केंद्र की मोदी सरकार किसी भी कीमत पर दिल्ली की कमान छोड़ना नहीं चाहती और केजरीवाल सरकार को केवल कागजी सरकार बनाकर रखना चाहती है। मोदी सरकार ट्रांसफर पोस्टिंग में दिल्ली के एलजी का वर्चस्व बनाए रखने के लिए अध्यादेश लेकर आई है और सुप्रीम कोर्ट के संविधान पीठ के फैसले को उलट दिया है। इससे भविष्य में सुप्रीम कोर्ट से केंद्र सरकार का एक नया टकराव होना संभावित है।
कुछ दिन पहले ही अधिकारों की लड़ाई में दिल्ली सरकार को सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ में बड़ी जीत मिली थी। लेकिन अब उसी फैसले के खिलाफ केंद्र सरकार ने एक नया अध्यादेश जारी कर दिया है। ये अध्यादेश केजरीवाल सरकार के लिए ही जारी किया गया है। इस अध्यादेश में साफ लिखा है कि अधिकारियों की पोस्टिंग-ट्रांसफर पर असली बॉस एलजी ही रहने वाले हैं।
कुछ दिन पहले संविधान पीठ ने कहा था कि चुनी हुई सरकार के पास अफसरों की पोस्टिंग-ट्रांसफर की ताकत रहनी चाहिए, इससे चुनी हुई सरकार जवाबदेह बनती है और अधिकारियों की भी जवाबदेही तय हो पाती है। लेकिन अब केंद्र सरकार ने जो अध्यादेश जारी किया है, उसके मुताबिक दिल्ली सरकार अधिकारियों की पोस्टिंग पर फैसला ज़रूर ले सकती है, लेकिन अंतिम मुहर एलजी को ही लगानी होगी।
केंद्र सरकार जो अध्यादेश लेकर आई है, उसके जरिए राष्ट्रीय राजधानी सिविल सेवा प्राधिकरण का गठन होगा। ये प्राधिकरण ही बहुमत से फैसला करेगा कि कब किस अधिकारी का ट्रांसफर करना है। इस प्राधिकरण में तीन सदस्यों को रखा जाएगा, इसमें सीएम, मुख्य सचिव और प्रधान सचिव गृह होंगे। लेकिन जो भी फैसला होना होगा, वो बहुमत के आधार पर ही लिया जाएगा। यानी कि केजरीवाल सरकार के फैसले को दो नौकरशाह नकार सकते हैं। इस प्रकार चुनी हुई सरकार निरर्थक साबित हो सकती और यह संसदीय लोकतंत्र का पूरी तरह उपहास होगा।
मुख्यमंत्री केजरीवाल केंद्र सरकार के इस फैसले का पहले ही अंदेशा जता चुके थे। उन्होंने कहा था कि ऐसा सुनने में आ रहा है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटने के लिए केंद्र सरकार कोई अध्यादेश ला सकती है।
इस बीच अरविंद केजरीवाल शुक्रवार को सर्विस सेक्रेटरी के ट्रांसफर को लेकर एलजी विनय सक्सेना से मिलने पहुंचे। जिसके बाद एलजी ने सर्विस सेक्रेटरी की ट्रांसफर की फाइल पर सहमति दे दी। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद दिल्ली सरकार ने सर्विस सेक्रेटरी आशीष मोरे का ट्रांसफर कर दिया था।
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को डीईआरसी चेयरपर्सन की नियुक्ति में देरी को लेकर एलजी विनय सक्सेना को फटकार लगाई थी। उन्होंने कहा कि उपराज्यपाल इस तरह सरकार का अपमान नहीं कर सकते हैं। दरअसल, एलजी ने दिल्ली इलेक्ट्रिसिटी रेगुलेटरी कमीशन (डीईआरसी) के चेयरपर्सन की नियुक्ति के प्रस्ताव को सहमति नहीं दी थी। इसके बाद दिल्ली सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुंची थी। कोर्ट ने एलजी से इस मामले में दो हफ्ते में फैसला लेने के लिए कहा है।
दरअसल दिल्ली सरकार एमपी हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज, जस्टिस राजीव कुमार श्रीवास्तव को डीईआरसी का चेयरपर्सन बनाना चाहती है। इसके लिए सरकार ने 5 महीने पहले प्रस्ताव एलजी के पास भेजा था। दिल्ली सरकार के वकीलअभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि एलजी इस प्रस्ताव को टाल रहे हैं। वे इस मामले में कानूनी सलाह लेने की बात कह रहे हैं।इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इलेक्ट्रीसिटी एक्ट, 2003 के सेक्शन 84(2) के तहत राज्य सरकार हाईकोर्ट के किसी भी जज को इस पद पर नियुक्त कर सकती है। हालांकि, इसके लिए चुने गए जज जिस हाईकोर्ट में रहे हों उसके चीफ जस्टिस से सलाह लेनी होगी। इस मामले में दिल्ली सरकार ने मध्यप्रदेश हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस से सहमति ले ली है।
(वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।)