मानहानि मामले में मिली सजा के खिलाफ राहुल गांधी की अपील को सूरत की सेशन कोर्ट ने गुरुवार को खारिज कर दिया तो भारतीय जनता पार्टी के बदजुबान प्रवक्ताओं में से एक संबित पात्रा ने देश में कानून और संविधान का राज होने की दुहाई देते हुए कोर्ट के इस फैसले को राहुल गांधी के मुंह पर तमाचा करार दिया। जिस दिन यह फैसला आया उसी दिन हरियाणा की भाजपा सरकार ने हाई कोर्ट में हलफनामा दाखिल करते हुए साफ किया कि रॉबर्ट वाड्रा और रियल एस्टेट कंपनी डीएलएफ के बीच हुए जमीन के सौदे में नियमों का कोई उल्लंघन नहीं हुआ है।
इसलिए सवाल है कि अगर भाजपा प्रवक्ता के मुताबिक सूरत के सेशन कोर्ट का फैसला राहुल गांधी के मुंह पर तमाचा है तो क्या रॉबर्ट वाड्रा को क्लीन चिट मिलना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पूरी भाजपा के मुंह पर तमाचा नहीं माना जाना चाहिए?
राहुल गांधी ने तो कानून प्रदत्त अधिकारों का इस्तेमाल करते हुए अपने को मिली सजा के खिलाफ ऊपरी अदालत में अपील की थी और अब वे उन्हीं अधिकारों का इस्तेमाल करते हुए उससे भी ऊपर की अदालत में निचली अदालत के फैसले के खिलाफ अपील करेंगे, इसलिए निचली अदालत के फैसले से राहुल के मुंह पर तमाचा पड़ने जैसी कोई बात कोई मूर्ख या अनपढ़ व्यक्ति ही कह सकता है। लेकिन रॉबर्ट वाड्रा को तो जमीन के सौदे में उसी हरियाणा सरकार ने हाई कोर्ट में क्लीन चिट दी है, जिसने उनके खिलाफ मामला दर्ज किया था।
इसलिए रॉबर्ट वाड्रा और उनके बहाने सोनिया, प्रियंका और राहुल गांधी तथा पूरी कांग्रेस को मनगढंत आरोप लगा कर बदनाम करने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी पार्टी के दूसरे नेता क्या रॉबर्ट वाड्रा, गांधी परिवार और कांग्रेस से माफी मांगेगे?
करीब एक दशक पहले रॉबर्ट वाड्रा की ‘मैसर्स स्काईलाइट हॉस्पिटैलिटी’ और रियल एस्टेट सेक्टर की दिग्गज कंपनी ‘डीएलएफ यूनिवर्सल लिमिटेड’ के बीच हुए जमीन के सौदे को लेकर भाजपा ने रॉबर्ट वाड्रा पर कई आरोप लगाए थे। उस समय हरियाणा में कांग्रेस की सरकार थी। अप्रैल 2014 में भाजपा मुख्यालय में रविशंकर प्रसाद, जेपी नड्डा और अर्जुन राम मेघवाल ने प्रेस कांफ्रेन्स की थी, जिसमें ‘दामादश्री’ नाम की आठ मिनट की एक फ़िल्म दिखाई गई थी। उसी मौके पर अंग्रेजी में एक बुकलेट भी जारी की गई थी, जिसमें वाड्रा को ‘घोटालों का शहंशाह’, ‘किसानों का अपराधी’ और ‘देश का सौदागर’ जैसे विशेषण दिए गए थे।
प्रेस कांफ्रेन्स में आरोप लगाया गया था कि वाड्रा को सोनिया और राहुल गांधी का संरक्षण मिला हुआ है। रविशंकर प्रसाद ने कांग्रेस शासित राज्य सरकारों पर आरोप लगाया था कि उन्होंने वाड्रा को ‘घोटाला का महल’ खड़ा करने में सहयोग दिया है।
खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पहले 2014 के लोकसभा और फिर उसी साल हुए हरियाणा विधानसभा चुनाव में इस मुद्दे को खूब उछाला, गांधी परिवार का चरित्र हनन किया और भाजपा की सरकार बनने पर वाड्रा को जेल भेजने की बात भी कही। कुल मिला कर भाजपा ने मीडिया की मदद से ऐसा माहौल बना दिया था कि कांग्रेस को ग्रहण लग गया। हरियाणा में हमेशा तीसरे नंबर पर रहने वाली भाजपा पहले नंबर की पार्टी बन कर सत्ता पर काबिज हो गई।
भाजपा ने चुनाव दर चुनाव रॉबर्ट वाड्रा से जुड़े इस मुद्दे का खूब लाभ उठाया, लेकिन इस दौरान सिर्फ इतना हुआ कि 1 सितंबर, 2018 को गुरुग्राम पुलिस ने रॉबर्ट वाड्रा, हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा, रियल एस्टेट कंपनियों डीएलएफ और औंकारेश्वर प्रापर्टीज के खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत आपराधिक साजिश रचने और धोखाधड़ी करने के आरोप लगाते हुए मामला दर्ज किया।
इसी मामले के आधार पर भाजपा के ढिंढोरची की भूमिका निभाने वाले टीवी चैनलों और अखबारों ने वाड्रा के खिलाफ खूब खबरें चलाई। कई टीवी चैनलों ने अपने स्टूडियो में ही अदालत लगाकर लंबे समय तक मीडिया ट्रायल चलाया और वाड्रा को घोटालेबाज और भू-माफिया तक करार दे दिया।
इसी बीच 2019 के चुनाव आ गए। एक बार फिर भाजपा की ओर से प्रधान प्रचारक के तौर पर नरेंद्र मोदी ने पहले लोकसभा और उसके बाद हरियाणा विधानसभा के चुनाव में वाड्रा के कथित भूमि घोटाले को लेकर गांधी परिवार को निशाना बनाया। हरियाणा में भाजपा की दोबारा सरकार बन गई और लोकसभा की सभी दस सीटें भी उसे ही हासिल हुईं।
लेकिन वाड्रा के खिलाफ हरियाणा सरकार कुछ साबित नहीं कर पाई। गुरुग्राम पुलिस द्वारा मामला दर्ज किए जाने के करीब पांच साल बाद अब हरियाणा सरकार ने पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट को सौंपी अपनी रिपोर्ट में साफ किया है कि रॉबर्ट वाड्रा की ‘स्काईलाइट हॉस्पिटैलिटी’ के जरिए ‘डीएलएफ’ को जमीन के हस्तांतरण में नियमों का किसी तरह उल्लंघन नहीं हुआ है। कुल मिला कर यह मामला भी 2जी स्पेक्ट्रम और कोयला खदान आबंटन जैसा फर्जी और काल्पनिक ही निकला। बहुत संभावना है कि गांधी परिवार के खिलाफ चल रहा नेशनल हेराल्ड वाला मामला भी ऐसा ही निकलेगा।
बहरहाल हलफनामे के जरिए हाई कोर्ट को सौंपी गई हरियाणा सरकार की यह रिपोर्ट साफ तौर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, उनकी पार्टी और बिकाऊ मीडिया के मुंह पर करारा तमाचा है। न्यूनतम नैतिकता का तकाजा तो यह है कि उन्होंने जो आरोप वाड्रा पर, गांधी परिवार पर और कांग्रेस पर लगाए थे उसके लिए वे माफी भले ही न मांगे पर खेद तो व्यक्त करे ही।
लेकिन वे ऐसा हर्गिज नहीं करेंगे, बल्कि वे तो यह करेंगे कि कोई नया झूठा आरोप गढ़ लेंगे और फिर शुरू हो जाएंगे। उनके पास अपने झूठ को प्रचारित करने के लिए मीडिया है ही। ऐसे ही फर्जी मामलों को घोटालों के रूप में प्रचारित कर पिछले दस साल के दौरान भाजपा ने सभी चुनाव लड़े, जीते और सत्ता हासिल की है। आगे भी वे ऐसा ही करना चाहेंगे।
सवाल है कि ऐसे में कांग्रेस क्या करे? कांग्रेस ने अभी तक ऐसे मामलों में अपने को अदालती लड़ाई तक ही सीमित रखा है, लेकिन एक राजनीतिक दल के रूप में उसके लिए यह उचित नहीं है कि वह ऐसे मामलों का सिर्फ कानूनी रास्ते ही सामना करे। मौजूदा दौर में जब तथाकथित मुख्यधारा का मीडिया सरकार का ढिंढोरची बन चुका है और केंद्र सरकार की जांच एजेंसियों व अदालतों में ज्यादा फर्क नहीं रह गया है, ऐसे में कांग्रेस को अदालतों से इंसाफ मिलने की ज्यादा अपेक्षा पालने के बजाय इन मामलों को लेकर सड़कों पर उतरना चाहिए।
यह अफसोस और हैरानी की बात है कि दस साल से विपक्ष में रहते हुए भी कांग्रेस के नेता अभी भी सड़क से अपना नाता नहीं जोड़ पाए हैं। उन्हें इस मुगालते में नहीं रहना चाहिए कि जनता जब बहुत ज्यादा परेशान हो जाएगी तो खुद ब खुद कांग्रेस को सत्ता में ले आएगी। यह मुगालता इसलिए दूर हो जाना चाहिए कि जनता अब पांच किलो मुफ्त राशन और धार्मिक नारों के सहारे जीने की आदी होती जा रही है। इस स्थिति को रोकने की जिम्मेदारी सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी होने के नाते कांग्रेस की ही है।
(अनिल जैन वरिष्ठ पत्रकार हैं।)
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