यूपी में बुलडोजर’ के इस्‍तेमाल का मामला सुप्रीम कोर्ट  पहुंचा

यूपी में बुलडोजर का मामला उच्चतम न्यायालय में पहुंच गया है। बुलडोजर के इस्‍तेमाल के खिलाफ जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने सुप्रीम कोर्ट की शरण ली है । अपनी याचिका में संगठन ने कानून की प्रक्रिया के बिना मकानों को न ढहाने के निर्देश देने की मांग की है, साथ ही मनमानी करने वाले अफसरों पर कार्रवाई की भी मांग की है।इधर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक्टिविस्ट जावेद मोहम्मद के घर को अवैध तरीके से ढहाने पर पत्र याचिका पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया है और कहा है कि मामले में नियमित याचिका दाखिल की जाए, उसके बाद ही विचार किया जाएगा। इलाहाबाद हाईकोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश गोविंद माथुर ने बुलडोजर द्वारा मकान तोड़े जाने की कार्रवाई को अवैध बताया है।

पूर्व मुख्य न्यायाधीश गोविंद माथुर ने कहा है कि यह मुद्दा तीन अदालतों, उच्चतम न्यायालय, इलाहाबाद उच्च न्यायालय और मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय में लंबित है और तीनों में मामले अधर में हैं।राज्य के नगरपालिका और शहरी नियोजन कानूनों के कथित उल्लंघन के बहाने घरों को बुलडोजिंग करने को मौलिक अधिकारों और उचित प्रक्रिया के उल्लंघन के रूप में अदालतों के समक्ष चुनौती दी गई है।

पूर्व मुख्य न्यायाधीश गोविंद माथुर ने कहा है कि यह तकनीकी मुद्दा नहीं बल्कि कानून के शासन का सवाल है। यह पूरी तरह से अवैध है। भले ही आप एक पल के लिए भी मान लें कि निर्माण अवैध था, वैसे ही करोड़ों भारतीय कैसे रहते हैं, यह अनुमति नहीं है कि आप रविवार को एक घर को ध्वस्त कर दें जब निवासी हिरासत में हों। ये टिप्पणी इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि वे माथुर ही थे, जिन्होंने 8 मार्च 2020 को लखनऊ प्रशासन के उस विवादित फैसले पर स्वत: संज्ञान लिया था, जिसमें सीएए विरोध प्रदर्शनों के आरोपियों के शहर भर में ‘नेम एंड शेम’ के पोस्टर चिपका दिए गए थे। हाईकोर्ट  ने सरकार के कदम को गैरकानूनी और आरोपी की निजता के अधिकार का हनन बताया था।

पैगंबर मोहम्मद साहब पर टिप्पणी के विवाद और उसके बाद होने वाली तोड़फोड़ पर एक और महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए जमीयत उलमा-ए-हिंद ने उत्तर प्रदेश राज्य को निर्देश देने की मांग करते हुए उच्चतम न्यायालय का रुख किया है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि राज्य में उचित प्रक्रिया का पालन किए बिना कोई और विध्वंस न किया जाए। आवेदक ने उत्तर प्रदेश राज्य द्वारा अधिनियमित कानून और नगरपालिका कानूनों के उल्लंघन में कथित रूप से ध्वस्त किए गए घरों के लिए जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई शुरू करने के निर्देश मांगे हैं।

जमीयत उलेमा-ए-हिंद की अर्जी में कहा गया है कि यूपी सरकार को निर्देश दिया जाए कि वो कानून की उचित प्रक्रिया का पालन किए बिना कोई और तोड़फोड़ न करे। अर्जी में यूपी सरकार द्वारा बनाए गए कानून और नगरपालिका कानूनों के उल्लंघन में ध्वस्त किए गए घरों के लिए जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई शुरू करने के निर्देश देने की भी मांग की गई है। जमीयत के अनुसार वर्तमान स्थिति और भी चिंताजनक है क्योंकि उच्चतम न्यायालय ने पहले ही उत्तर पश्चिमी दिल्ली में समान परिस्थितियों में एक दंडात्मक उपाय के रूप में की जा रही तोड़फोड़ पर रोक लगाने का आदेश दिया था।

दिल्ली के जहांगीरपुरी में विध्वंस अभियान के खिलाफ अपनी पिछली याचिका में ही दायर दो आवेदनों के माध्यम से ये राहत मांगी गई है। कोर्ट ने 21 अप्रैल को दंगा प्रभावित जहांगीरपुरी इलाके में उत्तरी दिल्ली नगर निगम (एनडीएमसी) द्वारा शुरू किए गए विध्वंस अभियान के खिलाफ नोटिस जारी किया था और यथास्थिति बनाए रखने का निर्देश दिया था।

एडवोकेट कबीर दीक्षित और एडवोकेट सरीम नावेद के माध्यम से दायर आवेदन में उत्तर प्रदेश राज्य को निर्देश देने की मांग की गई है कि अतिरिक्त कानूनी दंडात्मक उपाय के रूप में किसी भी आपराधिक कार्यवाही में किसी भी आरोपी की आवासीय या वाणिज्यिक संपत्ति के खिलाफ कानपुर जिले में कोई प्रारंभिक कार्रवाई ना की जाए।आवेदक के अनुसार, किसी भी प्रकृति का विध्वंस अभ्यास सख्ती से लागू कानूनों के अनुसार किया जाना चाहिए, और केवल सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय अनिवार्य रूप से प्रत्येक प्रभावित व्यक्ति को उचित नोटिस और सुनवाई का अवसर देने के बाद ही किया जाना चाहिए। वर्तमान स्थिति अधिक चिंताजनक है क्योंकि वर्तमान मामले में उच्चतम न्यायालय ने पहले ही उत्तर पश्चिमी दिल्ली में समान परिस्थितियों में एक दंडात्मक उपाय के रूप में किए जा रहे विध्वंस पर रोक लगाने का आदेश दिया था।

इसके अलावा, यह तर्क दिया गया है कि इस तरह के अतिरिक्त कानूनी उपायों को अपनाना स्पष्ट रूप से प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन है, खासकर जब सुप्रीम कोर्ट वर्तमान मामले की सुनवाई कर रहा है। अभियुक्त व्यक्तियों की संपत्तियों के विध्वंस के साथ आगे बढ़ने का निर्णय स्पष्ट रूप से अवैध है और बिना सुनवाई का अवसर प्रदान किए ऐसा करना राज्य के नगरपालिका कानूनों का उल्लंघन है, साथ ही प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन है। आवेदन में कहा गया है, ‘इसलिए, प्रतिशोध के साथ आगे बढ़ने की राज्य की ऐसी योजनाएं हमारे लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ हैं और परिणामस्वरूप, राज्य की न्याय वितरण प्रणाली को कमजोर करती हैं।

इलाहाबाद हाईकोर्ट के चार वकीलों ने प्रयागराज में अवैध रूप से एक्टिविस्ट जावेद मोहम्मद के घर को ध्वस्त करने पर संज्ञान लेने के अनुरोध के साथ मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखा था । वेलफेयर पार्टी ऑफ इंडिया के नेता और कार्यकर्ता आफरीन फातिमा के पिता जावेद मोहम्मद के घर को रविवार शाम स्थानीय अधिकारियों ने ध्वस्त कर दिया था। चार वकील केके रॉय, एम सईद सिद्दीकी, राजवेंद्र सिंह और प्रबल प्रताप ने प्रार्थना की है कि विचाराधीन घर का पुनर्निर्माण किया जाए और एक्टिविस्ट की पत्नी को मुआवजा प्रदान किया जाए। पत्र में दावा किया गया है कि एक्टिविस्ट जावेद मोहम्मद की पत्नी के नाम पर घर रजिस्टर्ड था।

लेकिन इलाहाबाद हाईकोर्ट ने शहर में जुमे की नमाज के बाद हुए बवाल के मुख्य आरोपी मास्टर माइंड जावेद अहमद का घर गिराए जाने के मामले में पत्र याचिका पर सुनवाई से इनकार कर दिया है। हाईकोर्ट ने कहा है कि मामले में नियमित याचिका दाखिल की जाए, उसके बाद ही विचार किया जाएगा। मामले में अधिवक्ता समूह की ओर से मुख्य न्यायमूर्ति को पत्र याचिका भेजी गई थी। अधिवक्ताओं के समूह ने अब मंगलवार को जावेद अहमद की पत्नी की ओर से याचिका दाखिल करने की तैयारी की है।

इसके पहले अधिवक्ताओं की ओर से भेजी गई पत्र याचिका पर सोमवार को कोर्ट खुलने के बाद संबंधित अधिवक्ताओं से हाईकोर्ट प्रशासन ने बात की। अधिवक्ता केके राय ने बताया कि मामले में महानिबंधक कार्यालय ने बताया कि नियमित याचिका दायर करें। पत्र याचिका पर सुनवाई नहीं हो सकती है। उन्होंने बताया कि नियमित याचिका कल दाखिल की जाएगी। इसकी सुनवाई के लिए कोर्ट से प्रार्थना की जाएगी।  मामले में कुछ वकीलों ने मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखकर याचिका कायम कर हस्तक्षेप करने की मांग की थी। लेकिन, सोमवार को हाईकोर्ट ने उस पर सुनवाई से इनकार कर दिया। कहा कि नियमित याचिका दाखिल की जाए। उस पर सुनवाई होगी।

प्रयागराज में बुलडोजर से जिस घर को रविवार को तोड़ा गया, उस पर सरकार की नजर चंद दिन पहले से नहीं थी। कहने को वो घर वेलफेयर पार्टी के नेता जावेद मोहम्मद का है लेकिन वो घर आफरीन फातिमा का भी है जो पूर्व छात्र नेता हैं और शाहीन बाग आंदोलन से प्रमुखता से जुड़ी रही हैं। पैगंबर पर टिप्पणी के नाम पर जो प्रदर्शन हो रहे हैं, उनमें पुलिस अब ज्यादातर समुदाय विशेष के नेताओं, एक्टिविस्टों और सामाजिक कार्यकर्ताओं को टारगेट कर रही है। कानपुर और सहारनपुर में कई सपा नेताओं को दंगाइयों में नामजद कर दिया गया है। नूपुर शर्मा की गिरफ्तारी का मामला अब कहीं पीछे छूट गया है।

आफरीन फातिमा ने मीडिया को बताया कि जुमे वाली घटना से भी पहले पुलिस ने उनके पिता जावेद मोहम्मद के खिलाफ धारा 107 में केस दर्ज कर लिया था। आफरीन ने कहा कि इस केस दर्ज करने का मतलब यह था कि शहर में अगर कहीं कुछ भी हुआ तो उसके पिता जिम्मेदार होंगे। जब जुमे को प्रदर्शन हुआ तो प्रशासन का पूरा फोकस जावेद मोहम्मद पर हो गया। हालांकि एफआईआर में बहुत सारे नाम हैं। आफरीन के मुताबिक जुमे वाली ही रात पुलिस अफसर उनके इलाहाबाद वाले घर पर आए और सभी लोगों से स्टेशन चलने को कहा। जब उन्होंने जाने से मना कर दिया तो उन्होंने जबरन घर खाली करा कर उस पर ताला लगा दिया। इस तरह प्रशासन और सरकार पूरा काम योजनाबद्ध तरीके से कर रही थी।

आफरीन फातिमा शाहीनबाग आंदोलन के दौरान दिल्ली में जेएनयू से लेकर इलाहाबाद में सक्रिय थीं। उसके बाद सोशल मीडिया पर उन्हें अल्पसंख्यकों से संबंधित नीतियों के लिए सरकार की आलोचना करते देखा गया। दक्षिणपंथी विचारों को प्रचारित और प्रसारित करने वाले एक पोर्टल ने आफरीन को जेल में बंद छात्र नेता शरजील इमाम का सहयोगी बताया है।  सरकार को आफरीन फातिमा की आलोचनाएं और उनके पिता का वेलफेयर पार्टी में होना पसंद नहीं आ रहा था। इसलिए इस परिवार को बहुत तरीके से रविवार को बेघर कर दिया गया। इस मामले में पुलिस और प्रशासन की कार्रवाई के सही या गलत होने का फैसला तो अदालत में होगा। लेकिन इलाहाबाद के करेली इलाके में जहां यह घर है, वहां अधिकांश घर मुसलमानों के हैं। करेली पहले इतना आबाद नहीं था। यहां पर लोगों ने जमीन खरीदकर घर बनाए हैं। यहां पर प्रशासन किसी भी घर में कोई कमी बताकर तोड़ सकती है, जबकि यूपी सरकार में बड़े पदों से रिटायर अफसरों के घर भी यहां हैं।

अब मामले में पेंच है क्योंकि जिस घर को जावेद मोहम्मद का बताकर बुलडोजर चलाया गया है वह दरअसल जावेद की पत्नी का है और उन्हीं के नाम पर प्रशासन ने बैक डेट का नोटिस जावेद मोहम्मद के नाम पर भेजा है, जबकि यह घर तो उनकी पत्नी के नाम पर है और जिस जमीन पर बना है वह उनकी पैतृक संपत्ति है। जावेद का इस घर पर कोई कानूनी अधिकार नहीं है। नोटिस में कहा गया है कि इससे पहले 10 मई को एक नोटिस भेजा गया था और 24 मई को सुनवाई के बाद 25 मई को आदेश पारित किया गया है। लेकिन इस पुराने नोटिस और सुनवाई आदि की कोई डिटेल नहीं है, न ही कोई सर्कुलर नंबर या आदेश संख्या का जिक्र इसमें है।

नोटिस पर 10 जून की तारीख है लेकिन इसे 11 जून की रात (शनिवार) में उनके दरवाजे पर चिपकाया गया। हालांकि 10 जून से ही लगातार पुलिस वाले उनके घर के आसपास मौजूद थे। इस सबसे जाहिर है कि नोटिस को जल्दबाजी में तैयार कर सप्ताहांत की रात में लगाया गया ताकि परिवार को किसी भी तरह के कानून संरक्षण का मौका न मिले क्योंकि मामला कोर्ट में जाता तो सबकुछ सामने आ जाता। इन सारे तथ्यों से साफ है कि पूरी कार्रवाई किसी खास नीयत से की गई है।रविवार को बुलडोजर कार्रवाई से पहले लगाए गए नोटिस में लिखा था कि संडे सुबह 11 बजे तक घर खाली कर दिया जाए। साथ ही पूरे इलाके में भारी संख्या में सुरक्षा बलों को तैनात किया गया था।

भवन ध्वस्तीकरण में संविधान के अनुच्छेद14, 21और 301 का उल्लंघन किया गया है ।इसके अलावा यूपी अर्बन प्लानिंग एंड डेवलपमेंट एक्ट,1973 के प्रावधानों की धज्जियाँ उडा डी गयी हैं। प्रयागराज विकास प्राधिकरण ने यूपी अर्बन प्लानिंग एंड डेवलपमेंट एक्ट,1973 के तहत मकान पर बुलडोजर चलाया है। लेकिन कानून की धारा 27 में बिल्डिंग के डेमोलिशन पर आदेश जारी करने का प्रावधान है।इसके अनुसार विध्वंस के कारणों की संक्षिप्त जानकारी वाले आदेश की एक कॉपी संपत्ति के मालिक को देने के कम से कम पंद्रह दिनों के बाद निर्माण तोड़ा जा सकता है।यानी कम से कम पंद्रह दिन की मियाद. क्या आप जानते हैं जावेद मोहम्मद के परिवार वालों के अनुसार उन्हें प्रशासन ने कितने दिन पहले नोटिस दिया? सिर्फ आधा दिन!

मोहम्मद जावेद को  जो पहला नोटिस मिला वह शनिवार रात 10 बजे के बाद हमारे घर पर चिपकाया गया था”. यानी 11 जून की देर रात और प्रशासन ने अगले ही दिन 12 जून को घर पर बुलडोजर चला दिया।

प्रयागराज विकास प्राधिकरण के आदेश में कहा गया है कि जावेद मोहम्मद को 10 मई 2022 को ही कारण बताओ नोटिस जारी किया गया था। लेकिन कानून स्पष्ट रूप से कहता है कि आदेश की एक कॉपी मालिक को देनी होगी और उसके बाद ही 15 दिन की यह मियाद शुरू होगी।जावेद मोहम्मद के घर ध्वस्तीकरण  के खिलाफ कोर्ट गए अधिवक्ता मंच के वकील केके राय का दावा है कि प्रयागराज प्रशासन ने नोटिस पर बैकडेट डालकर यह आसानी से कह दिया कि इसे 10 मई 2022 को जारी किया गया था लेकिन उन्हें ऐसा कोई नोटिस कभी नहीं मिला था।

यूपी अर्बन प्लानिंग एंड डेवलपमेंट एक्ट कहता है कि ऐसा कोई आदेश तब तक नहीं दिया जाएगा जब तक कि मालिक या संबंधित व्यक्ति को यह कारण बताने का उचित अवसर न दिया गया हो कि आदेश क्यों नहीं जारी किया जाना चाहिए।कानून कहता है कि मकान गिराने का आदेश तब तक नहीं दिया जाएगा,जब तक कि मालिक को अपना पक्ष रखने का उचित अवसर नहीं दिया जाता। यानी आदेश जारी करने से पहले कारण बताने का अवसर दिया जाना चाहिए. और फिर आदेश जारी किए जाने के बाद भी कम से कम 15 दिन का समय देना होता है।

गौरतलब है कि जावेद मोहम्मद को यूपी पुलिस ने शनिवार को गिरफ्तार किया था. उनकी पत्नी परवीन और बेटी सुमैया को भी पुलिस ने शुक्रवार की रात से ही हिरासत में ले रखा था और उन्हें रविवार की सुबह ही छोड़ा गया। ऐसे में आदेश चिपकाए जाने के बाद भी, उनके घर पर बुलडोजर चलने से पहले उनके पास वास्तव में अपना पक्ष रखने के लिए कितना समय था?

यूपी पुलिस जावेद मोहम्मद को प्रयागराज में 10 जून को हुई हिंसा का “मास्टरमाइंड” बताती है और अगले ही दिन उनके घर पर बुलडोजर चल जाता है। यूपी पुलिस ने आधिकारिक तौर पर कहा है कि घर पर बुलडोजर चलने का जावेद के खिलाफ शुरू हिंसा के केस से कोई लेना-देना नहीं है।ऐसे में बुलडोजर एक्शन की टाइमिंग अपने आप में सवाल खड़ा करती है।

(वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।)

जेपी सिंह
Published by
जेपी सिंह