Tuesday, March 19, 2024

कर्नाटक में ब्राह्मणवाद और हिंदुत्व के लिए चुनौती, कन्नड़ अभिनेता चेतन

आंबेडकर, पेरियार और गौरी लंकेश के विचारों के वारिस कन्नड़ अभिनेता चेतन कुमार उर्फ चेतन अहिंसा को 21 मार्च को बैंगलुरू पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया और एक मजिस्ट्रेट अदालत ने उन्हें न्यायिक हिरासत में, यानि जेल भेज दिया। हालांकि दो दिनों बाद उन्हें जमानत पर रिहा कर दिया गया।

बैंगलुरू के बजरंग दल के एक समन्वयक शिवकुमार ने उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज करायी थी कि उनका एक ट्वीट हिंदुत्व-विरोधी था। पुलिस ने उनके खिलाफ धार्मिक भावनाओं को आहत करने और विद्वेषपूर्ण आशय से धार्मिक विश्वासों का अपमान करने के लिए आईपीसी की धारा 295ए के तहत मुकदमा दर्ज किया। उनका ट्वीट था: 

हिंदुत्व सिर्फ झूठ पर टिका हुआ है:

सावरकर: भारत एक ‘राष्ट्र’ तभी बन गया, जब राम रावण को पराजित कर अयोध्या लौटे —एक झूठ

1992: बाबरी मस्जिद राम का जन्मस्थान है —एक झूठ

2023: उरिगौड़ा-नांजेगौड़ ने टीपू सुल्तान की हत्या की —एक झूठ

सत्य से हिंदुत्व को पराजित किया जा सकता है —बराबरी ही सत्य है

40 वर्षीय चेतन अमरीकी के येल विश्वविद्यालय से ग्रेजुएशन करने के बद 2005-06 में वे फुलब्राइट स्कॉलरशिप के तहत थिएटर पर रिसर्च करने के लिए भारत आए और बैंगलुरू के ‘नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा’ के साथ काम करने लगे।

इस बीच उन्होंने फिल्मों में काम शुरू कर दिया। 2007 मे उनकी पहली फिल्म ‘आ दिनागलु’ (उन दिनों) में काम करने के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ नवोदित अभिनेता का उदया फिल्म पुरस्कार मिला। तबसे उनकी लगभग नौ फिल्में आ चुकी हैं और कुछ आने वाली हैं।

लेकिन ढेर सारे सामाजिक मुद्दों के लिए एक सतत संघर्षशील कार्यकर्ता के रूप में चेतन का क़द उनके फिल्मी कैरियर से कई गुना बड़ा है। वे मुखर जातिवाद विरोधी अम्बेडकरवादी हैं। वे हर कमजोर-मजलूम की आवाज और उसके संघर्ष के हमसफर हैं। जहां कहीं भी अन्याय दिखेगा, उसके खिलाफ चेतन की निडर आवाज जरूर सुनाई देगी।

चेतन को इससे पहले भी दो बार गिरफ्तार किया जा चुका है। मई 2021 में उन्होंने अम्बेडकर और पेरियार के उद्धरण ट्वीट किये थे। ये उद्धरण थे:

अम्बेडकर: “ब्राह्मणवाद स्वतंत्रता, समानता, बंधुत्व की भावना का निषेध है। हमें ब्राह्मणवाद को उखाड़ फेंकना होगा”

पेरियार: “जब सभी बराबर पैदा हुए हैं, तो ये कहना कि सिर्फ़ ब्राह्मण ही सर्वोच्च हैं और बाकी सब नीच और अछूत हैं ये सरासर बकवास है। यह एक बड़ा धोखा है।”

इस ट्वीट के बाद भी उनके खिलाफ ब्राह्मण विकास बोर्ड और कुछ अन्य ब्राह्मण संगठनों की शिकायत पर 295ए के तहत मुक़दमा दर्ज हुआ था और गिरफ्तार करके पुलिस स्टेशन में 4 घंटे तक पूछताछ की गयी थी, लेकिन जेल नहीं भेजा गया था।

इसी तरह 2022 में उन्होंने हिजाब मामले की सुनवाई कर रहे जस्टिस कृष्णा दीक्षित पर एक ट्वीट किया था कि ‘ये वही जज हैं जिन्होंने बलात्कार के एक आरोपी को यह कहते हुए जमानत दे दी थी कि “पीड़िता बलात्कार के बाद सो गयी थी, भारतीय स्त्रियों के लिए ऐसा करना अशोभनीय है।”

ऐसा व्यक्ति स्कूल में लड़कियों के हिजाब पहनने के मामले में क्या फैसला सुनाएगा, क्या उसके दिमाग़ में स्पष्टता है?’ इस ट्वीट का स्वतः संज्ञान लेते हुए पुलिस ने मामला दर्ज कर चेतन को गिरफ्तार कर लिया। बाद में कोर्ट ने उन्हें 4 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेज दिया था।

पिछले कुछ वर्षों से कर्नाटक हिंदुत्व की नवीनतम प्रयोगशाला बना हुआ है। संघ और उसके आनुषांगिक संगठनों के छोटे-बड़े, हर दर्जे के कार्यकर्ताओं में सांप्रदायिकता फैलाने वाले और अल्पसंख्यकों को चिढ़ाने वाले नफरती बयान देने की होड़ लगी हुई है।

हिंदुत्व की परियोजना को लेकर देश के अन्य इलाक़ों की तरह वहां भी सवर्ण संगठन खासे रोमांचित हैं। ऐसे में उनके हर क़दम का प्रतिरोध करने के कारण विधानवादी- अम्बेडकरवादी चेतन कुमार उनकी आंखों की किरकिरी बने हुए हैं।

शुरू से ही चेतन एक बेहतर और हर तरह के वर्चस्व से मुक्त समाज बनाने के सपने के साथ जुड़े हुए हैं। इसके लिए वे अपने फिल्मी कैरियर को भी दांव पर लगाये रहते हैं। आज के दौर में, जब हम देख रहे हैं कि पुलिस-प्रशासन और नौकरशाही-न्यायपालिका-मीडिया से लेकर फिल्मी दुनिया और कारोबारियों तक, अपने कैरियर और कारोबार को बचाये रखने के लिए या तो असत्य और अन्याय के समर्थन में खड़े हो गये हैं, या उसके प्रति तटस्थ हो गये हैं, अथवा अपने आक्रोश को अपने भीतर जज्ब किये हुए, चुप्पी साधे हुए, समय बदलने का इंतज़ार करने लगे हैं।

ऐसे दौर में भी अपनी अंतश्चेतना की आवाज सुनने और अंजाम की परवाह किये बिना हर ग़लत बात के खिलाफ़ विरोध दर्ज कराने और टकराने का हौसला रखने वाले चेतन कुमार अहिंसा हमारे समाज के युवाओं के लिए एक आदर्श स्थापित करते हैं और वे फुले-अम्बेडकर-पेरियार-भगतसिंह की विरासत को आगे ले जाने की उम्मीद पैदा कर रहे हैं।

ऐसा नहीं है कि चेतन केवल ट्विटर पर सक्रिय हैं। उनका पूरा जीवन ऐक्टिविस्ट का जीवन है। उनकी रचनात्मक और प्रतिरोधात्मक गतिविधियों की सूची भी खासी लंबी है:

वे युवा और छात्र संगठनों, महिला समूहों, ट्रेड यूनियनों, किसान संगठनों और बराबरी और न्याय के लिए लड़ रहे दलित और आदिवासी आंदोलनों को सहयोग और समर्थन देते हैं।

वे अनेक सामाजिक मुद्दों पर खुल कर अपनी बात टीवी पर होने वाली बहसों तथा अपने लेखों के माध्यम से रखते हैं। उनके सरोकारों का दायरा काफी विस्तृत है। वे फिल्मों में भूमिकाओं के बदले किये जाने वाले यौन उत्पीड़न, पानी के नाम पर होने वाली राजनीति और ज्यादा खर्चीले तथा ध्वनि प्रदूषण फैलाने वाले लोहे के फ्लाईओवरों के निर्माण की भी खिलाफत करते रहे हैं।

वे सांप्रदायिक राजनीति की खिलाफत और हाशिये के लोगों के लिए आरक्षण की मांग करते रहे हैं। उन्होंने भूमि-अधिग्रहण, असहिष्णुता फैलाने तथा पर्यावरण नष्ट करने वाली हालिया सरकारी नीतियों की भी मुखर मुखालफत की है।

अपने भारत आने के साथ ही, 2005 में उन्होंने मैसूर से 25 किलोमीटर दूर मुल्लुर गांव से स्कूल छात्रों के बीच उन्होंने संवाद सत्रों, बहसों के आयोजनों, लेखन के विषय सौंपने, बाहर से मेहमान वक्ताओं को बुलाकर बात रखवाने जैसी आधुनिकतम शैक्षणिक तकनीकों की शुरुआत की।

उन्होंने तटीय कर्नाटक में ‘एंडोसल्फान’ नामक खर-पतवार नाशक के जहरीले प्रभाव से पीड़ित लोगों के पुनर्वास के लिए संघर्ष करके चौबीसों घंटे उनकी चिकित्सकीय देखरेख और प्रति व्यक्ति 3000 से 5000 रुपये तक मासिक हर्जाने के लिए 2013 में राज्य सरकार से 72 से 90 करोड़ रुपये का पुनर्वास कोष स्थापित कराया जो आज भी जारी है।

2014 में उन्होंने दक्षिण कर्नाटक के कोरागा आदिवासी विद्यालय के बच्चों को उस इलाक़े में व्याप्त ‘अज्जालु पद्धाठी’ नामक प्रथा के खिलाफ जागरूक करना शुरू किया। इस प्रथा में ऊंची जाति की गर्भवती महिलाओं के नाखून और बाल आदिवासी महिलाओं को जबरन खिलाया जाता था।

चेतन ने इस प्रथा को मीडिया के सामने लाकर और इसके खिलाफ अभियान छेड़ कर, दबाव बना कर अंततः 2017 में राज्य सरकार द्वारा अंधविश्वास-विरोधी क़ानून बनवा कर इसे समाप्त कराया।

2016 में धिडल्ली, कुर्ग के 3000 आदिवासियों के ग़ैरक़ानूनी विस्थापन के खिलाफ बड़े पैमाने पर अभियान चलाकर उनके लिए 4 लाख रुपये प्रति मकान की दर से 528 मकान बनवाने के लिए राज्य सरकार को मजबूर किया।

भाजपा ने 2018 में आधिकारिक तौर पर इस संघर्ष के नक्सल-प्रेरित होने का आरोप लगाया और चेतन को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया। चेतन ने इस आरोप को चुनौती देते हुए बताया कि यह एक अहिंसक और सांवैधानिक प्रदर्शन था और उन्होंने भाजपा के राज्य अध्यक्ष येदुरप्पा और केंद्रीय क़ानून मंत्री रवि शंकर प्रसाद से इस आरोप के लिए माफी मांगने को कहा।

2016 में ही चेतन ने यौन अल्पसंख्यकों के अधिकारों के लिए जारी LGBTQ आंदोलन का खुल कर समर्थन किया और भेदभाव पूर्ण धारा 377 का विरोध किया।

2017 में कन्नड़ फिल्म उद्योग में काम करने वाली महिलाओं, लेखकों और तमाम पेशेवरों-मजदूरों को किसी भी तरह के शोषण-उत्पीड़न से बचाने के लिए ‘फिल्म इंडस्ट्री फॉर राइट्स एंड इक्वलिटी’ (FIRE) की स्थापना किया।

उन्होंने 2017 में बैंगलुरू के सरकारी संस्थानों में हिंदी थोपे जाने को भी चुनौती दिया और राज्य सरकार द्वारा कर्नाटक के लिए एक स्वतंत्र ध्वज अपनाने की मांग के पक्ष में प्रदर्शनों, गोलमेज सम्मेलनों और टीवी पर बहसों के माध्यम से अपनी बात रखी। उन्होंने सरकारी और निजी संस्थानों में कर्नाटक वासियों का प्रतिनिधित्व बढ़ाये जाने की भी वकालत की।

चेतन ने गौरी लंकेश की हत्या के खिलाफ 2017 में ‘मैं भी गौरी’ अभियान शुरू किया। उन्होंने बैंगलुरू और कोलार में प्रदर्शनों और भाषणों के माध्यम से सामाजिक कार्यकर्ताओं, प्रगतिशील लोगों और बुद्धिजीवियों के साथ अपनी एकजुटता की खुलकर घोषणा की।

‘मैं भी गौरी’ अभियान के दौरान अपने भाषण में अन्होंने कहा, कि “गौरी लंकेश असहमति की आवाज का प्रतिनिधित्व करती हैं। एक ऐसी आवाज, जो कर्नाटक में फैलायी जा रही नफरत की संस्कृति के खिलाफ है। कायरों की धमकी के आगे वे झुकी नहीं, बल्कि और मजबूती से खड़ी रहीं। वे उनकी बहादुरी से डर गये, और उनकी हत्या कर दिये।”

वे महादयी नदी के किनारे के हुबली, बेलागवी और गडाग जिलों के लोगों को पेयजल सुविधाओं के लिए 2017-18 में चल रहे संघर्ष में भी शामिल हुए और टीवी बहसों और लेख के माध्यम से भी अपनी बात रखी।

2018 में उन्होंने बिल्कुल अलग सामाजिक-सांस्कृतिक प्रथाओं और धार्मिक प्रतीकों का अनुसरण करने वाले कन्नड़ भाषी गड़ेरियों ‘कडुगोल्ला’ को राज्य द्वारा अलग समुदाय के रूप में चिह्नित कराने के लिए सफल संघर्ष किया।

लिंगायत समुदाय को बासवा दर्शन और वचन साहित्य के साथ एक अलग धर्म के रूप में पहचान दिलाने के लिए 2018 से ही जारी संघर्ष में चेतन ने सक्रिय भागीदारी किया है। वे बैंगलुरू, कलबुर्गी और हसन के फोरमों, टीवी पर बहसों और साक्षात्कारों में अपनी बात रखते आ रहे हैं।

कृषि क़ानूनों के खिलाफ 2020-21 के किसान आंदोलन के साथ भी उन्होंने खुल कर अपनी एकजुटता की घोषणा की।

अपने समतामूलक प्रगतिशील राजनीतिक विचारों के कारण वे दक्षिणपंथी संगठनों के निशाने पर हमेशा रहते हैं। इन संगठनों ने 2017 की उनकी फिल्म ‘नूरोंडु नेनापु’ के चामराजानगर में पोस्टर फाड़ डाले थे और प्रदर्शित नहीं होने दिया था।

किसी भी व्यक्ति की प्रगतिशीलता का प्रमुख पैमाना निजी जीवन में उसका आचरण होता है। चेतन का निजी जीवन भी उनके विचारों की झलक देता है। फरवरी 2020 में चेतन ने मेघा से शादी की। मेघा लंबे समय से उनकी सहयोगी हैं।

शादी का यह आयोजन एक अनाथालय में किया गया था, निमंत्रण पत्र बोये जा सके वाले बीजों से बना था, शादी की शपथ एक ट्रांसजेंडर ऐक्टिविस्ट की अध्यक्षता में ली गयी और सभी मेहमानों को रिटर्न गिफ्ट के तौर पर भारतीय संविधान की प्रतियां दी गयीं।

एक समतामूलक, शोषण-उत्पीड़न मुक्त और न्यायपूर्ण भारत बनाने का स्वप्न देखने वाले हजारों नौजवानों के लिए चेतन अहिंसा हौसले और उम्मीद की रोशनी बने हुए हैं।

ऐसे संघर्षशील और स्वप्नदर्शी युवाओं के कारण ही अपनी जिंदगी के खूबसूरत वर्षों को सामाजिक-आर्थिक-राजनीतिक संघर्षों में गलाने-खपाने के बाद भी उम्मीद और नाउम्मीदी के भंवर में फंसे हुए लाखों क्रांतिचेता पूर्व-युवाओं में भी नये सिरे से ऊर्जा का संचार होने लगता है और साप्रदायिकता और तानाशाही प्रवृत्तियों का तूफान भी उनके भीतर एक बेहतर भविष्य की संभावना के दिये को बुझाने में नाकामयाब हो जाता है।

( शैलेश स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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