Saturday, April 20, 2024

क्योंकि उन्हें लाल किले के भाषण की जगह बदलनी है!

पीएम मोदी के पहले 15  अगस्त को लाल किले की प्राचीर से प्रधानमंत्री के भाषण का पूरे देश को इंतजार रहता था। लोग इस उत्सुकता में होते थे कि पीएम उस मौके पर देश के लिए क्या-क्या घोषणाएं करेंगे। या फिर उसमें उनके लिए क्या-क्या शामिल होगा। लेकिन पिछले पांच सालों के कार्यकाल के दौरान और लगातार एक के बाद एक भाषण में लोगों की यह उत्सुकता कम होती चली गयी। उनके लिए शायद यह बात सही न हो जिन्हें पीएम मोदी का सिर्फ भाषण ही सुनना पसंद है वह लाल किले से हो या कि किसी चुनावी रैली में। कल के भी भाषण में न कोई घोषणा थी। न योजना और न ही कोई ऐसी बात जिस पर नागरिकों को सीधा कोई लाभ होता दिखे।

हालांकि उन्होंने इसका उत्तर अपने तरीके से दे भी दिया। जब उन्होंने कहा कि सरकार नागरिकों के मसलों में कम से कम हस्तक्षेप करना चाहती है। जिसका दूसरा ठोस मतलब यहै है कि लोग खुद को इतना सक्षम बनाएं कि सरकार का उन्हें मुंह न ताकना पड़े। दरअसल इस एक वाक्य और सिद्धांत के जरिये पीएम मोदी ने अपनी सरकार के संचालन की पूरी दिशा बता दी। उन्होंने साफ-साफ कह दिया कि सरकार से कोई उम्मीद मत कीजिए। और जो कुछ भी है अब इस देश के कारपोरेट के हाथों में है वही इस देश का भाग्यविधाता है। यह बात भी उन्होंने दौलत पैदा करने वालों को सम्मान देने की बात कहकर सीधे-सीधे बता दिया। लिहाजा उन्होंने पूंजीपतियों की झोली भरने में अपनी तरफ से कोई कसर नहीं छोड़ी है। लेकिन पीएम यहां ईमानदार नहीं हैं अगर उनको लगता है कि इस रास्ते पर चलने से न केवल देश का बल्कि हर नागरिक का भला होगा तो उन्हें इस बात को खुल कर बोलना चाहिए।

और पिछले दिनों, मौजूदा समय में और आने वाले दौर में इस दिशा में उनकी जो कार्ययोजना है उसे सीना ठोक कर बताना चाहिए। और यहां तक कि अगर यह सब उनकी उपलब्धियों में आते हैं तो उन्हें लाल किले से घोषित किया जाना चाहिए। उन्हें बताना चाहिए कि रेलवे का निजीकरण किया जा रहा है और उसमें लाखों कर्मचारियों की छटनी कर उन्हें अपने पैरों पर खड़ा करने का रास्ता तैयार किया जा रहा है। उन्हें बताना चाहिए कि रक्षा क्षेत्र में डीआरडीओ समेत तमाम रक्षा संस्थानों में बड़े स्तर पर छटनी का फैसला ले लिया गया है।

जो इन दौलत पैदा करने वाले कारपोरेट घरानों के सम्मान के लिए बहुत जरूरी हो गया था क्योंकि ये सारी फैक्टरियां और उनमें उत्पादन अंबानियों के हवाले करना है। उन्हें बताना चाहिए कि सरकारी बैंकों को एक दूसरे में इसलिए मिलाया जा रहा है क्योंकि निजी देशी और अंतरराष्ट्रीय बैंकों के लिए बाजार मुहैया कराना है जो सरकारी बैंकों के रहते संभव नहीं हो पा रहा था। लेकिन पीएम मोदी यह सब नहीं बातएंगे क्योंकि उन्हें भी पता है कि यह सब कुछ जनविरोधी है और आखिर में उनकी सरकार के खिलाफ जाने वाला है।

भाषण के लिए जाते मोदी।

पीएम मोदी ने अपनी उपलब्धियों में तीन-चार चीजों को गिनाया। जिसमें अनुच्छेद 370 खत्म करने की बात सबसे ऊपर थी। उन्होंने कहा कि जो काम 70 सालों में नहीं हो सका उसे उन्होंने सरकार में आने के 7 हफ्ते के भीतर कर दिया। वैसे तो इन सत्तर सालों में कम से कम 15 साल ऐसे रहे हैं जिनमें बीजेपी सीधे सत्ता में रही है या फिर उसमें भागीदार रही है। लेकिन मोदी झूठ को सच और सच को झूठ में बदलने के माहिर खिलाड़ी माने जाते हैं। लिहाजा यह उनकी चिंता का विषय ही नहीं होता है। लेकिन मामला यहां करने या न करने का नहीं है। बल्कि कैसे किया गया और उसका अब हश्र क्या होगा? वह ज्यादा महत्वपूर्ण है।  

यह काम तो कोई भी और कभी भी कर सकता था। अगर उसमें पूरे संविधान को ही ताक पर रख दिया जाना था। और जिससे सहमति लेनी थी उस विधानसभा को भंग करके उसकी पूरी जनता को कैद में कर दिया जाना था। और आखिर में फिर मामले को इतना उलझा देना था जिससे घाटी के भविष्य में न केवल अंधेरा हो बल्कि वह अंतरराष्ट्रीय शक्तियों के खेल का नया मंच बन जाए। 48 सालों बाद एक बार फिर यूएन में इस मसले पर बातचीत फैसले की गलती का पहला नमूना भर है। अभी तो इसमें बड़े-बड़े झटके लगने बाकी हैं। लिहाजा यह उपलब्धि नहीं बल्कि अपने तरह की विडंबना है जिसकी घोषणा के बाद घाटी का एक भी शख्स भारत के साथ खड़ा नहीं है यही इसकी सच्चाई है।

बहरहाल पीएम मोदी ने अपनी दूसरी उपलब्धि में यूएपीए कानून को और कड़ा करने के फैसले को गिनाया है। यह भी कश्मीर की ही तर्ज पर संविधान के प्रावधानों को धता बताते हुए बनाया गया है। यह न केवल देश की प्रशासन संचालन की बुनियादी प्रस्थापनाओं के खिलाफ है बल्कि सरकार को वह शक्ति देता है जो हर रूप में संवैधानिक नियमों के खिलाफ जाता है। इस कानून के पारित हो जाने के बाद सरकार को किसी को भी आतंकी घोषित करने का अधिकार मिल गया है। इस देश के भीतर किसी प्रदर्शन पर भी लाठीचार्ज करने या फिर गोली चलाने के लिए मजिस्ट्रेट के आदेश की जरूरत पड़ती है।

यानी एक ज्यूडिशियल बाडी के विवेक और मस्तिष्क की जरूरत होती है। लेकिन यहां न्यायिक स्क्रूटनी में जाने से पहले किसी पर भी आतंकी होने की मुहर लगाने का अधिकार एक पुलिस वाले को दे दिया गया है। जो संविधान और नागरिक जीवन की बुनियादी मान्यताओं के खिलाफ है। और इन सबसे ऊपर सरकार विरोधी किसी भी नागरिक पर इसके बेजा इस्तेमाल के खतरे ने इसे और ज्यादा खतरनाक बना दिया है। और कम से कम यह सरकार जिस भेदभाव से काम कर रही है उसमें यही कहा जा सकता है कि यह कोई अपवाद नहीं बल्कि सरकार के नियम का अभिन्न हिस्सा होगा। अर्बन नक्सलियों को न बख्शने का अमित शाह का बयान इसका खुलासा कर देता है।

तीसरी उपलब्धि जीएसटी बतायी गयी है जिसका हस्र लोग देख ही चुके हैं। आम चुनाव से पहले सरकार को उसमें कितनी बार फेर बदल करनी पड़ी। यह खुद उसे भी पता नहीं होगा। और अब तो एक देश और एक टैक्स के नाम पर सामने आया यह प्रावधान कितने स्तरीय टैक्सों में बदल गया है उसको किसी के लिए गिन पाना मुश्किल है।

और फिर पीएम का सबसे ज्यादा जोर तीन तलाक और “अपनी” बहनों को न्याय दिलाने वाली उपलब्धि पर रहा। यह मुद्दा पीएम मोदी को क्यों प्रिय है यह पूरा देश जानता है। सच्चाई यह है कि तमाम हाय तौबा के बाद भी इस मामले में बताया जाता है कि केसों की संख्या महज 800 से ज्यादा नहीं थी। और ऊपर से जब सुप्रीम कोर्ट ने इसको पहले ही अवैध करार दे दिया था तब संसद से उसके पारित कराने की कोई जरूरत भी नहीं थी। लेकिन इसके जरिये सरकार का अल्पसंख्यक समुदाय को कमजोर करने और उसमें हर तरह के झगड़े की गुंजाइश पैदा करने उसकी मंशा थी। जिसमें वह कामयाब होती दिख रही है।

आखिर में उन्होंने देश और उसके बाशिंदों के लिए कुछ सुभाषितानि भी बोली। जिसमें जनसंख्या नियंत्रण भी शामिल था। हालांकि अभी तक मोदी देश में युवाओं को ऊर्जा के अथाह स्रोत और उसे प्रचुर मानव संसाधन के तौर पर देखते रहे हैं लेकिन लगता है कि उसकी उपयोगिता पूरी हो चुकी है। और अब इसका एक दूसरा इस्तेमाल उन्हें दिखने लगा है। जिसमें अगर कोई विकास और अर्थव्यवस्था पर सवाल उठाए तो उसको जनसंख्या बृद्धि के बोझ का आसान जवाब मुहैया कराया जा सके। और इस कड़ी में इसे आने वाले दिनों में अगर मुसलमानों की तरफ मोड़ दिया जाए तो किसी को अचरज नहीं होना चाहिए। वैसे भी संघ परिवारी इसका राग अलापते रहे हैं और मुस्लिमों की आबादी में बृद्धि को हिंदुओं के अल्पसंख्यक हो जाने का खतरा बताते रहे हैं। लिहाजा कहा जा सकता है कि पीएम मोदी ने लाल किले से सांप्रदायिक उन्माद का एक नया पिटारा खोल दिया है। जिससे निकलने वाले सांप के दंश का विष बहुत गहरा हो सकता है।

लाल किले से संबोधित करते मोदी।

लेकिन इसमें एक चीज ध्यान देनी बहुत जरूरी है। नार्थ के मुकाबले दक्षिण के प्रदेशों की जनसंख्या बृद्धि दर देश की औसत बृद्धि दर से कम है। इसमें केरल जैसे सूबे जहां मुस्लिम आबादी तकरीबन 25 फीसदी है उसकी ग्रोथ रेट देश की औसत बृद्धि दर 2.2 के मुकाबले 1.7 है। और कमोबेश यही स्थिति तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश लेकर कर्नाटक और महाराष्ट्र तक की है। जबकि उत्तर भारत की तस्वीर बिल्कुल उल्टी है। यहां के उत्तर प्रदेश, बिहार और मध्य प्रदेश में तो बृद्धि दर 3.3 के आस-पास है। इससे एक ही निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि जहां शिक्षा, ज्ञान और संस्कृति के स्तर पर समृद्धि है वहां जनसंख्या विस्फोट नियंत्रित है।

लेकिन जहां न केवल इन तीनों स्तरों पर कमी बल्कि ऊपर से धर्म, अंधविश्वास और हर तरीके का जाहिलपन मौजूद है उसमें जनसंख्या सबसे बड़ी समस्या बनी हुई है। उत्तर भारत में युवाओं को कांवड़िया बनने के लिए अगर सरकार प्रेरित करेगी और राम मंदिर से लेकर हर तरह के धार्मिक और अंधविश्वासी कार्यक्रम उसके एजेंडे में होंगे तो भला इस समस्या से कैसे निजात पाया जा सकता है। इसमें सबसे पहले पीएम मोदी को अपने परिवारी संगठनों को दुरुस्त करना होगा। और इसकी शुरुआत विश्व हिंदू परिषद से करनी होगी जिसमें वह हिंदुओं से ज्यादा से ज्यादा बच्चे पैदा करने की अपील करता रहता है।

और आखिर में पीएम मोदी ने लालकिले से एक स्टेट्समैन की छवि बनाने की कड़ी में लोगों से प्लास्टिक न इस्तेमाल करने और जल शक्ति पर जोर देने की बात कही।

और एक मात्र घोषणा जिसे उन्होंने किया वह जनता के लिए नहीं बल्कि देश की सेना से जुड़ा हुआ था। वह था चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ के पद का गठन। यह कुछ उनके एक ‘राष्ट्र, श्रेष्ठ राष्ट्र’ की दिशा में ही उठाया गया कदम है। जिसका उनके हिसाब से अगला पड़ाव ‘एक देश, एक चुनाव’ है। इसके पहले एक ‘देश, एक टैक्स’, ‘एक देश, एक ग्रिड’ समेत तमाम जुमलों का वह हवाला दे ही चुके थे। लेकिन आने वाले दिनों में वह ‘एक देश, एक धर्म’, ‘एक देश, एक झंडे’ को आगे बढ़ाते हुए उसका एक रंग यानी भगवा तक जाएंगे और फिर एक ही धर्म गुरू के होने की घोषणा के साथ उसको संसद में प्राण प्रतिष्ठित कर देंगे। यही संघ परिवार का लक्ष्य है जिसे मोदी कदम ब कदम आगे बढ़ा रहे हैं।

और अंत में एक राज की बात। लाल किले की प्राचीर से होने वाले पीएम के भाषण और उस पूरे आयोजन को उबाऊ बनाने के पीछे भी एक सोची समझी रणनीति है। दरअसल मोदी चाहते हैं कि वह आयोजन पूरी तरह से खत्म कर दिया जाए क्योंकि उसमें लालकिला और मुगल शामिल है। जिसकी हर पहचान को संघ और बीजेपी देश से खत्म कर देना चाहते हैं। ऐसे में भला इस पहचान को वो क्यों बनाए रखना चाहेंगे। वैसे भी नई संसद भवन के निर्माण का प्रस्ताव आ गया है। किसी दिन लाल किले से झंडारोहण और पीएम के भाषण की जगह भी बदली जा सकती है। समय तो आने दीजिए।  

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