बिहार में 1,700 करोड़ रूपये की लागत से निर्माणाधीन अगुवानी-सुल्तानगंज गंगा पुल रविवार को दो हिस्सों में भरभरा कर गिर गया। रविवार होने के कारण इस पर काम नहीं चल रहा था, इसलिए किसी के हताहत होने की खबर नहीं है। गंगा नदी के किनारे कुछ प्रत्यक्षदर्शियों ने अपने मोबाइल कैमरे से इस घटना का वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर जारी किया। इसके बाद से ही बिहार की राजनीति में भूचाल सा आ गया है।
यह घटना रविवार शाम 6 बजे की बताई जा रही है, जिसमें पुल का 200 मीटर हिस्सा अचानक से ढह गया था। गंगा में इतने भारी ढांचे के भरभरा कर गिरने से 50 मीटर तक पानी उछला, जिसके चलते आस-पास नावों में यात्रा कर रहे लोग दहशत में आ गये और उन्होंने किसी तरह तत्काल किनारे आकर खुद को महफूज किया। इस पुल से भागलपुर-खगड़िया जिले को जोड़ा जाना था, लेकिन 2014 से यह पुल निर्माणाधीन है जिसके पूरे होने की तिथि लगातार आगे बढ़ रही थी, और पिछले साल 29 अप्रैल को भी इसका कुछ हिस्सा टूटकर गंगा नदी में गिर गया था।
पिछले वर्ष आंधी-तूफ़ान और बरसात को इसकी वजह बताई गई थी, जिसपर केंद्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने आश्चर्य जताते हुए कहा था कि तेज हवा से कोई पुल कैसे गिर सकता है, यह उनकी समझ से बाहर है। अवश्य ही इसमें कुछ गड़बड़ी है जिसके चलते यह घटना घटी है।
2019 में इस पुल को बनकर तैयार हो जाना था, और इसे नीतीश कुमार का ड्रीम प्रोजेक्ट बताया जाता है। नीतीश कुमार ने अपने एक वक्तव्य में कहा था कि यह पुल बड़े महत्व का है, जिससे भागलपुर के पास विक्रमशिला पुल पर भार में भारी कमी हो जाएगी। 3.16 किमी लंबे इस पुल की लागत 1,700 करोड़ है, जिसे चंडीगढ़ की सिंगला कंस्ट्रक्शन द्वारा बनाया जा रहा है।
पुल के हिस्से के ढहने के कुछ देर बाद ही भाजपा की टीम मीडिया में सक्रिय हो गई, और उसकी ओर से इसे “भ्रष्टाचार का ब्रिज” नामकरण दिया जाने लगा है। भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता शहजाद पूनावाला ने इसे टैक्स पेयर्स के 1750 करोड़ रूपये की जल-समाधि करार देते हुए नीतीश कुमार पर निशाना साधा है कि भृष्टाचार का पुल तो भरभरा कर गिर गया है, लेकिन नीतीश कुमार विपक्षी एकता के लिए खुद को पुल बनाने में जुटे हुए हैं।
उधर दूसरी तरफ प्रेस कांफ्रेंस के दौरान उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने बताया कि पुल के एक हिस्से को योजनाबद्ध तरीके से ढहाया गया है। उनके साथ प्रेस वार्ता में सड़क निर्माण विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव प्रत्यय अमृत भी मौजूद थे। उपमुख्यमंत्री के अनुसार पिछले वर्ष आंधी-तूफ़ान में निर्माणाधीन पुल के एक हिस्से के गिर जाने के कारण यह फैसला लिया गया है, क्योंकि इसके डिजाइन में ही कमियां पाई गई हैं। उन्होंने कहा, “इसके लिए आईआईटी रुड़की के विशेषज्ञों की सेवाएं ली गईं थीं, जिन्होंने अभी तक अपनी अंतिम रिपोर्ट तो पेश नहीं की है, लेकिन सूचित किया था कि इसकी डिजाइन में कुछ गंभीर त्रुटियां हैं।”
प्रत्यय अमृत ने पत्रकारों को बताया कि फाइनल रिपोर्ट की प्रतीक्षा न करते हुए राज्य सरकार ने पुल के कुछ हिस्से को ध्वस्त करने का फैसला लिया था। उनके अनुसार, “यह फैसला लिया गया कि अनिर्णय और अंतिम रिपोर्ट की प्रतीक्षा करने के बजाए पुल के हिस्से को गिरा दिया जाये। इसलिए हम इस फैसले के साथ आगे बढे और पुल के एक हिस्से को योजनाबद्ध तरीके से ढहा दिया गया। यह घटना इस प्रकार के निरोधात्मक उपायों का ही एक हिस्सा है।”
जबकि आज बिहार के मुख्यमंत्री ने पत्रकारों से बात करते हुए कहा है कि जो पुल ढहा है, वह पिछले वर्ष भी ढह गया था। हमने अधिकारियों को इस बारे में कड़ी कार्रवाई करने के निर्देश जारी कर दिए हैं। इसका निर्माण सही तरीके से नहीं किया गया है, इसी वजह से यह बार-बार ढह रहा है। विभाग इस मामले की पड़ताल कर रहा है और उचित कार्रवाई की जायेगी।
अब सवाल उठता है कि सही स्थिति क्या है? एक पुल जिसे 3 साल पहले ही बनकर तैयार हो जाना था, उसमें इतनी देरी क्यों हुई? पिछले वर्ष तक नीतीश कुमार-भाजपा बिहार का शासन संभाल रहे थे, तब यह घटना हुई थी लेकिन भाजपा तब पूरी तरह से मुंह सिये हुए थी। आईआईटी रुड़की की फाइनल रिपोर्ट का इंतजार क्यों नहीं किया गया? यदि इस पुल में गंभीर खामियां थीं, तो इसका पब्लिक ऑडिट कर विधानसभा में रिपोर्ट पेश कर कार्रवाई करनी चाहिए थी, न कि बिहार में भी बुलडोजर राज की तरह बिना किसी सूचना के पुल के एक हिस्से को ढहा दिया गया।
हालांकि उपमुख्यमंत्री के अनुसार 1,700 करोड़ रूपये की लागत में किसी भी अतिरिक्त खर्च को सिविल कांट्रेक्टर के द्वारा वहन किया जायेगा, लेकिन यदि पुल का डिजाइन ही त्रुटिपूर्ण था तो सरकारी अमला क्यों हाथ पर हाथ धरे बैठा था? सोशल मीडिया पर ठेकेदार कंपनी के एक कर्मचारी के लापता होने की खबर आ रही है। एसडीआरएफ की टीम के एक सदस्य के अनुसार उक्त कर्मचारी का कल से कोई अता-पता नहीं चल पा रहा है, और उसकी मोटरसाइकिल भी एक पिलर के नीचे मिली है।
भाजपा के लिए बिहार में पुल हादसे की घटना उसके लिए उड़ीसा की भयानक ट्रेन दुर्घटना जिसमें 288 लोगों की मौत हो चुकी है, जिसे अब घटाकर 275 बताया जा रहा है, से ध्यान हटाने का अच्छा मौका साबित हो रहा है। यदि इस बार पुल के एक हिस्से को योजनाबद्ध ढंग से ध्वस्त किया गया था, तो यह बिहार सरकार की प्रशासनिक अक्षमता है कि वह अपने काम को भी सही ढंग से सार्वजनिक बहस में ले जा पाने में अक्षम है, और भाजपा की अभी भी सोशल मीडिया और गोदी मीडिया पर पूर्ण पकड़ को बताती है। अभी भी देश में यही चर्चा है कि बिहार में एक पुल ताश के पत्तों की तरह ढह गया, और बिहार इसीलिए कभी तरक्की नहीं कर सकता क्योंकि यहां पर ‘जंगलराज’ चल रहा है।
(रविंद्र पटवाल जनचौक की संपादकीय टीम के सदस्य हैं।)