Friday, March 29, 2024

जन्मदिन पर विशेष: ब्राह्मणवादी कवच को तोड़ कर समाज में समानता और बराबरी के ढांचे के निर्माण के पक्षधर थे राहुल सांकृत्यायन

(09 अप्रैल 1893-14 अप्रैल 1963)

भारतीय उपमहाद्वीप में जन्मा कोई व्यक्ति या तो मूलत: ब्राह्मणवादी विश्व दृष्टिकोण का होता है या गैर- ब्राह्मणवादी विश्व दृष्टिकोण (श्रमण-बहुजन विश्व दृष्टिकोण) का होता।

ब्राह्मणवादी विश्व दृष्टिकोण की विशेषताएं हैं- आत्मा में विश्ववास, शाश्वसत सत्य में विश्वास, पुनर्जन्म में विश्वास, पुनर्जन्म आधारित कर्मफल में विश्वास, वर्ण व्यवस्था में विश्वास, असमानता में विश्वास, स्त्री-पुरूष असमानता में विश्वास (पितृसत्ता, स्त्री पुरुष की तुलना में दोयम दर्जे की है), वेदों-स्मृतियों, पुराणों और गीता के दर्शन में विश्वास, नियतिवाद में विश्वास।

गैर-ब्राह्मणवादी विश्व दृष्टिकोण की विशेषता है- अनात्मवाद, अनित्यवाद (सब कुछ परिवर्तशील है) कार्य-कारण सिद्धांत में विश्वास, वर्ण-व्यवस्था का निषेध, समता-बंधुता में विश्वास, स्त्री-पुरूष समानता में विश्वास, नित्य परिवर्तनशीलता में विश्वास (शाश्वत सत्य की अस्वीकृति), सबकुछ को तर्क (कार्यकारण सिद्धांत) और लोककल्याण की कसौटी पर कसना, वेदों-स्मृतियों, पुराणों और गीता के दर्शन का निषेध।

भारत में जो उदारवादी-आधुनिकतावादी (लिबरल) और वामपंथी नजरिया आधुनिक काल में दुनिया से आया, वह भी या तो ब्राह्मणवादी विश्व दृष्टिकोण के ब्लैक होल में समा गया या जिसे ब्राह्मणवादी विश्व दृष्टिकोण ने अपने भीतर समा लिया। इसके शिकार वामपंथ के सबसे शीर्ष व्यक्तित्व देवीप्रसाद चट्टोपध्याय और के. दामोदरन जैसे व्यक्तित्व भी बने, अन्य की तो बात ही क्या की जाए, ऐसे अनगिनत उदाहरण हैं।

या उदारवादी-आधुनिकतावादी (लिबरल) और वामपंथी नजरिया गैर-ब्राह्मणवादी भौतिक-वैज्ञानिक विश्व दृष्टिकोण का हिस्सा बना। इसके सबसे बड़े प्रातिनिधिक उदाहरण डॉ. आंबेडकर हैं, जो वामपंथ से समाजवादी अर्थव्यवस्था का सिद्धांत ग्रहण करते हैं और उदारवाद-आधुनिकतावाद से लोकतांत्रिक शासन-प्रणाली, लेकिन उनके चिंतन की जड़ें- भारतीय गैर-ब्राह्मणवादी (श्रमण-बहुजन परंपरा) परंपरा में है, अकारण नहीं है कि वे अपना पहला गुरु बुद्ध, दूसरा गुरु कबीर और तीसरा गुरु जोतीराव गोविंदराव फुले को मानते हैं।

प्राचीनकाल में ब्राह्मणवादी विश्व दृष्टिकोण के सबसे प्रातिनिधिक उदाहरण वेदों-स्मृतियों-पुराणों और गीता के रचयिता हैं, जिसमें व्यास, मनु और आदि शंकराचार्य सबसे प्रातिनिधिक व्यक्तित्व हैं। मध्यकाल में उत्तर भारत में इसके सबसे प्रातिनिधिक उदाहरण तुलसीदास है और आधुनिक युग में इसके सबसे प्रातिनिधिक उदाहरण तिलक और गांधी हैं और अन्य बहुत सारे लोग। आज उसका सबसे संगठित रूप आरएसएस-भाजपा में दिख रहा है।

जबकि गैर-ब्राह्मणवादी भौतिकवादी- वैज्ञानिक विश्व दृष्टिकोण के प्राचीनकाल में सबसे प्रातिनिधिक उदाहरण बुद्ध-चार्वाक हैं, तो मध्यकाल में उत्तर भारत में कबीर और रैदास हैं और आधुनिकाकाल में जोतीराव गोविंदराव फुले, पेरियार और डॉ. आंबेडकर हैं।

आधुनिककाल में ब्राह्मण परिवार में जन्में जिन चंद व्यक्तित्वों ने पूरी तरह ब्राह्मणवादी विश्व दृष्टिकोण (नजरिए) के सभी तत्वों को तिलांजलि दे दिया और गैर-ब्राह्मणवादी विश्वदृष्टिकोण को पूरी तरह आत्मसात कर लिया, उन व्यक्तित्वों में एक नाम राहुल सांकृत्यायन का है।

ब्राह्मणवादी विश्व दृष्टिकोण को त्यागकर गैर-ब्राह्मणवादी विश्व दृष्टिकोण अपनाने की राहुल सांकृत्यायन की लंबी यात्रा थी- जन्म से केदारनाथ पांडेय पहले वैदिक साधु राम उदार दास बने, फिर आर्य समाजी और उसके बाद बौद्ध धम्म ग्रहण करने के बाद राहुल सांकृत्यायन।

ऐसी ही उनकी राजनीतिक यात्रा भी थी- पहले कांग्रेसी, फिर सोशलिस्ट और उसके बाद कम्युनिस्ट।

मेरा इतिहास का अब तक अध्ययन यह बताता है कि यदि कोई अपरकॉस्ट का व्यक्ति, विशेषकर ब्राह्मण बिना भारत की अपनी भौतिकवादी- वैज्ञानिक गैर-ब्राह्मणवादी (श्रमण-बहुजन परंपरा) परंपरा से गहरा से रिश्ता कायम किए, सीधे उदारवादी (आधुनिकतावादी) और वामपंथी बनता है, तो संस्कारों और परिवेश से मिला ब्राह्मणवाद उसके दिल-दिमाग का हिस्सा बना रहता है, वह उससे मुक्त नहीं हो पाता। अपवाद दुनिया में हर चीज का होता है।

अब तक का मेरा अध्ययन यह भी बताता है कि वही ब्राह्मण पूरी तरह ब्राह्मणवादी विश्व दृष्टिकोण से मुक्त हो पाए, जिन्होंने बौद्ध धम्म- चार्वाक की परंपरा से अपना नाता कायम की किया, चाहे वे बुद्ध के ब्राह्मण शिष्य हों या महान बौद्ध धम्म ग्रंथ “प्रमाण वर्तिका’ के लेखक धर्मकीर्ति हों या आधुनिक काल में बोधानंद, धर्मानंद कोसंबी या राहुल सांकृत्यायन।

असल में इसकी वजह मार्क्स के शब्दों में इस तरह से व्यक्त की जा सकती है- मार्क्स ने कहा था कि अब तक का इतिहास वर्ग-संघर्ष का इतिहास है। भारत का इतिहास भी वर्ग-संघर्ष का इतिहास रहा है। यहां भी प्रतिक्रियावादी विचारों और प्रगतिशील विचारोें के बीच निरंतर संघर्ष चलता रहा है।

प्रतिक्रियावादी विचारों की प्रतिनिधि विचारधारा ब्राह्मणवादी विचारधारा रही है, जिसे कभी वैदिक विचारधारा, सनातन विचारधारा और ब्राह्मणवादी विचारधारा कहा जाता रहा है, आजकल इसे हिंदू विचारधारा कहा जा रहा।

भारत की प्रगतिशील विचारधारा गैर-ब्राह्मणवादी (श्रमण-बहुजन) विचारधारा रही है, जिसके आधुनिक युग में एक महत्वपूर्ण प्रतिनिधि राहुल सांकृत्यायन भी रहे हैं।

गैर-ब्राह्मणवादी (श्रमण-बहुजन) विचारधारा ही, भारतीय जन की मुक्ति का रास्ता प्रशस्त कर सकती है।

गैर-ब्राह्मणवादी (श्रमण- बहुजन) विचारधारा के एक महान प्रतिनिधि राहुल सांकृत्यायन को उनके जन्मदिन पर शत्-शत् नमन।

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