्री भारतवंशी ऋषि सुनक बने थे तो पूरे भारत में गोदी मीडिया और भक्तों ने ऐसी ख़ुशी मनाई थी जैसे ब्रिटेन भारत का उपनिवेश बन गया है, लेकिन ब्रिटेन ने 17 जनवरी 23 को ऐसा कारनामा कर दिया है, जिससे गोदी मीडिया और भक्तों को जैसे सांप सूंघ गया है। बीबीसी ने ब्रिटेन में ‘इंडिया: द मोदी क्वेश्चन’ नाम की एक डॉक्यूमेंटरी प्रसारित की है, जिसमें गुजरात दंगों के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भारत के सुप्रीम कोर्ट द्वारा दी गयी क्लीन चिट की धज्जियाँ उड़ा दी गयी हैं ।   

बीबीसी ने ब्रिटेन में ‘इंडिया: द मोदी क्वेश्चन’ नाम की एक डॉक्यूमेंटरी प्रसारित की है, जिसमें बताया गया है कि ब्रिटेन सरकार द्वारा करवाई गई गुजरात दंगों की जांच (जो अब तक अप्रकाशित रही है) में नरेंद्र मोदी को सीधे तौर पर हिंसा के लिए ज़िम्मेदार पाया गया था। इसका पहला एपिसोड 17 जनवरी को ब्रिटेन में प्रसारित हो चुका है। अगला एपिसोड 24 जनवरी को प्रसारित होने जा रहा है।

बीबीसी की एक डॉक्यूमेंटरी- ‘इंडिया: द मोदी क्वेश्चन’, भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और देश के मुस्लिम अल्पसंख्यकों के बीच तनाव की स्थिति होने की बात करती है। साथ ही, 2002 में फरवरी और मार्च के महीनों में गुजरात में बड़े पैमाने पर भड़की सांप्रदायिक हिंसा में उनकी भूमिका के संबंध में ‘जांच के दावों’ पर भी बात है। इन दंगों में ‘एक हजार से अधिक’ लोग मारे गए थे। हिंसा उस घटना के बाद भड़की थी जिसमें 27 फरवरी 2002 को कारसेवकों को ले जा रही एक ट्रेन में गोधरा में आग लगी दी गई थी, जिसमें 59 लोगों की मौत हो गई थी।

2005 में संसद को सूचित किया गया था कि उसके बाद हुई हिंसा में 790 मुस्लिम और 254 हिंदू मारे गए थे, 223 लोग लापता थे और 2,500 लोग घायल हो गए थे।

मंगलवार शाम बीबीसी टू पर ब्रिटेन में प्रसारित हुई एक नई सीरीज के पहले भाग में ब्रिटेन सरकार की एक रिपोर्ट, जिसे पहले प्रतिबंधित कर दिया गया था, जो अब तक न कभी प्रकाशित हुई और न सामने आई, को विस्तार से दिखाया गया है।

डॉक्यूमेंटरी में रिपोर्ट की तस्वीरों की एक श्रृंखला है और एक बयान में जांच रिपोर्ट कहती है कि ‘नरेंद्र मोदी सीधे तौर पर जिम्मेदार हैं। यह घटनाओं की श्रृंखला का ‘हिंसा के व्यवस्थित अभियान’ के रूप में उल्लेख करती है, जिसमें ‘जातीय सफाई के सभी संकेत’ हैं। यह रिपोर्ट गुजरात के घटनाक्रम से चिंतित यूके सरकार द्वारा गठित एक जांच का परिणाम है।

डॉक्यूमेंटरी में पूर्व विदेश सचिव जैक स्ट्रॉ (2001-2016) ने कैमरे पर याद करते करते हुए कहा, ‘मैं इसके बारे में बहुत चिंतित था। मैंने काफी व्यक्तिगत रुचि ली क्योंकि भारत एक महत्वपूर्ण देश है, जिसके साथ हमारे (यूके) संबंध हैं। और इसलिए, हमें इसे बहुत सावधानी से संभालना पड़ा।’ उन्होंने कहा, ‘हमने एक जांच दल गठित किया और एक टीम को गुजरात जाकर खुद पता लगाना था कि क्या हुआ था। उन्होंने बहुत गहन रिपोर्ट तैयार की।’

जांच दल द्वारा यूके सरकार को दी गई रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है कि ‘हिंसा का दायरा, जितना रिपोर्ट किया गया उसकी तुलना में बहुत अधिक था’ और ‘मुस्लिम महिलाओं का व्यापक एवं योजनाबद्ध तरीके से बलात्कार किया गया’ क्योंकि हिंसा ‘राजनीतिक रूप से प्रेरित’ थी। इसमें यह भी कहा गया है कि दंगों का उद्देश्य ‘मुसलमानों का हिंदू क्षेत्रों से सफाया’ करना था। डॉक्यूमेंट्री में आरोप लगाया गया है, कि ‘निस्संदेह यह मोदी की तरफ से हुआ।’

डॉक्यूमेंटरी में एक ब्रिटिश राजनयिक ने अपनी पहचान जाहिर न करते हुए कहा है, ‘हिंसा के दौरान कम से कम 2,000 लोगों की हत्या कर दी गई थी, जिनमें से अधिकांश मुस्लिम थे। हमने इसे एक नरसंहार के रूप में वर्णित किया- मुस्लिम समुदाय को निशाना बनाने का जानबूझकर और राजनीतिक रूप से संचालित प्रयास।’

इसमें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से संबद्ध विश्व हिंदू परिषद (विहिप) का भी रिपोर्ट में उल्लेख है। पूर्व राजनयिक ने कहा, ‘हिंसा व्यापक रूप से एक चरमपंथी हिंदू राष्ट्रवादी समूह विहिप द्वारा आयोजित की गई थी।’

रिपोर्ट कहती है, विहिप और उसके सहयोगी ‘राज्य सरकार द्वारा बनाए गए दंडमुक्ति के माहौल’ के बिना इतना नुकसान नहीं कर सकते थे। डॉक्यूमेंटरी में आरोप लगाया गया है कि दंडमुक्ति के भाव ने हिंसा के लिए माहौल तैयार किया।

पूर्व ब्रिटिश विदेश सचिव स्ट्रॉ ने बीबीसी को बताया, ‘बहुत गंभीर दावे किए गए थे- कि मुख्यमंत्री मोदी ने पुलिस को वापस बुलाने और हिंदू चरमपंथियों को मौन रूप से प्रोत्साहित करने में काफी सक्रिय भूमिका निभाई। उनका कहना है कि मोदी के खिलाफ ये आरोप चौंकाने वाले थे और पुलिस को समुदायों की रक्षा करने के उसके काम से रोककर विशेष तौर पर राजनीतिक संलिप्तता का एक जबरदस्त उदाहरण पेश किया।

उन्होंने स्वीकार किया कि एक मंत्री के रूप में उनके पास ‘काफी सीमित’ विकल्प थे। हम भारत के साथ राजनयिक संबंध तोड़ने नहीं जा रहे थे, लेकिन जाहिर तौर पर यह उनकी प्रतिष्ठा पर दाग था।

वर्ष 2002 के दंगों के बाद ब्रिटिश सरकार ने मोदी द्वारा रक्तपात को न रोकने के दावों के आधार पर उनका राजनयिक बहिष्कार किया था। यह अक्टूबर 2012 में समाप्त हुआ।

बीबीसी के अनुसार, उसी दौरान यूरोपीय संघ द्वारा भी एक जांच गठित की गई, जिसने मामले की पड़ताल की। इसने कथित तौर पर पाया कि ‘मंत्रियों ने हिंसा में सक्रिय भागीदारी की और वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को निर्देश दिया गया कि वे दंगे में हस्तक्षेप न करें।’

हिंसा पर मोदी का इंटरव्यू करने वालीं बीबीसी की जिल मैक्गिवरींग कहती हैं, कि नरेंद्र मोदी बहुत मीडिया फ्रेंडली नहीं हैं। उन्हें इंटरव्यू के लिए राजी करना बहुत मुश्किल साबित हुआ। उन्होंने मुझ पर एक बहुत ही करिश्माई, बहुत शक्तिशाली और काफी खतरनाक व्यक्ति के तौर पर प्रभाव छोड़ा। बार-बार हिंसा और गुजरात की उथल-पुथल के बारे में उनके सवाल पर मोदी को यह जवाब देते हुए देखा जा सकता है, ‘मुझे लगता है कि पहले आपको अपनी जानकारी ठीक करनी चाहिए। राज्य में बहुत शांति है।’

राज्य में कथित तौर पर कानून-व्यवस्था को ठीक से नहीं संभालने के सवाल पर उन्होंने कहा, ‘यह पूरी तरह से गुमराह करने वाली जानकारी है और मैं आपके विश्लेषण से सहमत नहीं हूं। आप अंग्रेजों को हमें मानवाधिकार का उपदेश नहीं देना चाहिए।’

हालांकि, यह पूछे जाने पर कि क्या पूरे प्रकरण में कुछ ऐसा था जो मोदी अलग तरीके से करना चाहेंगे, मोदी ने कहा, ‘एक क्षेत्र जहां मैं चीजों को अलग तरह से कर सकता था वह है- मीडिया को कैसे हैंडल किया जाए।’

डॉक्यूमेंटरी में उल्लिखित ब्रिटिश जांच रिपोर्ट का निष्कर्ष है, ’जब तक मोदी सत्ता में रहेंगे, समन्वय असंभव होगा’। बीबीसी टू डॉक्यूमेंट्री अभी भारत में देखने के लिए उपलब्ध नहीं है।

गौरतलब है कि बीते साल जून में भारत के सुप्रीमकोर्ट ने कहा था कि ‘गुजरात दंगों के पीछे कोई बड़ी साजिश नहीं थी।’ सुप्रीमकोर्ट ने विशेष जांच दल (एसआईटी) द्वारा मोदी को दी गई क्लीन चिट के खिलाफ पूर्व सांसद एहसान जाफरी की पत्नी जकिया जाफरी की याचिका खारिज कर दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा था कि ‘उच्चतम स्तर पर बड़ी आपराधिक साजिश के (आरोप) ताश के पत्तों की तरह ढह गए।’

भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर बीबीसी की डॉक्यूमेंटरी के बारे भारत के विदेश मंत्रालय ने प्रतिक्रिया दी है। साथ ही ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक ने भी इस बारे में ब्रितानी संसद में उठे एक सवाल का जवाब दिया है।

भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने गुरुवार को प्रेसवार्ता के दौरान पूछे गए एक सवाल के जवाब में कहा कि मुझे ये साफ़ करने दीजिए कि हमारी राय में ये एक प्रौपेगैंडा पीस है। इसका मक़सद एक तरह के नैरेटिव को पेश करना है जिसे लोग पहले ही ख़ारिज कर चुके हैं। इस फ़िल्म या डॉक्यूमेंटरी को बनाने वाली एजेंसी और व्यक्ति इसी नैरेटिव को दोबारा चलाना चाह रहे हैं। बागची ने डॉक्यूमेंट्री बनाने की बीबीसी की मंशा पर भी प्रश्न उठाया। उन्होंने कहा कि हम इसके मक़सद और इसके पीछे के एजेंडे पर सोचने को मजबूर हैं।

ये डॉक्यूमेंट्री एक अप्रकाशित रिपोर्ट पर आधारित है जिसे बीबीसी ने ब्रिटिश फ़ॉरेन ऑफ़िस से हासिल किया है। इस डॉक्यूमेंटरी में नरेंद्र मोदी के मुख्यमंत्री रहते हुए गुजरात में साल 2002 में हुई हिंसा में कम से कम 2000 लोगों की मौत पर सवाल उठाए गए हैं।

ब्रिटिश विदेश विभाग की रिपोर्ट का दावा है कि मोदी साल 2002 में गुजरात में हिंसा का माहौल बनाने के लिए ‘प्रत्यक्ष रूप से ज़िम्मेदार’ थे। पीएम मोदी हमेशा हिंसा के लिए ज़िम्मेदार होने के आरोपों का खंडन करते रहे हैं। लेकिन जिस ब्रिटिश कूटनयिक ने ब्रिटिश विदेश मंत्रालय के लिए रिपोर्ट लिखी है उससे बीबीसी ने बात की है और वो अपनी रिपोर्ट के निष्कर्ष पर क़ायम हैं।

(जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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