चहनियां। उत्तर प्रदेश में कृषि प्रधान जनपद चंदौली किसी पहचान का मोहताज नहीं है। जिले में कर्मनाशा, चंद्रप्रभा सिस्टम व नरायनपुर लिफ्ट कैनाल से निकली 663 नहरों और माइनरों का 856 किलोमीटर तक जाल फैला हुआ है। तिस पर केंद्र व राज्य सरकर किसानों की आमदनी दोगुना होने का दम भी भर रही है। ऐसे अमृतकाल में रबी सीजन में गेहूं किसानों की सैकड़ों एकड़ फसल बूंद-बूंद पानी के लिए तरस रही है। सिंचाई विभाग के खिलाफ जनपद के किसान अक्सर हंगामा करते रहते हैं। विधानसभा की चारदीवारी में भी नहरों की बदहाली व लिफ्ट कैनाल की क्षमता बढ़ाने के लिए आवाज यदाकदा गूंजती रहती है। लेकिन आज भी किसानों की समस्याएं अंगद के पांव की तरह टस से मस होने का नाम नहीं ले रही है। सिंचाई संसाधनों को सही करने को लेकर शासन-प्रशासन की उदासीनता का खामियाजा किसान भुगत रहे हैं। इसके साथ ही अन्नदाता फसलों के पैदावार में नुकसान सहकर अपनी बची-खुची जमापूंजी भी गंवा रहे हैं।
चहनियां के नौदर गांव के किसान चन्दन सदमे में हैं। उन्होंने गेहूं की खेती के लिए 1.5 बीघा जमीन 23 हजार रुपए में एक साल के के लिए पट्टे पर ली थी, लेकिन बाण गंगा नहर में पानी समय से नहीं आया और गेहूं की पूरी फसल मारी गई। करीब दस दिनों बाद गांव में बहने वाले नाले के छोटे से तालाब के गंदे पानी से सींचकर जैसे-तैसे उन्होंने अपनी आधे बीघे गेहूं की फसल को तो बचा लिया, लेकिन तब तक गड़हे का पानी ख़त्म हो गया और एक बीघे की फसल बर्बाद हो गई।
“मैंने 1.5 बीघा में गेहूं बोने के लिए इस जमीन पर 32 हजार रुपये की लागत लगाई थी। यह लगभग मेरी पूरी बचत है। मैंने अपनी सारी बचत इस उम्मीद में खर्च कर दी कि मुझे इस साल यानी रबी सीजन में गेहूं की फसल से अच्छा मुनाफा हो जाएगा। मैं सूखे और कीटों के हमलों से अपनी फसल बचाने में कामयाब रहा। लेकिन सिंचाई के पीक पर नहर में पानी नहीं होने से मुझे और मेरे परिवार पर कहर बरपा दिया है। अपने आधे बीघे में बची फसल को गड़हे के पानी से सिंचाई कर रहे पंकज ने “जनचौक” को बताया।
उन्होंने कहा कि “गेहूं की पैदावार तो भूल जाओ। खेत में गेहूं की फसल खराब होने से मेरे मवेशियों को खिलाने लायक भूसा भी कम ही बन पाएगा। खरीफ में गंगा में हर साल बाढ़ आती है। अकेले मैं ही नहीं गंगा की बाढ़ में नौदर, हिनौता, परासिया, सुरतापुर, रमौली, मिसिर का चकिया, नादि और कीनाराम बाबा धाम से सटे से समेत एक दर्जन से ज्यादा गांवों के हजारों किसानों को नुकसान उठाना पड़ता है। खरीफ में धान के नुकसान के बाद परती पड़े खेतों में हमलोग बाजरा और मक्का लगाते हैं। धान की फसल ख़राब हो के बाद मैंने भी अपने समूचे रकबे में तीन क्विंटल बाजरा उपजाया, जिसमें से 2800 रुपए की दर से एक क्विंटल बाजरा बाजार में बेचा और बाकी मवेशी के लिए बचाया है। बाजरे के बाद मैंने मटर की फसल ली। रबी में गेहूं की बुआई से उम्मीद थी की पट्टे की लागत निकलने के साथ भूसे की व्यवस्था हो जाएगी। लेकिन, पानी की कमी ने हमारी उम्मीदों पर पानी फेर दिया। तकरीबन एक बीघे की गेहूं की फसल ख़राब होने पर मैंने उसे छोड़ दिया है। मवेशी और गांव के लोग चारा के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं। खेती के झटका देने से गृहस्थी की गाड़ी बड़ी मुश्किल से चल पा रही है।”
चन्दन आगे कहते हैं कि “यह पहली बार नहीं है जब हमें सिंचाई केलिए परेशान होना पड़ रहा है। जनवरी में भी मेरी फसल को बूंद-बूंद पानी के लिए तरसना पड़ा। 30 साल के पंकज ने अपने खेत की तरफ इशारा करते हुए बताया। बाण गंगा नहर में पानी आता है, लेकिन हमारे गांव से पहले हिनौता, सेमई आदि गांव किसान नहर को बांध कर अपने खेतों की सिंचाई करते हैं। उनकी सिंचाई पूरी हो जाने के बाद हमारे गांव में पानी आता है। इसमें भी बड़े किसान डीजल पम्प से अपने खेत भरने में जुट जाते हैं। तब तक सिंचाई का समय तेजी से निकल जाता है। कर्ज लेकर और मेहनत कर फसल लगाए हैं तो आंख के सामने बर्बाद होते देखा नहीं जाता। लिहाजन सीमांत, लघु और पट्टे आदि पर भूमि लेकर खेती करने वालों किसान अनाज न सही भूसे के लिए ही फसल को हजारों रुपए का डीजल फूंककर कायम रखते हैं। हालात ऐसे हैं कि यहां काम करने वाले 900 से ज्यादा किसान खरीफ में बाढ़ और रबी में सूखे से परेशान रहते हैं।
कम होगा अनाज का उत्पादन
हिनौता गांव के 72 साल के जगरनाथ यादव ने दो बीघे में गेहूं लगाए हैं। यादव, अपना हाथ सिवान (खेती योग्य भूमि) की तरफ 180 डिग्री के कोण पर लहराकर बताते हैं कि “यह समूचा सिवान गंगा का डूब है। जनवरी में नहर आई थी तो डीजल पंप लगाकर 1200 रुपए खर्च कर गेहूं की सिंचाई किया था। सिंचाई के लिए बाण गंगा नहर से प्लास्टिक की पचास किलो पाइप लगाकर दो लोगों ने मिलकर दिनभर कड़ी मेहनत कर खेत को सींचा। इससे फसल तो बच गई है, लेकिन फरवरी महीने से गर्मी का एहसास होने से खेतों की नमी समय से पहले ही उड़ गई। अब पानी के अभाव में नमी खेत में बची ही नहीं है। इससे गेहूं की बालियों में अनाज बनने और उसके पोषण में कमी आएगी। जिसका असर अनाज के उत्पादन पर पड़ना लाजमी है। मैं सोच रहा हूं, पानी मिल जाए तो एक पानी और अपनी फसल को दे दूं, लेकिन नहर में पानी ही नहीं है।
यादव आगे कि “यह इलाका बाढ़ में डूब जाता है, इसलिए डूब इलाके में सिंचाई के साधनों का अभाव है। यहां तक की सरकारी नलकूप भी नहीं लगाए गए हैं। गिनती के किसानों ने समरसेबल लगाए हैं, जिससे वे अपने ही खेतों को भरने में जुटे रहते हैं। साल 2021 और 22 में धान गलन में चला गया, जो कुछ बचा था और पांच हजार रुपए कर्ज लेकर गेहूं की बुआई की है। पानी की कमी से हिनौता, सुरतापुर, पारसी और सेमई के हजारों किसान सुखाड़ से आर्थिक बोझ के तले दबे हुए हैं। सोसाइटी में वक्त पपर डीएपी, यूरिया, फास्फोरस और कीटनाशक नहीं मिल पाते हैं। ज्यादा दामों पर ब्लैक में खाद खरीदना पड़ता है। प्रशासनिक उपेक्षा और जनप्रतिनिधि की उदासीनता का दंश किसान झेलने को मजबूर हैं। हमारी खेती-गृहस्थी का भगवान ही मालिक है।”
कैनाल की क्षमता बढ़ाने की मांग
ग्रामीण लोग गंगा पर बने भूपौली पंप कैनाल की क्षमता को 350 से 700 क्यूसेक किए जाने की मांग कर रहे हैं। फिलहाल इससे 34 हज़ार हेक्टेयर ज़मीन की सिंचाई की जाती है।
प्यासे रह गए खेत
विंध्याचल पहाड़ की तलहटी में स्थित शहाबगंज विकास खंड के सैकड़ों गांवों को भी सिंचाई विभाग की लापरवाही की कीमत चुकानी पड़ रही है। बांध का पानी छोड़े जाने के बाद भी क्षतिग्रस्त लिंक नहर होने के चलते खेत तक पानी नहीं पहुंच पाया है। इससे गेहूं किसान सिंचाई करने से वंचित रह गए हैं।
किसान अमरनाथ बताते हैं कि “सिंचाई विभाग की ओर से गेहूं कि सिंचाई के लिए 5 मार्च से नहर में पानी खोला गया है। आज तक पानी खेत तक नहीं पहुंच सका है, जबकि कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि मौसम की गर्मी को देखते हुए खेत की सिंचाई करना गेहूं के फसल के लिए बेहद जरूरी है। राजनाथ कहना है कि क्षतिग्रस्त लिंक नहर के मरम्मत के लिए सिंचाई विभाग के अधिकारियों को बताया गया था, लेकिन उन्होंने इसकी मरम्मत करना ठीक नहीं समझा। गेहूं की फसल सिंचाई ना होने से किसानों में आक्रोश व्याप्त है।”
इस बारे में शहाबगंज क्षेत्र सिंचाई विभाग का कहना है कि पैसे की कमी के चलते इसकी मरम्मत नहीं हो पा रहा है।
खेतों में आधी घास
तीन बीघे में गेहूं लगाए हिनौता गांव के 60 साल के बलिराम अपनी फसलों का मुआयना करके लौट रहे थे। वह बताते हैं कि “हर साल बाढ़ और सूखे जैसे हालत का सामना करना पड़ता है। अधिकारी अपने दफ्तरों तक सीमित रहते है। किसानों को फसल के लिए पानी मिल रहा है या नहीं, इसकी किसी को फिक्र नहीं है। पानी के आभाव में मेरी फसल मारी गई है। बढ़वार भी प्रभावित हुई है। नमी कम होने से कीटनाशक भी सही से काम नहीं कर पाया और आधे में बलगेहूं (गेहूं के साथ उगने वाली घास) है। क्या किया जाएगा, अनाज जो होगा वह होगा। शेष भूसा ही बन जाएगा। ऐसा ही शंभू, प्रमोद, नरसिंह, सोहन और आदित्य के साथ है।
तापमान का टेरर
कृषि वैज्ञानिक का कहना है कि सामान्य से अधिक तापमान अनाज उत्पादन पर काफी असर डालता है। गर्मी बढ़ने से गेहूं की फसल बैठ जाती है। यूं कहें कि एक बीघा में तीन कुंटल पैदावार मिलता है, वह डेढ़ कुंटल ही मिलेगा। किसान को 50 फ़ीसद नुकसान होगा। अगर इन दिनों में सर्दी होती तो गेहूं बढ़ता। मगर गर्मी होने के कारण वह छोटा रह जाएगा और मात्रा कम हो जाएगी। उसकी उपज आधी रह जाएगी। परसिया गांव के किसान जमील अहमद ने अपनी बचत का दस हजार रुपए इस उम्मीद में रबी में गेहूं की बुआई पर खर्च दिया कि, गेहूं से अनाज और मवेशियों के चारे की व्यवस्था हो जाएगी। पशुओं का चारा घटने में रोजाना पचास रुपए का भूसा खरीद कर खिलाना पड़ता है। लेकिन इस बार फिर मौसम की मार और सिंचाई के अभाव में फसल पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं।
कागजों में दोगुनी हो रही किसानों की आय
बहेरी गांव के किसान कृष्ण बिंद की फसल पानी के अभाव में सूख रही है। वह बताते हैं कि “धानापुर विकासखंड के बहेरी गांव में लगा राजकीय ट्यूबवेल कई महीनों से खराब है। जिससे सिंचाई का काम रुक रहा हो रहा है। इसकी भी सूचना किसानों की ओर से सिंचाई विभाग को दी गई है, लेकिन आज तक विभाग द्वारा कोई कार्रवाई नहीं किए जाने से किसानों में रोष है। सरकार केवल कागज में किसानों की आय दोगुनी करने की बात करती है, सरकार की ओर से किसानों की समस्या पर ध्यान दिया गया होता तो उन्हें सिंचाई की समस्या से नहीं जूझना पड़ता। प्रभावित गाँवों के किसानों की शिकायत है कि मुख्य नारायणपुर पम्प नहर से निकलने वाली छोटी नहरों की मरम्मत ठीक नहीं है। दशकों से इनकी देखरेख का कोई काम नहीं हुआ है।”
आंदोलन की तैयारी
अखिल भारतीय किसान महासभा के जिलाध्यक्ष श्रवण कुशवाहा ने “जनचौक” से कहा कि “हिनौता, नौदर, परसिया, सराय-रसूलपुर, रैयया, भुसौला, सेमई, परासी, रामगढ़, पूरा, सुरतापुर, रमौली गांवों के साथ साथ एक दर्जन अन्य गांवों के हजारों ग्रामीण बाढ़ और सुखाड़ (नहर) से बुरी तरह से प्रभावित हुए हैं। नहर में पानी नहीं आने से 800 से अधिक बीघे की फसल बर्बादी के कगार पर खड़ी है। हमलोगों ने बाण गंगा नहर में पानी, नहर में रेगुलेटर और क्षतिग्रस्त नहरों की मरम्मत के लिए लंबा आंदोलन चलाया था। रेगुलेटर की वजह से बारिश के पानी का इस्तेमाल अच्छी तरह किसान कर पाते और फसलों को डूबने से भी बचाया सकता है। तब अधिकारियों ने बजट आने के बाद सुधार की बात कही थी, लेकिन मामला लटकता ही जा रहा है। सिंचाई विभाग की लापरवाही का खामियाजा किसानों को भुगतना पड़ रहा है। जिन किसानों ने एक साल की आजीविका खो दी है, और उन्हें उचित मुआवजा दिया जाना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि मार्च के बाद नहरों की मरम्मत हो तो नहर में दरारों पर ध्यान दिया जाना चाहिए और गाद निकालने और निराई-गुड़ाई भी की जानी चाहिए।”
कुशवाहा ने आगे कहा कि “25 लाख की आबादी वाले जिले में 1.85 लाख लघु, सीमांत व 15 हजार बड़े किसान हैं। वहीं तकरीबन एक 27 हजार हेक्टेयर भूमि पर खरीफ व रबी फसलों की खेती होती है। किसानों में सरकार प्रति उदासीनता का माहौल है। यदि जल्दी ही निदान नहीं हुआ तो एक बड़ी जनगोलबंदी कर किसान की दुर्दशा, सिंचाई की अव्यवस्था पर आंदोलन चलाया जाएगा।”
फिर मरम्मत का वादा
कुछ दिनों पहले हमें महाइच परगना के दो दर्जन गांवों के किसानों से शिकायत मिली थी कि उनकी गेहूं की खड़ी फसल को सिंचाई के लिए पानी की समस्या हो रही है। प्रशासन की ओर सिंचाई विभाग के अवर अभियंता ने माना कि नहर के कुछ स्थानों पर टूटने से पानी का बहाव बढ़ गया है। मामले की जांच की जाएगी और नहर में पानी का स्तर कम होने पर मार्च के बाद नुकसान की मरम्मत की जाएगी। नहर की अच्छी तरह से सफाई की जाएगी और जरूरत पड़ने पर मरम्मत की जाएगी।
(चंदौली से पत्रकार पवन कुमार मौर्य की ग्राउंड रिपोर्ट।)