बाम्बे हाईकोर्ट ने डिजिटल मीडिया के लिए नैतिकता संहिता के अनुपालन से जुड़े नये सूचना प्रौद्योगिकी नियमों, 2021 की धारा 9 (1) और 9 (3) के क्रियान्वयन पर शनिवार को अंतरिम रोक लगा दी। चीफ जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस जीएस कुलकर्णी की पीठ ने कहा कि नैतिकता संहिता का इस तरह का अनिवार्य अनुपालन याचिकाकर्ताओं को संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत प्रदत्त अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का हनन है।
खंडपीठ ने नए सूचना प्रौद्योगिकी नियम, 2021 को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर बॉम्बे हाईकोर्ट ने शनिवार, 14 अगस्त को आईटी रुल्स के सेक्शन 9(1) और 9(3) पर स्टे कर दिया है। ये दोनों सेक्शन डिजिटल मीडिया के लिए कोड ऑफ एथिक्स से जुड़े हैं, हालांकि अदालत ने रूल 14 और 16 पर स्टे लगाने से इंकार कर दिया है। याचिकाओं में नए आईटी नियमों को मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करार देते हुए इन्हें लागू किए जाने से रोकने की अपील की गई थी।
याचिकाकर्ताओं ने कहा कि केंद्र आचार संहिता जोड़कर नए नियमों की मदद से वास्तविक कानूनों को खत्म करने की कोशिश कर रहा है। अदालत ने कहा कि जहां तक नियम 9 का संबंध है प्रथम दृष्ट्या यह संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (ए) (अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार) के तहत याचिकाकर्ता के अधिकारों का अतिक्रमण है। हमने यह भी माना है कि यह आईटी अधिनियम के मूल कानून से परे है। इसलिए हमने नियम के खंड 1 और 3 पर रोक लगा दी है और नियम 9 (2) को नहीं छुआ है। इसलिए नियम 9 पूरी तरह से नहीं रुका है। हमने नियम 7 (नियमों का पालन न करने) पर भी रोक नहीं लगाई है।
चीफ जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस गिरीश एस कुलकर्णी की खंडपीठ उस याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें नए आईटी कानून, 2021 को चुनौती दी गयी थी। कानून के मुताबिक प्रकाशक नियमों के तहत प्रकाशक आचार संहिता का पालन करेगा। याचिका कर्ताओं ने कानून को मनमाना और अवैध, और नेट न्यूट्रलिटी के खिलाफ बताया था। जबकि नियम 9 (3) आचार संहिता के पालन के लिए एक त्रि-स्तरीय संरचना की बात करता है, जिसमें प्रकाशकों द्वारा सेल्फ रेगुलेशन, प्रकाशकों की सेल्फ रेगुलेशन संस्थाओं द्वारा सेल्फ रेगुलेशन और केंद्र सरकार द्वारा एक निरीक्षण तंत्र शामिल है।
नियम 9 (2), जिस पर रोक नहीं लगाई गई है, के मुताबिक नियम कुछ भी होने के बावजूद, प्रकाशक जो किसी भी कानून का उल्लंघन करता है, उस कानून में बताई गई परिणामी कार्रवाई के लिए भी उत्तरदायी होगा। अदालत ने अपने ही अंतरिम आदेश पर रोक न लगाने के केंद्र के अनुरोध को अस्वीकार कर दिया।
खंडपीठ ने कहा कि जहां तक नियम 14 (अंतर-विभागीय समिति का गठन) का संबंध है, हम देख सकते हैं कि जहां तक अंतर-विभागीय समिति के बारे में अभी तक अधिसूचित नहीं किया गया है और अधिकारियों की नियुक्ति नहीं की जा रही है और अंतर-विभागीय समिति द्वारा सिस्टम अभी तैयार नहीं है। हम याचिकाकर्ता को समिति के गठन के बाद आगे बढ़ने की इजाजत देते हैं।
खंडपीठ ने कहा कि प्रथम दृष्ट्या पाया गया है कि इन उप-खंडों ने अनुच्छेद 19 के तहत याचिकाकर्ताओं के भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के संवैधानिक अधिकार का उल्लंघन किया है। खंड 9 के प्रावधान भी मूल कानून (सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम 2000) के दायरे से बाहर हैं। हाईकोर्ट ने यह आदेश कानूनी समाचार पोर्टल द लीफलेट और पत्रकार निखिल वागले द्वारा दायर याचिकाओं पर सुनाया है। याचिका में नए आईटी नियमों के कई प्रावधानों को चुनौती दी गई थी। दावा किया गया था कि ये अस्पष्ट थे। पिछले महीने सरकार को झटका देते हुए उच्चतम न्यायालय ने केंद्र द्वारा फरवरी में पेश किए गए नए नियमों को चुनौती देने वाली विभिन्न अदालतों को सुनवाई से रोकने से इंकार कर दिया था।
बॉम्बे हाईकोर्ट में इंटरमीडियरी गाइडलाइंस और डिजिटल मीडिया एथिक्स कोड रूल्स 2021 की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई थी, इसे लेकर हाईकोर्ट की तरफ से केंद्र सरकार से जवाब भी मांगा गया था। याचिका में कहा गया था कि इन नए आईटी नियमों के कई सेक्शन ऐसे हैं, जिनसे मौलिक अधिकारों का हनन होता है। हाईकोर्ट ने आईटी नियमों के कुछ प्रावधानों पर रोक लगाने से इंकार कर दिया है। हाईकोर्ट ने रूल 14 और 16 पर स्टे लगाने की मांग को खारिज कर दिया। याचिका में आरोप लगाया गया है कि नए नियम प्रेस की स्वतंत्रता सहित बुनियादी संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन करते हैं। साथ ही इसे सरकार को ऑनलाइन समाचार सामग्री पर अधिक सख्त पकड़ बनाने के लिए तैयार किया गया है।
नए आईटी नियमों की इस गाइडलाइन के मुताबिक डिजिटल मीडिया को प्रेस काउंसिल, केबल टीवी एक्ट के नियमों का पालन करना होगा। इसके साथ ही थ्री लेवल शिकायत निवारण सिस्टम बनाना होगा। रिटायर्ड सुप्रीम कोर्ट, हाई कोर्ट जज या कोई बेहद प्रतिष्ठित इंसान वाली सेल्फ रेगुलेशन बॉडी बनानी होगी और साथ ही सरकार कोई ऐसा सिस्टम बनाएगी जो इन सबकी निगरानी करेगा। इन तमाम प्रावधानों को लेकर डिजिटिल मीडिया कंपनियों ने आपत्ति जताई है और कहा है कि सरकार इससे नियंत्रण करना चाहती है। कंपनियों का कहना है कि ये अन्यायपूर्ण है और इससे उनकी लिखने की आजादी को छीना जा सकता है। उनका आरोप है कि कंटेंट पर सीधा नियंत्रण करने के लिए सरकार ये कानून लाई है।
सरकार का कहना है कि नए आईटी नियम सोशल मीडिया पर सामग्री को विनियमित करने और यह सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक हैं कि सभी ऑनलाइन समाचार कानून का अनुपालन करते हैं। नई आवश्यकताओं में यह भी शामिल है कि व्हाट्सएप जैसी कंपनियां राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा पैदा करने वाली किसी भी सामग्री के पहले प्रेषक (या सबसे पहले संदेश को अग्रेषित करने वाले) की पहचान करने के लिए एंड-टू-एंड एन्क्रिप्शन को तोड़ती हैं।
आईटी नियम विवादास्पद रूप से यह भी कहते हैं कि कानून और व्यवस्था या सुरक्षा के लिए समस्याग्रस्त मानी जाने वाली सामग्री पर मंत्रियों की एक समिति के पास अंतिम वीटो अधिकार होंगे और वे इसे हटाने का आदेश दे सकते हैं। समाचार प्रकाशकों ने तर्क दिया है कि मौजूदा कानून पहले से ही आपराधिक मुकदमा चलाने का प्रावधान करते हैं यदि वे बाल पोर्नोग्राफ़ी पोस्ट करने, या सांप्रदायिक घृणा या हिंसा को उकसाने वाली सामग्री चलाने आदि के नियमों को तोड़ते हैं।
न्यूज ब्रॉडकास्टर्स एसोसिएशन द्वारा आईटी नियमों को केरल उच्च न्यायालय में चुनौती दी गई थी, जिसमें पिछले महीने देश के कुछ सबसे बड़े समाचार नेटवर्क शामिल हैं। अदालत ने प्रकाशकों के पक्ष में एक अस्थायी आदेश देते हुए कहा कि अगर वे अभी आईटी नियमों का पालन नहीं करते हैं तो उनके खिलाफ कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं की जाएगी। अन्य समाचार उद्योग और मीडिया संघों ने अन्य अदालतों में इसी तरह की अपील दायर की है।
(वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।)
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