चीफ जस्टिस रंजन गोगोई द्वारा 31 जुलाई 2019 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय, लखनऊ पीठ के जज जस्टिस एसएन शुक्ला (श्री नारायण शुक्ला) के खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम (पीसीए) के तहत एफआईआर दर्ज करने की अनुमति सीबीआई को दे दी थी, लेकिन राजनीतिक मामलों में हद दर्ज़े की तत्परता प्रदर्शित करने वाली सीबीआई ने लगभग पौने दो माह बीत जाने के बाद भी अभी तक एफआईआर दर्ज नहीं की है। चीफ जस्टिस रंजन गोगोई 17 नवंबर को अवकाश ग्रहण करने वाले हैं, इसलिए विधिक क्षेत्रों में आशंका व्यक्त की जा रही है कि यदि उससे पहले एसएन शुक्ला के विरुद्ध एफआईआर दर्ज नहीं होती तो बाद में मामला बिना किसी कार्रवाई के रफा दफा हो सकता है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस एसएन शुक्ला पर आरोप है कि उन्होंने उच्चतम न्यायालय के चीफ़ जस्टिस की अगुवाई वाली पीठ के आदेशों का कथित उल्लंघन करते हुए एक निजी कॉलेज को 2017- 18 के शैक्षणिक सत्र में छात्रों को नामांकन देने की अनुमति दे दी थी। गौरतलब है कि जस्टिस शुक्ला के खिलाफ कदाचार की उत्तर प्रदेश के महाधिवक्ता राघवेंद्र सिंह की शिकायत पर सितंबर 2017 में सीजेआई दीपक मिश्रा ने एक आंतरिक जांच समिति गठित कर दी थी। इस समिति में मद्रास हाई कोर्ट की तत्कालीन चीफ जस्टिस इंदिरा बनर्जी, सिक्किम हाई कोर्ट के तत्कालीन चीफ जस्टिस एसके अग्निहोत्री और मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस पीके जायसवाल शामिल थे। समिति को जांच कर पता करना था कि क्या जस्टिस शुक्ला ने वाकई उच्चतम न्यायालय के आदेश का उल्लंघन करते हुए प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों में विद्यार्थियों के ऐडमिशन की समयसीमा बढ़ा दी थी ?
सीबीआई ने मुख्य न्यायाधीश गोगोई को पत्र लिखकर उनसे मामले की जांच करने की इजाजत मांगी थी। सीबीआई के निदेशक ने सीजेआई को लिखे पत्र में कहा था कि उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद, लखनऊ पीठ, उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति श्री नारायण शुक्ला और अन्य के खिलाफ सीबीआई ने तत्कालीन सीजेआई दीपक मिश्रा की सलाह पर तब प्रारंभिक जांच दर्ज की थी जब न्यायमूर्ति शुक्ला के कथित कदाचार के मामले को उनके संज्ञान में लाया गया था।
दरअसल मेडिकल प्रवेश घोटाले के नाम से जाने जाने वाले इस पूरे मामले की एसआईटी जांच की मांग करने वाली एक याचिका सुप्रीम कोर्ट में आई, जिसकी सुनवाई 9 नवंबर, 2017 को जस्टिस एस अब्दुल नजीर और जस्टिस जे चेलामेश्वर की पीठ ने की। पीठ ने इसे गंभीर माना और इसे पांच वरिष्ठतम जजों की पीठ को रेफर कर दिया। इस पीठ में चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा को भी रखा गया और सुनवाई के लिए 13 नवंबर 2017 की तारीख तय की गई। इसी तरह के एक और मामले का जिक्र कैंपेन फॉर ज्यूडिशियल अकाउंटेबिलिटी एंड रिफॉर्म (सीजेएआर) नाम की संस्था ने भी 8 नवंबर 2017 को जस्टिस चेलामेश्वर की अगुवाई वाली पीठ के सामने रखा था। उस मामले में पीठ ने 10 नवंबर को सुनवाई की तारीख तय की थी।
लेकिन 10 नवंबर को उच्चतम न्यायालय में हुए एक हाई वोल्टेज ड्रामे के बाद मुख्य न्यायाधीश की पीठ ने जस्टिस चेलामेश्वर की अध्यक्षता वाली पीठ द्वारा 9 नवंबर को दिए गए उस फैसले को खारिज कर दिया, जिसमें अदालत को रिश्वत देने के आरोपों में एसआईटी जांच की मांग वाली दो याचिकाओं को संविधान पीठ को रेफर किया गया था। इस पूरी बहस के दौरान वकील प्रशांत भूषण और चीफ जस्टिस के बीच तीखी नोंकझोंक हुई थी, जिसमें कहा गया था कि किसी भी रिपोर्ट या एफआईआर में किसी जज का नाम नहीं है। दरअसल सीबीआई ने जिस आधार पर ओडिशा हाईकोर्ट के पूर्व जज कुद्दूसी और कुछ लोगों को गिरफ्तार किया था, उसका आधार वह बातचीत थी, जिससे आभास मिलता है कि उच्चतम न्यायालय और इलाहाबाद हाईकोर्ट की अदालतों में रिश्वत देने की योजना बनाई जा रही है। आरोप है कि कुद्दूसी ने प्राइवेट मेडिकल कॉलेज को कानूनी मदद मुहैया कराने के साथ-साथ उच्चतम न्यायालय में भी मामले में मनमाफिक फैसला दिलाने का वादा किया था।
इससे तीस साल पहले उच्चतम न्यायालय ने 25 जुलाई 1991 को किसी भी जांच एजेंसी को उच्चतम या उच्च न्यायालय के किसी भी न्यायमूर्ति के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने से रोक दिया था और कहा गया था कि एजेंसी को मुख्य न्यायाधीश को मामले से जुड़े सबूत दिखाए बिना किसी सिटिंग जज के खिलाफ एफआईआर करने की मंजूरी नहीं दी जाएगी। 1991 से पहले किसी भी जांच एजेंसी ने उच्च न्यायालय के सिटिंग जज के खिलाफ जांच नहीं की है। यह पहली बार है जब मुख्य न्यायाधीश ने सिटिंग जज के खिलाफ जांच एजेंसी को एफआईआर दर्ज करने की इजाजत दी है।
गौरतलब है कि एफआईआर की अनुमति देने से पहले चीफ़ जस्टिस रंजन गोगोई ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिख कर जस्टिस एसएन शुक्ला को हटाने की कार्यवाही शुरू करने का अनुरोध किया था।जस्टिस गोगोई ने प्रधानमंत्री को लिखे पत्र में कहा था कि जस्टिस शुक्ला के खिलाफ आंतरिक जांच समिति ने गंभीर आरोप पाए हैं जो उन्हें हटाने की कार्यवाही शुरू करने के लिए पर्याप्त हैं, उन्हें किसी भी हाईकोर्ट में न्यायिक कार्य करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है।इन परिस्थितियों में आपसे आग्रह है कि आगे की कार्रवाई पर विचार करें।
उल्लेखनीय है कि सीजेआई जब किसी हाईकोर्ट के जज को हटाने के लिए राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को पत्र लिखते हैं, तब राज्यसभा के सभापति सीजेआई से विचार-विमर्श कर तीन सदस्यीय एक जांच समिति नियुक्त करते हैं। राज्यसभा के सभापति द्वारा नियुक्त समिति साक्ष्यों और रिकॉर्डों की जांच करती है और इस बारे में राय देती है कि उन्हें हटाने के लिए ऊपरी सदन में बहस हो या नहीं।लेकिन जब इस पत्र पर कोई कार्रवाई नहीं हुई तो चीफ जस्टिस गोगोई ने जस्टिस एसएन शुक्ला के खिलाफ एफआईआर लिखने की अनुमति सीबीआई को दे दी जिस पर सीबीआई अभी तक कुंडली मार कर बैठी है।
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